जानिए की हिन्दुओं को अपने घरों में अगरबत्ती क्यों नहीं जलानी चाहिए..??
प्रिय पाठकों/मित्रों, हमारे वैदिक सनातन हिन्दू धर्म में अगरबत्ती का प्रयोग वर्जित हैं???
आइये जाने की आखिर क्यों हम बॉस जला कर खाना नही बनाते ।दाह संस्कार में भी बॉस नही जलाते ।फिर बॉस से बनी अगरबत्ती जला भगवान को कैसे प्रसन्न कर सकते है?
प्रत्येक भारतीय घरों में पूजा के दौरान धूपबत्ती या अगरबत्ती जरुर जलाई जाती है। इनके बिना पूजा की विधि अधूरी मानी जाती है। एक शोध में पता चला है कि अगरबत्ती एवं धूपबत्ती के धुएं में पाए जाने वाले पॉलीएरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच)की वजह से पुजारियों में अस्थमा, कैंसर, सरदर्द एवं खांसी की गुंजाइश कई गुना ज्यादा पाई गई है।
खुशबूदार अगरबत्ती को घर के अंदर जलाने से वायु प्रदूषण होता है विशेष रूप से कार्बन मोनोऑक्साइड। अगर आप नियमित पूजा करती हैं और अगरबत्ती जलाती हैं तो अच्छा होगा कि अगरबत्तियों की मात्रा में कमी कर दें या फिर केवल घी गा दिया ही जलाएं। बंद कमरे में अगरबत्ती न जलाएं। इससे धुएं की सान्द्रता बढ़ जाती है, और फेफड़ों पर ज्यादा असर होता है।
शास्त्रो में बांस की लकड़ी जलाना मना है फिर भी लोग अगरबत्ती जलाते है। जो की बांस की बानी होती है। अगरबत्ती जलाने से पितृदोष लगता है।शास्त्रो में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता सब जगह धुप ही लिखा हुआ मिलता है। अगरबत्ती तो केमिकल से बनाई जाती है भला केमिकल या बांस जलने से भगवान खुस कैसे होंगे ? अगरबत्ती जलाना बांध करे सब पंडित लोग। पूजन सामग्री में जब आप यजमान को अगरबत्ती लिख कर देंगे ही नहीं तो जलाने का सवाल ही नहीं। इस सत्य से यजमानो को अवगत कराये। आजकल लोगो को पितृ दोष बहुत होते है इसका एक कारन अगरबत्ती का जलना भी है।
अगरबत्ती का पूजा में प्रयोग हिन्दुओ को पूजा का प्रतिफल न मिले एक साजिश के तहत यवनो ने बहुत वर्षो पहले शुरू कराया जो आज पूजा में परम्परा का रूप ले चुका है
प्रिय पाठकों/मित्रों, जिस समय यवनो ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया तो उन्होंने देखा हिन्दू सैनिक युध्द से पहले पूजा पाठ करते थे जिसमें धुप दीप जलाकर अपने इष्ट को प्रसन्न कर उन पर टूट पड़ते थे यवनो को हार का सामना करना पड़ता था ये सब देख कर ओरंगजेब जैसे आक्रमण कारी यो ने हमारे पूजा स्थलों को तोड़ना शुरू किया ताकि हिन्दुओ को अपने इष्ट से शक्ति प्राप्त न हो और उनकी युध्द में हार हो जाये मंदिर तोड़े जाने से हिन्दू सेना और भड़क उठती अपनी पूरी ताकत लगा यवनो को हरा देती ये देख कर यवन सेना के बुध्दि जियो ने सोचा की हिन्दुओ के भगवान बहुत शक्तिशाली है पूजा पाठ करने से हिन्दुओ को शक्ति प्रदान करदेते है जिस कारण हमारी सेना प्रा जित हो जाती है तब उन्होंने हमारे धर्म ग्रन्थों का अध्यन किया तो शास्त्रो में पाया कि हिदू धर्म में बॉस जलाना वर्जित है ||
