आइये जाने की हस्त रेखाओं द्वारा रोग की पहचान केसे करें और उपाय—-
स्वास्थ्य रेखा सामान्यतः मणिबंध से निकल कर बुध के क्षेत्र की ओर जाती है। इसी लिए इसे बुध रेखा भी कहते हैं। स्वास्थ्य रेखा जितनी अधिक स्पष्ट, दोषरहित और गहरी होगी, तत्संबंधी व्यक्ति का स्वास्थ्य अतना ही उत्तम होगा। चेहरे पर तेज, सुगठित कद और वह अपनी उम्र से सदैव कम दिखने वाला होगा। उत्तम सवास्थ्य के साथ सूर्य रेखा अच्छी हो, तो जातक आजीवन सुखी और स्वास्थ्य रहेगा। स्वास्थ्य तथा भाग्य रेखा के मिलने से यदि मस्तक रेखा के नीचे त्रिकोण बना हो, तो मनुष्य यषस्वी, दूूरदर्षी और ष्षास्त्रज्ञ तथा मीमंसक होगा। स्वास्थ्य, भाग्य और मस्तिष्क रेखाएं मिल कर त्रिभुज बनाती हों, तो मनुष्य तांत्रिक हेागा। गुप्त विज्ञान में उसकी विषेष रूचि होगी। स्वास्थ्य रेखा यदि चक्कर खा कर चंद्र पर्वत पर चली गयी हो, तो जातक सदैव रोगग्रस्त ही रहेगा। यदि स्वास्थ्य रेखा चंद्र पर्वत से होते हुए, हथेली के किनारे-किनारे चल कर, बुध तक पहुंचती है, तो जातक कई बार विदेष की यात्राएं करता है। चंद्र रेखा और स्वास्थ्य रेखा मिल जाएं, तो जातक काव्य प्रणेता होता है। जो स्वास्थ्य रेखा न तो जीवन रेखा को पार करे और न ही उसे काटे, वही अच्छी मानी जाती है। वास्तव में इस रेखा की सबसे ष्षुभ स्थिति वह होती है, जब यह बुध क्षेत्र के नीचे ही नीचे सीधी चली आए। जब यह रेखा से मिल जाए, या इसमें से ष्षाखाएं निकल कर जीवन रेखा में मिलें, तो यह इस बात का संकेत है कि जातक के ष्षरीर में किसी रोग ने घर कर के उसके स्वास्थ्य को दुर्बल कर दिया है। ज्ब जीवन रेखा छोटे-छोटे टुकड़ों से बनी हो, या जंजीरनुमा हो और स्वास्थ्य रेखा गहरी तथा भारी हो, तो जीवन भर भारी नजाकत और बीमारी बनी रहने की आषंका होती है। यदि स्वास्थ्य रेखा में मस्तिष्क रेखा के निकट, परंतु उसके ऊपर कोई द्वीप हो, तो नाक और गले के रोग होते हैं। यदि इस रेखा का मध्य भाग लाल है, तो उस व्यक्ति का स्वास्थ्य आजीवन खराब रहेगा। यदि स्वास्थ्य रेखा का प्रारंभ लाल है, तो उस व्यक्ति को हृदय रोग होगा। इस रेखा का अंतिम सिरा यदि लाल रंग का है, तो उसे सिर दर्द का रोग होगा।
—–समस्त रोगों का मूल पेट है। जब तक पेट नियंत्रण में रहता है, स्वास्थ्य ठीक रहता है। ज्योतिषीय दृष्टि से हस्तरेखाओं के माध्यम से भी पेटजनित रोग और पेट की शिकायतों के बारे में जाना जा सकता है। हथेली पर हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा और नाखूनों के अध्ययन के साथ ही मंगल और राहू किस स्थिति में हैं, यह देखना बहुत जरूरी है।
—-जिन व्यक्तियों का मंगल अच्छा नहीं होता है, उनमें क्रोध और आवेश की अधिकता रहती है। ऐसे व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर भी उबल पड़ते हैं। अन्य व्यक्तियों द्वारा समझाने का प्रयास भी ऐसे व्यक्तियों के क्रोध के आगे बेकार हो जाता है। क्रोध और आवेश के कारण ऐसे लोगों का खून एकदम गर्म हो जाता है। लहू की गति (रक्तचाप) के अनुसार क्रोध का प्रभाव भी घटता-बढ़ता रहता है। राहू के कारण जातक अपने आर्थिक वादे पूर्ण नहीं कर पाता है। इस कारण भी वह तनाव और मानसिक संत्रास का शिकार हो जाता है।
