सफलता के लिए शुभ मुहूर्त (शुभ नक्षत्र)  में करें कार्य आरंभ …

shubh laabh

शुभ महूर्त  

 shubh laabh

ज्योतिषियों के अनुसार सुखी और खुशहाल जीवन के लिए जरूरी है कि हर काम की शुरुआत शुभ मुहूर्त में करें और अशुभ को त्यागें। सुखी और खुशहाल जीवन के लिए जरूरी है कि हर काम की शुरुआत शुभ मुहूर्त में करें और  अशुभ को त्यागें। सुखी और खुशहाल जीवन के लिए जरूरी है कि हर काम की शुरुआत शुभ मुहूर्त में करें और अशुभ को त्यागें। 

  

हिन्दू धर्म में शुभ मुहूर्त में कार्य करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। केवल विवाह ही क्यों, यहां तो किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करने से पहले एक मुहूर्त निकाला जाता है, ताकि वह कार्य सफल हो सके। बच्चों की शादी से लेकर बहू के गृह प्रवेश तक, घर में आए नन्हें मेहमान के गृह प्रवेश से लेकर उसके नामकरण पर शुभ मुहूर्त…. 

नामकरण, मुंडन तथा विद्यारंभ जैसे संस्कारों के लिए तथा दुकान खोलने, सामान खरीदने-बेचने और ऋण तथा भूमि के लेन-देन और नये-पुराने मकान में प्रवेश के साथ यात्रा विचार और अन्य अनेक शुभ कार्यों के लिए शुभ नक्षत्रों के साथ-साथ कुछ तिथियों तथा वारों का संयोग उनकी शुभता सुनिश्चित करता है। आइए, इस लेख से जाने कि किस कार्य के लिए इस संयोग का स्वरूप क्या और कैसा हो? 

ज्योतिषशास्त्र वज्योतिषी के ऊपर जो लोग विश्वास करते हैं, वे अपनी आपबीती एवं अनुभवों की बातें सुनते हैं। उन बातों मेंज्योतिषी द्वारा की गई भविष्यवाणी में सच हने वाली घटना का उल्लेख होता है। इन घटनाओं में थोड़ी बहुत वास्तविकता नजर आती है। वहीं कई घटनाओं में कल्पनाओं का रंग चडा रहता है क्योंकि कभी – कभार ज्योतिषी कीभविष्यवाणी सच होती है ? 

इस सच के साथ क्या कोई संपर्कज्योतिष शास्त्र का है?ज्योतिषियों कीभविष्यवाणी सच होने के पीछे क्या राज है ?ज्योतिषी इस शास्त्र के पक्ष में क्या – क्या तर्क देते हैं ? यह तर्क कितना सही है ?

ज्योतिषशास्त्र की धोखाधड़ी के खिलाफ क्या तर्क दिये जाते हैं? इन सब बातों की चर्चा हम जरुर करेंगे लेकिन जिस शास्त्र को लेकर इतना तर्क – वितर्क हो रहा है ; उस बारे में जानना सबसे पहले जरुरी है। 

दिन, सप्ताह, पक्ष,मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव तिथि का परिज्ञान के लिए ज्योतिष शास्त्र को केन्द्र में रखा गया है। मानव समाज को इसका ज्ञान आवश्यक है। धार्मिक उत्सव,सामाजिक त्योहार,महापुरुषों के जन्म दिन, अपनी प्राचीन गौरव गाथा का इतिहास, प्रभृति, किसी भी बात का ठीक-ठीक पता लगा लेने में समर्थ है यह शास्त्र। इसका ज्ञान हमारी परंपरा, हमारे जीवन व व्यवहार में समाहित है। शिक्षित और सभ्य समाज की तो बात ही क्या, अनपढ़ और भारतीय कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिपूर्ण हैं। वह भलीभांति जानते हैं कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है, अत: बीज कब बोना चाहिए जिससे फसल अच्छी हो। यदि कृषक ज्योतिष शास्त्र के तत्वों को न जानता तो उसका अधिकांश फल निष्फल जाता। 

