वास्तु-शास्त्र : उपयोगी सुझाव—
वास्तु-शास्त्र वह विधा है जिसके माध्यम से चेतन-पुंज मनुष्य जड़बाह्य संसार से अपना तारतम्य बैठाता है और सकारात्मक सामंजस्य स्थापित करता है। वास्तुशास्त्र वास्तव में प्रकृतिचर्या का एक अंग है। इसके द्वारा हम प्रकृति से अपने अटूट नाते को सुदृढ़ बनाते हैं। तथाकथित सभ्यता की दौड़ में हम प्रकृति से बहुत दूर आ गए हैं और सबसे दुर्भाग्य की बात है कि प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करने में गौरव का अनुभव करते हैं। इसे हम मानव-जाति की विजय-यात्रा का एक अंग मानते हैं। पर क्या एक शिशु माता पर विजय प्राप्त कर सकता है आलस्य प्रमोद और भोगवादिता की दलदल में फंस कर हम प्रकृति से अति कर बैठते हैं जिसका विस्फोटात्मक परिणाम कभी-कभी बड़ा भयंकर होता है। स्वास्थ्य मानव जीवन की सच्ची सम्पत्ति है जो विश्राम पोषण व्यायाम और सही सोच इन चार स्तंभों पर स्थापित है।
पूजा-घर:
जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण आध्यात्मिकता अथवा आध्यात्म चिंतन से आता है। इसीलिए पूजा-घर चाहे छोटा ही हो आम हिन्दू घरों का अभिन्न अंग होता है। पूजा-स्थल घर का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है। यहां बैठ कर हम भले ही थोड़े क्षणों के लिए अपना संबंध् उस परम-सत्ता से जोड़ते हैं जिसका दिव्य तत्व बीज रूप में हम सबमें विद्यमान रहता है। इसका नित्य नवीकरण बहुत आवश्यक है और हमें स्मरण कराता है कि हम ब्रह्माण्डीय प्राणी हैं।
अनन्त जलराशि में रहने वाली मछली की भांति हम ब्रह्माण्ड में हैं ब्रह्माण्ड हममें है। पूजा-स्थल पूरे परिवार के लिए प्रेरणा तथा उर्जा का अजस्र स्रोत है जिसमें परिवार के प्रत्येक सदस्य को सुख शांति स्वास्थ्य व समृद्धि प्राप्ति हेतु कुछ न कुछ समय अवश्य व्यतीत करना चाहिए। वास्तु-शास्त्रा के अनुसार ईशान-कोण अर्थात पूर्वोत्तर दिशा पर बना पूजा-स्थल सर्वोत्तम होता है। यदि यह संभावना हो तो पूजा-स्थल पूर्व अथवा उत्तर दिशा में भी हो सकता है। जप-ध्यान या पूजा करते समय हमारा मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। पूजा-घर में से अधिक उंचाई वाली मूर्ति नहीं होनी चाहिए। सज्जा-मूर्ति को पूजा-घर में रखना उचित नहीं है। घर में दो शिवलिंग तीन गणेश और तीन दुर्गा मूर्तियां नहीं होनी चाहिएं। इससे घर में अशांति फैलती है। पूजा-स्थल केवल पूजा-ध्यान के लिए है अतः इसमें भोजन राशन आदि नहीं करना चाहिए। यह स्थान धूप और बत्ती और सुगंधित फूलों से सुवासित होना चाहिए। यहां बनावटी फूलों का निषेध् रखें। तुलसी का बिरवा इसका एक आवश्यक अंग है।
रसोई-घर:
आवश्यक पोषण के बिना मनुष्य जीवन नहीं चल सकता। इसका सीधे संबंध् रसोई घर से है। वास्तु शास्त्रा के अनुसार रसोई-घर दक्षिण-पूर्व दिशा में होना चाहिए। यह अग्नि-देव की दिशा है इसलिए इसे आग्नेय कोण कहा जाता है। आग या बिजली से संबंधित उपकरण जैसे फ्रीज़ मेन-स्विच या जनरेटर इत्यादि इसी दिशा में होने चाहिएं। अन्य दिशा में होने पर इन चीजों से उपद्रव हो सकता है। परिस्थितिवश रसोईघर पश्चिमोत्तर दिशा वायव्य कोण में भी हो सकता है। खाना बनाने वाले का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना आवश्यक है। रसोईघर में प्रकाश तथा वायु के आवागमन की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
भोजन-कक्ष रसोई-घर के साथ का अविच्छिन्न संबंध् है। पश्चिम भोजन-कक्ष की सर्वोत्तम दिशा है। यह शनि-ग्रह की दिशा मानी जाती है जिसका भूख से सीध संबंध् है। भोजन सदा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए। पूर्व की ओर मुख करके भोजन करने से मनुष्य की आयु बढ़ती है और उत्तर की ओर मुख करके खाने से आयु और धन की प्राप्ति होती है। दक्षिण की ओर मुख करके खाने से मनुष्य में राक्षसी प्रभाव बढ़ता है। पश्चिम की ओर मुख करके खाने से मनुष्य रोगी होता है। भोजन करते समय सिर ढका नहीं होना चाहिए। यदि परिवार के सभी सदस्य एक साथ भूमि पर बैठकर भोजन करें तो परिवार में सौहार्द स्नेह तथा सुख का संचार होता है।
Vastu Tips—
Vastu is an inherent energy concept of science. We cannot see energy with our naked eyes but we can realize and see its application in different forms and fashions. Universe is one of the beautiful creations of nature and everything stands alive only in the limelight of truth. Just like every subject of human aspect is governed with rules, regulations & acts, similarly the nature has also got certain key factor principles for smooth governing of its residents, in which “Vastu stands for nature law” and ignorance of law is not an excuse anywhere. Here are some of the basic rules that everyone should follow
A plot with all corners 9. degrees having two sides road front and back is a good plot.