————-कोई भी रोग पहले मन में उत्पन्न होता है तत्पश्चात उस रोग के लक्षण शरीर अथवा किसी अवयव में परिलक्षित होते हैं | आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने रोगों कि पहचान करने के लिए नये-नये यन्त्र विकसित कर लिए जिनसे रोग की पहचान करके रोगी की उचित चिकित्सा की जा सके, परन्तु आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इस तथ्य से सर्वथा अनभिज्ञ रहा कि प्रकृति ने मानव के कई अंग विशेष में ऐसे चिन्ह/ लक्षण उत्पन्न किये हैं जिनसे रोगों की पहचान के साथ ही भविष्य में शरीर में आने वाली व्याधियों का पता आसानी से लगाया जा सकता है | इतना ही नही स्वास्थ्य के अतिरिक्त मनुष्य की प्रवृत्ति,गुण,अवगुण,उसकी प्रकृति आदि की गणना भी उक्त पहचान चिन्हों से की जा सकती है | इन चिन्हों को हस्तरेखा विज्ञान का नाम दिया गया |
—–मेरे विचार से हस्तरेखा विज्ञान पूर्ण रूप से मष्तिस्क के क्रिया-कलापों पर आधारित है ऐसा
कहना असंगत नही होगा | चूँकि मष्तिस्क का मनुष्य के स्वास्थ्य से गहरा सम्बन्ध है अतः हस्त -रेखाएं, चिन्ह आदि भी हमारे मनोभावों के अतिरिक्त शारीरिक स्वास्थ्य से सम्बंधित हैं |
——हथेली के विशेष क्षेत्र जिसे हस्तरेखा विज्ञान ‘ पर्वत ‘ की संज्ञा देता है वास्तव में वे चुम्बकीय केंद्र हैं इन केन्द्रों का मष्तिस्क के उन केन्द्रों से सम्बन्ध है जो मानव के मनोभावों पर नियंत्रण करते हैं | हथेली के यह पर्वत मष्तिस्क में उत्पन्न होने वाली विद्युत् तरंगों को आकर्षित करते हैं |हस्तरेखाएँ इन तरंगों को पर्वत तक पहुँचाने का कार्य करती हैं |
——युग ऋषि पं. श्रीराम शर्मा के अनुसार – शरीर में लगभग ७५ अरब कोशिकाएं हैं , प्रत्येक जीव कोष के आर -पार ६०-९० बोल्ट का विद्युत् विभव होता है | इस प्रकार मानव शरीर एक शक्तिशाली बिजलीघर है | मष्तिस्क रूपी जेनरेटर और ह्रदय रूपी विदुतोत्सर्जन केंद्र मिलकर जिस स्तर की उर्जा उत्पन्न करते हैं वह समस्त जीव कोशों में समान रूप से प्रवाहित होकर कुछ स्थान विशेष पर प्रचुर मात्रा में विद्यमान हो जाती हैं | इस सूक्ष्म स्तर की विद्युत् व् चेतना स्तर की प्राण सत्ता का जब मिलन होता है तब यही समन्वित स्वरुप व्यक्ति विशेष में परिलक्षित होने लगता है |
——हमारा शरीर पञ्चतत्वों – पृथ्वी,जल,वायु,अग्नि और आकाश से मिलकर बना है | सामान्यतः इन तत्वों का असंतुलन ही रोगों का कारण है | इन तत्वों का संचालन / नियमन शरीर स्थित प्राण शक्ति,चेतना विद्युत् से होता है | इस विद्युत् के उत्पादन एवं संचालन का कार्य मस्तिष्क द्वारा ही संपन्न होता है |
