आइये जाने पर्यावरण और ज्योतिष का सम्बन्ध—
प्रिय मित्रों/ पाठकों, कोई माने या न माने प्राच्य विद्या में ऐसे कई प्रमाण है जो बताने जन की ग्रह, राशि व नक्षत्र जनित कुप्रभावों को शमन करने में पेड़-पौधे लाभकारी और कामयाब है ||
पृथ्वी से आकाश की ओर देखने पर आसमान में स्थिर दिखने वाले पिण्डों/छायाओं को नक्षत्र और स्थिति बदलते रहने वाले पिण्डों/ छायाओं को ग्रह कहते कहते हैं। ग्रह का अर्थ है पकडऩा।
सम्भवता: अन्तरिक्ष से आने वाले प्रवाहों को धरती पर पहुँचने से पहले ये पिण्ड और छायायें उन्हें टी.वी. के अन्टीना की तरह आकर्षित कर पकड़ लेती है और पृथ्वी के जीवधारियों के जीवन को प्रभावित करती हैं। इसलिए इन्हें ग्रह कहा गया और इन्हे बहुत महत्त्व दिया गया।|
प्रिय मित्रों / पाठकों, इस वर्ष का बारिश का मौसम आरम्भ हो चूका हैं। यदि आप और हम सभी चाहे तो इस सुहाने मोसैम में वृक्षारोपण कर पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। इस करके हम देश और दुनिया के पर्यावरण की रक्षा करने के साथ साथ हमारी जन्म कुण्डलि में स्थित पाप ग्रहों या नुकसान कारी गृह और नक्षत्रों से स्वयं की रक्षा कर सकते हैं।
यदि हम लोग उन पेड़ पौधों को लगाएं जो हमारी कुंडली में ख़राब /नीच के/ बुरे अथवा नुकसान कारी हैं।।
हमारे भारतीय वेदिक और पौराणिक ग्रंथों, ज्योतिष ग्रंथों व आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार ग्रहों व नक्षत्रों से संबंधित पौधों का रोपण व पूजन करने से मानव का कल्याण होता है। हम सभो को आम लोगों को इन पेड़ पोधो, वृक्षों के वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, ज्योतिषीय व आयुर्वेदिक महत्व के बारे में बताना चाहिए, जिससे प्रकृति पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिले।
प्रकृति द्वारा प्रदत्त पंचमहाभूत जिस प्रकार हमारे लिए उपयोगी हैं उसी प्रकार पर्यावरण के लिए भी उपयोगी हैं। पृथ्वी के आवरण वायु, जल आदि में गतिशील परिवर्तन पयार्व रण हैं जिस प्रकार हमारा शरीर अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल और आकाश से मिलकर बना है, उसी प्रकार खेती-बाड़ी, वनस्पति, पौधों के सर्वांगीण विकास के लिए इन पंचमहाभूतों की आवश्यकता है। मनुष्य शरीर को विशुद्ध वायु और जल की आवश्यकता होती ह
सौर मंडल के नौ ग्रहों तथा नक्षत्र पर आधारित विशेष प्रभाव वाले पौधों को लगाया जाना चाहिए ||नवग्रह पर आधारित ये पौधे जब एक ही स्थान पर होते हैं तो विशेेष प्रभाव देते हैं। ये पौधे ऊर्जा और शक्ति का विशेष स्त्रोत होते हैं। पौधों के माध्यम से व्यक्ति धनी, स्वस्थ एवं रोग मुक्त बनता है। पौधे वास्तु दोष दूर करने में भी सहायक होते हैं।
वृक्षों और पौधों को वास्तु में उचित महत्व देने से हमें प्रकृति के साथ रहने का आनंद प्राप्त होता है। हमारे प्राचीन वैदिक ग्रंथों में प्रत्येक वृक्ष का दिशानुसार शुभाशुभ फल दिया हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी राशि व नक्षत्र के अनुरूप वृक्षारोपण करना चाहिए। किस नक्षत्र, राशि व ग्रह से कौन-सा वृक्ष संबंधित है इसे निम्न तालिकाओं से जानें- प्रकृति द्वारा प्रदत्त सभी वृक्ष और पौधे मानव के कल्याण के लिए हैं। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए पौधों का विशिष्ट महत्व है। विभिन्न रोगों के उपचार के लिए आयुर्वेद में जड़ी-बूटियां, वृक्षों की छाल, फल, फूल व पत्तों से निर्मित औषधियों का बहुत महत्व है। कुछ पौधों की जड़ों का तंत्र में भी प्रयोग होता है। गृह और औद्योगिक वास्तु में बगीचा उत्तर, पूर्व व ईशान में बनाया जा सकता है। बगीचे में फूलों वाले पौधों को ही अधिक लगाना चाहिए। कैक्टस व दूध वाले वृक्ष गृह या व्यावसायिक वास्तु में नहीं लगाने चाहिए।