कुछ महानुभाव यह तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषि शास्त्र के मर्मज्ञ असमय ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को संपन्न कर लेते हैं या कर सकते हैं। इस दशा में कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष शास्त्र का ही शिष्य है।ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये? बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचे “भयात/भभोत” जैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है।

और आजकल तो कोई भी वस्तु खरीदने के लिए भी शुभ मुहूर्त निकाला जाता है।

इसके अलावा कुछ विशेष दिनों के आधार पर भी शुभ-अशुभ मुहूर्त बताए जाते हैं। जैसे कि शुक्ल पक्ष की अष्टमी और पूर्णमासी के पूर्वार्द्ध और चतुर्थी एवं एकादशी के उत्तरार्द्ध में तथा कृष्ण पक्ष की तीज एवं दशमी के उत्तरार्द्ध और सप्तमी एवं चतुर्दशी के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है। तिथि के उत्तरार्द्ध में होने वाली भद्रा यदि दिन में हो तो शुभ होती है। इसी प्रकार पूर्वार्द्ध में होने वाली भद्रा रात्रि में हो तो शुभ होती है।

नक्षत्र ही भारतीय ज्योतिष का वह आधार है जो हमारे दैनिक जीवन के महत्वपूर्ण कार्यों को प्रभावित करता है। अतः हमें कोई भी कार्य करते हुए उससे संबंधित शुभ नक्षत्रों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए जिससे हम सभी कष्ट एवं विघ्न बाधाओं से दूर रहकर नयी ऊर्जा को सफल उद्देश्य के लिए लगा सकें। विभिन्न कार्यों के लिए शुभ नक्षत्रों को जानना आवश्यक है। 

नामकरण के लिए : संक्रांति के दिन तथा भद्रा को छोड़कर ., ., ., 5, 7, 1., 11, 12, 13 तिथियों में, जन्मकाल से ग्यारहवें या बारहवें दिन, सोमवार, बुधवार अथवा शुक्रवार को तथा जिस दिन अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, अभिजित, पुष्य, स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा इनमें से किसी नक्षत्र में चंद्रमा हो, बच्चे का नामकरण करना चाहिए। 

मुण्डन के लिए : जन्मकाल से अथवा गर्भाधान काल से तीसरे अथवा सातवें वर्ष में, चैत्र को छोड़कर उत्तरायण सूर्य में, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार अथवा शुक्रवार को ज्येष्ठा, मृगशिरा, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पुनर्वसु, अश्विनी, अभिजित व पुष्य नक्षत्रों में, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13 तिथियों में बच्चे का मुंडन संस्कार करना चाहिए। ज्येष्ठ लड़के का मुंडन ज्येष्ठ मास में वर्जित है। लड़के की माता को पांच मास का गर्भ हो तो भी मुण्डन वर्जित है। 

विद्या आरंभ के लिए : उत्तरायण में (कुंभ का सूर्य छोड़कर) बुध, बृहस्पतिवार, शुक्रवार या रविवार को, 2, 3, 5,6, 10, 11, 12 तिथियों में पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मूल, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मूल, पूष्य, अनुराधा, आश्लेषा, रेवती, अश्विनी नक्षत्रों में विद्या प्रारंभ करना शुभ होता है। 

दुकान खोलने के लिए : हस्त, चित्रा, रोहिणी, रेवती, तीनों उत्तरा, पुष्य, अश्विनी, अभिजित् इन नक्षत्रों में, 4, 9, 14, 30 इन तिथियों को छोड़कर अन्य तिथियों में, मंगलवार को छोड़कर अन्य वारों में, कुंभ लग्न को छोड़कर अन्य लग्नों में दुकान खोलना शुभ है। ध्यान रहे कि दुकान खोलने वाले व्यक्ति की अपनी जन्मकुंडली के अनुसार ग्रह दशा अच्छी होनी चाहिए। व्यापार कब आरंभ करे इसके लिए गोस्वामी तुलसीदास अपने रचित ग्रंथ दोहावली मे लिखते हैं की श्रवण,धनिष्ठा,शतभीषा,हस्त,चित्रा,स्वाति,पुष्य,पुनर्वसु,मृगशिरा,अश्विनी,रेवती तथा अनुराधा नक्षत्रो मे आरंभ किया गया व्यापार व दिया गया धन हमेशा धनवर्धक होता हैं जो किसी भी अवस्था मे डूब नहीं सकता अर्थात इन नक्षत्रो मे आरंभ किया गया व्यापार कभी भी जातक को हानी नहीं दे सकता हैं | इसी प्रकार शेष अन्य नक्षत्रो मे दिया गया,चोरी गया,छीना हुआ अथवा उधार दिया धन कभी भी वापस नहीं आता हैं अर्थात जातक को हानी ही प्रदान करता हैं |