——चिकित्सा विज्ञान के अनुसार हथेली की रेखाओं पर कुछ ऐसे तंतु होते हैं जो हाँथ में होने वाले कम्पनों का संचालन करते हैं | व्यक्ति के शरीर की आन्तरिक संरचना एक जैसी होते हुए भी उसकी प्रवृत्ति,आदि में एक-दुसरे से असमानता होती है इसीलिए हाँथ की रेखाओं की बनावट भी भिन्न होती है, यहाँ तक की उँगलियों के निशान [ जो कि अपराधियों को पहचानने में बहुत सहायक सिद्ध होते हैं ] में भी असमानता होती है |
——शरीर में सर्वाधिक स्नायु हाँथ में ही होते हैं एवं उँगलियों के सिरों में स्पर्श की संवेदना सर्वाधिक होती है | यह स्नायु मस्तिष्क के आदेश का तुरंत पालन करते हैं | इनका एक तंतु मस्तिष्क की प्रक्रिया को,सम्बंधित अवयव तक तथा दूसरा उस अवयव की प्रक्रिया को मस्तिष्क तक पहुँचाने का कार्य करता है |
——-‘मैसनर’ की पुस्तक-” एनाटामी एंड फिजियोलाजी ऑफ़ दि हैण्ड ” के अनुसार हाथों में विशेष प्रकार के आणविक तत्त्व होते हैं जो कि उँगलियों के छोरों तथा हाँथ कि रेखाओं से होकर कलाई तक पहुंचकर अदृश्य हो जाते हैं | इनमें कुछ रेशे होते हैं जो शरीर में एक तरह का कम्पन उत्पन्न करते हैं | इस आणविक तत्त्व का सम्बन्ध सीधे मस्तिष्क से होता है | स्नायु जब किसी बात का आभास देते हैं तब उनमें आणविक तत्त्व प्रवाहित होने लगता है , जिसका सम्बन्ध मस्तिष्क में हो रहे कम्पनो द्वारा- तुरंत मस्तिष्क से स्थापित हो जाता है | इसी स्नायविक क्रियाशीलता के फलस्वरूप इन्द्रियों द्वारा मन की अनुभूतियों का संचालन होता है|
——-हथेली की रेखाएं हाँथ को मोड़ने अथवा अन्य किसी बाह्य क्रिया से न तो निर्मित होती हैं और न ही टूटती हैं क्योंकि इनका सम्बन्ध मस्तिष्क प्रेषित प्राण उर्जा से है | योग के अंतर्गत -यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार एवं ध्यान के द्वारा इन रेखाओं, पर्वतों के आकार -प्रकार में परिवर्तन लाया जा सकता है एवं परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है |
———हस्त रेखा शास्त्री हाँथ की रेखाओं को देख कर व्यक्ति के वर्तमान,भविष्य एवं उसके स्वास्थ्य की सही – सही गणना कर देता है | यदि हम रोग या परिस्थिति प्रतिकूलता विशेष के विपरीत सकारात्मक सोंच विकसित कर लें तो मस्तिष्क की क्रियाओं से शरीर में ऐसी प्रतिक्रिया होने लगती है की आश्चर्यजनक परिणाम सामने आने लगते हैं | फलस्वरूप हस्तचिन्हों में भी परिवर्तन होने लगता है [ पाठक गण इसे कोरी कल्पना या जादू न समझें यह एक विशुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है एवं मैंने इसका स्वयं प्रयोग किया है ] योग के अंग —–यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार एवं ध्यान को अपनाने से शारीरिक एवं मानसिक दोनों शक्तियों का विकाश होता है, इससे विशेष रूप से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, अन्तःस्रावी ग्रंथियां एवं मस्तिष्क की कोशिकाएं क्रियाशील हो जाती हैं | केवल ‘ ध्यान ‘ करने से ही हमारे विचार,प्रवृत्ति आदि में परिवर्तन प्रारंभ होने लगता है | मस्तिष्क में सकारात्मक विचारों का अभ्युदय हो जाता है फलस्वरूप मस्तिष्क के विशेष कोशों में वृद्धि होने लगती है एवं उसका प्रतिबिम्ब हथेली की रेखाओं एवं विभिन्न पर्वतों के रूप में परिलक्षित होने लगता है | मस्तिष्क से जिस प्रकार के विचार तंत्रिका-तंत्र के माध्यम से हथेली तक पहुंचते हैं, उसी प्रकार की रेखाएं एवं विशेष चुम्बकीय क्षेत्र / उभार [ पर्वत ] निर्मित होने लगते हैं |
——-हथेली पर हृदय रेखा टूट रही हो या फिर चेननुमा हो, नाखूनों पर खड़ी रेखाएँ बन गई हों तो ऐसे व्यक्ति को हृदय संबंधी शिकायतें, रक्त शोधन में अथवा रक्त संचार में व्यवधान पैदा होता है। यदि जातक का चंद्र कमजोर हो तो उसे शीतकारी पदार्थ जैसे दही, मट्ठा, छाछ, मिठाई और शीतल पेयों से दूर रहना चाहिए।
——इसी तरह मंगल अच्छा न हो तो मिर्च-मसाले वाली खुराक नहीं लेनी चाहिए। तली हुई चीजें जैसे सेंव, चिवड़ा, पापड़, भजिए, पराठे इत्यादि से भी परहेज रखना चाहिए। ऐसे जातक को चाहिए कि वह सुबह-शाम दूध पीएँ, देर रात्रि तक जागरण न करें और सुबह-शाम के भोजन का समय निर्धारित कर ले। सुबह-शाम केले का सेवन भी लाभप्रद होता है।
—–पेट की खराबी से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है और फिर इसी वजह से रक्तविकार पैदा होते हैं, जो आगे चलकर कैंसर का रूप तक अख्तियार कर सकते हैं। यह मत विश्व प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री डॉ. आउंट लुईस का है। जिस व्यक्ति के हाथ का आकार व्यावहारिक हो और साथ ही व्यावहारिक चिह्नों वाला हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में काफी नियमित रहता है।
——-ऐसा जातक वृद्धावस्था में भी स्वस्थ रहता है। इसी तरह विशिष्ट बनावट के हाथ या कोणीय आकार के हाथ, जिसमें चंद्र और मंगल पर शुक्र का अधिपत्य हो तो ऐसे लोग स्वादिष्ट भोजन के शौकीन होते हैं। शुक्र प्रधान होने के कारण भोजन का समय नियमित नहीं रहता है। ऐसे में उदर विकार स्वाभाविक ही है। इस पर यदि हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा और मंगल-राहू अच्छे न हों तो रक्तजनित रोगों की आशंका बढ़ जाती है।
——–हस्तरेखा देखकर कैंसर की पूर्व चेतावनी दी जा सकती है और इस जानलेवा बीमारी के संकेत चिन्ह हथेली पर देखे जा सकते हैं। मस्तिष्क रेखा पर द्वीप समूह या पूरी मस्तिष्क रेखा पर बारीक-बारीक लाइनें हो तो ऐसे जातक को कैंसर की पूरी आशंका रहती है। ऐसी स्थिति में यदि मेडिकल टेस्ट करा लिया जाए और उसमें कोई लक्षण न मिलें, तब भी जातक की जीवनशैली में आवश्यक फेरबदल कर उसे भविष्य में कैंसर के आक्रमण से बचाया जा सकता है।
हस्तरेखा में हस्त मुद्राओ का महत्त्व-
चिकित्सा के लिए हस्त मुद्रा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में एक चिकित्सा पद्धति है हस्त मुद्रा चिकित्सा।
