- मेजर थैलेसेमिया:—
यह बीमारी उन बच्चों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनके माता-पिता दोनों के जींस में थैलीसीमिया होता है। जिसे थैलीसीमिया मेजर कहा जाता है।
- माइनर थैलेसेमिया:—-
थैलीसीमिया माइनर उन बच्चों को होता है, जिन्हें प्रभावित जीन माता-पिता दोनों में से किसी एक से प्राप्त होता है।[जहां तक बीमारी की जांच की बात है तो सूक्ष्मदर्शी यंत्र पर रक्त जांच के समय लाल रक्त कणों की संख्या में कमी और उनके आकार में बदलाव की जांच से इस बीमारी को पकड़ा जा सकता है।
लक्षण—सूखता चेहरा, लगातार बीमार रहना, वजन ना ब़ढ़ना और इसी तरह के कई लक्षण बच्चों में थेलेसीमिया रोग होने पर दिखाई देते हैं।
पूर्ण रक्तकण गणना (कंपलीट ब्लड काउंट) यानि सीबीसी से रक्ताल्पता या एनीमिया का पता लगाया जाता है। एक अन्य परीक्षण जिसे हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफोरेसिस कहा जाता है से असामान्य हीमोग्लोबिन का पता लगता है। इसके अलावा म्यूटेशन एनालिसिस टेस्ट (एमएटी) के द्वारा एल्फा थैलीसिमिया की जांच के बारे में जाना जा सकता है। मेरूरज्जा ट्रांसप्लांट से भी इस बीमारी के उपचार में मदद मिलती है।
सावधानी एवं बचाव-–थेलेसीमिया पीडि़त के इलाज में काफी बाहरी रक्त चढ़ाने और दवाइयों की आवश्यकता होती है। इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते, जिससे १२ से १५ वर्ष की आयु में बच्चों की मृत्य हो जाती है। सही इलाज करने पर २५ वर्ष व इससे अधिक जीने की आशा होती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, रक्त की जरूरत भी बढ़ती जाती है।
- विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जाँच कराएँ।
- गर्भावस्था के दौरान इसकी जाँच कराएँ
- रोगी की हीमोग्लोबिन ११ या १२ बनाए रखने की कोशिश करें
- समय पर दवाइयाँ लें और इलाज पूरा लें।
विवाह पूर्व जांच को प्रेरित करने हेतु एक स्वास्थ्य कुण्डली का निर्माण किया गया है, जिसे विवाह पूर्व वर-वधु को अपनी जन्म कुण्डली के साथ साथ मिलवाना चाहिये। स्वास्थ्य कुंडली में कुछ जांच की जाती है, जिससे शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़े यह जान सकें कि उनका स्वास्थ्य एक दूसरे के अनुकूल है या नहीं। स्वास्थ्य कुंडली के तहत सबसे पहली जांच थैलीसीमिया की होगी। एचआईवी, हेपाटाइटिस बी और सी। इसके अलावा उनके रक्त की तुलना भी की जाएगी और रक्त में RH फैक्टर की भी जांच की जाएगी।
इस प्रकार के रोगियों के लिए कितनी ही संस्थायें रक्त प्रबंध कराती हैं। इसके अलावा बहुत से रक्तदान आतुर सज्जन तत्पर रहते हैं
ऊंचे स्थानों पर जाने,धूम्रपान,निर्जलीकरण,या ट्यूमरों के कारण उच्च हीमोग्लोबिन स्तर हो सकते हैं.
प्रत्येक हीमोग्लोबिन अणु की आक्सीजन के वहन की क्षमता सामान्यतः परिवर्तित रक्त पीएच या कार्बन डाई आक्साइड द्वारा संशोधित होती है,जिससे एक परिर्वर्तित आक्सीजन-हीमोग्लोबिन विघटन वक्र बनता है. यह भी रोगों द्वारा बदला जा सकता है,उदा.कार्बन मोनोक्साइड विषाक्तता.