एक अन्य श्लोक् मे कहा गया हैं की यदि रविवार को द्वादशी,सोमवार को एकादशी,मंगलवार को दशमी,बुधवार को तृतीया,गुरुवार को षष्ठी,शुक्रवार को द्वितीया तथा शनिवार को सप्तमी तिथि पड़े तो यह तिथिया सर्व सामान्य हेतु हानिकारक बनती हैं अर्थात आमजन को इन तिथियो मे नुकसान ही होता हैं | अत: इन तिथियो मे कोई बड़ा सौदा अथवा लेन-देन नहीं करना चाहिए |

जातक की अपनी राशि से जब चन्द्र का गोचर 3,6,12 भावो से होता हैं तब जातक को अवस्य ही दुख तकलीफ,धनहानी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं इसी प्रकार जब मेष राशि के प्रथम,वृष के पंचम,मिथुन के नवे,कर्क के दूसरे,सिंह के छठे,कन्या के दसवे,तुला के तीसरे,वृश्चिक के सातवे,धनु के चौथे,मकर के आठवे,कुम्भ के ग्यारहवे,तथा मीन के बारहवे चन्द्र होतो जातक हेतु घातक प्रभाव होता हैं जिससे जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होते हैं अत: इन इन दिनो जातक को विशेष सावधान रहना चाहिए |    

कोई वस्तु/सामान खरीदने के लिए : रेवती, शतभिषा, अश्विनी, स्वाति, श्रवण, चित्रा, नक्षत्रों में वस्तु/सामान खरीदना चाहिए। 

कोई वस्तु बेचने के लिए : पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाषाढ़ा, कृत्तिका, आश्लेषा, विशाखा, मघा नक्षत्रों में कोई वस्तु बेचने से लाभ होता है। वारों में बृहस्पतिवार और सोमवार शुभ माने गये हैं। 

ऋण लेने-देने के लिए : मंगलवार, संक्रांति दिन, हस्त वाले दिन रविवार को ऋण लेने पर ऋण से कभी मुक्ति नहीं मिलती। मंगलवार को ऋण वापस करना अच्छा है। बुधवार को धन नहीं देना चाहिए। कृत्तिका, रोहिणी, आर्द्रा, आश्लेषा, उत्तरा तीनों, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल नक्षत्रों में, भद्रा, अमावस में गया धन, फिर वापस नहीं मिलता बल्कि झगड़ा बढ़ जाता है। 

भूमि के लेन-देन के लिए : आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, मृगशिरा, मूल, विशाखा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में, बृहस्पतिवार, शुक्रवार 1, 5, 6, 11, 15 तिथि को घर जमीन का सौदा करना शुभ है। 

नूतन ग्रह प्रवेश : फाल्गुन, बैशाख, ज्येष्ठ मास में, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, रेवती नक्षत्रों में, रिक्ता तिथियों को छोड़कर सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार को नये घर में प्रवेश करना शुभ होता है। (सामान्यतया रोहिणी, मृगशिरा, उत्तराषाढ़ा, चित्रा व उ. भाद्रपद में) करना चाहिए। 

यात्रा विचार : अश्विनी, मृगशिरा, अनुराधा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, श्रवण, धनिष्ठा, रेवती नक्षत्रों में यात्रा शुभ है। रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तरा-3, पूर्वा-3, मूल मध्यम हैं। भरणी, कृत्तिका, आर्द्रा, मघा, आश्लेषा, चित्रा, स्वाति, विशाखा निन्दित हैं। मृगशिरा, हस्त, अनुराधा, रिक्ता और दिक्शूल को छोड़कर सर्वदा सब दिशाओं में यात्रा शुभ है। जन्म लग्न तथा जन्म राशि से अष्टम लग्न होने पर यात्रा नहीं करनी चाहिए। 