मित्रों/, पाठकों, आजकल अनेक स्थानों पर नक्षत्र वाटिका में पेड़ पौधे मौलश्री, कटहल, आम, नीम, चिचिड़ा, ,खैर, गूलर, बेल आदि पौधे लगते जाते हैं जिनसे विभिन्न प्रकार सकारात्मक ऊर्जा के साथ ही साथ अतिसार, रक्त विकार, पीलिया, त्वचा रोग आदि रोगों में लाभकारी औषधि के रूप में लाभ होता हैं।
मित्रों, यदि कोई अध्यात्म और ज्योतिष से जुड़ा विद्वान् पेड़ पौधों के मध्यम से पर्यावरण के क्षेत्र में ज्योतिष तंत्र धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से कार्य करता है जैसे कि वह अपने पास आए हुए जातक की कुंडली का भलीभांति अध्ययन कर जो ग्रह या नक्षत्र निर्बल स्थिति में हैं उनसे संबंधित वृक्षों की सेवा करने उनकी जड़ों को धारण करने की सलाह देता है क्योंकि इनमें से कुछ वृक्ष ऐसे भी हैं जिन्हें घर में लगाना संभव नहीं होता है ।।
यदि कोई जातक किसी मंदिर में इन उपयोगी और लाभकारी पेड़ पौधों का रोपण करें अथवा जहां भी ये वृक्ष हो उनकी सेवा करें और और प्रकृति का आशीर्वाद ग्रहण करें तो उस जातक के अनेक कष्ट दूर हो सकते हैं।।
यह एक उत्तम कार्य होगा आने वाली पीढ़ी और संस्कृति संरक्षण के लिये।।
वैदिक काल से इन तत्वों के देवता मान कर इनकी रक्षा का करने का निर्देश मिलता है इसलिए वेदों के छठे अंग ज्योतिष की बात करें तो ज्योतिष के मूल आधार नक्षत्र, राशि और ग्रहों को भी पर्यवारण के इन अंगों जल-भूमि-वायु आदि से जोड़ा गया है और अपने आधिदैविक और आधिभौतिक कष्टों के निवारण के लिए इनकी पूजा पद्धति को बताया गया है।
पाठकों, ग्रहों की स्थिति का प्रभाव मनुष्य के जीवन में अच्छा व बुरा दोनों तरह से हो सकता है। ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव को खत्म करने के लिए हवन की विधि बताई गई है।
इसमें प्रत्येक ग्रहों के लिए विशेष लकड़ी बताई गई है, जिनका प्रयोग हवन में होता है। यहां वाटिका में ग्रहों के विभिन्न प्रतीकात्मक पौधों को लगाया गया है। सूर्य के लिए आक, चंद्रमा के लिए पलाश, मंगल के लिए खदिर, बुध के लिए अपामार्ग, बृहस्पति के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमि, राहु के लिए दूर्वा व केतु के लिए कुश का प्रयोग किया जाता हैं।
नवग्रह वाटिका में पौधे लगाते समय विभिन्न कोणों का भी ध्यान रखा गया है। उत्तर दिशा में पीपल, ईशान कोण में लटजीरा, पूर्व में गूलर, आग्नेय कोण में ढाक व दक्षिण में खैर लगाया गया है।
ध्यान रखें की पीपल के वृक्ष का प्रयोग क्षय रोग व गर्भस्राव में, गूलर घावों को भरने व मूत्ररोगों में, खदिर त्वचा संबंधी रोगों में व पलाश पेट के कीड़ों को दूर करने में प्रयुक्त होता है।
मित्रों,अलग-अलग नौ ग्रहों के अनुसार नवग्रह वाटिका में अलग-अलग पेड़-पौधे लगाये जाते हैं जिसका ज्योतिषीय प्रभाव अलग-अलग होगा।।
वहीं संबंधित ग्रह के शमन के लिए लोग उससे संबंधित पेड़-पौधों का उपयोग व आनंद प्राप्त कर सकेंगे।। इसमें सूर्य के लिए मंदार का पौधा लगाया जायेगा.