लाल रक्त कोशिकाओं की कमी के साथ या उसके बिना हीमोग्लोबिन की मात्रा में कमी से रक्ताल्पता ते लक्षण उत्पन्न होते हैं. रक्ताल्पता के कई कारण होते हैं,हालांकि पाश्चात्य विश्व में लौह की कमी और उससे उत्पन्न लौह की कमी वाली रक्ताल्पता इसके मुख्य कारण हैं. चूंकि लौह की अनुपस्थिति के कारण हीम संश्लेषण में कमी आती है,इसलिये लौह की कमी वाली रक्ताल्पता में लाल रक्त कोशिकाएं हल्के लाल रंग(हाइपोक्रोमिक-लाल हीमोग्लोबिन वर्णक का अभाव) की और आकार में छोटी(माइक्रोसाइटिक) दिखती हैं. अन्य रक्ताल्पताएं विरल होती हैं. हीमोलाइसिस (लाल रक्त कोशिकाओं का अधिक तेजी से नष्ट होना) में हीमोग्लोबिन चयापचयक बिलिरूबिन के कारण पीलिया हो जाता है,और रक्त में प्रवाहित हो रहे हीमोग्लोबिन के कारण गुर्दे नाकाम हो सकते हैं.
ग्लोबिन श्रृंखला के कुछ विकारों का संबंध हीमोग्लोबिनोपैथियों से होता है,जैसे सिकल सैल रोग और थैलेसीमिया. अन्य विकार,जैसा कि इस लेख के प्रारंभ में कहा गया है, मृदु होते हैं और केवल हीमोग्लोबिन प्रकारों के रूप में वर्णित किये जाते हैं.
पॉरफाइरिया नामक आनुवंशिक रोगों के एक समूह में हीम संश्लेषण के चयापचयी मार्गों की त्रुटियां पाई जाती हैं. युनाइटेड किंगडम का किंग जार्ज III संभवतः इस रोग का सबसे प्रसिद्ध रोगी था.
कुछ कम हद तक,हीमोग्लोबिन ए प्रत्येक बीटा श्रृंखला के वैलाइन टर्मिनल(एक अल्फा अमाइनो एसिड) पर ग्लुकोज से धीरे-धीरे संयुक्त होता है.इससे प्राप्त अणु को अकसर एचबीए1सी कहते हैं. जैसे-जैसे रक्त में ग्लुकोज की मात्रा बढ़ती है,एचबीए1सी में बदल रहे एचबीए का प्रतिशत भी बढ़ता है. जिन मधुमेह के रोगियों में ग्लुकोज अधिक होता है,उनका एचबीए1सी भी अधिक होता है. ग्लुकोज से एचबीए के संयुक्त होने की दर के धीमे होने के कारण एचबीए1सी का प्रतिशत लंबे समय में(लाल रक्त कोशिकाओं का अर्धजीवन,जो 50-55 दिन होता है) रक्त में ग्लुकोज के स्तर के औसत का प्रतिनिधित्व करता है.
उपाय—योग निद्रा नामक योगाभ्यास रोज आधे घंटे तक करने के एक अध्ययन में हीमोग्लोबिन के स्तरों में वृद्धि देखी गई.
थैलेसीमिया सिकल सेल रोग है जो β ग्लोबिन की एक विशिष्ट उत्परिवर्ती फार्म का उत्पादन विपरीत α या β ग्लोबिन””की कमी पैदा करता है.
β ग्लोबिन श्रृंखला 11 गुणसूत्र पर एक जीन द्वारा इनकोडिंग हैं, α ग्लोबिन श्रृंखला 16 गुणसूत्र पर दो बारीकी से जुड़े जीन की इनकोड किया गया है. प्रत्येक गुणसूत्र की दो प्रतियां के साथ एक सामान्य व्यक्ति में इस प्रकार, वहाँ दो β श्रृंखला एन्कोडिंग loci, और चार loci α श्रृंखला एन्कोडिंग हैं. Α loci के विलोपन अफ्रीकी या एशियाई मूल के लोगों में एक उच्च व्याप्ति है, उन्हें और अधिक α thalassemias विकसित होने की संभावना बना रही है. β thalassemias अफ्रीका में आम हैं, लेकिन यह भी यूनानी और इटालियंस में.
अल्फा (α) थलस्सेमिअस—-
α thalassemias HBA1 और HBA2 जीन, एक Mendelian पीछे हटने का फैशन में विरासत शामिल हैं. यह भी 16p गुणसूत्र का विलोपन करने के लिए जुड़ा हुआ है. α thalassemias परिणाम कम उत्पादन अल्फा ग्लोबिन में, इसलिए कम अल्फा ग्लोबिन चेन का उत्पादन किया, और नवजात शिशुओं में वयस्कों के अतिरिक्त γ जंजीरों में β श्रृंखला के एक अतिरिक्त में जिसके परिणामस्वरूप. अतिरिक्त β चेन फार्म अस्थिर tetramers (हीमोग्लोबिन एच या 4 बीटा श्रृंखला के HBH बुलाया) जो असामान्य ऑक्सीजन हदबंदी घटता है.