यवनो को एक समस्या का और भी सामना करना पड़ रहा था युध्द में उनके हजारो सैनिक एक दिन में मारे जा रहे थे उन्हें एक साथ दफनाने में युध्द भूमि पर बहुत बदबू हो जाती थी तब यवनो ने बॉस पर वातावरण शुध्द करने वाली हमारी हवन सामग्री लपेट कर अगरबत्ती बनायी उसे कब्र पर जलाने से बदबू आ नी बन्द हो गयी यवनो ने हमारे धर्म भीरु भोले भाले सैनिको को अगरबत्ती दिखा कर समझाया देखो तुम्हारे भगवान सुगन्धित धूप से प्रसन्न होते है ये अगरबत्ती जलाया करो कितनी अच्छी सुगन्ध आती है ||
अगर बत्ती बॉस की लकड़ी पर बनी होने के कारण हमारे सैनिको की पूजा खण्डित होने लगी उन्हें कब्र पर जलाने से बदबू से छुटकारा मिला|| आज भी मुसलमान एक हफ्ते तक कब्र पर अगरबत्ती जलाते है और हम देखा देखी में आज भी बॉस पर बनी अगरबत्ती जला अपनी पूजा खण्डित करने में लगे है|| हमने राजस्थान और मध्यप्रदेश भृमण में देखा कि वहां के लोग पूजा पाठ के साथ तीज त्यौहार बड़े मन लगा कर करते है मगर अगरबत्ती का प्रयोग करने से उन्हें अपेक्षित परिणाम या प्रतिफल नही मिलता ।
वहीँ ध्यान देने बात यह हैं की कुछ विद्वान् पंडित भी अज्ञानतावश पूजा सामग्री में सबसे पहले अगरबत्ती का पूड़ा लिख वाते है ||
आज देश में 8.%मुसलमान व् .0%हिन्दू अगरबत्ती बनाने के कारोबार से जुड़े है || कुछ हमारी घार्मिक संस्था भी ज्ञान न होने के कारण बॉस पर अगरबत्ती बनाकर बेच रही है ।
हमारे धर्म में बांस जलाने की मनाही है। बांस जलाने की लकड़ी के रूप में बिलकुल ही अनुपयोगी है। पुराने लोग कहते आये हैं कि ‘बांस को जलाने से वंश जलता है।’ अब बांस को जलाने से वंश के जलने का क्या संबंध? हमारे शास्त्रों ने या हमारे महापुरुषों ने जो भी महत्वपूर्ण बातें कही हैं, उसके पीछे अवश्य ही कोई न कोई वैज्ञानिक तथ्य छुपा होता है।
अब यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि बांस जलाने पर जो धुंआ होता है, वह धुंआ फेफड़ों से होकर जब खून में मिलता है, तो वह ऐसे तत्व छोड़ता है जो हमारी प्रजनन क्षमता को कम करता है। यानी आदमी को नपुंसकता की ओर धकेलता है, अर्थात नामर्दी की ओर धकेलता है।
फेफड़ों में धुंए के कण जमा होने के कारण शरीर को आक्सीजन बहुत कम मिलती है, जिससे शरीर कामवासना को पूरी तरह से जी नहीं पाता। भले शरीर कितना ही पुष्ट क्यों न हो, लेकिन फेफड़े कार्बन से मुक्त होंगे तभी वह कामवासना में गहरे जा सकेगा। क्योंकि कामवासना में बहुत ज्यादा आक्सीजन की जरूरत होती है, जो फेफड़ों में जमा धुंए के कारण कम पहुंच पाती है। कामवासना को पूरी तरह से न जी पाने के कारण ही हमारा चित्त उससे मुक्त नहीं हो पाता।
बांस का धुंआ हमारी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है। इसीलिए पुराने लोगों ने कहा कि बांस को जलाने से वंश जलता है।
तो अगरबत्ती क्यों नहीं जलानी चाहिए? क्योकि अगरबत्ती में जो तीली (लकड़ी) होती है, वह बांस की बनी हुई होती है। यदि हम अगरबत्ती जलाते हैं तो ‘बांस’ को भी जलाते हैं। और बांस को जलाना अर्थात अपना वंश जलाना!
