जानिए शक्र ग्रह को,शक्र का प्रभाव,महत्त्व एवं शुक्र को बलवान /बली बनाने के उपाय और टोटके—-
प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा रहती है कि असका जीवन सुखपूर्ण रहें, कभी किसी चीज की कमी न हो, सुन्दर घर, नोकर-चाकर, गाडिया, महंगा मोबाईन फोन हो, किसी को तो यह सुविधा जन्मजात ही नसीब होती है, किसी को मेहनत से प्राप्त होती है और किसी को प्राप्त ही नही होती हैं। ऐसा क्यों ? होता है, आइये जाने।
ज्योतिष में शुक्र को स्त्री ग्रह माना गया है। शुक्र ग्रह से प्रभावित व्यक्ति सौम्य एवं अत्यंत सुंदर होते है। यदि किसी की कुंडली में शुक्र शुभ प्रभाव देता है तो वह जातक आकर्षक, सुंदर और मनमोहक होता है। शुक्र के विशेष प्रभाव से वह जीवनभर सुखी रहता है।
शुक्र को पति-पत्नि, प्रेम संबंध, ऐश्वर्य, आनंद आदि का भी कारक ग्रह माना गया है। यदि आपकी कुंडली में शुक्र की स्थिति अच्छी है तो आपका पूरा जीवन भोग,आनंद और ऐश्वर्य के साथ बितता है। साथ ही दाम्पत्य जीवन सुख और प्रेम से भर जाता है।
शुक्र अपने प्रभाव से व्यक्ति को मकान और वाहन आदि का भी सुख देता है। यदि आप चाहते है कि आपका भी दाम्पत्य जीवन प्रेम, आंनद और सुख से बीते तो, शुक्र के शुभफल देने वाले उपाय करें
सम्पूर्ण भोग विलास की चीजों का क्षेत्राधिकार ग्रहो में शुक्र ग्रह को प्राप्त हैं, जनकी पत्रिका में ये शुभ भावगत, बली होते है, उन्हें उपरोक्त चीजों का सुख प्राप्त होता हैं। जिनकी पत्रिका में कमजोर होते हैं, उन्हें उपरोक्त चीजों का सुख प्राप्त नही होता हैं।
शुक्र को सुन्दरता का प्रतीक माना जाता है। सुख का कारक माना जाता है। शुक्र की चमक एवं शान अन्य ग्रहो के अलग व निराली है। इसी सुन्दरता के लिए शुक्र जाना जाता है। शुक्र की आराधना कर शुक्र को बलवान बनाकर सुख व ऐश्वर्य पाया जा सकता है। आज हर व्यक्ति अपने जीवन को अपनी हैसियत से ज्यादा आरामदायक वस्तुओं पर खर्च करता है। यदि आप भी जिन्दगी को ऐश्वर्य और आराम से भरपुर बनाना चाहते हैं तो शुक्र बलवान बनाने वाले इन उपायों को अपनाए।
ऐसा नही हैं कि कमजोर शुक्र को बली नही बनाया जा सकता हैं। शुक्र ही नही प्रत्येक ग्रह को बली बनाया जा सकता हैं। यहा हम शुक्र ग्रह को बली बनाने के उपाय के बारे में चर्चा करेंगे।
ग्रहों में शुक्र को विवाह व वाहन का कारक ग्रह कहा गया है। शुक्र के उपाय करने से वैवाहिक सुख की प्राप्ति की संभावनाएं बनती है।शुक्र के केंद्र में होने पर धनवान तथा विद्यावान होता है।
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शुक्र का शुभ प्रभाव ही सांसारिक सुखों को नियत करता है। जैसे घर, वाहन, सुविधा। यह सहूलियत ही किसी भी व्यक्ति को मनचाहे लक्ष्य पाने में मदद करती है। वह उमंग और उत्साह से भरा होता है। इसी तरह शुक्र ग्रह यौन अंगों, रज और वीर्य का कारक भी है। जिससे वह किसी व्यक्ति में सुंदरता और शारीरिक सुख की ओर खिंचाव पैदा करता है।
