जानिए की क्या वसंत पंचमी का महत्त्व और देवी सरस्वती का स्वरूप—
जीवन में किसी भी प्रकार की नई शुरुआत के लिए वसंत पंचमी श्रेष्ठ मुहूर्त है। यह मां सरस्वती का उत्पत्ति दिवस माना जाता है और इसलिए इस ज्ञान प्राप्ति के लिए उनकी आराधना की जाती है। वसंत जीवन के उत्साह का नाम है और इसी दिन से प्रकृति एक नई करवट लेती है और जीवन सुखदायी हो जाता है।
भारत में ऋतुओं को छह भागों में बांटा गया है और उनमें वसंत का सर्वाधिक महत्व है। इसे ऋतुओं का राजा कहा जाता है। इस ऋतु के आते ही प्रकृति में चारों ओर रंग ही रंग नजर आते हैं। इस समय प्रकृति का कण-कण खिल उठता है और प्रकृति के इस स्वरूप को देखकर समस्त जीव उल्लास से भर जाते हैं।
वैसे तो माघ मास का पूरा ही महीना ही उत्साह का संचार करने वाला है लेकिन फिर भी माघ शुक्ल की पंचमी यानी वसंत पंचमी विशेष महत्व रखती है। वसंत पंचमी पर्व का कई तरह से महत्व है। त्रेता में भगवान राम इसी दिन मां शबरी के आश्रम पहुंचे थे। इस दिन मां सरस्वती की उत्पत्ति भी हुई थी और इसलिए यह प्रकृति में जीवन, रस और ज्ञान के प्रसार का उत्सव भी है।
वसंत पंचमी एक भारतीय त्योहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं। प्राचीन भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था।जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं।
वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने मनुष्य की रचना की। लेकिन मनुष्य की रचना के बावजूद भी सभी तरफ मौन छाया रहता था। तब भगवान विष्णु की अनुमति से उन्होंने अपने कमंडल के जल से मां सरस्वती की उत्पत्ति की।
ब्रह्मा जी ने सरस्वती से वीणा बजाने को कहा और उनकी वीणा के नाद से समस्त संसार में चेतना आई। तभी से वसंत पंचमी पर मां सरस्वती के पूजन की परंपरा है। उन्हें वाणी की देवी, ज्ञान की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे इस समस्त संसार की परम चेतना हैं।
पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्ना होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी आराधना की जाएगी। ज्ञान का वरदान पाने के लिए तभी से वसंत पंचमी को शुभ दिन माना जाने लगा। अक्सर इसी दिन विधारंभ संस्कार प्रारंभ किया जाता है।
वसंत पंचमी पर भगवान विष्णु और कामदेव का पूजन भी किया जाता है। इस दिन पीले वस्त्रों का विशेष महत्व है। इस दिन को सभी शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है। विधारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए वसंत पंचमी शुभ मुहूर्त है।
इस दिन को शुभ मानने के पीछे कारण यही है कि सामान्यत:यह पर्व माघ मास में आता है। माघ धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से सबसे पुण्यदायी महीना है। इसी माह में सरिता के जल में स्नान श्रेयस्कर है तो इसी माह में सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं।
माता शारदा के पूजन के लिये भी बसंत पंचमी का दिन विशेष शुभ रहता है| इस दिन . से .. वर्ष की कन्याओं को पीले-मीठे चावलों का भोजन कराया जाता है| तथा उनकी पूजा की जाती है| मां शारदा और कन्याओं का पूजन करने के बाद पीले रंग के वस्त्र और आभूषण कुमारी कन्याओ, निर्धनों व विप्रों को दिने से परिवार में ज्ञान, कला व सुख-शान्ति की वृ्द्धि होती है| इसके अतिरिक्त इस दिन पीले फूलों से शिवलिंग की पूजा करना भी विशेष शुभ माना जाता है|