यात्रा मुहूर्त में दिशाशूल, योगिनी, राहुकाल, चंद्र-वास का विचार अवश्य करना चाहिए। 

वाहन (गाड़ी) मोटर साइकिल, स्कूटर चलाने का मुहूर्त : अश्विनी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, पुनर्वसु, पुष्य, ज्येष्ठा, रेवती नक्षत्रों में सोमवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार व शुभ तिथियों में गाड़ी, मोटर साइकिल, स्कूटर चलाना शुभ है। 

कृषि (हल-चलाने तथा बीजारोपण) के लिए : अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तरा तीनों, अभिजित, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, मूल, धनिष्ठा, रेवती, इन नक्षत्रों में, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार को, 1, 5, 7, 10, 11, 13, 15 तिथियों में हल चलाना व बीजारोपण करना चाहिए। 

फसल काटने के लिए : भरणी, कृत्तिका, आर्द्रा, मृगशिरा, पुष्य, आश्लेषा, मघा, हस्त, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठा, मूल, पू.फाल्गुनी, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा तीनों, नक्षत्रों में, 4, 9, 14 तिथियों को छोड़कर अन्य शुभ तिथियों में फसल काटनी चाहिए। 

कुआँ खुदवाना व नलकूप लगवाना : रेवती, हस्त, उत्तरा भाद्रपद, अनुराधा, मघा, श्रवण, रोहिणी एवं पुष्य नक्षत्र में नलकूप लगवाना चाहिए। 

नये-वस्त्र धारण करना : अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, धनिष्ठा, रेवती शुभ हैं। 

नींव रखना : रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, हस्त, ज्येष्ठा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा एवं श्रवण नक्षत्र में मकान की नींव रखनी चाहिए। 

मुखय द्वार स्थापित करना : रोहिणी, मृगशिरा, उ.फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद एवं रेवती में स्थापित करना चाहिए। 

मकान खरीदना : बना-बनाया मकान खरीदने के लिए मृगशिरा, आश्लेषा, मघा, विशाखा, मूल, पुनर्वसु एवं रेवती नक्षत्र उत्तम हैं। 

उपचार शुरु करना : किसी भी क्रोनिक रोग के उपचार हेतु अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, हस्त, उत्तराभाद्रपद, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा एवं रेवती शुभ हैं। 

आप्रेशन के लिए : आर्द्रा, ज्येष्ठा, आश्लेषा एवं मूल नक्षत्र ठीक है। 

विवाह के लिए : रोहिणी, मृगशिरा, मघा, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, मूल, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती शुभ हैं। 

दैनिक जीवन में शुभता व सफलता प्राप्ति हेतु नक्षत्रों का उपयोगी एवं व्यावहारिक ज्ञान बहुत जरूरी है। वास्तव में सभी नक्षत्र सृजनात्मक, रक्षात्मक एवं विध्वंसात्मक शक्तियों का मूल स्रोत हैं। अतः नक्षत्र ही वह सद्शक्ति है जो विघ्नों, बाधाओं और दुष्प्रभावों को दूर करके हमारा मार्ग दर्शन करने में सक्षम है।

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सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, गुरुपुष्यामृत और रविपुष्यामृत योग—-

शुभ मुहूर्तों में स्वर्ण आभूषण, कीमती वस्त्र आदि खरीदना, पहनना, वाहन खरीदना, यात्रा आरम्भ करना, मुकद्दमा दायर करना, ग्रह शान्त्यर्थ रत्न धारण करना, किसी परीक्षा प्रतियोगिता या नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भरना आदि शुभ मुहूर्त जानने के किए अब आपको पूछने के लिए किसी ज्योतिषी के पास बार-बार जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी । सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, गुरुपुष्यामृत और रविपुष्यामृत योग वारों का विषेश नक्षत्रों से सम्पर्क होने से ये योग बनते हैं । जैसे कि इन योगों के नामों से स्पष्‍ट है, इन योगों के समय में कोई भी शु्भ कार्य आरम्भ किया जाय तो वह निर्विघ्न रूप से पूर्ण होगा ऐसा हमारे पूर्वाचार्यों ने कहा है । 