वहीं चंद्रमा के लिए पलाश, मंगल के लिए खैर,बुद्ध के लिए चिरचिरी, वृहस्पति के लिए पीपल, शुक्र के लिए गुलड़, शनि के लिए शमी, राहु के लिए दुर्वा व केतु के लिए कुश लगाया जायेगा ।।
कुल .7 नक्षत्रों के लिए ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार अलग-अलग गुणवाले पेड़-पौधे लगाये जायेंगे।।
इसमें अश्विनी के लिए कोचिला, भरणी के लिए आंवला, कृतका के लिए गुल्लड़, रोहिणी के लिए जामुन, मृगशिरा के लिए खैर, आद्रा के लिए शीशम, पुनर्वसु के लिए बांस, पुष्य के लिए पीपल, अष के लिए नागकेसर, मघा के लिए बट, पूर्वा के लिए पलास, उत्तरा के लिए पाकड़, हस्त के लिए रीठा, चित्र के लिए बेल, स्वाती के लिए अजरुन, विशाखा के लिए कटैया पौधे लगाये जायेंगे।।
जबकि अनुराधा के लिए भालसरी, ज्योष्ठा के लिए चीर, मूला के लिए शाल, पूर्वाषाढ़ के लिए अशोक, उत्तराषाढ़ के लिए कटहल, श्रवण के लिए अकौन, धनिष्ठा के लिए शमी, शतभिषा के लिए कदम्ब, पूर्व भाद्र के लिए आम, उत्तरभाद्र के लिए नीम व रेवती नक्षत्र के लिए उपयुक्त फल देनेवाला महुआ पेड़ लगाया जायेगा।।
**अधिक विस्तृत जानकारी निचे लिस्ट/सरणी में दी गई हैं।।
नवग्रह :—
भारतीय ज्योतिष मान्यता में ग्रहों की संख्या 6 मानी गयी है, जैसा निम्र श्लोक में वर्णित है-
सूय्र्यचन्द्रो मंगलश्च बुधश्चापि बृहस्पति:।
शुक्र: शनेश्चरो राहु: केतुश्चेति नव ग्रहा:।।
अर्थात् सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि राहु और केतु ये नव ग्रह हैं। – शब्द कल्पद्रुम इनमें प्रथम 7 तो पिण्डीय ग्रह हैं और अन्तिम दो राहु और केतु पिण्ड रूप में नहीं हैं बल्कि छाया ग्रह हैं।
ग्रहशान्ति:—
ऐसी मान्यता है कि इन ग्रहों की विभिन्न नक्षत्रों में स्थिति का विभिन्न मनुष्यों पर विभिन्न प्रकार का प्रभाव पड़ता है, ये प्रभाव अनुकूल और प्रतिकूल दोनों होते हैं। ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों के शमन के अनेक उपाय बताये गये हैं जिनमें एक उपाय यज्ञ भी है।
पमिधायें: — यज्ञ द्वारा ग्रह शान्ति के उपाय में हर ग्रह के लिए अलग अलग विशिष्ट वनस्पति की समिधा (हवन प्रकाष्ठ) प्रयोग की जाती है, जैसा निम्र श्लोक में वर्णित है-
अर्क: पलाश: खदिरश्चापामार्गोऽथ पिप्पल:।
औडम्बर: शमी दूव्र्वा कुशश्च समिध: क्रमात्।।
अर्थात अर्क (मदार), पलाश, खदिर (खैर), अपामार्ग (लटजीरा), पीपल, ओड़म्बर (गूलर), शमी, दूब और कुश क्रमश: (नवग्रहों की) समिधायें हैं। – गरुण पुराण
नक्षत्र वृक्षों की तालिका –
नक्षत्र——-वृक्ष
अश्विनी——-कुचिला
भरणी———आमला
कृत्तिका———गूलर
रोहिणी———जामुन
मृगशिरा———खैर
आर्द्रा———शीशम
पुनर्वसु,———.बाँस
पुष्य ———पीपल
आश्लेषा———नागकेशर
मघा——-बरगद
पूर्व फाल्गुनी——-पलाश
उत्तर फाल्गुनी——-पाठड़
हस्त———अरीठा
चित्रा———बेलपत्र
स्वाती———अर्जुन
विशाखा———कटाई
अनुराधा———मौल श्री
ज्येष्ठा———चीड़
मूल———साल
पूर्वाषाढ़ा———जलवन्त
उत्तराषाढ़ा——-कटहल
श्रवण———मंदार
घनिष्ठा———शमी
शतभिषा———कदम्ब
पूर्वभाद्रपद——-.आम
उत्तरभाद्रपद——-नीम
रेवती——–महुआ
इसी प्रकार ग्रहों से सम्बंधित वृक्ष इस प्रकार है,...