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ऐसा हैं विद्या की देवी मां सरस्वती का स्वरूप—-
सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं। वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पचंमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी। इस कारण हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।देवी सरस्वती का प्राकट्य दिवस होने से इस दिन सरस्वती जयंती, श्रीपंचमी आदि पर्व भी होते हैं। वैसे सायन कुंभ में सूर्य आने पर वसंत शुरू होता है। इस दिन से वसंत राग, वसंत के प्यार भरे गीत, राग-रागिनियां गाने की शुरुआत होती है। इस दिन सात रागों में से पंचम स्वर (वसंत राग) में गायन, कामदेव, उनकी पत्नी रति और वसंत की पूजा की जाती है।देवी भागवत में उल्लेख है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द व शक्ति की प्राप्ति जीव को हुई थी। सरस्वती को प्रकृति की देवी की उपाधि भी प्राप्त है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार मां सरस्वती का वाहन सफेद हंस है। इसलिए उन्हें चित्रों में हंस पर बैठा हुआ प्रदर्शित किया जाता है। यही कारण है कि देवी सरस्वती को हंसवाहिनी भी कहा जाता है। देवी का वाहन हंस हमें कुछ संदेश भी देता है। शास्त्रों के अनुसार देवी सरस्वती विद्या की देवी हैं और उनका स्वरूप श्वेत वर्ण बताया गया है। उनका वाहन भी सफेद हंस ही है। देवी का वाहन हंस यही संदेश देता है कि मां सरस्वती की कृपा उसे ही प्राप्त होती है जो हंस के समान विवेक धारण करने वाला है। केवल हंस में ही वह विवेक होता है कि वह दूध और पानी को अलग-अलग कर सकता है। सभी जानते हैं कि हंस दूध ग्रहण और पानी छोड़ देता है। इसी तरह हमें भी बुरी सोच को छोड़कर अच्छाई को ग्रहण करना चाहिए।
सफेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है। यह रंग शिक्षा देता है कि अच्छी विद्या और संस्कार के लिए आवश्यक है कि आपका मन शांत और पवित्र हो। आज के समय में सभी को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करना होती है। मेहनत के साथ ही माता सरस्वती की कृपा भी उतनी आवश्यक है। यदि आपका मन शांत और पवित्र नहीं होगा तो देवी की कृपा प्राप्त नहीं होगी और न ही पढ़ाई में सफलता मिलेगी। – मां सरस्वती हमेशा सफेद वस्त्रों में होती हैं। इसके दो संकेत हैं पहला हमारा ज्ञान निर्मल हो, विकृत न हो। जो भी ज्ञान अर्जित करें वह सकारात्मक हो। दूसरा संकेत हमारे चरित्र को लेकर है। विद्यार्थी जीवन में कोई दुर्गुण हमारे चरित्र में न हो। वह एकदम साफ हो।
—-पद्मपुराण में मां सरस्वती का रूप प्रेरणादायी है।
—-शुभ्रवस्त्र धारण किए हैं और उनके चार हाथ हैं जिनमें वीणा, पुस्तकमाला और अक्षरमाला है। उनका वाहन हंस है।
—–शुभवस्त्र मानव को प्रेरणा देते हैं कि अपने भीतर सत्य, अहिंसा, क्षमा, सहनशीलता, करुणा, प्रेम व परोपकार आदि सद्गुणों को बढ़ाएं और क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार आदि का परित्याग करें।
—–दो हाथों में वीणा ललित कला में प्रवीण होने की प्रेरणा देती है।
—-जिस प्रकार वीणा के सभी तारों में सामंजस्य होने से मधुर संगीत निकलता है वैसे ही मनुष्य अपने जीवन में मन व बुद्घि का सही तालमेल रखे।
—-सरस्वती का वाहन हंस विवेक का परिचायक है।
—– एक हाथ में पुस्तक, संदेश देती है कि हमारा लगाव पुस्तकों के प्रति, साहित्य के प्रति हो। विद्यार्थी कभी पुस्तकों से अलग न हों, भौतिक रूप से भले ही कभी किताबों से दूर रहें, लेकिन हमेशा मानसिक रूप से किताबों के साथ रहें।
