जानिए होलाष्टक का महत्व ( गुरुवार,.6 -.2 -20.5 से आरम्भ)-
सनातन संस्कृति मे शास्त्रो के अनुसार फाल्गुन मास मे वसंत ऋतु के आगमन के पश्चात मनाया जाने वाला होलि का त्यौहार जीवन मे खुशियो के रंग बिखेर देता है,पौराणिक मान्यता के अनुसार होलिका पर्व से कई कथाऐ जुडी है,जिनमे सबसे प्रमुख हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका और भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद से जुडी है।
पौराणिक एवं शास्त्रीय मान्यताओं के मुताबिक जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता.इन दिनों गृह प्रवेश मुंडन संस्कार विवाह संबंधी वार्तालाप सगाई विवाह किसी नए कार्य नींव आदि रखने नया व्यवसाय आरंभ या किसी भी मांगलिक कार्य आदि का आरंभ शुभ नहीं माना जाता।
इस दिन अनेक स्थानो पर हाेलिका दहन के समय हवा का रुख देखकर फलित किया जाता हैं । यदि पूर्व को हवा चली तो प्रजा को सुखी रहेगी। दक्षिण में हवा चले तो दुर्योग हैं। यदि हवा पश्चिम में चले तो तृण वृद्धि एवं उत्तर में हवा चलने पर धन-धान्य बढ़ेगा। सीधी लंबी लपटे आकाश की ओर उठे तो जनप्रतिनिधियों को नुकसान पहुंचना माना जाना चाहिए।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार ज्योतिषीय दृष्टि से इस पर्व का समय समस्त काम्य अनुष्ठानो के लिऐ श्रेष्ठ है जिसमे होलिका दहन के आठ दिन पुर्व का समय होलाष्टक कहलाता है,इस समय तंत्र व मंत्र की साधना पूर्ण फल देने वाली है।ज्योतिषशास्र के अनुसार अष्टमी को चन्द्र,नवमी को सूर्य,दशमी को शनि,एकादशी को शुक्र,द्वादशी को गुरू,त्रयोदशी को बुध,चतुदशर्शी को मंगल व पूर्णीमा को राहु उग्र होजाते है जो मनुष्य को शारिरीक व मानसिक क्षमता को प्रभावित करते है साथ ही निर्णय व कार्य क्षमता को कमजोर करते है। अष्टमी को चंद्रमा नवमी को सूर्य दशमी को शनि एकादशी को शुक्र द्वादशी को गुरु त्रयोदशी को बुध चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव के हो जाते हैं।इन ग्रहों के निर्बल होने से मानव मस्तिष्क की निर्णय क्षमता क्षीण हो जाती है और इस दौरान गलत फैसले लिए जाने के कारण हानि होने की संभावना रहती है।
विज्ञान के अनुसार भी पूर्णिमा के दिन ज्वार भाटा सुनामी जैसी आपदा आती रहती हैं या पागल व्यक्ति और उग्र हो जाता है। ऐसे में सही निर्णय नहीं हो पाता। जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा वृश्चिक राशि के जातक या चंद्र छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए। मानव मस्तिष्क पूर्णिमा से 8 दिन पहले कहीं न कहीं क्षीण दुखद अवसादपूर्ण आशंकित निर्बल हो जाता है। ये अष्ट ग्रह दैनिक कार्यकलापों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।
इस अवसाद को दूर रखने का उपाय भी ज्योतिष में बताया गया है। इन 8 दिनों में मन में उल्लास लाने और वातावरण को जीवंत बनाने के लिए लाल या गुलाबी रंग का प्रयोग विभिन्न तरीकों से किया जाता है। लाल परिधान मूड को गर्मा देते हैं यानी लाल रंग मन में उत्साह उत्पन्न करता है। इसीलिए उत्तरप्रदेष में आज भी होली का पर्व एक दिन नहीं अपितु 8 दिन मनाया जाता है। भगवान कृष्ण भी इन 8 दिनों में गोपियों संग होली खेलते रहे और अंततः होली में रंगे लाल वस्त्रों को अग्नि को समर्पित कर दिया। सो होली मनोभावों की अभिव्यक्ति का पर्व है जिसमें वैज्ञानिक महत्ता है ज्योतिषीय गणना है उल्लास है पौराणिक इतिहास है भारत की सुंदर संस्कृति है जब सब अपने भेदभाव मिटा कर एक हो जाते हैं।
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस वर्ष होलाष्टक 26-02-2015 से प्रारभं होकर 05 -0. -2015 को पूर्ण होगा,इस अवधी मे समस्त मांगलिक कार्य निषेध बताऐ गऐ है।इस वर्ष होली की कुंडली सिंह लग्न की है। लग्न में चंद्रमा बैठा है, जो सभी को साथ लेकर चलने का योग बनाता है। प्रेम बढ़ेगा। गुरु के 12वें स्थान पर होने से जनप्रतिनिधियों के प्रभाव में कमी आएगी।
होलाष्टक मनाने का कारण—
प्रचलित मान्यता है कि शिवजी ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर प्रेम के देवता कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था, जिसके बाद संसार में शोक की लहर फैल गई थी. इसके बाद कामदेव की पत्नी रति द्वारा भगवान शिव से क्षमायाचना की गई तब शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया. इसके बाद लोगों ने खुशी मनाई. होलाष्टक का अंत धुलेंडी के साथ होने के पीछे एक कारण यह भी माना जाता है.
होलाष्टक मे मनुष्य को अधिक से अधिक देव व इष्ट आराधना व मंत्र साधना करनी चाहिऐ।इस समय तंत्र क्रिया करने वाले जातको को विशेष उर्जा प्राप्त होती है।जिन जातको को राहु,मंगल,शनि या सूर्य की महादशा चल रही है या ये ग्रह शुभ नही है,इनके शत्रु ग्रह ४,८,१२मे हो,अस्त या वक्री हो उन्हे काफी कष्ट भोगना पडता है अत:वे जातक महामृत्युंजय जाप,नारायण कवच,दुर्गासप्तशति या सुन्दरकाण्ड का पाठ करे या योग्य ब्राह्मण से करवाये तो लाभ होगा।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त—
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार 5 मार्च 2015 (गुरुवार) को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त सायंकाल 6 बजकर 20 मिनट से लेकर रात्रि 8 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। रंग खेलने वाली होली अगले दिन 6 तारीख शुक्रवार को होगी इस दिन कई स्थानों पर चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा पर वसंतोत्सव भी होगा । इस अवसर पर घर में अशांति दूर करने मानसिक शांति के लिए नारियल घुमाकर होलिका में समर्पित करें। बाद में देवस्थान पर कपूर जलाएं। विद्यार्थी चंदन का चूरा व्यापारी पांच तरह का सूखा मेवा होलिका में समर्पित करें।
Reblogged this on oshriradhekrishnabole.
Reblogged this on oshriradhekrishnabole.