रुद्राक्ष के वर्ण और धारण में अधिकार, रुद्राक्ष के मुख और धारण विधि—पवन तलहन–
——————————{चेतावनी}—————————
#######जो लोक २७–दानों से कम रुद्राक्ष के दाने धारण करते हैं,
उनको शिव-दोष लगता है!
तथा किसी भी प्रकार का उपाये करने पर वह व्यक्ति दोष मुक्त नहीं होता!##########
शिव पुराण—
रुद्राक्ष धारण की महिमा तथा उसके विविध भेदों का वर्णन—
विद्येश्वर संहिता—अध्याय– २५
भगवान शिव कहते हैं–महेश्वरी शिवे! मैं तुम्हारे प्रेम वश भक्तों के हित की कामना से रुद्राक्ष की महिमा वर्णन करता हूँ, सुनो!- महेशानि!–
पूर्वकाल की बात है, मैं मन को संयम में रख कर हजारों दिव्य वर्षों तक घोर तपस्या में लगा रहा! एक दिन सहसा मेरा मन क्षुब्ध हो उठा! परमेश्वरी! मैं सम्पूर्ण लोकों का उपकार करने वाला स्वतंत्र परमेश्वर हूँ! अत: उस समय मैंने लीलावश ही अपने दोनों नेत्र खोले, खोलते ही मेरे मनोहर नेत्रपुटों से खुछ जल की बूंदें गिरीं! आंसू की उन बूंदों से वहां रुद्राक्ष वृक्ष पैदा हो गया! भक्तों पर अनुग्रह करने के लिये वे अश्रुबिंदु स्थावरभाव को प्राप्त हो गये! वे रुद्राक्ष मैंने विष्णुभक्त को तथा चारों वर्णों के लोगों को बाँट दिये! भूतपर अपने प्रिय रुद्राक्षों को मैंने गौड़ देश में उत्पन्न किया! मथुरा, अयोध्या, लंका, मलयाचल, सह्यागिरी, काशी तथा एनी देशों में भी उनके अंकुर उगाये! वे उत्तम रुद्राक्ष असह्य पापसमूहों का भेदन करने वाले तथा श्रुतियों के भी प्रेरक हैं! मेरी आज्ञा से ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जाती के शुभाक्ष भी हैं! उन ब्राह्मणादि जाती वाले रुद्राक्षों के वर्ण श्वेत, रक्त,पीत तथा कृष्ण जानने चाहिये!
मनुष्य को चाहिये कि वे क्रमश: वर्ण के अनुसार अपनी जातिका ही रुद्राक्ष धारण करें! भोग और मोक्ष की इच्छा वाले चरों वर्णों के लोगों के और विशेषत: शिवभक्तों को शिव-पार्वती की प्रसन्नता के लिये रुद्राक्ष के फलों को अवश्य धारण करना चाहिये! आंवले के फल के बराबर हो, वह श्रेष्ट कहा है! जो बेर के बराबर हो उसे मध्यम श्रेणी का कहा गया है और जो चने के बराबर हो, उसकी गणना निम्नकोटि में की गयी है! इसे बताने का उद्देश्य है भक्तों की हितकामना! पार्वती! तुम भलीभांति प्रेमपूर्वक इस विषय को सुनो!
महेश्वरी! जो रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है, वह उतना छोटा होने पर भी लोक में उत्तम फल देने वाला तथा सुख-सौभाग्य की वृद्धि करने वाला होता है! जो रुद्राक्ष आंबले के बराबर होता है, वह समस्त अरिष्टों का विनाश करने वाला होता है! तथा जो गुन्जाफल के समान बहुत छोटा होता है, वह सम्पूर्ण मनोरथों और फलों की सिद्धि करने वाला है! रुद्राक्ष जैसे २ छोटा होता है, वैसे २ ही अधिक फल देने वाला बताया है! एक-एक बड़े रुद्राक्ष से एक-एक छोटे रुद्राक्ष को विद्वानों ने दसगुणा अधिक फल देने वाला बताया है! पापों का नाश करने के लिये रुद्राक्ष-धारण आवश्य बताया गया है! वह निश्चय ही सम्पूर्ण अभीष्ट मनोरथों का साधक है! अत: अवश्य ही उसे धारण करना चाहिये!
