जानिए किसी कन्या जातक का विवाह कब, कहाँ ओर किस दिशा में होगा??
सुसराल ओर पति कैसा मिलेगा??
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प्रिय पाठकों/मित्रों, हमारे यहाँ कहावत है कि जोड़े स्वर्ग से तय होकर आते हैं और उनका मिलन पृथ्वी पर निर्धारित समय में विवाह-संस्कार से होता है अर्थात सब कुछ विधि के विधान के अनुसार तय होने के बावजूद जब बेटी की उम्र ..-2. के पार हो जाती है तो मां-बाप की चिंताएं बढ़ने लगती है| दिन-रात उन्हें यही सवाल सालने लगता है कि हमारी लाडली के हाथ पीले कब होंगे?
 
उसे पति (वर) कैसा मिलेगा? ससुराल कैसी और कहां होंगी आदि| 
 
चिंता मत करिए, ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार ज्योतिष शास्त्र में आपके इन सवालों का जवाब है और आप खुद थोड़ी मेहनत करके इन बातों का जवाब जान सकते हैं|
 
ज्योतिष में लग्न कुंडली का प्रथम भाव जातक का स्वयं का होता है और इसके ठीक सामने वाला सातवां भाव जीवनसाथी का होता है| इस भाव से प्रमुख रूप से विवाह का विचार किया जाता है| इसके अलावा यह भी पता कर सकते हैं कि जीवनसाथी का स्वभाव कैसा होगा?
 
 उसका चरित्र कैसा होगा, ससुराल कैसी मिलेगी और वर-वधू में आपसी मित्रता कैसी रहेगी ??
 
पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार किसी कन्या लड़की की जन्म लग्न कुंडली से उसके होने वाले पति एवं ससुराल के विषय में सब कुछ स्पष्टत: पता चल सकता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि ज्योतिष विज्ञान में फलित शास्त्र के अनुसार लड़की की जन्म लग्न कुंडली में लग्न से सप्तम भाव उसके जीवन, पति, दाम्पत्य जीवन तथा वैवाहिक संबंधों का भाव है। इस भाव से उसके होने वाले पति का कद, रंग, रूप, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, व्यवसाय या कार्यक्षेत्र परिवार से संबंध आदि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यहां सप्तम भाव के आधार पर कन्या के विवाह से संबंधित विभिन्न तथ्यों का विश्लेषण प्रस्तुत है।
 
 
ससुराल की दूरी :
 
सप्तम भाव में अगर वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ राशि स्थित हो तो लड़की की शादी उसके जन्म स्थान से 90 किलोमीटर के अंदर ही होगी।
 
 
यदि सप्तम भाव में चंद्र, शुक्र तथा गुरु हों तो लड़की की शादी जन्म स्थान के समीप होगी। 
 
यदि सप्तम भाव में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर हो तो विवाह उसके जन्म स्थान से 200 किलोमीटर के अंदर होगा। 
 
अगर सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन राशि स्थित हो तो विवाह जन्म स्थान से 80 से 100 किलोमीटर की दूरी पर होगा। यदि सप्तमेश सप्तम भाव से द्वादश भाव के मध्य हो तो विवाह विदेश में होगा या लड़का शादी करके लड़की को अपने साथ लेकर विदेश चला जाएगा। 
 
 
शादी की आयु : 
 
 
यदि जातक या जातक की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में सप्तमेश बुध हो और वह पाप ग्रह से प्रभावित न हो तो शादी 1. से 18 वर्ष की आयु सीमा में होती है। सप्तम भाव में सप्तमेश मंगल पापी ग्रह से प्रभावित हो तो शादी 18 वर्ष के अंदर होगी। शुक्र ग्रह युवा अवस्था का द्योतक है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि सप्तमेश शुक्र पापी ग्रह से प्रभावित हो तो 25 वर्ष की आयु में विवाह होगा। चंद्रमा सप्तमेश होकर पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो विवाह 22 वर्ष की आयु में होगा। बृहस्पति सप्तम भाव में सप्तमेश होकर पापी ग्रहों से प्रभावित न हो तो शादी 27-28वें वर्ष में होगी। सप्तम भाव को सभी ग्रह पूर्ण दृष्टि से देखते हैं तथा सप्तम भाव में शुभ ग्रह से युक्त होकर चर राशि हो तो जातक का विवाह उचित आयु में सम्पन्न हो जाता है। यदि किसी लड़की या लड़की की जन्म कुंडली में बुध स्वर राशि मिथुन या कन्या का होकर सप्तम भाव में बैठा हो तो विवाह बाल्यावस्था में होगा।
 
 
विवाह वर्ष —
 
आयु के जिस वर्ष में गोचरस्थ गुरु लग्न, तृतीय, पंचम, नवम या एकादश भाव में आता है, उस वर्ष शादी होना निश्चित समझें परंतु शनि की दृष्टि सप्तम भाव या लग्न पर न हो। लग्न या सप्तम में बृहस्पति की स्थिति होने पर उस वर्ष शादी होती है।
 
विवाह कब होगा ??
 