यात्रा, गृह प्रवेश, नूतन कार्यारम्भ आदि सभी कार्यों के लिए या अन्य किसी अपरिहार्य कारणवश यदि व्यतिपात, वैधृति, गुरु-शुक्रास्त, अधिक मास एवं वेध आदि का विचार सम्भव न हो तो सर्वार्थसिद्धि आदि योगों का आश्रय लेना चाहिये । 

अमृतसिद्धि योग—-

अमृतसिद्धि योग रवि को हस्त, सोम को मृगशिर, मंगल को अश्‍विनी, बुध को अनुराधा, गुरु को पुष्य नक्षत्र का सम्बन्ध होने पर रविपुष्यामृत-गुरुपुष्यामृत नामक योग बन जाता है जो कि अत्यन्‍त शुभ माना गया है । 

रवियोग योग—

रवियोग भी इन्हीं योगों की भाँति सभी कार्यों के लिए हैं . शास्त्रों में कथन है कि जिस तरह हिमालय का हिम सूर्य के उगले पर गल जाता है और सैकड़ों हाथियों के समूहों को अकेला सिंह भगा देता है उसी तरह से रवियोग भी सभी अशुभ योगों को भगा देता है, अर्थात्‌ इस योग में सभी कार्य निर्विघन रूप से पूर्ण होंगे । 

त्रिपुष्कर और द्विपुष्कर योग—

त्रिपुष्कर और द्विपुष्कर योग विषेश बहुमूल्य वस्तुओं की खरीददारी करने के लिए हैं . इन योगों में खरीदी गई वस्तु नाम अनुसार भविष्य में दिगुनी व तिगुनी हो जाती है । अतः इन योगों में बहुमूल्य वस्तु खरीदनी चाहिये । इन योगों के रहते कोई वस्तु बेचनी नहीं चाहिये क्योंकि भविष्य में वस्तु दुगुनी या तिगुनी बेचनी पड़ सकती है । धन या अन्य सम्पत्ति के संचय के लिए ये योग अद्वितीय माने गए हैं । इन योगों के रहते कोई वस्तु गुम हो जाये तो भविष्य में दुगुना या तिगुना नुकसान हो सकता है, अतः इस दिन सावधान रहना चाहिए । इस दिन मुकद्दमा दायर नहीं करना चाहिए और दवा भी नहीं खरीदनी चाहिए । 

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— नामकरण संस्कार रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार को स्थिर लग्न एवं नक्षत्र चरण के आधार पर नामकरण कराएँ। सही अक्षर नहीं आने पर नक्षत्र राशि के अन्य अक्षरों पर यह काम किया जा सकता है। 

—प्रसूति स्नान रविवार, मंगलवार, गुरुवार को करना हितकर है। अन्य वारों को यह काम नहीं करें। खासकर शतभिषा नक्षत्र और उपरोक्त वार हों। 

* जलवा (कुआँ पूजन) सोम, बुध, गुरुवार को जलवा पूजन करना हितकर है।.

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नक्षत्र,राशि तथा ग्रहो का आपसी संबंध—

ताराओ का समुदाय अर्थात तारों का समूह नक्षत्र कहलाता हैं |विभिन्न रूपो और आकारो मे जो तारा पुंज दिखाई देते हैं उन्हे नक्षत्रो की संज्ञा दी गयी हैं | सम्पूर्ण आकाश को 27 भागो मे बांटकर प्रत्येक भाग का एक नक्षत्र मान लिया गया हैं | पृथ्वी अपना घूर्णन करते समय जब एक नक्षत्र से दूसरे पर जाती हैं या होती हैं तो इससे यह पता चलता हैं की हमारी पृथ्वी कितना चल चुकी हैं अब चूंकि नक्षत्र  अपने नियत स्थान मे स्थिर रहते हैं धरती पर हम यह मानते हैं की नक्षत्र गुज़र रहे हैं |