—— एक हाथ में माला है, यह बताती है कि हमें हमेशा चिंतन में रहना चाहिए, जो ज्ञान अर्जित कर रहे हैं, उसका लगातार मनन करते रहें, इससे आपकी मेधा बढ़ेगी।
——-दो हाथों से वीणा का वादन, यह संकेत करता है कि विद्यार्थी जीवन में ही संगीत जैसी ललित कलाओं प्रति भी हमारी रुचि होनी चाहिए। संगीत हमारी याददाश्त बढ़ाने में भी सहायक होता है। चित्र में देवी सरस्वती नदी किनारे एकांत में बैठी है, यह संकेत है कि विद्यार्जन के लिए एकांत भी आवश्यक है। विद्यार्थी को थोड़ा समय एकांत में भी बिताना चाहिए।
—- सरस्वती के पीछे सूरज भी उगता दिखाई देता है, यह बताता है कि पढ़ाई के लिए सुबह का समय ही श्रेष्ठ है। – सरस्वती के सामने दो हंस हैं, ये बुद्धि के प्रतीक हैं, हमारी बुद्धि रचनात्मक और विश्लेषणात्मक दोनों होनी चाहिए।
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वसंत पंचमी पर्व का महत्व :—-
वसंत ऋतु में मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास भरने लगते हैं। यूं तो माघ का पूरा मास ही उत्साह देने वाला होता है, पर वसंत पंचमी का पर्व हमारे लिए कुछ खास महत्व रखता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है, इसलिए इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे ज्ञानवान, विद्यावान होने की कामना की जाती है। वहीं कलाकारों में इस दिन का विशेष महत्व है। कवि, लेखक, गायक, वादक, नाटककार, नृत्यकार अपने उपकरणों की पूजा के साथ मां सरस्वती की वंदना करते हैं।
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पढ़िए मां सरस्वती स्तोत्रम्. (विद्या एवं बुद्धि दिलाएं)……
वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन मां सरस्वती का पूजन-अर्चन करने के साथ-साथ श्री सरस्वती चालीसा-आरती एवं सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ करने का विशेष महत्व है। इस दिन किए गए मां के पूजन करने से बुद्धि एवं धन की निरंतर प्राप्ति होती है।
यह हैं सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ—-
विनियोग—-
ॐ अस्य श्री सरस्वतीस्तोत्रमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः।
गायत्री छन्दः।
श्री सरस्वती देवता। धर्मार्थकाममोक्षार्थे जपे विनियोगः।
आरूढ़ा श्वेतहंसे भ्रमति च गगने दक्षिणे चाक्षसूत्रं वामे हस्ते च
दिव्याम्बरकनकमयं पुस्तकं ज्ञानगम्या।
सा वीणां वादयंती स्वकरकरजपैः शास्त्रविज्ञानशब्दैः
क्रीडंती दिव्यरूपा करकमलधरा भारती सुप्रसन्ना॥1॥
श्वेतपद्मासना देवी श्वेतगन्धानुलेपना।
अर्चिता मुनिभिः सर्वैर्ऋषिभिः स्तूयते सदा।
एवं ध्यात्वा सदा देवीं वांछितं लभते नरः॥2॥
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥.॥
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमंडितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकर प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥4॥
ह्रीं ह्रीं हृद्यैकबीजे शशिरुचिकमले कल्पविस्पष्टशोभे
भव्ये भव्यानुकूले कुमतिवनदवे विश्ववन्द्यांघ्रिपद्मे।
पद्मे पद्मोपविष्टे प्रणजनमनोमोदसंपादयित्रि प्रोत्फुल्ल
ज्ञानकूटे हरिनिजदयिते देवि संसारसारे॥5॥
ऐं ऐं ऐं दृष्टमन्त्रे कमलभवमुखांभोजभूते स्वरूपे
रूपारूपप्रकाशे सकल गुणमये निर्गुणे निर्विकारे।
न स्थूले नैव सूक्ष्मेऽप्यविदितविभवे नापि विज्ञानतत्वे
विश्वे विश्वान्तरात्मे सुरवरनमिते निष्कले नित्यशुद्धे॥6॥
