*** उम्मीद जगाएं हम ****
बहुत जिए गम अब ज़िन्दगी को आज़माएँ हम
आओ ज़रा इन अश्कों को आज रुलाएँ “विशाल” हम
आवारगी से क्या हासिल ज़रा पूछो मजनू से
आओ किसी दिल में कहीं एक घर बनाएँ हम
आओ उतारें नकाब चाँद के हसीं चेहरे से आज
चांदनी को हांथों से अरमानो के सजाएँ हम
खुदा देखना ख्वाब हैं टूट न जाएँ कहीं मेरे
संभालना शीशे के हैं सारे जब सो जाएँ “विशाल” हम
हो ऐसी ही खामोशियाँ यही तन्हाइयां भी ज़रा
साथ एक ग़ज़ल सा चेहरा और गुनगुनाएं हम
बेखुदी हो बरसती हुई शबनम की तरह वहाँ
जाएँ कहीं कोई राह हो उन्ही से मिल आएँ “विशाल” हम
बातें शहद हों ज़रा गुड सा उनका हो ज़ायका
जब याद आएँ वो ज़बान पर चटकता उन्हें पाएँ हम
यूं तो हैं खवाहिशें बहुत क्या कहें और क्या न
ग़ज़ल हैं अफसाना नहीं सुनोगे कितना सुनाएँ हम
शायद फिर बहक रही हूँ मैं माफ़ कीजिये हुजुर
दिल का मचलना हैं इसमें रवानगी “विशाल” कहाँ लाएँ हम
क़सम देकर बस अब थाम ले कोई पैमाने मेरे
कहे वही पीजिये जो आँखों से अब पिलाएँ हम
बहुत नाउम्मीदियों से घिरा उम्मीदों का चराग
आओ “विशाल” ज़रा हौसलों से तारीकियों को जलाएँ हम….
आप का अपना —
—-पंडित दयानन्द शास्त्री”विशाल”
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