धर्म की भाषा में कहें तो शुक्र का शुभ होना चार पुरुषार्थ में एक काम को पाने में अहम भूमिका निभाता है। यही कारण है कि कुण्डली में शुक्र के बली होने से व्यक्ति यौन सुख पाता है। वहीं कमजोर होने पर रज और वीर्य विकार से व्यक्ति का चेहरा तेजहीन और शरीर दुर्बल हो जाता है। शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह को शुभ और बली बनाने के लिए इस शुक्र मंत्र के जप का विधान बताया गया है ..हमारी कुंडली में शुक्र का विशेष स्थान रहता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व वाला होता है।
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शुक्र की उत्पत्ति का पौराणिक वृत्तांत—–
पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से हुआ जिस से धाता ,विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या का जन्म हुआ | भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के कवि नाम के पुत्र भी हुए जो कालान्तर में शुक्राचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए |
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मृतसंजीवनी विद्या एवम ग्रहत्व की प्राप्ति—–
महर्षि अंगिरा के पुत्र जीव तथा महर्षि भृगु के पुत्र कवि समकालीन थे |यज्ञोपवीत संस्कार के बाद दोनों ऋषियों की सहमति से अंगिरा ने दोनों बालकों की शिक्षा का दायित्व लिया |कवि महर्षि अंगिरा के पास ही रह कर अंगिरानंदन जीव के साथ ही विद्याध्ययन करने लगा |आरम्भ में तो सब सामान्य रहा पर बाद में अंगिरा अपने पुत्र जीव की शिक्षा कि ओर विशेष ध्यान देने लगे व कवि कि उपेक्षा करने लगे |कवि ने इस भेदभाव पूर्ण व्यवहार को जान कर अंगिरा से अध्ययन बीच में ही छोड़ कर जाने कि अनुमति ले ली और गौतम ऋषि के पास पहुंचे | गौतम ऋषि ने कवि कि सम्पूर्ण कथा सुन कर उसे महादेव कि शरण में जाने का उपदेश दिया |महर्षि गौतम के उपदेशानुसार कवि ने गोदावरी के तट पर शिव की क�� िन आराधना की | स्तुति व आराधना से प्रसन्न हो कर महादेव ने कवि को देवों को भी दुर्लभ मृतसंजीवनी नामक विद्याप्रदान की तथा कहा की जिस मृत व्यक्ति पर तुम इसका प्रयोग करोगे वह जीवित हो जाएगा | साथ ही ग्रहत्व प्रदान करते हुए भगवान शिव ने कहा कि आकाश में तुम्हारा तेज सब नक्षत्रों से अधिक होगा |तुम्हारे उदित होने पर ही विवाह आदि शुभ कार्य आरम्भ किये जायेंगे | अपनी विद्या से पूजित होकर भृगु नंदन शुक्र दैत्यों के गुरु पद पर नियुक्त हुए | जिन अंगिरा ऋषि ने उन के साथ उपेक्षा पूर्ण व्यवहार किया था उन्हीं के पौत्र जीव पुत्र कच को संजीवनी विद्या देने में शुक्र ने किंचित भी संकोच नहीं किया |
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कवि को शुक्र नाम कैसे मिला —–
शुक्राचार्य कवि या भार्गव के नाम से प्रसिद्ध थे | इनको शुक्र नाम कैसे और कब मिला इस विषय में वामन पुराण में कहा गया है |
दानवराज अंधकासुर और महादेव के मध्य घोर युद्ध चल रहा था | अन्धक के प्रमुख सेनानी युद्ध में मारे गए पर भार्गव ने अपनी संजीवनी विद्या से उन्हें पुनर्जीवित कर दिया | पुनः जीवित हो कर कुजम्भ आदि दैत्य फिर से युद्ध करने लगे | इस पर नंदी आदि गण महादेव से कहने लगे कि जिन दैत्यों को हम मार गिराते हैं उन्हें दैत्य गुरु संजीवनी विद्या से पुनः जीवित कर देते हैं , ऐसे में हमारे बल पौरुष का क्या महत्व है | यह सुन कर महादेव ने दैत्य गुरु को अपने मुख से निगल कर उदरस्थ कर लिया | उदर में जा कर कवि ने शंकर कि