जानिए कब और कैसे मनाएं “भगवान् परशुराम जयंती ” …6 में—– 
प्रिय पाठकों आज के इस प्रतियोगी के दौर में संघर्ष,परेशानियां,असफलताओं से टूटा मनोबल किसी भी इंसान को कमजोर कर सकता है ।। आजकल यह तनाव या कमजोरी, अवसाद या डिप्रेशन की गहरी समस्या के रूप में देखा भी जा रहा है।
ऐसी हताशा से बचने या बाहर आने के लिए बाहरी सहयोग और प्रेम भी अहम होता ही है,किंतु सबसे जरूरी है कि व्यक्ति को स्वयं के मन और विचारों पर काबू करना। ऐसा मन के साथ उत्साह,उमंग और आशाओं के बेहतर गठजोड़ से संभव है।
अगर मनोबल पाने के लिए धार्मिक उपायों पर गौर करें,तो हमारे शास्त्रों में भगवान विष्णु अवतार भगवान परशुराम की उपासना श्रेष्ठ मानी गई है। क्योंकि भगवान परशुराम का चरित्र तप,संयम,शक्ति,पराक्रम,ज्ञान,संस्कार,कर्त का आदर्श प्रतीक है। 
                               
मान्यता भी है कि भगवान परशुराम मन की गति से ही विचरण करते थे। वह चिरंजीव यानी अजर अमर भी माने जाते हैं। 
                            
हिन्दू धर्म में वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को परशुराम जयंती मनाई जाती है। तदनुसार इस वर्ष रविवार, 8 मई 2016 को परशुराम जयंती मनाई जाएगी। पुराणो क अनुसार इस तिथि को भगवान विष्णु जी परशुराम के रूप में पृथ्वी लोक पर अवतरित हुए थे। इसलिए प्रत्येक वर्ष को इस तिथि में परशुराम जयंती मनाई जाती है। यह पर्व पुरे देश में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन परशुराम जी की शोभा यात्रा निकाली जाती है।                                   
सम्पूर्ण विश्व में इस वर्ष 2016 में 8 मई , वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को परशुराम जयन्ती मनाई जाएगी।।।
वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की रात में पहले प्रहर में भगवान परशुराम का जन्म हुआ था. इसलिए यह जयन्ती तृतीया तिथि के प्रथम प्रहर में मनाई जाती है।।
राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र,परशुराम जी भगवान विष्णु के अवतार थे. परशुराम भगवान शिव के अनन्य भक्त थे. वह एक परम ज्ञानी तथा महान योद्धा थे इन्ही के जन्म दिवस को परशुराम जयंती के रूप में संपूर्ण भारत में बहुत हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. भगवान परशुराम जयंती के अवसर पर देश भर में हवन, पूजन, भोग एवं भंडारे का आयोजन किया जाता है तथा परशुराम जी शोभा यात्रा निकली जाती है. विष्णु के अवतार परशुराम जी का पूर्व नाम तो राम था, परंतु को भगवान शिव से प्राप्त अमोघ दिव्य शस्त्र परशु को धारण करने के कारण यह परशुराम कहलाए।।
भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार के रूप में अवतरित हुए थे धर्म ग्रंथों के आधार पर परशुराम जी का जन्म अक्षय तृतीया, वैशाख शुक्लतृतीया को हुआ था जिसे परशुराम जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन व्रत करने और पर्व मनाने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. परम्परा के अनुसार इन्होंने क्षत्रियों का अनेक बार विनाश किया ।।                
क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए इनका जन्म हुआ था. परशुराम ने शस्त्र विद्या द्रोणाचार्य से सीखी थी।।। 
                   
**** जानिए कैसे करें भगवान परशुराम का पूजन —
इस तिथि को सूर्योंदय काल में उठे, स्नान-ध्यान से निवृत होकर व्रत का संकल्प ले। तत्पश्चात भगवान विष्णु जी की पूजा करे। इस दिन व्रती को निराहार रहना चाहिए। संध्या काल में आरती-अर्चना करने के पश्चात फलाहार करे। अगले दिन पूजा-पाठ के पश्चात भोजन ग्रहण करें।                 
प्रेम से बोलिए भगवान परशुराम जी की जय।।।
              
