ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस दिन जो भी शनिदेव के निमित्त व्रत रखता है तथा विधि-विधान से उनकी पूजा करता है। शनिदेव उसका कल्याण करते हैं तथा उसके सभी कष्ट दूर कर देते हैं। इस बार यह पर्व . जून, बुधवार को है। शनिदेव के निमित्त व्रत करने की विधि इस प्रकार है-

शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि से निवृत्त होकर सबसे पहले अपने इष्टदेव, गुरु और माता-पिता का आशीर्वाद लें। सूर्य आदि नवग्रहों को नमस्कार करते हुए श्रीगणेश भगवान का पंचोपचार(स्नान, वस्त्र, चंदन, फूल, धूप-दीप) पूजन करें। इसके बाद एक लोहे का कलश लें और उसे सरसों या तिल के तेल से भर कर उसमें शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करें तथा उस कलश को काले कंबल से ढंक दें।

इस कलश को शनिदेव का रूप मानकर षोड्शोपचार(आह्वान, स्थान, आचमन, स्नान, वस्त्र, चंदन, चावल, फूल, धूप-दीप, यज्ञोपवित, नैवेद्य, आचमन, पान, दक्षिणा, श्रीफल, निराजन) पूजन करें। यदि षोड्शोपचार मंत्र याद न हो तो इस मंत्र का उच्चारण करें-

ऊँ शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवंतु पीतये।

शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:।।

ऊँ शनिश्चराय नम:।।

पूजा में मुख्य रूप से काले गुलाब, नीले गुलाब, नीलकमल, कसार, खिचड़ी(चावल व मूंग की) अर्पित करें। इसके बाद इस मंत्र से क्षमायाचना करें-

नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते।

नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तुते।।

नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च।

नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो।।

नमस्ते मंदसंज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते।

प्रसादं कुरूमे देवेशं दीनस्य प्रणतस्य च।।

इसके बाद पूजा सामग्री सहित शनिदेव के प्रतीक कलश को(मूर्ति, तेल व कंबल सहित) किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर दें। इस प्रकार पूजन के बाद दिन भर निराहार रहें और यथाशक्ति इस मंत्र का जप करें-

ऊँ शं शनिश्चराय नम:

शाम को सूर्यास्त से कुछ समय पहले अपना व्रत खोलें। भोजन में तिल व तेल से बने भोज्य पदार्थों का होना आवश्यक है। इसके बाद यदि हनुमानजी के मंदिर जाकर दर्शन करें तो और भी बेहतर रहेगा।

शनि शान्ति के उपाय —–बिगड़े हुए शनि अथवा इसकी साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए अनेक सरल और मनोवैज्ञानिक उपाय हैं । जैसे अपना काम स्वयं करना, फिजूलखर्च से बचना, कुसंगति से दूर रहना, बुजुर्गों का आदर करना, दान पुण्य के तौर पर दीन दुखी की सहायता करना, अन्न- वस्त्र दान समाज सेवा व परोपकार से अभिप्रेरित होकर शनि का दुष्प्रभाव घटता जाता है। अनेक सज्जन शनिवार के दिन तेल खिचड़ी फल सब्जी आदि का भी दान कर सकते हैं ।

शनि दान जप आदि करने से साढ़ेसाती के फल पीडादायक नहीं होते हैं। गुरूद्वारा मंदिर देवालय तथा सार्वजनिक स्थलों की स्वयं साफ सफाई करने रोगी और अपंग व्यक्तियों को दान देने से भी शनि की शांति होती है।

राशियों पर शनि प्रभाव——–

सिंह: इस राशि को पैरों को उतरती शनि साढ़ेसाती है। जिन महानुभावों ने गत 5-6 वर्षों में अपने जीवन में भारी कष्ट उठाए हैं, उनके लिए अब भी समय सावधानी से चलने का है। साढ़ेसाती खत्म होने से कुछ आशाजनक उत्साह का संचार अवश्यंभावी है, फिर भी अभी पूर्णत: निष्कंटक दौर आरंभ नहीं हुआ है। जिन जातकों ने अभी तक अच्छा समय देखा है, उनको भी अप्रैल तक सतर्क एवं सजग रहना आवश्यक होगा। शत्रु के किसी भी छल-कपट और धोखे से सावधान रहें। लापरवाही से चोट और हानि उठाने से बचें। अधिक आत्मविश्वास या अहंकारी प्रवृति के कारण किसी भी संकट में चाहे अनचाहे उलझने का डर है। इसके बाद अनेक महानुभावों को नया जीवन शुरू करने का अवसर मिलेगा। अविवाहितों का विवाह होगा। बेरोजगारों को नौकरी मिलेगी। व्यापार में फेरबदल करके अच्छा लाभ होगा और निष्ठापूर्वक कार्य करने से धन समृद्धि की प्राप्ति होगी। मकान, वाहन व पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी।

