शनि जयंती ..20–
 
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति एक अच्छा जीवन जीता है तो उसको जीवन में तीन बार शनि की दशा से गुजरना पड़ता है। पहली बार शनि व्यक्ति के साथ खेलता है, दूसरी बार उसकी जिन्दगी में भूचाल लाता है, और तीसरी बार उसके सारे धन-दौलत को नष्ट कर देता है। यही कारण है कि लोग शनि को शांत रखने का प्रयास करते रहते हैं।
 
 
प्रचलित मान्यता अनुसार शनिदेव सूर्यदेव और माता छाया की संतान हैं। पिता सूर्य के द्वारा माता छाया के अपमान के कारण शनिदेव हमेशा अपने पिता सूर्य से बैर भाव रखते हैं। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार फलित ज्योतिष में शनि को अशुभ माना जाता है। इनका स्वरूप काला रंग और ये गिद्ध की सवारी करते हैं। इन्हे सभी ग्रहों में न्याय और कर्म प्रदाता का दर्जा प्राप्त है। मकर और कुंभ राशि के स्वामी शनि देव हैं। यह बहुत ही धीमी चाल से चलते हैं। यह एक राशि में करीब ढाई वर्षों तक रहते हैं। 
 
 
शनि की महादशा .9 वर्षों तक रहती है। मान्यता है शनि देव जिस किसी पर अपनी तिरक्षी नजर रख देते हैं उसके बुरे दिन आरंभ हो जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें उनकी पत्नी ने शाप दिया था जिस कारण से शनि की नजर को बुरा माना जाता है। वहीं अगर शनि की शुभ दृष्टि किसी पर पड़ जाए तो उसका जीवन राजा के समान बीतने लगता है।
 
शनिदेव की साढ़ेसाती का नाम आते ही प्राणी किसी न किसी कारण से बेचैन होने लगते हैं कि ये साढ़ेसाती उनके लिए शुभ रहेगी या अशुभ। सत्य ये है कि इनकी साढ़ेसाती, ढैया और मारकेश दशा के रूप में गोचरकाल प्राणियों के अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार उन्हें पुरस्कार तथा दंड देने के लिए ही आता है। प्राणी के कर्म अच्छे हैं तो अशुभ प्रभाव कम होगा और उसे अच्छे फल मिलेंगे किंतु, प्राणियों के कर्म ज्यादा बुरे हैं तो अशुभ प्रभाव अतिशय पीड़ादाई होगा। जानें शनि की साढ़ेसाती और उनके गोचर काल के प्रभाव के बारे में।
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शनि जयंती शनि देव से आशीर्वाद प्राप्त करने का शुभ दिन है और किसी भी व्यक्ति को यह अवसर चुकने नहीं देना चाहिए। शनि जयंती के दिन किए कुछ कार्य बहुत फलदायी प्रमाणित होता है। स्वंतंत्रता सभी को आनंदित लगती है और जब कोई किसी कैद से बाहर निकलता है तो उसे स्वतंत्र करने वालों के लिए बहुत सरे आशीष प्रदान करता है। शनि जयंती के दिन काले रंग की दो चिड़ियों को पिंजरे से आज़ाद करके खुले आसमान में उड़ने के लिए जाने देना बहुत अच्छा माना जाता है। इससे शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और साथ ही साथ व्यक्ति के जीवन से सुख और दरिद्रता का भी नाश हो जाता है।
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जिन जातकों की राशि पर इस समय साढ़े साती चल रही है उनके पास यह अच्छा मौका है कि शनि भगवान और हुनमानजी को एक साथ प्रसन्न करने का। मान्यता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा करने से शनि के कोप से बचा जा सकता है।
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 शनिदेव यदि रुष्ट हो जाएं तो राजा को रंक बना देते हैं और यदि प्रसन्न हो जाएं तो आम आदमी को खास आदमी बना देते हैं। माना जाता है कि जीवन में शनिदेव एक बार या किसी−किसी राशि में चार बार आते हैं। प्रथम बार तो इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन दूसरी बार में यह नींव हिला देते हैं और तीसरी बार भवन को उखाड़ फेंकते हैं तथा चौथी बार अच्छे खासे को बेघर कर देते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को उनका विधिवत पूजन करना चाहिए। मान्यता है कि शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाया जाना चाहिए, इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं। शनिवार के दिन पीपल को जल देने से भी शनिदेव को प्रसन्न किया जा सकता है।
 