बीटा thalassemias (β)—-
बीटा thalassemias 11 गुणसूत्र पर HBB जीन में परिवर्तन, यह भी एक फैशन autosomal पीछे – पीछे हटने में विरासत की वजह से कर रहे हैं. रोग की गंभीरता के उत्परिवर्तन की प्रकृति पर निर्भर करता है. उत्परिवर्तनों (β ओ) के रूप में विशेषता रहे हैं अगर वे (जो बीटा थैलेसीमिया का सबसे गंभीर रूप है) β श्रृंखला के किसी भी गठन को रोकने, और वे के रूप में विशेषता है (β +) अगर वे कुछ β श्रृंखला गठन होने के लिए अनुमति देते हैं. या तो मामले में α श्रृंखला के एक रिश्तेदार अतिरिक्त है, लेकिन इन tetramers फार्म नहीं है, बल्कि वे लाल रक्त कोशिका झिल्ली के लिए बाध्य झिल्ली क्षति उत्पादन, और उच्च सांद्रता में वे जहरीले समुच्चय के रूप में.
डेल्टा थैलेसीमिया (δ)—-
के रूप में अच्छी तरह के रूप में अल्फा और बीटा वयस्क हीमोग्लोबिन की .% के बारे में हीमोग्लोबिन में उपस्थित होने चेन अल्फा और डेल्टा जंजीरों से बना है. बीटा थैलेसीमिया के साथ बस के रूप में, परिवर्तन होते है जो इस जीन की क्षमता डेल्टा जंजीरों उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं.
अन्य hemoglobinopathies के साथ संयोजन में—
थैलेसीमिया अन्य hemoglobinopathies के साथ सह अस्तित्व कर सकते हैं. इनमें से सबसे आम हैं:
- हीमोग्लोबिन ई / थैलेसीमिया: कंबोडिया, थाईलैंड में आम है, और भारत के कुछ हिस्सों, चिकित्सकीय β थैलेसीमिया प्रमुख या थैलेसीमिया intermedia के समान.
- एस / थैलेसीमिया हीमोग्लोबिन, अफ्रीकी और भूमध्य आबादी में आम, प्लीहाबृद्धि के अतिरिक्त सुविधा के साथ चिकित्सकीय सिकल सेल एनीमिया के समान है,
- हीमोग्लोबिन / सी थैलेसीमिया: भूमध्य और अफ्रीकी आबादी, हीमोग्लोबिन ओ / सी β थैलेसीमिया प्लीहाबृद्धि के साथ एक मामूली गंभीर रक्तलायी एनीमिया का कारण बनता है आम, हीमोग्लोबिन थैलेसीमिया / सी β + एक मामूली बीमारी का उत्पादन
जो माता-पिता थैलेसीमिया माइनर से पीड़ित हैं, उनके बच्चे को लगभग 25 प्रतिशत तक थैलेसीमिया रोग होने की आशका रहती है। इसलिए विवाह से पहले अगर रक्त की आसान जाचें जैसे ‘सीबीसी’ और हीमोग्लोबिन ए 2 करा ली जाएं, तो यह पता चल जाता है कि भावी वैवाहिक युगल में से कोई भी थैलेसीमिया जीन का वाहक है या नहीं। इसके अलावा अगर शादी के बाद किसी महिला को थैलेसीमिया माइनर का पता चले, तो इस स्थिति में अमुक महिला के पति की भी जाच होनी चाहिए कि वह थैलेसीमिया माइनर से ग्रस्त है, या नहीं।यदि दोनों ही थैलेसीमिया माइनर से ग्रस्त पाये जाते हैं, तो गर्भावस्था के 10 से 12 हफ्तों के मध्य भ्रूण का परीक्षण कराया जाता है। यदि भ्रूण थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त होता है है, तो उस स्थिति में गर्भपात की सलाह दी जाती है। वहीं यदि भ्रूण थैलेसीमिया माइनर से ग्रस्त है या फिर सामान्य या नॉर्मल हो, तो फिर विशेषज्ञ डॉक्टर द्वारा गर्भवती महिला को गर्भावस्था को जारी रखने की सलाह दी जाती है।
यह सच है कि थैलेसीमिया एक गभीर रोग है, लेकिन समय रहते जाच कराने और फिर विशेषज्ञ डॉक्टर के परामर्श पर अमल करने से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।
किस उम्र में कौन-सा टीका..????