महेश्वरी! लोक में मंगलमय रुद्राक्ष जैसा फल सेने वाला देखा जाता है, वैसे फलदायिनी दूसरी कोई माला नहीं दिखायी देती! देवी! समान आकार-प्रकार वाले, चकने, महबूत, स्थूल, कण्टकयुक्त{ उभरे हुए छोटे-छोटे दानों वाले} और सुन्दर रुद्राक्ष अभिलषित पदार्थों के दाता तथा सदैव भोग और मोक्ष देने वाले हैं! जिसे कीड़ों ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमे उभरे हुए दानें न हों, जो व्रणयुक्त हो तथा जो पूरा-पूरा गोल न हो, इन पञ्च प्रकार के रुद्राक्षों को त्याग देना चाहिये! जिस रुद्राक्ष में अपने आप ही डेरा पिरोने के योग्य छिद्र हो गया हो, वही यहाँ उत्तम माना गया है! जिसमे मनुष्य के प्रयत्न से छेड़ किया गया हो, वह मध्यम श्रेणी का होता है! रुद्राक्ष धारण बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाला ही! इस जगत में ग्यारह सौ रुद्राक्ष धारण करके जिस फल को पाता है उसका वर्णन सैंकड़ों वर्षों में नहीं किया जा सकता! भक्तिमान पुरुष साढ़े पांच सौ रुद्राक्ष के दानों का सुन्दर मुकुट बना ले और उसे सिरपर धारण करे! तीन सौ साठ दानों को लंबे सूत्र में पिरोकर एक हार बना ले! वैसे२ तीन हार बनाकर भक्तिपरायण पुरुष उनका यज्ञोपवीत करे और उसे यथास्थान धारण किये रहे!
कितने रुद्राक्ष धारण करने चाहिये, यह बताकर सूतजी बोले!
सिरपर ईशान- मन्त्र से, कान में तत्पुरुष-मन्त्र से तथा गले और हृदय अघोर-मन्त्र से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए! विद्वान् पुरुष दोनों हाथों में अघोर-बीज मन्त्र सर रुद्राक्ष धारण करे! उदर पर वामदेव मन्त्र से पंद्रह रुद्राक्षों द्वारा गुंथी हुई माला धारण करे! अथवा अंगों सहित प्रणव का पञ्च बार जप करके रुद्राक्ष की तीन, पांच या सात मालाएं धारण करे! अथवा मूल मन्त्र { नम: शिवाय} से ही समस्त रुद्राक्षों को धारण करे! रुद्राक्षधारी पुरुष अपने खान-पान में मदिरा, मांस, लहसुन, प्याज, सहिजन, लिसोड़ा आदि को त्याग दे! गिरिराजनंदिनी उमे श्वेत रुद्राक्ष केवल ब्राह्मणों को ही धारण करना चाहिये! गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रिओं के लिये हित कर बताया गया है! वैश्यों के लिये प्रतिदिन बारंबार पीले रुद्राक्ष धारण करना आवश्यक है और शूद्रों को काले रंग का रुद्राक्ष धारण करना चाहिये–यह वेदोक्त मार्ग है! ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, गृहस्थ और संन्यासी- सब को नियम पूर्वक रुद्राक्ष धारण करना उचित है!
जैसे आजकल लोग {ज्योतिषी] कहते हैं वैसे नहीं डाले! २७ दानों से कम दाने डालने पर नाश ही होता है!
२७ दाने डालने का भी एक नियम है, उस नियमके विरुद्ध भी दाने डालने पर दोष ही लगते हैं!
ऊपर कहे अनुसार जप करने और धारण करने पर ही शुभ फल ही प्राप्ति होती है, अन्यथा दोष है लगता है!
यह शास्त्र प्रमाण-
अष्टोत्तरशतं कार्या चतुष्पन्चाशदेव वा! सप्तविंशतिमाना वा ततो हीनाधमा स्मृता!!
अर्थात- रुद्राक्ष की माला अष्टोत्तर शत १०८ की हो, वा ५२ दाने की हो, अथवा सत्ताईस दाने की हो! इससे हीन अधम कही है!
मोक्षार्थी पञ्चविंशत्या धनार्थी त्रिंशता जपेत!
पुष्टियर्थी पञ्चविंशत्या पञ्चदश्याभिचारके!!
सप्त विंशतिरुद्राक्षमालया देहसंस्थाया!
यत्करोति नर: पुण्यं सर्व कोटि गुणं भवेत्!!
यो ददाति द्वेजेभ्यश्च रुद्राक्षं भुवि सम्मुखं !