जब किसी जातक की कुंडली में शनि दोष, शनि ढैय्या या साढ़ेसाती है, तो शनिश्चरी अमावस्‍या इन सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति दिलाएगी। शनि अमावस्या के दिन शनि देव की कृपा पाने हेतु शनि मंदिर अथवा नवग्रह धाम मंदिर जाएं और भगवान शनि की पूजा करें, तथा दशरथकृत शनि स्तोत्र का भी पाठ करना चाहिए।
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अमावस्या तिथि का शुभ मुहूर्त—
 
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार इस बार अमावस्या तिथि 21 मई 2020 को शाम 9 बजकर 21 मिनट से शुरू होकर 22 मई 2020 को रात 11 बजकर 8 मिनट तक रहेगी। इसलिए शनि अमावस्या 22 मई 2020 को मनायी जाएगी।
 
ऐसी मान्यता है कि साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा जैसे शनि से जुड़े दोषों से निजात पाने के लिए शनि अमावस्या पर शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व होता है।
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शनि जयंती और उसका महत्व—
 
वैसे शनि जयंती यदि शनिवार को हो तो उसका महत्व और बढ़ जाता है लेकिन इस बार शनि जयंती 22 मई, शुक्रवार को पड़ रही है। 
 
शनि जयंती पर शनि हमेशा वक्री रहता है। शनि धनु राशि में वक्री है। 
 
पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार, शनिदेव का जन्म सूर्य की पत्नी छाया से हुआ और मृत्यु के देवता यमराज शनिदेव के बड़े भाई हैं। आकाश मंडल में सौर परिवार के जो नौ ग्रह हैं, उनमें यह दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। कहा जाता है कि शनि का विवाह चित्ररथ की कन्या के साथ हुआ था। शनिदेव की पत्नी पतिव्रता और धार्मिक महिला हैं। शनिदेव भी भगवान के अनन्य भक्त हैं और भगवान के भजन और ध्यान में लीन रहते हैं।
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इस तरह करें शनि जयंती पर पूजन–
 
उज्जैन के पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार शनि जयंती पर शनिदेव से पहले गणेश जी की पूजा जरूर करें। गणेशजी प्रथम पूज्य देव हैं। हर पूजन कर्म की शुरूआत इनके ध्यान के साथ ही करनी चाहिए। 
पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि शनि जयंती पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद अपने इष्टदेव, गुरु और माता-पिता का आशीर्वाद लें। सूर्य और अन्य ग्रहों को नमस्कार करते हुए श्रीगणेश भगवान का पंचोपचार से पूजा करें।
 
इस दिन प्रात:काल उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर शुद्ध हो जाएं। लकड़ी के एक पाट पर काला वस्त्र बिछा लें और उस पर शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर या फिर एक सुपारी रखकर उसके दोनों और शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाएं। पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से शनि जी के इस रूप को स्नान करवायें और उसके बाद अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम व काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें। इस दिन शनि भगवान को इमरती व तेल में तली वस्तुओं, श्रीफल आदि अर्पण करना चाहिए। शनि मंत्र की माला का जाप करना बेहद फलदायी होता है। इसके बाद शनि चालीसा का पाठ करें और फिर भगवान की आरती करें।
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श्री हनुमान जी ने रावण की कैद से शनिदेव को मुक्त कराया था, इसलिए शनिदेव के कथनानुसार, जो भी भक्त श्री हनुमंत लाल की पूजा करते हैं, वे भक्त शनि देव के अति प्रिय और कृपा पात्र होते हैं। अतः शनिदेव के साथ-साथ हनुमान जी की पूजा का भी विधान माना गया है।
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शनि जयंती पर रखें यह सावधानी —
 
-इस दिन हनुमान जी की भी पूजा करें।
-ब्रह्मचर्य का पूरी तरह से पालन करें।
-गरीब को तेल में बने खाद्य पदार्थ खिलाएं।
-गाय और कुत्तों को भी भोजन दें।
-जरूरतमंदों की मदद करें
-शनिदेव की प्रतिमा को देखते समय भगवान की आंखों में नहीं देखें।

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