The open space left in North and east should be more than South and West.
The maximum construction should be done in South, West and southwest portion of the plot.
A pond or a water body should be placed in Northeast corner of the house.
A house should be designed in such a way so that there is maximum entry of sunlight and proper cross ventilation.
The entire opening should be made on the North and East Side of the house.
Trees of any kind should not be grown in eastern or northern, northeast directions.
Only small plant can be grown in North, east, Northeast.
The hearth or oven must be arranged in eastern southeast direction of the entire house, in such a way that the person cooking faces east.
The shadow of any tree should not fall on the house.
Pictures of any war scenes, demons, one in anger should not be placed in the house.
The slope of the property should be from West to east or South to north.
Nowadays we hear a lot about the importance of ecology, pollution – free environment, nature and all in big seminars and conferences. Our ancestors knew the secret of how to live in perfect harmony with nature and enjoy all that it bestows in plenty for the upliftment of mankind.
In the end I would like to say that you cannot become a doctor by reading books neither you can become architect by reading the books, similarly you can not become a vastu shastri by simply reading this and other sites and you should never try the remedies without proper knowledge and must consultant some Vastu advisor.
वास्तु में रंगों का महत्व—-
वास्तु और फेंगशुई दोनों में ही रंगों का महत्व है। शुभ रंग भाग्योदय कारक होते हैं और अशुभ रंग भाग्य में कमी करते हैं। विभिन्न रंगों को वास्तु के विभिन्न तत्वों का प्रतीक माना जाता है। नीला रंग जल का, भूरा पृथ्वी का और लाल अग्नि का प्रतीक है। वास्तु और फेंगशुई में भी रंगों को पांच तत्वों जल, अग्नि, धातु, पृथ्वी और काष्ठ से जोड़ा गया है। इन पांचों तत्वों को अलग-अलग शाखाओं के रूप में जाना जाता है। इन शाखाओं को मुख्यतः दो प्रकारों में में बाँटा जाता है, ‘दिशा आधारित शाखाएं’ और ‘प्रवेश आधारित शाखाएं’।
दिशा आधारित शाखाओं में उत्तर दिशा हेतु जल तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाले रंग नीले और काले माने गए हैं। दक्षिण दिशा हेतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधि काष्ठ तत्व है जिसका रंग हरा और बैंगनी है। प्रवेश आधारित शाखा में प्रवेश सदा उत्तर से ही माना जाता है, भले ही वास्तविक प्रवेश कहीं से भी हो। इसलिए लोग दुविधा में पड़ जाते हैं कि रंगों का चयन वास्तु के आधार पर करें या वास्तु और फेंगशुई के अनुसार। यदि फेंगशुई का पालन करना हो, तो दुविधा पैदा होती है कि रंग का दिशा के अनुसार चयन करें या प्रवेश द्वार के आधार पर। दुविधा से बचने के लिए वास्तु और रंग-चिकित्सा की विधि के आधार पर रंगों का चयन करना चाहिए। रंग चिकित्सा पद्दति का उपयोग किसी कक्ष के विशेष उद्देश्य और कक्ष की दिशा पर निर्भर करती है। रंग चिकित्सा पद्दति का आधार सूर्य के प्रकाश के सात रंग हैं। इन रंगों में बहुत सी बीमारियों को दूर करने की शक्ति होती है। इस दृष्टिकोण से उत्तर पूर्वी कक्ष, जिसे घर का सबसे पवित्र कक्ष माना जाता है, में सफेद या बैंगनी रंग का प्रयोग करना चाहिए। इसमें अन्य गाढे़ रंगों का प्रयोग कतई नहीं करना चाहिए। दक्षिण-पूर्वी कक्ष में पीले या नारंगी रंग का प्रयोग करना चाहिए, जबकि दक्षिण-पश्चिम कक्ष में भूरे, ऑफ व्हाइट या भूरा या पीला मिश्रित रंग प्रयोग करना चाहिए। यदि बिस्तर दक्षिण-पूर्वी दिशा में हो, तो कमरे में हरे रंग का प्रयोग करना चाहिए। उत्तर पश्चिम कक्ष के लिए सफेद रंग को छोड़कर कोई भी रंग चुन सकते हैं। सभी रंगों के अपने सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव हैं। लाल रंग शक्ति, प्रसन्नता प्रफुल्लता और प्यार का प्रोत्साहित करने वाला रंग है। नारंगी रंग रचनात्मकता और आत्मसम्मान को बढ़ाता है। पीले रंग का संबंध आध्यात्मिकता और करूणा से है। हरा रंग शीतलदायक है। नीला रंग शामक और पीड़ाहारी होता है। इंडिगो आरोग्यदायक तथा काला शक्ति और काम भावना का प्रतीक है