आधुनिक विज्ञान ने भी माना है कि हस्त मुद्रा से चिकित्सा प्रभावी और असरकारक हो सकती है। दैनिक जीवन में इन मुद्राओं के उपयोग से रोग तुरन्त मिट जाते हैं। इन मुद्राओं को करने से षरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। यह इन मुद्राओं की विषेषता है। मानव षरीर पाँच तत्वों का बना है। अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल, आकाष। हाथ में भी अंगूठे और अंगुलियों की संख्या पाँच है। ये एक तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे अंगूठे को अग्नि तत्व का प्रतीक माना गया है। तर्जनी अंगुली वायु, मध्यमा आकाष, अनामिका पृथ्वी, कनिष्ठका जल तत्व के प्रतिनिधि माने गये हैं। इस चिकित्सा पद्धति की विषेषता यह है कि एलोपैथी दवा के साथ भी इस पद्धति का उपयोग किया जा सकता है। इस चिकित्सा पद्धति से दवा का प्रभाव तेजी से देखने को मिलता है। हस्त मुद्रा का उपयोग करने से पहले इसके कुछ सरल नियम हैः-
हस्त मुद्रा करते वक्त पद्मासन में बैठना आवष्यक है। हस्त मुद्रा करते वक्त व्यक्ति को अपने इष्ट देव या इष्ट देवी का स्मरण करना चाहिए। दाहिने हाथ की मुद्रा करने से बायें हिस्से में और बायें हाथ की मुद्रा करने से दाहीने हिस्से में रोग समाप्त होता है। प्राण मुद्रा: अनामिका और कनिष्ठका अंगुलियों एवं अंगूठे के उपयोग से यह मुद्रा बनती है, जो निम्न चित्र में बताया गया है। प्राण मुद्रा से पूरे षरीर में प्राण का संचार होता है। यह मुद्रा पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। उपयोगिता: नेत्र रोग, आँख का विकार, निस्तेज आँखों जैसे रोगों में यह मुद्रा प्रातःकाल ..-15 मिनट करनी चाहिए। अनिद्रा के रोग में यह मुद्रा करने से धीरे-धीरे अनिद्रा का रोग समाप्त होता है। मधुमेह के रोग के लिए की जाने वाली आसन मुद्रा के साथ प्राण पुद्रा करने से रोग तेजी से समाप्त होता है। लिंग मुद्रा: दोनों हाथों की अंगुलियों को एक दूसरे में फंसा के मुट्ठी बनाते हैं और बायें हाथ के अंगूठे को ऊपर कर के खड़ा किया गया है। षरीर का ताप बढ़ाने हेतु यह मुद्रा काफी प्रभावी है। उपयोगिता: सर्दी-जुकाम एवं ज्यादातर पुरानी सर्दी-खांसी मिटाने हेतु यह मुद्रा .0 मिनट चाहिए। इस मुद्रा से रोग मिटाने में बहुत फायदा होता है। दमे का हमला होते समय रोगी को यह मुद्रा करने से तुरंत फायदा होता है। दवाई बिना दमे के हमले को रस मुद्रा से रोका जा सकता है। लंबे समय तक यह मुद्रा करने से रोग में काफी कमी आती है। निम्न रक्तचाप के रोग में यह मुद्रा प्रातः एवं सायं काल .0 मिनट तक करना फयदेमंद है। षंख मुद्रा: दोनो हाथों से की जाने वाली यह मुद्रा निम्न चित्र में बतायी गयी है। इस मुद्रा में मुट्ठी में रखे गये अंगूठे का दबाव हाथ के तल पर पड़ने से पिच्युटरी और थाइराॅयड ग्रंथियों में से होने वाले स्राव पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। नाभी चक्र पर भी इस मुद्रा का प्रभाव पड़ता है।
