*******शिवाष्टकम स्तोत्र*******
पशुपतिं द्युपतीं धरणीपतिं भुजगलोकपतिं च सतीपतिम !
प्रणतभक्तजनार्तिहरं परं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम !!१!!
न जनको जननी न च सोदारो न तनयो न च भूरिबलं कुलम!
अवति कोSपि न कालवशं गतं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम!!२!!
मुरजडिंडीमवाद्यविलक्षणं मधुर पंचम नाद विशारदम !
प्रथमभूतगनैरपि सेवितं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम !!३!!
शरणदं सुखदं शरणान्वितं शिव शिवेति शिवेति नतं नृणाम!
अभयदंकरुणावरुणालयं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम !!४!!
नरशिरोरचितं मणिकुण्डलं भूजगहारमुदं वृषभध्वजम !
चितिर जोधबलीकृतविग्रहं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम !!५!!
मखविनाशकरं शशिशेखरं सततमध्वरभाजि फलप्रदम !
प्रलयदग्धसुरासुरमानवं भजत रे मनुजा गिरिजापतिम !!६!!
मदमपास्य चिरं हृदि संस्थितं मरणजन्मज़राभयपीडितम!
जगदुदीक्ष्य समीपभयाकुलं भजत रे मनुजा गिरिपतिम !!७!!
हरिविरविरंचीसुराधिपपूजितं यमजनेशधनेशनमस्कृतम !
त्रियननं भुवनत्रितयाधियां भजत रे मनुजा गिरिजापतिम !!८!!
पशुपतेरिमष्टकमकमद्भुतं विरचितं पृथिवी पति सूरिणा !
पठेति संऋणुते मनुज: सदा शिवपुरीं वसते लभते मुदाम!!९!!
अरे मनुष्यो! जो समस्त प्राणियों, स्वर्ग, पृथ्वी और नाग लोक के पति हैं, दक्ष कन्या सटी के स्वामी हैं, शरणागत प्राणियों और भक्तजनों की पीड़ा दूर करनेवाले हैं, उन परमपुरुष पार्वती-वल्लभ शंकर जि को भजो!!१!!
ऐ मनुष्यो! कालके वशमें पड़े हुए जीव को पिता, माता, भाई, बेटा, अत्यंत बल और कुल–इन में से कोई भी नहीं बचा सकता, इसलिये तुम गिरिजापति को भजो!!२!!
रे मनुष्यो! जो मृदंग और डमरू बजाने में निपुण हैं, मधुर पंचम स्वर के गाने में कुशल हैं, प्रमथ और भूतगण जिनकी सेवा में रहते हैं, उन गिरिजापति को भजो!!३!!
हे मनुष्यो! शिव! शिव! शिव! कहकर मनुष्य जिनको प्रणाम करता है, जो शरणागतों को शरण, सुख और अभय देनेवाले हैं, उन दयासागर गिरिजापति का भजन करो!!४!!
अरे मनुष्यो! जो नरमुण्डरुपी मणियों का कुण्डल और साँपों का हार पहनते हैं, जिनका शरीर चिता की धूलिसे धूसर है, उस वृषभध्वज गिरिजापति को भजो!!५!!
रे मनुष्यो! जिन्होंने दक्ष-यज्ञ का विध्वंस किया था; जिनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है, जो यज्ञ करनेवालों को सदा ही फल देनेवाले हैं, उन गिरिजापति को भजो!!६!!
अरे मौश्यो! जगत को जन्म, ज़रा और मरण के भय से पीड़ित, सामने उपस्थित भय से व्याकुल देखकर बहुत दिनों से हृदय में संचित मद का त्याग कर उन गोइरिजापति को भजो!!७!!
रे मनुष्यो! विष्णु, ब्रह्मा और इंद्र जिनकी पूजा करते हैं; यम और कुबेर जिनको प्रणाम करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं तथा जो त्रिभुवन के स्वामी हैं, उन गिरिजापति को भजो!!८!!
जो मनुष्य पृथ्वीपति सूरि के बनाए हुए अद्भुत पशुपति -अष्टक का सदा ही पथ आर श्रवन करता है, वह शिवपुरी में निवास करता और आनंदित होता है! स
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!!सत्यम शिवम् सुन्दरम===सत्यं सत्यं न संशय !!

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