तस्य प्रीतो भवेद्रुद्र: स्वपदं च प्रयच्छति!!
रुद्राक्षान कंठदेशे दशन परिमितान्मस्तके विंशती द्वे षट कर्णप्रदेशे करयुगलकृते द्वादश द्वादशैव!
बाह्वोरिन्दों: कलाभिर्नयनयुगकृते एकमेकं शिखायां वक्षस्यष्टाधिकं य: कलयति शतकं स स्वयं नीलकंठ:!!
अर्थात
मोक्ष वा पुष्टि का अभिलाषी रुद्राक्ष के पच्च्चीस दानों से, धन का अभिलाषी ३० दानों से, किसी को मारने का अभिलाषी १५ दानों से जप करे! जो मनुष्य रुद्राक्ष के २७ दानों की माला को धारण करके पूजन करता है उसे कोटिगुना फल मिलता है! जो मनुष्य शिव के सम्मुख ब्राह्मण को रुद्राक्ष देता है उस पर रूद्र प्रसन्न होते हैं तथा उसे अपने पद को प्राप्त कराते हैं!
धारण–
कंठ में ३२, मस्तक पर ४०, दोनों हाहों में १२-१२, दोनों भुजाओं पर १६-१६, दोनों नेत्रों पर ४-४, शिखा में १ और छाती पर १०८ रुद्राक्षों को धारण करता है वह स्वयं नीलकंठ [शिव रूप] है! इस प्रकार ही रुद्राक्ष धारण करने पर फल प्राप्त होता है!
जैसे आजकल लोग {ज्योतिषी] कहते हैं वैसे नहीं डाले! २७ दानों से कम दाने डालने पर नाश ही होता है!
२७ दाने डालने का भी एक नियम है, उस नियमके विरुद्ध भी दाने डालने पर दोष ही लगते हैं!
ऊपर कहे अनुसार जप करने और धारण करने पर ही शुभ फल ही प्राप्ति होती है, अन्यथा दोष है लगता है!
यह शास्त्र प्रमाण-
जो लोक २७–दानों से कम रुद्राक्ष के दाने धारण करते हैं उनको शिव-दोष लगता है! तथा किसी भी प्रकार का उपाये करने पर वह व्यक्ति दोष मुक्त नहीं होता!
रुद्राक्ष के वर्ण और धारण में अधिकार, रुद्राक्ष के मुख और धारण विधि—
************************************************************रुद्राक्ष के वर्ण और धारण में अधिकार, रुद्राक्ष के मुख और धारण विधि—
रुद्राक्ष चार वर्ण होता है–श्वेत,रक्त, पीत और कृष्ण! इसी वर्ण भेद से रुद्राक्ष धारण करने की विधि है- ब्राह्मण को श्वेत, क्षत्रिय को रक्त, वैश्य को पीट और शूद्र को कृष्ण वर्ण का रुद्राक्ष धारण करने की विधि है!
” सर्वाश्रमाणांवर्णानां स्त्रीशूद्राणां
शिवाज्ञया धार्या: सदैव रुद्राक्षा:”
सभी आश्रमों एवं वर्णों तथा स्त्री और शूद्र को सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिये, यह शिव आज्ञा है!
रुद्राक्ष के मुख और धारण-विधि–
शास्त्रों में रुद्राक्ष एक मुख से चौदह मुख तक का वर्णन प्रशस्त है! रुद्राक्ष दो जाति के होते हैं! रुद्राक्ष और भद्राक्ष!
रुद्राक्ष के मध्य में भद्राक्षका धारण करना भी महान फलदायक होता है!
रुद्राक्ष में स्वयं छिद्र होता है! जिस रुद्राक्ष में स्वयं छिद्र होता है, वह उत्तम होता है, पुरुष-प्रयत्न से किया गया छिद्र मध्यम कोटि का माना गया है!
१-एक मुखी रुद्राक्ष के विशिष्ट महत्त्व का वर्णन इस प्रकार किया गया है!
एक मुखी रुद्राक्ष साक्षात शिव तथा परतत्व [परब्रह्म] स्वरुप है और परतत्व-प्रकाशक भी है और ब्रह्महत्या का नाद करने वाला है, इसको धारण करने का मन्त्र यह है-” ॐ ह्रीं नम:”
२-द्विमुखी रुद्राक्ष साक्षात अर्धनारीश्वर है, इसको धारण करने से शिव-पार्वती प्रसन्न हो जाते हैं! ” ॐ नम:” इस मन्त्र से द्विमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिये!