गणितीय दृस्टी से कहे तो जिस मार्ग से पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती हैं उसी मार्ग के आसपास ही “नक्षत्र गोल”मे समस्त ग्रहो का भी मार्ग हैं,जो क्रांतिव्रत से अधिक से अधिक सात अंश का कोण बनाते हुये चक्कर लगाते हैं |इस विशिष्ट मार्ग का आकाशीय विस्तार “राशि” हैं जिसके 12 भाग हैं और प्रत्येक भाग 30 अंशो का हैं | यह 12 राशि भाग धरती से देखने पर जैसे नज़र आते हैं उसी आधार पर इनके नाम रखे गए हैं |इस प्रकार मेष से लेकर मीन तक राशिया मानी गयी हैं |

रशिपथ एक अंडाकार वृत की तरह हैं जिसके 360 अंश हैं | इन अंशो को 12 भागो मे बांटकर(प्रत्येक 30 अंश) राशि नाम दिया गया हैं | अब यदि 360 अंशो को 27 से भाग दिया जाये तो प्रत्येक भाग 13 अंश 20 मिनट का होता हैं जिसे गणितिय दृस्टी से एक “नक्षत्र” माना जाता हैं |प्रत्येक नक्षत्र को और सूक्ष्म रूप से जानने के लिए 4 भागो मे बांटा गया हैं (13 अंश 20 मिनट/4=3 अंश 20 मिनट) जिसे नक्षत्र के चार चरण कहाँ जाता हैं |

इस प्रकार सरल भाषा मे कहे तो पूरे ब्रह्मांड को 12 राशि व 27 नक्षत्रो मे बांटा गया हैं जिनमे हमारे 9 ग्रह भ्रमण करते रहते हैं | अब यदि इन 27 नक्षत्रो को 12 राशियो से भाग दिया जाये तो हमें एक राशि मे सवा दो नक्षत्र प्राप्त होते हैं अर्थात दो पूर्ण नक्षत्र तथा तीसरे नक्षत्र का एक चरण कुल 9 चरण, यानि ये कहाँ जा सकता हैं की एक राशि मे सवा दो नक्षत्र होते हैं या नक्षत्रो के 9 चरण होते हैं | हर राशि का एक स्वामी ग्रह होता हैं जिसे हम राशि स्वामी कहते हैं इस प्रकार कुल मिलाकर यह कहाँ जा सकता हैं की एक राशि जिसका  स्वामी कोई ग्रह हैं उसमे 9 नक्षत्र चरण अर्थात सवा दो नक्षत्र होते हैं |

किस राशि मे कौन से नक्षत्र व नक्षत्र चरण होते हैं और उनके स्वामी ग्रह कौन होते हैं इसको ज्ञात करने का एक सरल तरीका इस प्रकार से हैं |

सभी 27 नक्षत्रो को क्रमानुसार लिखकर उनके स्वामियो के आधार पर याद करले | अब नक्षत्र चरण के लिए निम्न सूत्र याद करे |

नक्षत्र चरण –राशिया

4 4 1-{ मेष,सिंह,धनु }

3 4 2 –{ वृष,कन्या,मकर }

2 4 3-{ मिथुन,तुला,कुम्भ }

1 4 4-{ कर्क,वृश्चिक,मीन }

आरंभ के 3 नक्षत्र केतू,शुक्र व सूर्य ग्रह के हैं ज़ो क्रमश; मेष,सिंह व धनु राशि मे ही आएंगे | इसके बाद तीसरा नक्षत्र (शेष 3 चरणो की वजह से ),चौथा व पांचवा नक्षत्र सूर्य,चन्द्र व मंगल के हैं जो क्रमश; वृष, कन्या व मकर राशि मे ही आएंगे |अब अगले(शेष)नक्षत्र मंगल,राहू व गुरु के हैं जो मिथुन,तुला व कुम्भ राशि मे ही आएंगे तथा अंत मे गुरु(शेष),शनि व बुध के नक्षत्र कर्क,वृश्चिक व मीन राशि मे ही आएंगे |

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जब आप नया व्यापर/बिजनेस/ दुकान आरम्भ करने का या खोलने का विचार मन में लाएं उस समय सबसे पहले मुहुर्त पर अच्छी तरह विचार करलें  । मुहुर्त जब शुभ हो तभी आप दुकान खोलने की सोचें अन्यथा शुभ मुहुर्त के आने की प्रतीक्षा करें। आइये अब देखें कि दुकान खोलने के लिए कौन सा मुहुर्त शुभ है और इस संदर्भ में मुहुर्त किस प्रकार देखना चाहिए।