गर्भाधान (प्रसव पूर्व) कौन से परीक्षण जरुरी हें..????
लैब का टेक्नीशियन इन सभी परीक्षणों के लिए आपके रक्त का एक बड़ा नमूना लेगा। यदि आपको इस बारे में कुछ परेशानी हो तो आपके ध्यान को बंटाने तथा सहायता के लिए अपने साथ अपने पति या एक मित्र को ले जायें।
मूत्र की जांच—–यदि आपसे पहले ही अपने मूत्र का नमूना लाने के लिए नहीं कहा गया तो लैब टेक्नीशियन आपको एक संक्रमण रहित कंटेनर देगा जिसमें आप अपने मूत्र का नमूना ला देंगी। इसके बाद वह इसमें एक रासायनिक स्ट्रिप डालेगी जो इसका रंग बदल देती है। इससे पता चलेगा कि आपके मूत्र में प्रोटीन की कुछ मात्रा है या नहीं।
इस परीक्षण से टेक्नीशियन यह बता पायेगा कि क्या आपमें प्री-एक्लेम्पसिया, गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप रोग के लक्षण हैं या नहीं। वह टेक्नीशियन आपके मूत्र में शुगर का परीक्षण भी ले सकता है जिससे आपमें गर्भवधीय मधुमेह के लक्षणों का पता चलता है। वह इसमें बैक्टीरिया की मौजूदगी का भी पता लगायेगा।
रक्तचाप परीक्षण —–
आपकी डॉक्टर अब आपका रक्तचाप रिकॉर्ड करेगी और इसका इस्तेमाल भावी जांचों के लिए एक ‘आधारभूत औसत’ के रूप में किया जाएगा। इसके बाद के भावी परामर्शो के दौरान आपके रक्तचाप और नाड़ी की जांच की जाएगी। बढ़ा हुआ रक्तचाप गर्भावस्था के अंतिम दौर में बताता है कि प्री-एक्लेम्पसिया का जोखिम हो सकता है।
अल्ट्रासाउंड स्कैन- —आपके पहले प्रसव-पूर्व परामर्ष के दौरान आपका डेटिंग-स्कैन भी किया जा सकता है। इस स्कैन से आपके शिशु के आकार का पता चलेगा जिससे यह पुश्टि होगी कि गर्भावस्था कितने हफ्तों की है और इससे आपकी डिलीवरी की तारीख का अंदाजा लगेगा। आपकी डॉक्टर आपको बाह्य गर्भावस्था की जांच अथवा एक से अधिक शिशुओं का पता लगाने के लिए भी एक स्कैन कराने की सलाह दे सकती है। गर्भावस्था के दौरान प्राय: सभी स्त्रियां अपने खानपान का ध्यान रखती हैं लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी नहीं होती कि स्वस्थ शिशु के जन्म के लिए यह बहुत जरूरी है कि गर्भधारण के पहले से ही अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखा जाए। अगर आप भी अपना परिवार बढाने की योजना बना रही हैं तो इन बातों का ध्यान जरूर रखें :
2. प्री प्रग्नेंसी काउंसलिंग के लिए पति-पत्नी दोनों को स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह जरूर लेनी चाहिए। वहां डॉक्टर द्वारा इस बात की पूरी जानकारी हासिल की जाती है कि पति-पत्नी को बचपन में लगाए जाने वाले सारे टीके लग चुके हैं या नहीं? अगर किसी स्त्री को रूबेला का वैक्सीन नहीं लगा हो तो कंसीव करने से पहले उसे यह टीका लगवाना बहुत जरूरी होता है। लेकिन यह वैक्सीन लगवाने के बाद कम से कम तीन महीने तक कंसीव नहीं करना चाहिए।
3. गर्भधारण से पहले स्त्री के लिए डायबिटीज की जांच बहुत जरूरी है क्योंकि अगर मां को यह समस्या हो तो बच्चे को भी डायबिटीज होने की आशंका रहती है। यही नहीं बच्चे की आंखों पर भी इसका साइड इफेक्ट हो सकता है।
4. अगर कोई स्त्री गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती है तो उसे कंसीव करने से कम से कम तीन महीने पहले से इन गोलियों का सेवन बंद कर देना चाहिए।