ह्रीं ह्रीं ह्रीं जाप्यतुष्टे हिमरुचिमुकुटे वल्लकीव्यग्रहस्ते
मातर्मातर्नमस्ते दह दह जडतां देहि बुद्धिं प्रशस्ताम्।
विद्ये वेदान्तवेद्ये परिणतपठिते मोक्षदे परिणतपठिते
मोक्षदे मुक्तिमार्गे मार्गतीतस्वरूपे भव मम वरदा शारदे शुभ्रहारे॥7॥
धीं धीं धीं धारणाख्ये धृतिमतिनतिभिर्नामभिः कीर्तनीये
नित्येऽनित्ये निमित्ते मुनिगणनमिते नूतने वै पुराणे।
पुण्ये पुण्यप्रवाहे हरिहरनमिते नित्यशुद्धे सुवर्णे
मातर्मात्रार्धतत्वे मतिमतिमतिदे माधवप्रीतिमोदे॥8॥
ह्रूं ह्रूं ह्रूं स्वस्वरूपे दह दह दुरितं पुस्तकव्यग्रहस्ते
सन्तुष्टाकारचित्ते स्मितमुखि सुभगे जृम्भिणि स्तम्भविद्ये।
मोहे मुग्धप्रवाहे कुरु मम विमतिध्वान्तविध्वंसमीडे
गीर्गौर्वाग्भारति त्वं कविवररसनासिद्धिदे सिद्दिसाध्ये॥9॥
स्तौमि त्वां त्वां च वन्दे मम खलु रसनां नो कदाचित्यजेथा
मा मे बुद्धिर्विरुद्धा भवतु न च मनो देवि मे यातु पापम्।
मा मे दुःखं कदाचित्क्कचिदपि विषयेऽप्यस्तु मे नाकुलत्वं
शास्त्रे वादे कवित्वे प्रसरतु मम धीर्मास्तु कुण्ठा कदापि॥10॥
इत्येतैः श्लोकमुख्यैः प्रतिदिनमुषसि स्तौति यो भक्तिनम्रो
वाणी वाचस्पतेरप्यविदितविभवो वाक्पटुर्मृष्ठकण्ठः।
स स्यादिष्टार्थलाभैः सुतमिव सततं पाति तं सा च देवी
सौभाग्यं तस्य लोके प्रभवति कविता विघ्नमस्तं प्रयाति॥11॥
निर्विघ्नं तस्य विद्या प्रभवति सततं चाश्रुतग्रंथबोधः
कीर्तिस्रैलोक्यमध्ये निवसति वदने शारदा तस्य साक्षात्।
दीर्घायुर्लोकपूज्यः सकलगुणानिधिः सन्ततं राजमान्यो
वाग्देव्याः संप्रसादात्रिजगति विजयी जायते सत्सभासु॥12॥
ब्रह्मचारी व्रती मौनी त्रयोदश्यां निरामिषः।
सारस्वतो जनः पाठात्सकृदिष्टार्थलाभवान्॥13॥
पक्षद्वये त्रयोदश्यामेकविंशतिसंख्यया।
अविच्छिन्नः पठेद्धीमान्ध्यात्वा देवीं सरस्वतीम्॥14॥
सर्वपापविनिर्मुक्तः सुभगो लोकविश्रुतः।
वांछितं फलमाप्नोति लोकेऽस्मिन्नात्र संशयः॥15॥
ब्रह्मणेति स्वयं प्रोक्तं सरस्वत्यां स्तवं शुभम्।
प्रयत्नेन पठेन्नित्यं सोऽमृतत्वाय कल्पते॥16॥
॥इति श्रीमद्ब्रह्मणा विरचितं सरस्वतीस्तोत्रं संपूर्णम्॥
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वसंत पंचमी पर इसीलिए होता है अबूझ मुहूर्त—-
माघ शुक्लपक्ष पंचमी जिसे वसंत पंचमी कहा जाता है। वसंत पंचमी के दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी का अवतरण हुआ था दिन को शास्त्रो में अबूझ मुहूर्त बताया है। इस बार वसंत पंचमी 24 जनवरी शनिवार को वसंत पंचमी के शुभ दिन है।
निर्णय सिंधु में लिखा है कि चतुर्थी युक्त पंचमी को ही वसंत पंचमी मनाना मनाना चाहिए क्योंकि इस दिन प्रातः 10:33 तक चतुर्थी है? इस कारण पूर्वविद्धा तिथि 24 जनवरी को ही वसंत पंचमी मनाई जाना शास्त्र सम्मत है।
प्रतिवर्ष जब सूर्य देव उत्तरायन हो जाते है तो माघ माह के शुक्लपक्ष में सृष्टि के यौवनकाल वसंत ऋतु के प्रारंभकाल प्रतिपदा से नवमी तक गुप्त नवरात्री का पर्व होता है। इसी गुप्त नवरात्री में मध्य पंचमी तिथि को ब्रह्माजी के द्वारा पत्तों पर जल छिड़कने से देवी सरस्वती प्रकट हुईं।
वसंत पंचमी के दिन ही संसार को अपनी वीणा से वाणी प्रदान की तभी से बसंत पंचमी को श्री पंचमी, सरस्वती जयंती वागीश्वरी जयंती के नाम से जाना जाने लगा। जीवन के प्रत्येक कार्य का संचालन बुद्धि, विवेक और ज्ञान के आधार पर ही होता है।