1.नक्षत्र विचार –

नया व्यापर/बिजनेस/ दुकान आरम्भ करने का या खोलने  के लिए जब मुहुर्त का आंकलन किया जाता है तब सबसे पहले नक्षत्र का विचार किया जाता है।

दुकान खोलने के लिए सभी स्थिर नक्षत्र (Stable Nakshatra) जैसे उत्तराफाल्गुनी (Uttrafalguni) , उत्तराषाढ़ा (Uttrashadha), उत्तराभाद्रपद(Uttra Bhadrapad), रोहिणी (Rohini) तथा सभी सौम्य नक्षत्र (Saumya Nakshatra) जैसे मृगशिरा(Mrigshira), रेवती(Raivti), चित्रा(Chitra), अनुराधा(Anuradha) व लघु नक्षत्र (Laghu Nakshatra) जैसे हस्त(Hast), अश्विनी (Ashwani), पुष्य (Pushya) और अभिजीत नक्षत्रों (Abhijeet Nakshatra ) को दुकान खोलने के लिए शुभ माना जाता है।

2.लग्न विचार—

नया व्यापर/बिजनेस/ दुकान आरम्भ करने का या खोलने के लिए नक्षत्र विचार करने के बाद आप लग्न से विचार करें। ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार जिस समय आप दुकान खोलने जा रहे हैं उस समय मुहुर्त का लग्न बलवान होना चाहिए। लग्न में चन्द्र-शुक्र हो तो यह सर्वोत्तम स्थिति मानी जाती है। लग्न की शुभता का विचार करने के लिए देखें कि लग्न से द्वितीय, दशम एवं एकादश भाव में शुभ ग्रह हो तथा अष्टम व द्वादश भाव में कोई अशुभ ग्रह  ना हों।

3.तिथि विचार—

दुकान खालने के लिए जब आप मुहुर्त निकालें उस समय उपरोक्त सभी विषयों पर विचार करने के साथ ही तिथि का भी विचार करना चाहिए। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार दुकान खोलने के लिए सभी तिथि शुभ हैं परंतु रिक्ता तिथि यानी (चतुर्थ, नवम व चतुर्दशी) अपवाद स्वरूप हैं अत: इन तिथियो में दुकान नहीं खोलना चाहिए.

4.वार विचार—

नया व्यापर/बिजनेस/ दुकान आरम्भ करने का या जब आप दुकान खोलने जा रहे हैं तो ध्यान रखें कि मंगलवार को दुकान नहीं खोलें। मंगल के अलावा आप किसी भी दिन दुकान खोल सकते हैं।

5.निषेध—

जिस दिन गोचरवश चन्द्रमा जन्म के समय जिस राशि में था उस राशि से चतुर्थ, अष्टम अथवा द्वादश भाव में उपस्थित हो तथा तृतीय भाव, पंचम भाव एवं सप्तम भाव में तारा हो एवं भद्रा या अन्य अशुभ योग हो तो दुकान नहीं खोलना चाहिए 

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व्यापार प्रारंभ करने सम्बंधित शुभ महूर्त

वार  सोम, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, रविवार
मास क्षय मास, मल मास, अधिक मास में वर्जित
पक्ष दोनों पक्ष
तिथियाँ  द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, पूर्णिमा
नक्षत्र अश्विनी, रोहिणी,मृगशिरा,  पुनर्वसु, उत्तराभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, पुष्य, हस्त, चित्रा,अनुराधा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वा, भाद्रपदा, रेवती
लग्न  कुम्भ लग्न में वर्जित, आठवे एवं बाहरवें घर में
पाप ग्रह त्याज्य
वर्जित दिन महीने के अंतिम दिन, सूर्य संक्रांति के शुरू होने वाले
दिन, वर्ष का आखिरी दिन, अमावस्या

                       ब्याज लेन देन का शुभ महूर्त

वार  मंगलवार को छोड़कर सभी दिन शुभ
मास
पक्ष दोनों पक्ष
तिथियाँ द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी,  द्वादशी, त्रयोदशी
नक्षत्र भरणी, कृतिका, अश्लेशा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी,
पूर्वाषाढ़ा, विशाखा
लग्न 
विशेष  मंगलवार को ऋण चुकाना शुभ माना जाता है. बुधवार
को ऋण देना ठीक नहीं मन जाता.

