बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन अथवा फ्लेट) निर्माण में वास्तुशास्त्र के महत्वपूर्ण नियम :—–
बहुमंजिला भवनों में भू-तल के ऊपर प्रथम तल, द्वितीय तल और तृतिय व चतुर्थ फ्लोर/तल/माला भी बनाए जाते हैं। ऐसे निजी बहुमंजिला भवनों में ऊपरी तलों का इस्तेमाल ज्यादातर बेडरूम,अध्ययन कक्ष या फैमिली रूम के तौर पर किया जाता है। ऊपरी तलों पर पहुंचने के लिए आज भी अधिकांश भवनों में सीढ़ियों का इस्तेमाल किया जाता है।
सीढियां भवन में विशेष महत्व रखती हैं। सीढियों के संबंध में वास्तु क्या कहता है, यहां हम इसी का वर्णन करेंगे। ये दिशा-निर्देश भवन निर्माण जैसे जटिल एवं खर्चीले कार्यों को करने के लिए हमारा मार्गदर्शन करते हैं। चूंकि वास्तु का वैज्ञानिक आधार है, इसलिए जो दिशा-निर्देश यहां दिए जा रहे हैं, वे सब पूर्णतः तर्कसंगत हैं। इन दिशा-निर्देश का यहां इस प्रकार वर्णन किया जा रहा है, जिससे आप अपनी सहुलियत के अनुसार इनका अनुपालन कर सकें—–
—–बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने के लिए भूखंड चोकोर या आयताकार होना चाहिए |
—— बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने के चारों तरफ खुली जगह होनी चाहिए |
—–भूखंड में पानी का बहाव पूर्व – उत्तर कोने की तरफ होना चाहिए |
—– बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने के liye भवन का ढाल उत्तर-पूर्व कोने की तरफ होना शुभ रहता है |
—– बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने के भूखंड में दक्षिण – पश्चिम की तरफ खुला कम स्थान छोड़ना चाहिए |
—– बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने के भवन में प्रथम तल की ऊंचाई बाकी ऊपर की मंजिलों की ऊंचाई से ज्यादा होनी चाहिए |
—– बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने के सभी फ्लैटों का निर्माण इस प्रकार से करना चाहिए जिससे सभी फ्लैटों को हवा व् प्रकाश
पूर्ण रूप से मिल सके एवं फ्लैट के सभी कमरों में सूर्य की रोशनी पहुँच सके |
—–बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने में भवन की छत पर पानी का भंडारण दक्षिण – पश्चिम क्षेत्र में या पश्चिम के भाग में करना
चाहिए |
—– बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने में लिफ्ट का निर्माण दक्षिण – पश्चिम के भाग में या दक्षिण दिशा में करना चाहिए |
—-बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने में बिजली का बोर्ड , ट्रांसफोर्मर , जनरेटर आदि का स्थान दक्षिण-पूर्व के क्षेत्र या भाग में निश्चित करना चाहिए |
—– बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने में दक्षिण – पश्चिम के भाग में दीवारें भारी व् ऊंची रखनी चाहिए |
—– बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने में फ्लैटों का निर्माण इस प्रकार से करना चाहिए की उसमें रसोई का निर्माण सभी फ्लैटों में
आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व ) में हो सके , विशेष परिस्थिति में दक्षिण दिशा में रसोई का निर्माण कर
सकते हैं मगर उसमें प्लेटफोर्म का निर्माण इस प्रकार से करना चाहिए की रसोई बनाने वाले का मुंह
पूर्व दिशा की तरफ हो सके , ये वास्तु के लिए शुभ रहता है |
—- बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने में शौचालय का स्थान उत्तर-पूर्व के भाग में नहीं करना चाहिए |
—- बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने में उत्तर व् पूर्व की दिशा में खिड़कियाँ अधिक बनानी चाहिए |
—– बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने केके प्रत्येक फ्लैट की स्थिति ऐसी होनी चाहिए की आपात स्थिति में आसानी से पहुंचा जा सके एवं मदद पहुंचाई जा सके |
—— एपार्टमेंट या बहुमंजिलों के भवनों को ६० फीट की कम रोड पर नहीं बनाना चाहिए |
—– प्रत्येक बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने में बाहर की तरफ आपात सीढियां अवश्य बनानी चाहिए |
—– प्रत्येक एपार्टमेंट में भूमिगत जल भण्डारण की सुविधा अवश्य रखनी चाहिए एवं ये स्थान उत्तर-पूर्व
कोना या उत्तर दिशा के भाग में ही होना चाहिए |
—–बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने के प्रत्येक फ्लैट में वास्तु के नियमों का पालन करना बहुत कठिन होता है मगर कुछ आवश्यक बिन्दुओं का ध्यान रखना जरूरी होता है जैसे की रसोई, हमेशा अग्नि कोण में होनी चाहिए या दक्षिण भाग में अथवा दक्षिण -पश्चिम भाग में भी रख सकते हैं , इसी प्रकार शौचालय या
बाथरूम कभी भी ईशान कोण या अग्नि कोण के भाग में नहीं बनाना चाहिए |
——बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने के सभी फ्लैटों में अलमारी एवं खिड़कियों की समुचित ब्यवस्था करनी चाहिए तथा हो सके
तो सभी कमरों में बालकोनी देनी चाहिए |
—–बिल्डिंग या अपार्टमेंट (बहुमंजिला भवन)बनाने में ऊपरी तलों पर निर्मित कक्ष आदि में ज्यादातर दरवाजे-खिडकियां उत्तर व पूर्व दिशा में हों। यह भी ध्यान रखें कि ऊपरी तल पर दरवाजे खिडकियों की संखया नीचे के तल से कम हो। यह सिद्धांत भवन के प्रत्येक तल पर लागू करें। यानी कि प्रथम तल पर दरवाजे-खिडकियों की संखया भू-तल से कम होनी चाहिए, वहीं द्वितीय तल पर इनकी संखया प्रथम तल से कम हो।
—-खुला स्थान उत्तर, पूर्व व उत्तर-पूर्व में छोडें।
—–ऊपरी तल पर यदि बॉलकनी का निर्माण करना हो, तो उसे उत्तर/पर्वू या उत्तर-पूर्व में बनाना चाहिए।
—- वास्तु का मूलभूत सिद्धांत है कि भवन का दक्षिण- पश्चिम हिस्सा अपेक्षाकृत भारी होना चाहिए। इसलिए अगर ऊपरी तल पर आप आंशिक निर्माण करते हैं, तो वह निर्माण दक्षिण- पश्चिमी हिस्से में करें।
—-अगर भवन बहुमंजिला है तो अध्ययन कक्ष ऊपरी तलों पर ही बनाएं।