उपयोगिता: वाणी संबंधी सभी रोगों की चिकित्सा हेतु यह मुद्रा 15-20 मिनट तक प्रातः एवं सायं काल करने से धीरे-धीरे फायदा होता है। भूख न लगना, खाना हजम न होना एवं पेट संबंधी सभी रोग इस मुद्रा को करने से खत्म हो जाते हैं और तेज भूंख लगती है। स्वर एवं गले से संबंधित बीमारियां इस मुद्रा के प्रभाव से खत्म हो जाती हैं। नाभी चक्र पर इस मुद्र्रा का प्रभाव पड़ने से नाभी चक्र जाग्रत होता है। मुयान मुद्रा: मध्यमा, अनामिका अंगुलियां एवं अंगूठे से बनने वाली यह मुद्रा निम्न चित्र में बतायी गयी है। षरीर स्वस्थ रखने हेतु यह मुद्रा प्रभावी है। उपयोगिता: अयान मुद्रा 45 मिनट तक प्रातःकाल करने से सिर दर्द एवं आधासीसी का रोग तेजी से समाप्त होता है। पहले यह मुद्रा कम समय तक करनी चाहिए फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाना चाहिए। मूत्र संबंधी षिकायतें, 2-3 दिन तक मूत्र न आना आदि में यह मुद्रा प्रातः एवं सायं काल 20-25 तक करने से मूत्र संबंधी षिकायत नहीं रहती। दातों को स्वस्थ रखने हेतु यह मुद्रा सुबह 10 मिनट तक करनी चाहिए। मधुमेह के नियंत्रण हेतु यह मुद्रा सुबह 15-20 मिनट तक प्रातः और सायं काल करनी चाहिए। इस मुद्रा के प्रभाव से षरीर में हानि करने वाले भिन्न-भिन्न पदार्थ, पसीना, मल और मूत्र मार्ग से षरीर स्वस्थ रहता है।
योगाभ्यास में उच्च स्थान प्राप्त करने हेतु यह मुद्रा प्रभावी है। अयान वायु मुद्रा: तर्जनी, मध्यमा, अनामिका अंगुलियों और अंगूठे से, चित्र में बताये अनुसार, यह मुद्रा बनती है। अयान मुद्रा़़ और वायु मुद्रा को जोड़कर यह मुद्रा बनती है। हृदय रोग से इस मद्रा का संबंध होने से इस मुद्रा को हृदय मुद्रा, या मृत संजीवनी मुद्रा भी कहते हैं। उपयोगिता: हृदय रोग के आक्रमण के समय इस मुद्रा को करने से इंजेक्षन जैसा प्रभाव देखने को मिलता है। हृदय रोग की परेषानी जिन व्यक्तियों को हो, वह प्रातःकाल यह मुद्रा 30 मिनट तक करें। अवष्य फायदा होगा। उच्च रक्तचाप निवारण हेतु यह मुद्रा प्रातः एवं सायं काल 20 मिनट करना फायदेमंद है। पेट में होने वाले गैस (वायु विकार) में यह मुद्रा प्रभावी होती है। गैस खत्म हो जाती है। अनिद्रा, मानसिक चिंता, सिर दर्द दूर करने हेतु यह मुद्रा सुबह-षाम करनी चाहिए। ज्ञान मुद्रा: तर्जनी अंगुली एवं अंगूठे को स्पर्ष कर के चित्र में बताये अनुसार, ज्ञान मुद्रा बनती है। ज्ञान मुद्रा से पिच्युटरी ग्रंथि और पायनीयल ग्रंथि से निकलने वाले वात स्राव का नियंत्रण होता है। उपयोगिता: स्मरण षक्ति तेज करने हेतु प्रातः काल यह मुद्रा 30 मिनट करनी चाहिए। सिरदर्द एवं आधासीसी रोग में यह मुद्रा करना बहुत प्रभावी है। पागलपन, उन्माद, क्रोध, उत्तेजना और मन को षान्त करने यह मुद्रा प्रभावी हैं। सूर्य मुद्रा: अनामिका अंगुली और अंगूठे से यह मुद्रा निम्न चित्र अनुसार बनती है। उपयोगिता: यकृत संबंधी षिकायत, कब्ज की षिकायत के लिए प्रातःकाल यह मुद्रा 20 मिनट तक करें। मोटापा दूर करने हेतु यह मुद्रा करनी चाहिए। न्यूमोनिया, तपेदिक के रोगों में, दवा के साथ, यह मुद्रा प्रभावी रहती है। जल मुद्रा: कनिष्ठिका अंगुली और अंगूठे से बनने वाली यह मुद्रा निम्न चित्र में बतायी गयी है।