5. कंसीव करने के कम से तीन महीने पहले से डॉक्टर की सलाह के अनुसार फॉलिक एसिड का सेवन शुरू कर देना चाहिए। क्योंकि सबसे पहले बच्चे का मस्तिष्क और उसकी रीढ की हड्डी का निर्माण शुरू हो होता है और इसे बनाने में फॉलिक एसिड की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह बच्चे के विकास के लिए ऐसा आवश्यक तत्व है कि इसकी कमी से बच्चे को नर्वस सिस्टम से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
6. ज्यादातर भारतीय स्त्रियों को एनीमिया की समस्या होती है और हीमोग्लोबिन की कमी के कारण मां और बच्चे दोनों की जान को खतरा हो सकता है। इसलिए गर्भधारण से पहले स्त्री के लिए फुल ब्लड काउंट टेस्ट बहुत जरूरी होता है।
7. गर्भधारण से पहले पति-पत्नी दोनों को थैलेसीमिया की जांच जरूर करवानी चाहिए। यह आनुवंशिक बीमारी है। अगर पति-पत्नी दोनों को थैलेसीमिया माइनर हो तो इससे बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होने का खतरा होता है, जो कि एक गंभीर बीमारी है और रोगी को हर तीन महीने के अंतराल पर ब्लड टांसफ्यूजन की आवश्यकता होती है।
8. पति-पत्नी दोनों के लिए एचआईवी टेस्ट करवाना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि अगर मां एचआईवी पॉजिटिव हो तो बच्चा भी इसका शिकार हो सकता है।
9. हेपेटाइटिस बी यौन संक्रमण से फैलने वाला रोग है। इसलिए पति-पत्नी दोनों को इसकी जांच करवानी चाहिए और इसके टीके भी जरूर लगवा लेने चाहिए।
10. कंसीव करने से पहले स्त्री के लिए सिफलिस की जांच भी जरूरी है। क्योंकि इससे डिलिवरी के समय कई तरह की समस्याएं आ सकती हैं।
11. बच्चे के लिए प्लानिंग करते समय पति-पत्नी दोनों ही एल्कोहॉल और सिगरेट से दूर रहें। स्त्री को इस मामले में विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि इससे शारीरिक और मानसिक रूप से विकृत शिशु के जन्म या मिसकैरेज की आशंका रहती है।
12. अगर आपके या पति के परिवार में किसी खास बीमारी की फेमिली हिस्ट्री रही है तो उसके बारे में डॉक्टर को जरूर बताएं।
13. अगर आप अपनी किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए नियमित रूप से किसी दवा का सेवन करती हैं तो उसके बारे में भी अपनी डॉक्टर को जरूर बताएं।
14. मां बनने से पहले हर स्त्री को अपने वजन पर ध्यान देना चाहिए। वजन बीएमएस (बॉडी मॉस इंडेक्स) के अनुसार पूरी तरह संतुलित होना चाहिए। ओवरवेट या अत्यधिक दुबलापन ये दोनों ही स्थितियां गर्भाधारण के लिए नुकसानदेह मानी जाती हैं। अगर स्त्री का वजन बहुत ज्यादा हो तो इससे प्रीमेच्योर डिलिवरी की आशंका बनी रहती है, वहीं कम वजन के कारण भी गर्भावस्था के दौरान उसे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड सकता है।
15. अगर पति-पत्नी दोनों में से किसी को भी डिप्रेशन, हाइपरटेंशन या किसी भी तरह की कोई मनोवैज्ञानिक समस्या हो तो आप उसके बारे में भी डॉक्टर को जरूर बताएं। क्योंकि ऐसी समस्याओं के कारण बच्चे के जन्म के बाद उसकी सही परवरिश में दिक्कतें आ सकती हैं। इसलिए जब आप प्री प्रेग्नेंसी काउंसलिंग से पूरी तरह संतुष्ट हो जाएं तभी अपने पारिवारिक जीवन की शुरुआत करें।
mujhe or meri wife ko miner thelasmiya hai bachne ke upay bataye