स्तुति आरम्भ कर दी जिस से प्रसन्न हो कर शिव ने उन को बाहर निकलने कि अनुमति दे दी | भार्गव श्रेष् एक दिव्य वर्ष तक महादेव के उदर में ही विचरते रहे पर कोई छोर न मिलने पर पुनः शिव स्तुति करने लगे | बार बार प्रार्थना करने पर भगवान शंकर ने हंस कर कहा कि मेरे उदर में होने के कारण तुम मेरे पुत्र हो गए हो अतः मेरे शिश्न से बाहर आ जाओ | आज से समस्त चराचर जगत में तुम शुक्र के नाम से ही जाने जाओगे | शुक्रत्व पा कर भार्गव भगवान शंकर के शिश्न से निकल आये और दैत्य सेना कि और प्रस्थान कर गए | तब से कवि शुक्राचार्य के नाम से विख्यात हुए |ज्योतिष शास्त्र में शुक्र का कारक भी शुक्र ग्रह को ही माना जाता है |
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ज्योतिष शास्त्र में शुक्र का स्वरूप एवम प्रकृति——-
प्रमुख ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार शुक्र सुन्दर ,वात –कफ प्रधान , अम्लीय रूचि वाला ,सुख में आसक्त , सौम्य दृष्टि,वीर्य से पुष्ट ,रजोगुणी ,आराम पसंद, काले घुंघराले केशों वाला ,कामुक,सांवले रंग का तथा जल तत्व पर अधिकार रखने वाला है |शुक्र एक नम ग्रह हैं तथा ज्योतिष की गणनाओं के लिए इन्हें स्त्री ग्रह माना जाता है। शुक्र मीन राशि में स्थित होकर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं जो बृहस्पति के स्वामित्व में आने वाली एक जल राशि है।
मीन राशि में स्थित शुक्र को उच्च का शुक्र भी कहा जाता है। मीन राशि के अतिरिक्त शुक्र वृष तथा तुला राशि में स्थित होकर भी बलशाली हो जाते हैं जो कि इनकी अपनी राशियां हैं। कुंडली में शुक्र का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को शारीरिक रूप से सुंदर और आकर्षक बना देता है तथा उसकी इस सुंदरता और आकर्षण से सम्मोहित होकर लोग उसकी ओर खिंचे चले आते हैं तथा विशेष रूप से विपरीत लिंग के लोग। शुक्र के प्रबल प्रभाव वाले जातक शेष सभी ग्रहों के जातकों की अपेक्षा अधिक सुंदर होते हैं। शुक्र के प्रबल प्रभाव वालीं महिलाएं अति आकर्षक होती हैं तथा जिस स्थान पर भी ये जाती हैं, पुरुषों की लंबी कतार इनके पीछे पड़ जाती है। शुक्र के जातक आम तौर पर फैशन जगत, सिनेमा जगत तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों में सफल होते हैं जिनमें सफलता पाने के लिए शारीरिक सुंदरता को आवश्यक माना जाता है। भारतीय वैदिक ज्योतिष में शुक्र को मुख्य रूप से पति या पत्नी अथवा प्रेमी या प्रेमिका का कारक माना जाता है। कुंडली धारक के दिल से अर्थात प्रेम संबंधों से जुड़ा कोई भी मामला देखने के लिए कुंडली में इस ग्रह की स्थिति देखना अति आवश्यक हो जाता है। कुंडली धारक के जीवन में पति या पत्नी का सुख देखने के लिए भी कुंडली में शुक्र की स्थिति अवश्य देखनी चाहिए। शुक्र को सुंदरता की देवी भी कहा जाता है और इसी कारण से सुंदरता, ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े अधिकतर क्षेत्रों के कारक शुक्र ही होते हैं, जैसे कि फैशन जगत तथा इससे जुड़े लोग, सिनेमा जगत तथा इससे जुड़े लोग, रंगमंच तथा इससे जुड़े लोग, चित्रकारी तथा चित्रकार, नृत्य कला तथा नर्तक-नर्तकियां, इत्र तथा इससे संबंधित व्यवसाय, डिज़ाइनर कपड़ों का व्यवसाय, होटल व्यवसाय तथा अन्य ऐसे व्यवसाय जो सुख-सुविधा तथा ऐश्वर्य से जुड़े हैं।