इसलिए विद्या बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के जन्मोत्सव पर्व पर किसी भी कार्य की शुरूआत कि जाए तो वह अतिशुभ एवं सफल रहेगा। वसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त रहता है अर्थात बिना पंचांग देखे ही कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ कर सकते है।
ज्योतिष में पांचवी राशि के अधिष्ठाता भगवान सूर्यनारायण होते है इसलिए बसंत पंचमी अज्ञान का नाश करके प्रकाश की ओर ले जाती है। इसलिए सभी कार्य इस दिन शुभ होते है। प्रतिवर्ष जब सूर्य देव उत्तरायन हो जाते है तो माघ माह के शुक्लपक्ष में सृष्टि के यौवनकाल वसंत ऋतु के प्रारंभकाल प्रतिपदा से नवमी तक गुप्त नवरात्री का पर्व होता है।
इसी गुप्त नवरात्री में मध्य पंचमी तिथि को ब्रह्माजी के द्वारा पत्तों पर जल छिड़कने से देवी सरस्वती प्रकट हुई एवं वसंत पंचमी के दिन ही संसार को अपनी वीणा से वाणी प्रदान की तभी से बसंत पंचमी को श्री पंचमी, सरस्वती जयंती वागीश्वरी जयंती के नाम से जाना जाने लगा।
जीवन के प्रत्येक कार्य का संचालन बुद्धि, विवेक और ज्ञान के आधार पर ही होता है। इसलिए विद्या बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के जन्मोत्सव पर्व पर किसी भी कार्य की शुरूआत कि जाए तो वह अतिशुभ एवं सफल रहेगा। वसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त रहता है अर्थात बिना पंचांग देखे ही कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ कर सकते है।
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वसंत पंचमी :क्या करें, क्या न करें—
मां सरस्वती का करें कैसे पूजन—–
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी से ऋतुओं के राजा वसंत का आरंभ हो जाता है। यह दिन नवीन ऋतु के आगमन का सूचक है। इसीलिए इसे ऋतुराज वसंत के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है। इसी समय से प्रकृति के सौंदर्य में निखार दिखने लगता है। वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनमें नए-नए गुलाबी रंग के पल्लव मन को मुग्ध करते हैं।
1. स्नान आदि करके पीतांबर या पीले वस्त्र पहनें।
2. माघ शुक्ल पूर्वविद्धा पंचमी को उत्तम वेदी पर वस्त्र बिछाकर अक्षत (चावल) से अष्टदल कमल बनाएं।
3. उसके अग्रभाग में गणेशजी स्थापित करें। पास में सरस्वती का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें।
4. पृष्ठभाग में ‘वसंत’ स्थापित करें। वसंत, जौ व गेहूं की बाली के पुंज को जल से भरे कलश में डंठल सहित रखकर बनाया जाता है। लाल या केसरिया स्याही से सरस्वती का यंत्र बनाएं।
5. इसके पश्चात् सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन करें और फिर पृष्ठभाग में स्थापित वसंत पुंज के द्वारा रति और कामदेव का पूजन करें। इसके लिए पुंज पर अबीर आदि के पुष्पों माध्यम से छींटे लगाकर वसंत सदृश बनाएं।
6. यह मंत्र पढ़ें –
‘शुभा रतिः प्रकर्त्तव्या वसन्तोज्ज्वलभूषणा ।
नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता ॥
वीणावादनशीला च मदकर्पूरचर्चिता।’
‘कामदेवस्तु कर्त्तव्यो रूपेणाप्रतिमो भुवि।
अष्टबाहुः स कर्त्तव्यः शंखपद्मविभूषणः॥
चापबाणकरश्चैव मदादञ्चितलोचनः।
रतिः प्रतिस्तथा शक्तिर्मदशक्ति-स्तथोज्ज्वला॥
चतस्त्रस्तस्य कर्त्तव्याः पत्न्यो रूपमनोहराः।
चत्वाश्च करास्तस्य कार्या भार्यास्तनोपगाः॥
केतुश्च मकरः कार्यः पंचबाणमुखो महान्।’
इस प्रकार से कामदेव का ध्यान करके विविध प्रकार के फल, पुष्प और पत्रादि समर्पण करें तो गृहस्थ जीवन सुखमय होता है। प्रत्येक कार्य को करने के लिए उत्साह प्राप्त होता है।