**** जानिए भगवान परशुराम जयंती का महत्व ——-     
      
भगवान परशुराम जी शास्त्र एवम शस्त्र विद्या के पंडित थे तथा प्राणी मात्र का हित करना ही उनका परम लक्ष्य रहा है। उनकी उपासना से दुखियो, शोषितो, तथा पीड़ितों को हर प्रकार से मुक्ति मिलती है। भगवान परशुराम जी का जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था। अतः इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य फलदायक होता है। धार्मिक पंचांग में इस दिन को अति शुभ माना गया है। अतः इस दिन योग के बिना भी शुभ कार्य कर सकते है।।।
***** जानिये सर्वकामना सिद्धि हेतु भगवान परशुराम के विशेष मंत्र –  
       
भगवान विष्णु के दशावतार में छठे अवतार भगवान परशुराम माने जाते हैं। क्रोध और दानशीलता में उनका कोई सानी नहीं है। शस्त्र और शास्त्र के ज्ञाता सिर्फ और सिर्फ भगवान परशुराम ही माने जाते हैं। भगवान शिव ने उन्हें मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया जिससे वे परशुराम कहलाए। भगवान् परशुराम परम शिवभक्त थे।
उन्होंने सहस्रार्जुन की इहलीला समाप्त कर दी। प्रायश्चित के लिए सभी तीर्थों में तपस्या की। गणेशजी को एकदंत करने वाले भी परशुराम थे। पृथ्वी को 17 बार क्षत्रियों से विहीन करने वाले भगवान परशुराम ही थे। उनकी दानशीलता ऐसी थी कि समस्त पृथ्वी ही ऋषि कश्यप को दान कर दी। उनके शिष्यत्व का लाभ दानवीर कर्ण ही ले पाए जिसे उन्होंने ब्रह्मास्त्र की दीक्षा ‍दी।
भगवान परशुराम की सेवा-साधना करने वाले भक्त भूमि, धन, ज्ञान, अभीष्ट सिद्धि, दारिद्रय से मुक्ति, शत्रु नाश, संतान प्राप्ति, विवाह, वर्षा, वाक् सिद्धि इत्यादि पाते हैं। महामारी से रक्षा  कर सकते हैं।
*****अक्षय तृतीया के दिन सर्वकामना की सिद्धि हेतु भगवान परशुराम के गायत्री मंत्र  का जाप करना चाहिए।
मंत्र इस प्रकार हैं : –  
         
**** 01. ‘ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।’               
**** 02. ‘ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।’                      
****0.. ‘ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।’
       
जप-ध्यान कर दशांस हवन करें तथा हर प्रकार की समस्याएं दूर करें।।
                    
*****04.—अक्षय तृतीय पर विशेष रूप से भगवान परशुराम की पूजा कर उनकी उपासना में विशेष मंत्र के साथ करना मानसिक संताप,परेशानियों का अंत करने के साथ ही मनोबल और इच्छा शक्ति को मजबूत बनाने वाली मानी गई है।।
भगवान परशुराम का जन्म रात के पहले पहर में माना गया है। इसलिए सांयकाल में उनकी पूजा का महत्व है। अक्षय तृतीया को सुबह स्नान कर शाम तक मन शांत रख मौन व्रत रखें। अक्षय तृतीय के दिन सायंकाल स्नान के बाद देवालय में भगवान परशुराम की पंचोपचार पूजा या गंध,अक्षत,फूल,नैवेद्य अर्पित कर धूप और दीप आरती करें।
पूजा के बाद  निम्न परशुराम गायत्री मंत्र से भगवान परशुराम का स्मरण करें–
“ॐ जमदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम:प्रचोदयात” ।।।        
जय परशुराम।।                    
शुभम् भवतु।। कल्याण हो।।

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