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कब देंगे शक्र देव अपना प्रभाव—-
कुण्‍डली में नौ ग्रह अपना समय आने पर पूरा प्रभाव दिखाते हैं। वैसे अपनी दशा और अन्‍तरदशा के समय तो ये ग्रह अपने प्रभाव को पुष्‍ट करते ही हैं लेकिन .2 वर्ष की उम्र से इन ग्रहों का विशेष प्रभाव दिखाई देना शुरू होता है। जातक की कुण्‍डली में उस दौरान भले ही किसी अन्‍य ग्रह की दशा चल रही हो लेकिन उम्र के अनुसार ग्रह का भी अपना प्रभाव जारी रहता है।25 से 28 वर्ष – यह शुक्र का काल है। इस काल में जातक में कामुकता बढती है। शुक्र चलित लोगों के लिए स्‍वर्णिम काल होता है और गुरू और मंगल चलित लोगों के लिए कष्‍टकारी। मंगल प्रभावी लोग काम से पीडित होते हैं और शुक्र वाले लोगों को अपनी वासनाएं बढाने का अवसर मिलता है। इस दौरान जो लव मैरिज होती है उसे टिके रहने की संभावना अन्‍य कालों की तुलना में अधिक होती है। शादी के लिहाज से भी इसे उत्‍तम काल माना जा सकता है।
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शुक्र का रथ एवम गति —-
श्री गरुड़ पुराण के अनुसार शुक्र का रथ सैन्य बल से युक्त,अनुकर्ष,ऊँचे शिखर वाला ,तरकश व ऊँची पताका से युक्त है |
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वैज्ञानिक परिचय——-
शुक्र पृथ्वी का निकटतम ग्रह, सूर्य से दूसरा और सौरमण्डल का छ�� वाँ सबसे बड़ा ग्रह है। शुक्र पर कोई चुम्बकीय क्षेत्र नहीं है। इसका कोई उपग्रह भी नहीं है | यह आकाश में सबसे चमकीला पिंड है जिसे नंगी आँखों से भी देखा जा सकता है | शुक्र भी बुध की तरह एक आंतरिक ग्रह है, यह भी चन्द्रमा की तरह कलाये प्रदर्शित करता है। यह सूर्य की परिक्रमा 224 दिन में करता है और सूर्य से इसका परिक्रमा पथ ..8200000 किलोमीटर लम्बा है। शुक्र ग्रह व्यास 1210.6 किलोमीटर और इसकी कक्षा लगभग वृत्ताकार है। यह अन्य ग्रहों के विपरीत दक्षिणावर्त ( Anticlockwise ) चक्रण करता है। ग्रीक मिथको के अनुसार शुक्र ग्रह प्रेम और सुंदरता की देवी है। 1962 में शुक्र ग्रह की यात्रा करने वाला पहला अंतरिक्ष यान मैरीनर 2 था। उसके बाद 20 से ज़्यादा शुक्र ग्रह की यात्रा पर जा चुके हैं; जिसमे पायोनियर, वीनस और सोवियत यान वेनेरा 7 है जो कि किसी दूसरे ग्रह पर उतरने वाला पहला यान था।
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ज्योतिष शास्त्र में शुक्र———
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को शुभ ग्रह माना गया है | ग्रह मंडल में शुक्र को मंत्री पद प्राप्त है| यह वृष और तुला राशियों का स्वामी है |यह मीन राशि में उच्च का तथा कन्या राशि में नीच का माना जाता है | तुला 20 अंश तक इसकी मूल त्रिकोण राशि भी है |शुक्र अपने स्थान से सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है और इसकी दृष्टि को शुभकारक कहा गया है |जनम कुंडली में शुक्र सप्तम भाव का कारक होता है |शुक्र की सूर्य -चन्द्र से शत्रुता , शनि – बुध से मैत्री और गुरु – मंगल से समता है | यह स्व ,मूल त्रिकोण व उच्च,मित्र राशि –नवांश में ,शुक्रवार में , राशि के मध्य