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बाँस को जलाना उचित नहीं माना जाता है,यहाँ तक कि जब हमारे हिंदू धर्म में विवाह में भी बाँस का सामान बेटी के विवाह में दिया जाता है जिसका अर्थ होता है -बांस अर्थात वंश जिससे बेटी जिस घर में जाए उस घर का वंश बढता रहे.लेकिन लोग देवी देवताओ को प्रसन्न करने बांस की लकडियों से बनी अगरबत्ती को धडल्ले से उपयोग करते है जो अनुचित है /
इसके बजाय गाय के गोबर में गूगल, घी, चन्दन, कपूर आदि मिलाकर छोटी गोलियाँ बना कर सूखा कर उन्हें जलाना चाहिये इससे वातावरण शुद्ध होता है.शास्त्रों में भी बांस की लकड़ी को अनुचित बताते है गौ माँ के गोबर, गौमूत्र, घी, भीमसेनी कपूर, नीम से बनायीं गौ शाला में निर्मित धूप बत्ती का ही प्रयोग सर्वोत्तम व स्वास्थ्य वर्द्धक है.१० ग्राम घी जलाने से एक टन वायु शुद्ध होती है/
पूजा-अर्चना के लिए प्रयोग किए जानेवाली अगरबत्ती आपके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. एक अध्ययन में पाया गया है कि अगरबत्ती के धूएं से फेफड़ों को हानि पहुंच सकती है. इसलिए अगरबत्तियों से दूरी बनाने में ही समझदारी है. अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के गिलिंग्स स्कूल ऑफ ग्लोबल पब्लिक हेल्थ ने ये अध्ययन किया है/
ताजा अनुसंधान में कहा गया है कि अगरबत्तियों को जलाने से प्रदूषणकारी गैसों का उत्सर्जन होता है जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड शामिल है. प्रदूषणकारी गैसों के कारण फेफड़ों की कोशिकाओं में सूजन आ सकती है/
धूप बहुत अच्छी होती है,इसलिए ऋषि मुनि भी हवन यज्ञ आदि करते रहे है, धूप जलाने से ऊर्जा का सृजन होता है, स्थान पवित्र हो जाता है व मन को शान्ति मिलती है।इनसे नकारात्मक ऊर्जाओं वाली वायु शुद्ध हो जाती है.इसलिए, प्रतिदिन धूप जलाना अति उत्तम और बहुत ही शुभ है/
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आइये जाने अगरबत्ती के कारण आपके स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों को—
आइये जानते हैं अगरबत्ती का धुआं किस तरह से आपके और आपके परिवार वालों के लिये जान का घतरा बन सकती है।
कफ़ और छीकनें की समस्या बढ़ती है—
हाल ही के एक अध्ययन के अनुसार अगरबत्तियों से स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है। परिणामों से सिद्ध हुआ है कि घर के अंदर अगरबत्ती जलाने से वायु प्रदूषण होता है विशेष रूप से कार्बन मोनोऑक्साइड जिसके कारण फेफड़ों की कोशिकाओं में सूजन आ सकती है और श्वसन से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। जब श्वास के साथ आवश्यकता से अधिक मात्रा में धुंआ शरीर के अंदर चला जाता है तो अधिकाँश लोगों को अतिसंवेदनशीलता के कारण कफ़ और छीकनें की समस्या हो जाती है।