यह जानने की दो विधियां यहां प्रस्तुत हैं। जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में स्थित राशि अंक में 10 जोड़ दें। योग फल विवाह का वर्ष होगा। सप्तम भाव पर जितने पापी ग्रहों की दृष्टि हो, उनमें प्रत्येक की दृष्टि के लिए 4-4 वर्ष जोड़ योग फल विवाह का वर्ष होगा।
 
 
 
विवाह की दिशा 
 
किसी भी कन्या जातक की जन्मांक में सप्तम भाव में स्थित राशि के आधार पर शादी की दिशा ज्ञात की जाती है। उक्त भाव में मेष, सिंह या धनु राशि एवं सूर्य और शुक्र ग्रह होने पर पूर्व दिशा वृष, कन्या या मकर राशि और चंद्र, शनि ग्रह होने पर दक्षिण दिशा, मिथुन, तुला या कुंभ राशि और मंगल, राहु, केतु ग्रह होने पर पश्चिम दिशा, कर्क, वृश्चिक, मीन या राशि और बुध और गुरु होने पर उत्तर दिशा की ओर शादी होगी। अगर जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में कोई ग्रह न हो और उस भाव पर अन्य ग्रह की दृष्टि न हो, तो बलवान ग्रह की स्थिति राशि में शादी की दिशा समझें।
 
 
पति कैसा मिलेगा :
 
ज्योतिष विज्ञान में सप्तमेश अगर शुभ ग्रह (चंद्रमा, बुध, गुरु या शुक्र) हो या सप्तम भाव में स्थित हो या सप्तम भाव को देख रहा हो, तो लड़की का पति सम आयु या दो-चार वर्ष के अंतर का, गौरांग और सुंदर होना चाहिए। अगर सप्तम भाव पर या सप्तम भाव में पापी ग्रह सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु का प्रभाव हो तो बड़ी आयु वाला अर्थात लड़की की उम्र से 5 वर्ष बड़ी आयु का होगा।
 
 
सूर्य का प्रभाव हो तो गौरांग, आकर्षक चेहरे वाला, मंगल का प्रभाव हो तो लाल चेहरे वाला होगा। शनि अगर अपनी राशि का उच्च न हो तो वर काला या कुरूप तथा लड़की की उम्र से काफी बड़ी आयु वाला होगा। अगर शनि उच्च राशि का हो तो पतले शरीर वाला गोरा तथा उम्र में लड़की से 12 वर्ष बड़ा होगा।
 
 
सप्तमेश अगर सूर्य हो तो पति गोल मुख तथा तेज ललाट वाला, आकर्षक, गोरा सुंदर,  यशस्वी एवं राज कर्मचारी होगा। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार चंद्रमा अगर सप्तमेश हो, तो पति शांत चित्त वाला गौर वर्ण का, मध्यम कद तथा सुडौल शरीर वाला होगा। मंगल सप्तमेश हो, तो पति का शरीर बलवान होगा। वह क्रोधी स्वभाव वाला, नियम का पालन करने वाला, सत्यवादी, छोटे कद वाला, शूरवीर,  विद्वान तथा भ्रातृ प्रेमी होगा तथा सेना, पुलिस या सरकारी सेवा  में कार्यरत होगा।
 
 
पति कितने भाई बहनों वाला होगा :
 
लड़की की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव से तृतीय भाव अर्थात नवम भाव उसके पति के भाई-बहन का स्थान होता है। उक्त भाव में स्थित ग्रह तथा उस पर दृष्टि डालने वाले ग्रह की संख्या से 2 बहन, मंगल से 1 भाई व 2 बहन बुध से 2 भाई 2 बहन वाला कहना चाहिए।
 
 
लड़की की जन्मकुंडली में पंचम भाव उसके पति के बड़े भाई-बहन का स्थान है। पंचम भाव में स्थित ग्रह तथा दृष्टि डालने वाला ग्रहों की कुल संख्या उसके पति के बड़े भाई-बहन की संख्या होगी। पुरुष ग्रह से भाई तथा स्त्री ग्रह से बहन समझना चाहिए।
 
 
पति का मकान : 
 
लड़की की जन्म लग्न कुंडली में उसके लग्न भाव से तृतीय भाव पति का भाग्य स्थान होता है। इसके स्वामी के स्वक्षेत्री या मित्रक्षेत्री होने से पंचम और राशि से या तृतीयेश से पंचम जो राशि हो, उसी राशि का श्वसुर का गांव या नगर होगा।
 
प्रत्येक राशि में 9 अक्षर होते हैं। राशि स्वामी यदि शत्रुक्षेत्री हो, तो प्रथम, द्वितीय अक्षर, सम राशि का हो, तो तृतीय, चतुर्थ अक्षर मित्रक्षेत्री हो, तो पंचम, षष्ठम अक्षर, अपनी ही राशि का हो तो सप्तम, अष्टम अक्षर, उच्च क्षेत्री हो तो नवम अक्षर प्रसिद्ध नाम होगा। तृतीयेश के शत्रुक्षेत्री होने से जिस राशि में हो उससे चतुर्थ राशि ससुराल या भवन की होगी।
 