7. सामान्य हवन करने के बाद केशर या हल्दी मिश्रित हलवे की आहुतियां दें।
8. ‘वसंत-पंचमी’ के दिन किसान लोग नए अन्न में गुड़ तथा घी मिश्रित करके अग्नि तथा पितृ-तर्पण करें।
9. वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का विशेष विधान है। कलश की स्थापना करके गणेश, सूर्य, विष्णु तथा महादेव की पूजा करने के बाद वीणावादिनी मां सरस्वती का पूजन करना चाहिए।
10. इस दिन विष्णु-पूजन का भी महात्म्य है।
11. इस दिन कटु वचन बोलने से, किसी का मन दुखाने से बचना चाहिए।
निरोग रहने के लिए करें माँ सरस्वती पूजन——
वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन और व्रत करने से वाणी का संयम प्राप्त होता है, स्मरण शक्ति तेज होती है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पति-पत्नी और बंधु-बांधवों में कभी वियोग नहीं होता और वे सभी दीर्घायु और निरोगी रहते हैं। इस दिन भक्ति-भावना से पूर्ण होकर श्वेत पुष्प माला धारण की हुई मां सरस्वती का पूजन करना चाहिए। इस दिन भगवती गायत्री का पूजन भी किया जाना चाहिए।
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वसंत पंचमी के खास मैसेज और शुभकामना संदेश—–
वसंत पंचमी के त्यौहार पर आप अपने प्रियजनों को शुभकानाएं देना चाहते हैं तो हम आपके लिए लाएं हैं कुछ खास मैसेज और शुभकामना संदेश–
अपने दोस्तों और प्रियजनों को भेजें ये संदेश…
मां सरस्वती पूजा का ये प्यारा त्यौहार,
जीवन में लाएगा खुशी अपार,
सरस्वती विराजे आपके द्वार,
शुभ कामना हमारी करें स्वीकार.
बसंत पंचमी 2015 की हार्दिक शुभकामनाएं!!
रंगों की मस्ती फूलों की बहार,
बसंत की पतंग उड़ने को बेकरार,
थोड़ी सी गर्मी हल्की सी फुहार,
बहार का मौसम आने को तैयार, इसलिए
मुबारक हो आपको बसंत पंचमी का ये त्यौहार!!
लेके मौसम की बहार,
आया बसंत ऋतु का त्यौहार,
आओ हम सब मिलके मनाएं,
दिल में भर के उमंग और प्यार,
बसंत पंचमी की बधाई!!
आई बसंत बहार मदमाती हुई,
दिल ललचाती उमंग बढाती हुई,
मन में प्रेम जगाती हुई,
आई बसंत बहार मदमाती हुई,
बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं!!
वसंत पंचमी के अवसर पर,
मां सरस्वती आपको ज्ञान दें और धन दें,
मां सरस्वती का ध्यान करें,
आपकी सब मनोकामनाएं पूरी होंगी.
बसंत पंचमी की ढेर सारी शुभकामनाएं!!
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
मां सरस्वती आपके जीवन में उल्लास भर दें.
वसंत ऋतु के पावन पर्व पर आपको और
आपके परिवार को ढेरों शुभकामनाएं!!
वीना लेकर हाथ में,
सरस्वती हो आपके साथ में,
मिले मां का आशीर्वाद आपको
हर दिन, हर वार हो मुबारक आपको
बसंत पंचमी त्यौहार की ढेर सारी शुभकामनाएं!!
माता सरस्वती हम सभी को हर वो विद्या दें,
जो हमारे पास नहीं है और,
जो विद्या हमारे पास है उसे और चमका दें,
जिससे हम सबकी दुनिया खुशियों से महक उठे.
आप सब को बसंत पंचमी की ढेर सारी शुभकामनाएं!!
Phool ki barsa sarad ki phuhar,
suraj ki kirne khushiyo ki bahar,
chandan ki khushbu apno ka pyar,
mubark ho aap sabko SARSWATI PUJA
aur BASANT PANCHMI ka tyohar!!
Aayi jhoom ke basant, Jhoomo sang sang me
Aaj rang lo dilo ko ek rang me
Happy Basant Panchami!!
Kitabo ka sath ho, pen par hath ho,
copiya aapke pas ho, padhai din raat ho,
jindagi ke har imtehan me aap pass ho,
I wish u aap par SARARWATI MAA Ka aashirwad ho!!
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