                      वस्त्र निर्माण हेतु शुभ महूर्त

वार शनिवार को छोड़कर सभी दिन शुभ
मास क्षय मास, मल मास, अधिक मास में वर्जित
पक्ष दोनों किन्तु शुक्ल पक्ष अधिक शुभ
तिथियाँ द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, एकादशी द्वादशी, त्रयोदशी, पूर्णिमा
नक्षत्र मृगशिर, रोहिणी, उत्तराभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, चित्रा, अनुराधा, रेवती
लग्न शुभ लग्न

                        जमीन खरीदने एवं बेचने हेतु शुभ महूर्त

वार गुरु, शुक्र,
मास क्षय मास, मल मास, अधिक मास में वर्जित
पक्ष दोनों किन्तु शुक्ल पक्ष अधिक शुभ
तिथियाँ द्वितीया, पंचमी, षष्टी,  दशमी, एकादशी, पूर्णिमा
नक्षत्र मृगशिर, पुनर्वसु, अश्लेशा, मघा , विशाखा, अनुराधा, मूल,  रेवती
लग्न वृषभ, कर्क, वृश्चिक/ केंद्र में शुभ लग्न/ त्रिकोण में
शुभ ग्रह/तीसरे, छठे, या ग्याहरवें भाव में पाप ग्रह शुभ फलदायी

                    पशु क्रय विक्रय हेतु शुभ महूर्त

वार मंगलवार त्यागकर सभी वार शुभ
मास क्षय मास, मल मास, अधिक मास में वर्जित
पक्ष शुक्ल पक्ष
तिथियाँ द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्टी, सप्तमी,अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी
नक्षत्र अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, विशाखा, ज्येष्ठा,
धनिष्ठा, रेवती
लग्न शुभ लग्न/ केंद्र में शुभ ग्रह / तीसरे, छठे एवं ग्यारहवे भाव में पाप ग्रह शुभ माना गया है

 

सिनेमा, फिल्म, टी.वी. सम्बंधित कार्य आरम्भ करने हेतु शुभ महूर्त

वार  शुक्रवार अति शुभ,  बुधवार और गुरूवार सामान्य
मास क्षय मास, मल मास, अधिक मास त्यागकर
पक्ष कृष्ण पक्ष 1, शुक्ल पक्ष
तिथियाँ     द्वितीया, तृतीया, पंचमी, अष्टमी,नवमी, द्वादशी
नक्षत्र भरणी, पुनर्वसु,पुष्य, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी,
पूर्वाषाढ़ा,

मिठाई की दूकान या होटल खोलने हेतु शुभ महूर्त

वार  सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार
मास क्षय मास, मल मास, अधिक मास त्यागकर
पक्षतिथि कृष्ण पक्ष (1, 3,5) शुक्ल पक्ष (2,3,5,7,9,10, 12,13,15)
नक्षत्र अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्रा,  अनुराधा,  रेवती
लग्न  शुभ लग्न/ गुरु, चन्द्र, शुक्र को प्रधानता / ग्रहण,
व्यातिपात, वैधृति अशुभ

सुगन्धित द्रव्य, फूल, अगरबत्ती, इत्र एवं दूकान खोलने हेतु

वार सोमवार,  बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार
मास क्षय मास, मल मास, अधिक मास त्यागकर
पक्षतिथि कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष 2,3,5,6, 7,10,11,  12,13,15
नक्षत्र अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु,  पुष्य,  हस्त, चित्रा, स्वाति,श्रवण,धनिष्ठा, रेवती
लग्न शुभ लग्न/शुक्र, चन्द्र और गुरु बल की श्रेष्ठता को देखना/ त्रिकोण में शुभ ग्रह/ तीसरे, छठे एवं
ग्याहरवें घर में पाप ग्रह

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