३-त्रिमुखी रुद्राक्ष अग्नियों [ गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिणाग्नि] का स्वरूप है! तीन मुख वाले रुद्राक्ष को धारण करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है! “ॐ क्लीं नम:” यह त्रिमुखी रुद्राक्ष धारण करने का मन्त्र है!
४-चतुर्मुखी रुद्राक्ष साक्षात ब्रह्मा जी स्वरुप है! इसको धारण करने का मन्त्र ” ॐ ह्रीं नम:” है!
५-पंचमुखी र्द्राक्ष पंचदेवों [विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य और देवी]का स्वरुप है! इसके धरा करने पर नर ह्त्या के पाप से प्राणी मुक्त हो जाता है! ” ॐ ह्रीं नम:” मन्त्र से धारण करना चाहिय्र!
६-छ:मुखी रुद्राक्ष साक्षात कार्तिकेय है! इसके धारण करने से श्री एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है! “ॐ ह्रीं नम:” इस मन्त्र से इसे धारण करना चाहिये!
७-सप्त मुखी रुद्राक्ष अनंग नामवाला है! इसके धारण करने से स्वर्णस्तेयी स्वर्ण चोरी के पाप से मुक्त हो जाता है! “ॐ हुं नम:” यह धारण करने का मन्त्र है!
८-अष्टमुखी रुद्राक्ष साक्षात विनायक है और इसके धारण करने से पञ्च पातकों का विनाशोता है! “ॐ हुं नम:” इस मंत्रसे धारण करने से परमपद की प्राप्ति होती है!
९-नवमुखी रुद्राक्ष नव दुर्गा का प्रतीक है! उसको ” ॐ ह्रीं हुं नम:” इस मन्त्र से बायें भुजदंड पर धारण करने से नव शक्तियां प्रसन्न होती हैं!
१०-दशमुखी रुद्राक्ष साक्षात भगवान जनार्दन है! “ॐ ह्रीं नम:” इस मंत्रसे धारण करने पर साधक की पूर्णायु होती है और शान्ति प्राप्त करता है!
११–एकादश मुखी रुद्राक्ष ” ॐ ह्रीं हुं नम:” इस मन्त्र से धारण करना चाहिये! धारक साक्षात रुद्ररूप होकर सर्वत्र विजयी होता है!
१२-द्वादश मुखी रुद्राक्ष साक्षात महाविष्णु का स्वरुप है! “ॐ क्रौं क्षौं रौं नम:” मन्त्र से धारण करने से साक्षात विष्णु को ही धारण करता है! इसे कान में धारण करे! इससे अश्वमेधादि का फल प्राप्त होता है!
१३-त्रयोदश रुद्राक्ष धारण करने से सम्पूर्ण कामनाओं की पूर्ति पूर्वक कामदेव प्रसन्न हो जाते हैं! ” ॐ ह्रीं नम:” मन्त्र से धारण करना चाहिये!
१४-चतुर्दश मुखी रुद्राक्ष रूद्र की अक्षि से उत्पन्न हुआ, वह भगवान का नेत्र-स्वरुप है! “ॐ नम:” इस मन्त्र से धारण करने पर यह रुद्राक्ष सभी व्याधियों को हर लेता है!
रुद्राक्ष धारण करने में वर्जित पदार्थ—-
रुद्राक्ष धारण करने वाले को निम्नलिखित पदार्थों का वर्जन [त्याग] करना चाहिये!
मद्य, मांस, लहसुन, प्याज, सहजन, लिसोड़ा और विडवराह ग्राम्यसूकर] इन पदार्थों का परित्याग करना चाहिये!
रुद्राक्ष को मन्त्रपूर्वक ही धारण करे! बिना मंत्रोच्चारण के रुद्राक्ष धारण करने वाला नरक में तबतक रहता है, जबतक चौदह इन्द्रोंका राज्य रहता है!
रुद्राक्ष को शुभ मुहूर्त में धारण करे!
ग्रहण में, विषुव संक्रांति [ मेषार्क तथा तुलार्क] के दिन कर्क-संक्रांति और मकर-संक्रांति, अमावास्या, पूर्णिमा एवं पूर्णा तिथि को रुद्राक्ष धारण करने से सद्य: सम्पूर्ण पापों से निवृत्ति हो जाति है!