उपयोगिता: रक्त संबंधी रोगी में यह मुद्रा करना लाभदायी माना गया है। स्नायु संबंधी रोग पर जल मुद्रा का प्रभाव काफी है। चर्म रोग मिटाने हेतु यह मुद्रा करनी चाहिए। ऊँ नमः षिवाय हथेली में स्थित तिल का महत्व हस्तरेखा षास्त्र किसी भी व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान से संबंधित जानकारी हेतु एक अत्यन्त ही उपयोगी और सफलतम माध्यम के रूप में समाहित रहा है। कभी-कभी ग्रह कुुंडली के आधार पर की गई भविष्यवाणियां असत्य भी सिद्ध होती हैं, परन्तु हस्तरेखा का फलादेष हमेषा सत्य के निकट और प्रमाणिक रहा है। इसके पीछे षायद यही तथ्य कार्य करता है कि इस संसार में एक ही तरह की कई कुंडलियां देखने में आ जायेंगी परन्तु एक जैसी दो हथेलियों का मिलना असंभव जान पड़ता है। यू ंतो व्यक्ति की हथेली में स्थित प्रमुख रेखाओं और पर्वतों को ही सर्वाधिक महत्ता प्राप्त है परन्तु कुछ ऐसे भी चिन्ह हैं जो हथेली में उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि प्रमुख रेखाएं व पर्वत। हथेली के विभिन्न भागों में स्थित नक्षत्र, क्राॅस, वर्ग, त्रिभुज, वृत्त, जाल आदि चिन्ह फलादेष के परिणाम में आष्चर्यजनक रूप से उलट-फेर का कारण बन सकते हैं। इन्हीं चिन्हों में तिल का अपना एक स्वतंत्र महत्व है। ये तिल मानव के भविष्य को आष्चर्यजनक ढंग से प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। प्रस्तुत लेख में इन्हीं तिलों की महत्ता पर प्रकाष डालने का प्रयास किया गया है।
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हाथ पर पाए जाने वाली रेखाएं दोष पूर्ण हों तो क्या उपाय करें जिससे इनके दोष का कुप्रभाव न हो। इसके लिए यहां कुछ उपाय बताएंगे जिनके उपयोग से आप लाभ उठा सकते हैं और दूजों को भी लाभ दिला सकते हैं। हस्त रेखा विशेषज्ञ को हाथों में पर्वत व रेखाएं यदि दोश पूर्ण होती हैं या किसी कारण उनका फल विपरीत होता है या ऐसी आशंका होती है कि उनका फल विपरीत मिलेगा तो उनसे मुक्त होने के लिए उपाय का सहारा लेना चाहिए। इससे इन दोषों से मुक्ति मिलती है। वरना उपाय के बिना हस्त परीक्षा का कोई लाभ नहीं
होगा।
अंगुलियों की मुद्रा द्वारा अनेक दोष पूर्ण रेखाओं से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तपस्वी लोग तपस्या के अवस्था में अपने
अंगुलियों को विशेष स्थिति में रखते हैं जिसे हम मुद्रा कहते हैं। मुद्राओं का उद्देश्य मस्तिष्क के कुछ केन्द्रों को अतिरिक्त शक्ति प्रदान करके लाभ देना होता है।