कन्या : इस राशि को पूरे साल ..10 में लौह पाद से हृदय पर साढ़े साती रहेगी। उसके बाद पैरों पर उतरती साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा। अनेकों जातकों को स्वास्थ्य संबंधी कष्ट और आजीविका में उतार-चढ़ाव का दौर देखना पडे़गा। कामकाज में मन नहीं लगेगा। कुछ अच्छे कार्यों में धन का निवेश हो सकता है। संतान व मित्रों के लिए खर्च करना होगा। स्टूडेंट्स को परीक्षा, प्रतियोगिता में कठोर परिश्रम के उपरांत आंशिक सफलता मिलेगी। जो सज्जन पहले ही बुरे वक्त के दौर से गुजर चुके हैं, उनके जीवन में अब कुछ ठहराव की अपेक्षा रहेगी। चूंकि हृदय स्थान से शनि विचरण कर रहा है, अत: दिलोदिमाग को वश में रखकर नेक इरादे से आगे बढ़ने की चेष्टा करने से निस्सन्देह अभूतपूर्व सफलता भी अनेक कन्या जातकों को प्राप्त होगी। आर्थिक रूप से समृद्धि बढे़गी व खोया धन भी जमा खाते में दर्ज हो जाएगा।

तुला : पूरे साल सिर पर तांबे के पाए से चढ़ती हुई साढे़साती उन तमाम तुला जातकों पर रहेगी जो पिछले दो-ढाई वर्षों से जीवन में अनेक प्रकार के परिवर्तन महसूस कर रहे हैं। साल में यह ग्रह बारहवें भाव में रहकर जहां लोभ, लालच और अवांछित कार्यों से हानि पहुंचाएगा, वहीं मुकदमे, विवाद से भी धन व चैन की हानि होगी। निष्काम भाव से किए गए परोपकार का फल भी कभी-कभी उल्टा मिलेगा। शरीर में रोग, दुर्घटना या गुप्त पीड़ा से उपचार और दवा का खर्च बढे़गा। कुछ जातक बुरे समय के दौरान भी कहीं-कहीं पर अच्छा प्रभाव महसूस करेंगे। कोई जटिल कार्य सिद्ध हो जाएगा या किसी भारी संकट से मुक्ति मिलेगी।

वृश्चिक : जनवरी से दिसंबर के मध्य तक लाभ स्थान में गतिशील शनि स्वर्णपाद फल नेष्ट है। पूर्वापेक्षा में विशुद्ध लाभ कम होगा। आवश्यक, अनावश्यक झंझटों में धन का अपव्यय होगा। घर, गृहस्थी की समस्या का समाधान देर से होगा। जन्म कुंडली में शनि शुभ पड़ा हो तो थोड़ा लाभ होता है। भाग्य का सितारा चमकता है पर कष्ट भी देता है।

धनु : रजतपाद से भाग्य कुसमय दशम भाव में गतिशील शनि महाराज धनु राशि वालों के लिए व्यवधान कारक है। समय के स्वरूप को देखकर कार्य करें। शनि से जुड़े दानादि भी यथा शक्ति करते रहें। धन और स्वास्थ्य के लिए शनि अंततोगत्वा लाभदायक रहेगा। शुभ मांगलिक कार्यों में खर्च होगा।

मकर : मकर राशि वालों के नवम कर्म क्षेत्र में गतिशील शनि अप्रैल बाद तक लोहपाद श्रेष्ठ है। लाभोन्नति में आश्चर्यजनक बदलाव आएगा। विचाराधीन काम पूरा होगा। आराम प्राप्ति का नया रास्ता खुलेगा। सामाजिक मेलजोल बढे़गा। एकाध नुकसान होगा। पारिवारिक कलह, रोग, बीमारी में इलाज का खर्च बढ़ेगा। अकारण झगड़े विवाद होने से सम्मान को आंच आएगी। सामाजिक प्रतिष्ठा में घट-बढ़ रहेगी।

कुंभ : कुंभ राशि वालों में लघु कल्याणी ढैया मध्यम फलदायक है, बनते-बिगड़ते परिवेश में नए आयाम मिलेंगे। साथी से सचेत रहें। व्यवसाय में उतार-चढ़ाव रहेगा। विघ्न बाधाओं से घर परिवार के सदस्यों का रुख भी उलटा रहेगा। साल के अंत तक कुछ जीविका के साधन उपलबध होंगे और बिगड़े काम बनेंगे।

मीन : सप्तम शनि रजत पाद फल नेष्ट है। मीन राशि वालों को असामान्य विषम परिस्थितियों में से गुजरना पड़ेगा। बनते कार्यों में अड़चनें पैदा होंगी। स्वास्थ्य नरम रहेगा। चांदी का पाया होने से दांपत्य जीवन का सुख-दुख समान मिलेगा। पर्याप्त खर्च के बाद घर-गृहस्थी में उन्नति से हर्षोल्लास होगा। घूमने का अच्छा अवसर मिलेगा। चौपाया या सवारी से भय बना रहेगा।