सूर्य——-मंदार
चंद्र——-पलाश
मंगल——-खैर
बुध———लटजीरा, आँधीझाड़ा
गुरु———पारस पीपल
शुक्र——-गूलर
शनि——-शमी
राहु-केतु——-दूब चन्दन
ग्रह:
भारतीय ज्योतिष मान्यता में ग्रहों की संख्या 6 मानी गयी है, जैसा निम्र श्लोक में वर्णित है-
सूय्र्यचन्द्रो मंगलश्च बुधश्चापि बृहस्पति:।
शुक्र: शनेश्चरो राहु: केतुश्चेति नव ग्रहा:।।
अर्थात् सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि राहु और केतु ये नव ग्रह हैं। – शब्द कल्पद्रुम इनमें प्रथम 7 तो पिण्डीय ग्रह हैं और अन्तिम दो राहु और केतु पिण्ड रूप में नहीं हैं बल्कि छाया ग्रह हैं।
ग्रहशान्ति:
ऐसी मान्यता है कि इन ग्रहों की विभिन्न नक्षत्रों में स्थिति का विभिन्न मनुष्यों पर विभिन्न प्रकार का प्रभाव पड़ता है, ये प्रभाव अनुकूल और प्रतिकूल दोनों होते हैं। ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों के शमन के अनेक उपाय बताये गये हैं जिनमें एक उपाय यज्ञ भी है।
पमिधायें: यज्ञ द्वारा ग्रह शान्ति के उपाय में हर ग्रह के लिए अलग अलग विशिष्ट वनस्पति की समिधा (हवन प्रकाष्ठ) प्रयोग की जाती है, जैसा निम्र श्लोक में वर्णित है-
अर्क: पलाश: खदिरश्चापामार्गोऽथ पिप्पल:।
औडम्बर: शमी दूव्र्वा कुशश्च समिध: क्रमात्।।
अर्थात अर्क (मदार), पलाश, खदिर (खैर), अपामार्ग (लटजीरा), पीपल, ओड़म्बर (गूलर), शमी, दूब और कुश क्रमश: (नवग्रहों की) समिधायें हैं। – गरुण पुराण
ग्रह | संस्कृत नाम | स्थानीय हिन्दी नाम | वैज्ञानिक नाम |
---|---|---|---|
सूर्य | अर्क | आक | कैलोट्रपिस प्रोसेरा |
चन्द्र | पलाश | ढाक | ब्यूटिया मोनोस्पर्मा |
मंगल | खादिर | खैर | अकेसिया कटेचू |
बुध | अपामार्ग | लटजीरा | अकाइरेन्थस एस्पेरा |
बृहस्पति | पिप्पल | पीपल | फाइकस रिलीजिओसा |
शुक्र | औड बर | गूलर | फाइकस ग्लोमरेटा |
शनि | शमी | छयोकर | प्रोसोपिस सिनरेरिया |
राहु | दूर्वा | दूब | पाइनोडान डेक्टाइलान |
केतु | कुश | कुश | डेस्मोस्टेचिया बाईपिन्नेटा |