में ,चन्द्र के साथ रहने पर , वक्री होने पर ,सूर्य के आगे रहने पर ,वर्गोत्तम नवमांश में , अपरान्ह काल में ,जन्मकुंडली के तीसरे ,चौथे, छटे ( वैद्यनाथ छटे भाव में शुक्र को निष्फल मानते हैं ) व बारहवें भाव में बलवान व शुभकारक होता है | शुक्र कन्या राशि में स्थित होने पर बलहीन हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में आकर भी शुक्र बलहीन हो जाते हैं। शुक्र पर बुरे ग्रहों का प्रबल प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन अथवा प्रेम संबंधों में समस्याएं पैदा कर सकता है। महिलाओं की कुंडली में शुक्र पर बुरे ग्रहों का प्रबल प्रभाव उनकी प्रजनन प्रणाली को कमजोर कर सकता है तथा उनके रक्तस्त्राव , गर्भाशय अथवा अंडाशय पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है जिसके कारण उन्हें संतान पैदा करनें में परेशानियां आ सकतीं हैं। शुक्र शारीरिक सुखों के भी कारक होते हैं तथा संभोग से लेकर हार्दिक प्रेम तक सब विषयों को जानने के लिए कुंडली में शुक्र की स्थिति महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
शुक्र का प्रबल प्रभाव जातक को रसिक बना देता है तथा आम तौर पर ऐसे जातक अपने प्रेम संबंधों को लेकर संवेदनशील होते हैं। शुक्र के जातक सुंदरता और एश्वर्यों का भोग करने में शेष सभी प्रकार के जातकों से आगे होते हैं। शरीर के अंगों में शुक्र जननांगों के कारक होते हैं तथा महिलाओं के शरीर में शुक्र प्रजनन प्रणाली का प्रतिनिधित्व भी करते हैं तथा महिलाओं की कुंडली में शुक्र पर किसी बुरे ग्रह का प्रबल प्रभाव उनकी प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। कुंडली धारक के जीवन में पति या पत्नी का सुख देखने के लिए भी कुंडली में शुक्र की स्थिति अवश्य देखनी चाहिए। शुक्र को सुंदरता की देवी भी कहा जाता है और इसी कारण से सुंदरता, ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े अधिकतर क्षेत्रों के कारक शुक्र ही होते हैं, जैसे कि फैशन जगत तथा इससे जुड़े लोग, सिनेमा जगत तथा इससे जुड़े लोग, रंगमंच तथा इससे जुड़े लोग, चित्रकारी तथा चित्रकार, नृत्य कला तथा नर्तक-नर्तकियां, इत्र तथा इससे संबंधित व्यवसाय, डिजाइनर कपड़ों का व्यवसाय, होटल व्यवसाय तथा अन्य ऐसे व्यवसाय जो सुख-सुविधा तथा ऐश्वर्य से जुड़े हैं।
कारकत्व—-
प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार शुक्र स्त्री ,,काम सुख,भोग –विलास, वाहन,सौंदर्य ,काव्य रचना ,गीत –संगीत-नृत्य ,विवाह ,वशीकरण ,कोमलता,जलीय स्थान ,अभिनय ,श्वेत रंग के सभी पदार्थ ,चांदी,बसंत ऋतु ,शयनागार , ललित कलाएं,आग्नेय दिशा ,लक्ष्मी की उपासना ,वीर्य ,मनोरंजन ,हीरा ,सुगन्धित पदार्थ,अम्लीय रस और वस्त्र आभूषण इत्यादि का कारक है |
रोग —–