अस्थमा का ख़तरा –—इन अगरबत्तियों में सल्फ़र डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन और फॉर्मल्डेहाईड (कण तथा गैस के रूप में) होते हैं जिनके कारण नियमित रूप से इसके संपर्क में रहने पर श्वसन से संबंधित बीमारियाँ जैसे COPD और अस्थमा हो सकती हैं। इस समय श्वसन के माध्यम से जो धुंआ फेफड़ों में जाता है वह धूम्रपान के समय फेफड़ों में जाने वाले धुएं के समान होता है।
आंखों और त्वचा की एलर्जी —–यह एक सत्य बात है कि लंबे समय तक अगरबत्तियों का उपयोग करने से आँखों में विशेष रूप से बच्चों तथा वृद्ध व्यक्तियों की आँखों में जलन होती है। इसके अलावा संवेदनशील त्वचा वाले लोग भी जब नियमित तौर पर अगरबत्ती के जलने से निकलने वाले धुएं के संपर्क में आते हैं तो उन्हें भी त्वचा पर खुजली महसूस होती है
यह तंत्रिका से संबंधित लक्षण सक्रिय करती है नियमित तौर पर अगरबत्ती का उपयोग करने से जो समस्याएं आती हैं उनमें सिरदर्द, ध्यान केंद्रित करने में समस्या होना और विस्मृति आदि शामिल है। रक्त में जानलेवा गैसों की मात्रा बढ़ने से मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित करती हैं जिसके कारण तंत्रिका से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
इसके कारण श्वसन कैंसर हो सकता है —— क्या आपने कभी सोचा है कि अगरबत्ती का उपयोग करने से श्वसन मार्ग का कैंसर हो सकता है? लंबे समय तक अगरबत्ती का उपयोग करने से ऊपरी श्वास नलिका का कैंसर होने का ख़तरा बढ़ जाता है। यह भी साबित हुआ है कि अगरबत्ती का उपयोग करने साथ साथ, धूम्रपान करने वालों में भी ऊपरी श्वास नलिका के कैंसर की संभावना सामान्य लोगों की तुलना में अधिक होती है।
यह शरीर में विषाक्त पदार्थों को जमा करती है—- अध्ययनों से पता चला है कि जब अगरबत्ती को जलाया जाता है तो विषाक्त धुंआ निकलता है जिसमें लेड(सीसा), आयरन और मैग्नीशियम होता है जिसके कारण शरीर में विषाक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ती है। अगरबत्ती लगाने से जो धुंआ निकलता है उसके कारण रक्त में अशुद्धियों की मात्रा बढ़ जाती है।
दिल को नुकसान पहुंचाती है–— लम्बे समय तक अगरबत्तियों का उपयोग करने से हृदय रोग से होने वाली मृत्यु की दर .0% से 12% तक बढ़ जाती है। इसका मुख्य कारण अगरबत्ती जलाने पर श्वसन के द्वारा अंदर जाने वाला धुंआ है (जिसमें वाष्पशील कार्बनिक यौगिक और कणिका तत्व होते हैं)। इससे रक्त वाहिकाओं की सूजन बढ़ जाती है तथा रक्त प्रवाह प्रभावित होता है जिसके कारण हृदय से संबंधित समस्याएं बढ़ जाती हैं।
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विनम्र निवेदन–अतः हमारा सभी हिन्दू भक्तो से आग्रह है कि पूजा पाठ में धुप बत्ती का प्रयोग करे अगरबत्ती न जलाये || सभी हिन्दुओ को इस बात से अवगत कराएं कि सनातन धर्म जो बॉस या बॉस से बनी अगरबत्ती जलाते है, वे अपने वंश का नाश करते है ||उन्हें पूजा पाठ का फल भी नही मिलता।पितृदोष/पितरदोष में बढ़ोत्तरी होती हैं ||
आगे आप स्वयं समझदार हैं ||स्वयं निर्णय लीजिये, क्या उचित हैं और क्या अनुचित..??
कल्याण हो..शुभम भवतु..