 
यदि तृतीय भाव से शत्रु राशि में हो और तृतीय भाव में शत्रु राशि में पड़ा हो तो दसवीं राशि ससुर के गांव की होगी। लड़की की कुंडली में दसवां भाव उसके पति का भाव होता है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार दशम भाव अगर शुभ ग्रहों से युक्त या दुष्ट हो, या दशमेश से युक्त या दुष्ट हो तो पति का अपना मकान होता है। राहु, केतु, शनि से भवन बहुत पुराना होगा। मंगल ग्रह में मकान टूटा होगा। सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरु एवं शुक्र से भवन  सुंदर, सीमैंट का बहुमंजिला होगा। अगर दशम स्थान में शनि बलवान हो तो मकान बहुत विशाल होगा।
 
 
पति की नौकरी :
 
लड़की की जन्म लग्न कुंडली में चतुर्थ भाव पति का राज्य भाव होता है।  ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि चतुर्थ भाव बलयुक्त हो और चतुर्थेश की स्थिति या दृष्टि से युक्त सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र की स्थिति या चंद्रमा की स्थिति उत्तम हो तो नौकरी का योग बनता है।
 
 
पति की आयु : 
 
लड़की के जन्म लग्न में द्वितीय भाव उसके पति की आयु भाव है। अगर द्वितीयेश शुभ स्थिति में हो या अपने स्थान से द्वितीय स्थान को देख रहा हो तो पति दीर्घायु होता है। अगर द्वितीय भाव में शनि  स्थित हो या गुरु सप्तम भाव, द्वितीय भाव को देख रहा हो तो भी पति की आयु 75 वर्ष की होती है।
 
इसके साथ साथ ध्यान रखें यदि कन्या की जन्म कुंडली में सप्तमेश सूर्य के घर में बैठा हो तो ससुराल में शिव मंदिर होगा, रेल की यात्राओं से संबंध  अधिक रहेगा।
 
सप्तमेश चन्द्र के घर में बैठा हो तो ससुराल नदी  या किसी जल के स्रोत के पास होगी,  दुर्गा जी का मंदिर होगा और ससुराल वाले मातृ भक्त होंगे। उस जगह पर आसपास शराब या दवा का कार्य भी हो सकता है।
 
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि सप्तमेश मंगल के घर में हो तो ससुराल में कार्य अग्नि से संबंधित होगा, होटल या नियमित भट्ठी जलने का कार्य पाया जायेगा । घर किले जैसा या करके अगल बगल के लोग गलत किस्म के होने चाहिए तथा सेना या पुलिस से जुड़े लोग होंगे।
 
सप्तमेश बुध के घर पर है तो ससुराल वाले भगवान विष्णु के उपासक होंगे या विष्णु के किसी अवतार का मंदिर होगा। घर लोग बाजार में ही कार्य करने वाले होंगे तथा मकान बहुत सुंदर होगा।
 
सप्तमेश वृहस्पति राशि धनु या मीन में होने से तीर्थ स्थल में ससुराल होगी। मकान ,मंदिर या पूजा के स्थान के पास  अथवा मकान ही मंदिर की  तरह होगा। 
 
ससुराल के लोग गांव या नगर में प्रमुख स्थान, पीपल वृक्ष के पास तथा श्रेष्ठ वृत्ति से आजीविका चलाने वाले होंगे। 
 
धर्म का सहारा लेकर जीने वाले, महाजनी का काम प्रमुख रूप से हो सकता है और लोग शिव भक्त होंगे।
सप्तमेश शुक्र की राशि वृष या तुला में हो तो जातक (कन्या) की ससुराल के निकट कोई नदी,व लोग भोग विलास वाले होंगे। देवी भक्त व्यापारी होने की संभावना अधिक तथा बहुत खुशहाल मकान के आगे सुगंधित फूल पत्तियां लगे होंगे।
 
 
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि सप्तमेश शनि की राशि मकर व कुम्भ राशि  पर बैठा हो तो ससुराल के लोग लोहे से संबंधित व्यापारी,ट्रांसपोर्टर,तेल व्यवसायी या कोई निकृष्ट कार्य से जुड़े होंगे। मकान में नौकर चाकर भी रहते होंगे। पुराना टूटा मकान खंडहर जैसा भी हो सकता है।
 
 
सप्तमेश राहु से ग्रसित हो तो ससुराल पक्ष से पितृ पक्ष से कमजोर होगा तथा ससुराल में मकड़ी के जाले की अधिकता होगी।
 
सप्तमेश यदि केतु से ग्रसित हो तो ससुराल पक्ष के लोग  बढे-चढे होंगे।
।।शुभमस्तु।।
।।कल्याण हो।।

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