जन्म कुंडली में शुक्र अस्त ,नीच या शत्रु राशि का ,छटे -आ�� वें -बारहवें भाव में स्थित हो ,पाप ग्रहों से युत या दृष्ट, षड्बल विहीन हो तो नेत्र रोग, गुप्तेन्द्रीय रोग,वीर्य दोष से होने वाले रोग , प्रोस्ट्रेट ग्लैंड्स, प्रमेह,मूत्र विकार ,सुजाक , कामान्धता,श्वेत या रक्त प्रदर ,पांडु इत्यादि रोग उत्पन्न करता है |कुंडली में शुक्र पर अशुभ राहु का विशेष प्रभाव जातक के भीतर शारीरिक वासनाओं को आवश्यकता से अधिक बढ़ा देता है जिसके चलते जातक अपनी बहुत सी शारीरिक उर्जा तथा पैसा इन वासनाओं को पूरा करने में ही गंवा देता है जिसके कारण उसकी सेहत तथा प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है तथा कुछेक मामलों में तो जातक किसी गुप्त रोग से पीड़ित भी हो सकता है जो कुंडली के दूसरे ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करते हुए जानलेवा भी साबित हो सकता है।
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फल देने का समय—-
शुक्र अपना शुभाशुभ फल 25 से 28 वर्ष कि आयु में ,अपने वार व होरा में ,बसंत ऋतु में,अपनी दशाओं व गोचर में प्रदान करता है | तरुणावस्था पर भी इस का अधिकार कहा गया है |
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ज्योतिषानुसार बारह भावों में शुक्र के द्वारा दिये जाने वाले फ़ल—
प्रथम भाव में शुक्र—
जातक के जन्म के समय लगन में विराजमान शुक्र को पहले भाव में शुक्र की उपाधि दी गयी है। पहले भाव में शुक्र के होने से जातक सुन्दर होता है,और शुक्र जो कि भौतिक सुखों का दाता है,जातक को सुखी रखता है,शुक्र दैत्यों का राजा है इसलिये जातक को भौतिक वस्तुओं को प्रदान करता है,और जातक को शराब कबाब आदि से कोई परहेज नही होता है,जातक की रुचि कलात्मक अभिव्यक्तियों में अधिक होती है,वह सजाने और संवरने वाले कामों में दक्ष होता है,जातक को राज कार्यों के करने और राजकार्यों के अन्दर किसी न किसी प्रकार से शामिल होने में आनन्द आता है,वह अपना हुकुम चलाने की कला को जानता है,नाटक सिनेमा और टीवी मीडिया के द्वारा अपनी ही बात को रखने के उपाय करता है,अपनी उपभोग की क्षमता के कारण और रोगों पर जल्दी से विजय पाने के कारण अधिक उम्र का होता है,अपनी तरफ़ विरोधी आकर्षण होने के कारण अधिक कामी होता है,और काम सुख के लिये उसे कोई विशेष प्रयत्न नही करने पडते हैं।
द्वितीय भाव में शुक्र—
दूसरा भाव कालपुरुष का मुख कहा गया है,मुख से जातक कलात्मक बात करता है,अपनी आंखों से वह कलात्मक अभिव्यक्ति करने के अन्दर माहिर होता है,अपने चेहरे को सजा कर रखना उसकी नीयत होती है,सुन्दर भोजन और पेय पदार्थों की तरफ़ उसका रुझान होता है,अपनी वाकपटुता के कारण वह समाज और जान पहिचान वाले क्षेत्र में प्रिय होता है,संसारिक वस्तुओं और व्यक्तियों के प्रति अपनी समझने की कला से पूर्ण होने के कारण वह विद्वान भी माना जाता है,अपनी जानपहिचान का फ़ायदा लेने के कारण वह साहसी भी होता है,लेकिन अकेला फ़ंसने के समय वह अपने को नि:सहाय भी पाता है,खाने पीने में साफ़सफ़ाई रखने के कारण वह अधिक उम्र का भी होता है।
तीसरे भाव में शुक्र—
तीसरे भाव में शुक्र के होने पर जातक को अपने को प्रदर्शित करने का चाव बचपन से ही होता है,कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार तीसरा भाव दूसरों को अपनी कला या शरीर के द्वारा कहानी नाटक और सिनेमा टीवी मीडिया के द्वारा प्रदर्शित करना भी होता है,तीसरे भाव के शुक्र वाले जातक अधिकतर नाटकबाज होते है,और किसी भी प्रकार के संप्रेषण को आसानी से व्यक्त कर सकते है,वे फ़टाफ़ट बिना किसी कारण के रोकर दिखा सकते है,बिना किसी कारण के हंस कर दिखा