हृदय रेखा का दोष दूर करने का उपाय
यदि आपके हाथ में हृदय रेखा दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति को रक्तचाप और हृदय रोग होता है। ऐसी अवस्था में जातक अनेक प्रकार के औषधि लेता है पर उसे लाभ नहीं होता है। यदि आप हृदय रेखा के दोष से बचाव चाहते हैं तो कनिष्ठका अंगुली को छोड़कर अन्य तीनों अंगुलियों के सिरों को अंगूठे के सिरे से मिलाएं तो जो मुद्रा बनती है। इसका नित्य अभ्यास करने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह मुद्रा प्रातःकाल करने से अधिक लाभ मिलता है।
मस्तक रेखा का दोष दूर करने का उपाय
यदि मस्तिच्च्क रेखा दोषपूर्ण हो तो जातक को स्नायु से संबंधी अनेक रोग होते हैं। ऐसी स्थिति में परस्पर तर्जनी और अंगूठा को मिलाकर मुद्रा बनायें। इस मुद्रा का नित्य अभ्यास करने से से गुरु पर्वत के दोष नष्ट हो जाते हैं। यह मुद्रा प्रतिदिन प्रातःकाल एवं सायंकाल में 15 मिनट करनी चाहिए।
जीवन रेखा का दोष दूर करने का उपाय
यदि जीवन रेखा दोषपूर्ण हों तो जातक के जीवन में अनेक दुर्घटना एवं शारीरिक कष्ट व रोग उत्पन्न होते हैं जिनसे उसे कष्ट उठाना पड़ता है।
ऐसी स्थिति में कनिष्ठका और अनामिका को अंगूठे से मिलाकर मुद्रा बनायें। इस मुद्रा को करने से शुक्र पर्वत, मंगल पर्वत, जीवनरेखा, बुधरेखा आदि का दोष नष्ट होता है तथा जातक को
अच्छा फल मिलता हैं।
शनि दोष दूर करने के उपाय
यदि शनि पर्वत में या शनि रेखा में दोष हो तो तर्जनी को मोड़कर उसे शुक्र पर्वत पर लगायें। सभी अंगुलियां और अंगूठा अलग रखें। यह मुद्रा शानि रेखा एवं शनि पर्वत के दोष को नष्ट करती है तथा अनेक रोग से रक्षा करती है।
बुध दोष दूर करने के उपाय
यदि बुध रेखा अथवा बुध पर्वत में कोई दोष हो तो उसको दूर करने के लिए बायें हाथ की तर्जनी का सिरा दाएं हाथ की तर्जनी और मध्यमा से जोडं+े। यह मुद्रा करने से बुध का दोष दूर हो जाता है। उदर व शरीर के किसी भाग में गैस एकत्रा होने पर भी इस मुद्रा द्वारा लाभ पाया जा सकता है।
ये उपाय करते समय ध्यान रखें-
उक्त मुद्राएं बारी-बारी से दोनों हाथों द्वारा करना चाहिए।
यदि रेखाओं में दोष न हो तो भी इन मुद्राओं को दो-चार मिनट अभ्यास करने से इसका लाभ तन के अनेक रोग दूर करने में होता है और तन को शक्ति प्रदान होती है।
सदाचार सबसे अच्छा उपाय है जिसे जीवन में अपनाने से समस्त ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है।
गौ ग्रास अर्थात् चौके से गाय, कौए और कुत्ते के लिए रोटी निकालकर प्रतिदिन देने से भी ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है।
हस्तरेखाओं का एकाग्रता से भली-भांति विचार कर किसी प्रकार का निर्णय लेकर जातक को बताना चाहिए। उसे ऋणात्मक फल बताकर हताश एवं निराश नहीं करना चाहिए। अहित दिखने पर उसे बात इस तरह से बतानी चाहिए कि जिससे उसका हौसला बढ़े नाकि वह परेशान व निराश हो जाए।