मेष : पूरे साल तक मेष राशि को छठा शनि भ्रमण फल श्रेष्ठ लाभोन्नति में सहायक रहेगा। वर्ष में जमा खर्च का संतुलन बना रहेगा। पशुधन, भूमि, वाहनादि का लाभ मिलेगा। स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडे़गा। अनेक जातकों को संघर्षपूर्ण हालात का सामना करना पड़ेगा। परिवार या व्यवसाय में उलझनें होंगी। ऋण और कर्ज बढ़ने की आशंका रहेगी। शत्रु भी सिर उठाएंगे। स्वास्थ्य बिगड़ने से मानसिक तनाव रहेगा।

वृष : पूरे वर्ष शनि पंचम भाव में लोहे के पाये से विचरण करेगा। स्टूडेंट्स को उच्च शिक्षा में बाधा आएगी। युवा जातकों को संतान कष्ट झेलना पड़ेगा। लोहे के पाये में शनि होने से पारिवारिक कलह दांपत्य जीवन में मनमुटाव व शत्रु, रोग और ऋण का दबाव बढ़ने से मानसिक अशांति बढ़ती रहेगी। उत्तरार्द्ध में समय श्री वृद्धि में सहायक रहेगा। अच्छी सोच समझ बनाने से भौतिक विकास व आर्थिक प्राप्ति का नया रास्ता खुलेगा। राजनैतिक क्षेत्र में भाग्य का सितारा चमकेगा। स्वास्थ्य कुछ गड़बड़ा जाएगा। सावधानी बरतें।

मिथुन : मिथुन राशि वालों के लिए शनि चौथे भाव से सोने के पाये में रहने से गतिशील शनि की लघु कल्याणी ढैया मध्यम फलदायक है। संघर्ष धन हानि और तनाव के बावजूद शुभ फल भी कभी-कभी उत्साहवर्धन करेंगे। जमीन, जायदाद और पारिवारिक मामलों में ज्यादा खर्च होने से आत्मग्लानि होगी। रोग और शत्रु से विवाद होने से खर्च बढ़ सकते हैं पर साल अंत तक कुछ उपलब्धियां होंगी।

कर्क : तृतीया यानी पराक्रम भाव में भ्रमणशील शनि ताम्रपाद फल नेष्ट है। खर्च की अभिवृद्धि मानसिक चिंता का कारण बनेगी। नए काम की रूपरेखा कठिनाई से सफल होगी। अच्छी व खराब दोनों किस्म की खबर मिलेगी। अधिकांश कर्क जातक जो व्यवसाय या नौकरी से जुड़े हैं, उन्हें कार्यों में सफलता मिलेगी। व्यापार में लाभ भी होगा व वाहन आदि की खरीद होगी पर बिना सोचे विचारे कुछ ऐसे काम भी होंगे जिनके लिए बाद में पश्चाताप हो।

इन दस नामों से पूजे शनिदेव को—–

शनिदेव सभी को उसके बुरे कर्मों का दण्ड देते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए कई स्तुतियां, मंत्र व स्तोत्र की रचना की गई है, जिनका स्मरण करने से शनि दोष कम होता है और शनिदेव प्रसन्न होते हैं। धर्म शास्त्रों में शनि के अनेक नाम बताए गए हैं। अगर इन नामों का नित्य जप किया जाए तो शनिदेव अपने भक्त की हर परेशानी दूर कर देते हैं। ये प्रमुख 10 नाम इस प्रकार हैं-

कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।

सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।

अर्थात: 1- कोणस्थ, 2- पिंगल, .- बभ्रु, 4- कृष्ण, 5- रौद्रान्तक, 6- यम, 7, सौरि, 8- शनैश्चर, 9- मंद व 10- पिप्पलाद। इन दस नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी शनि दोष दूर हो जाते हैं।

सफलता, शौहरत व पैसा दिलाता है शनि यंत्र—–शनि जयंती (1 जून, बुधवार) वह शुभ समय जब शनि संबंधी सभी प्रयोग, उपाय, टोटके व पूजा दोगुना फल प्रदान करते हैं। यदि आपकी कुंडली में शनि अशुभ स्थान है या आप पर शनि की साढ़े साती या ढैय्या चल रही है आपको हर कार्य में असफलता ही हाथ लगती है या सोचे गए कार्य देर से होते हैं। ऐसे में शनि जयंती के अवसर पर शनि यंत्र स्थापित करने और प्रतिदिन इसकी पूजा विधि-विधान करने से साढ़े साती व ढैय्या का प्रभाव कम हो जाता है।

ऐसे करें पूजा

श्रद्धापूर्वक शनि यंत्र की प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं। नीला या काला पुष्प चढ़ाएं ऐसा करने से लाभ होगा। इसके साथ ही प्रतिदिन शनि स्त्रोत या ऊँ शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जप करें।

मृत्यु, कर्ज, मुकद्दमा, हानि, क्षति, पैर आदि की हड्डी तथा सभी प्रकार के रोग से परेशान लोगों के लिए शनि यंत्र की पूजा बहुत फायदेमंद होती है। नौकरी पेशा लोगों को उन्नति भी शनि द्वारा ही मिलती है अत: यह यंत्र बहुत उपयोगी है।

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