सकते है,बिना किसी कारण के गुस्सा भी कर सकते है,यह उनकी जन्म जात सिफ़्त का उदाहरण माना जा सकता है। अधिकतर महिला जातकों में तीसरे भाव का शुक्र बडे भाई की पत्नी के रूप में देखा जाता है,तीसरे भाव के शुक्र वाला जातक खूबशूरत जीवन साथी का पति या पत्नी होता है,तीसरे भाव के शुक्र वाले जातक को जीवन साथी बदलने में देर नही लगती है,चित्रकारी करने के साथ वह अपने को भावुकता के जाल में गूंथता चला जाता है,और उसी भावुकता के चलते वह अपने को अन्दर ही अन्दर जीवन साथी के प्रति बुरी भावना पैदा कर लेता है,अक्सर जीवन की अभिव्यक्तियों को प्रसारित करते करते वह थक सा जाता है,और इस शुक्र के धारक जातक आलस्य की तरफ़ जाकर अपना कीमती समय बरबाद कर लेते है,तीसरे शुक्र के कारण जातक के अन्दर चतुराई की मात्रा का प्रभाव अधिक हो जाता है,आलस्य के कारण जब वह किसी गंभीर समस्या को सुलझाने में असमर्थ होता है,तो वह अपनी चतुराई से उस समस्या को दूर करने की कोशिश करता है।
चौथे भाव में शुक्र—
चौथे भाव का शुक्र कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार चन्द्रमा की कर्क राशि में होता है,जातक के अन्दर मानसिक रूप से कामवासना की अधिकता होती है,उसे ख्यालों में केवल पुरुष को नारी और नारी को पुरुष का ही क्याल रहता है,जातक आस्तिक भी होता है,परोपकारी भी होता है,लेकिन परोपकार के अन्दर स्त्री को पुरुष के प्रति और पुरुष को स्त्री के प्रति आकर्षण का भाव देखा जाता है,जातक व्यवहार कुशल भी होता है,और व्यवहार के अन्दर भी शुक्र का आकर्षण मुख्य होता है,जातक का स्वभाव और भावनायें अधिक मात्रा में होती है,वह अपने को समाज में वाहनो से युक्त सजे हुये घर से युक्त और आभूषणों से युक्त दिखाना चाहता है,अधिकतर चौथे शुक्र वाले जातकों की रहने की व्यवस्था बहुत ही सजावटी देखी जाती है,चौथे भाव के शुक्र के व्यक्ति को फ़ल और सजावटी खानों का काम करने से अच्छा फ़ायदा होता देखा गया है,पानी वाली जमीन में या रहने वाले स्थानों के अन्दर पानी की सजावटी क्रियायें पानी वाले जहाजों के काम आदि भी देखे जाते है,धनु या वृश्चिक का शुक्र अगर चौथे भाव में विराजमान होता है,तो जातक को हवाई जहाजों के अन्दर और अंतरिक्ष के अन्दर भी सफ़ल होता देखा गया है।
पंचम भाव में शुक्र—
पंचम भाव का शुक्र कविता करने के लिये अधिक प्रयुक्त माना जाता है,चन्द्रमा की राशि कर्क से दूसरा होने के कारण जातक भावना को बहुत ही सजा संवार कर कहता है,उसके शब्दों के अन्दर शैरो शायरी की पुटता का महत्व अधिक रूप से देखा जाता है,अपनी भावना के चलते जातक पूजा पाठ से अधिकतर दूर ही रहता है,उसे शिक्षा से लेकर अपने जीवन के हर पहलू में केवल भौतिकता का महत्व ही समझ में आता है,व्ह जो सामने है,उसी पर विश्वास करना आता है,आगे क्या होगा उसे इस बात का ख्याल नही आता है,वह किसी भी तरह पराशक्ति को एक ढकोसला समझता है,और अक्सर इस प्रकार के लोग अपने को कम्प्यूटर वाले खेलों और सजावटी सामानों के द्वारा धन कमाने की फ़िराक में रहते है,उनको भगवान से अधिक अपने कलाकार दिमाग पर अधिक भरोशा होता है,अधिकतर इस प्रकार के जातक अपनी उम्र की आखिरी मंजिल पर किसी न किसी कारण अपना सब कुछ गंवाकर भिखारी की तरह का जीवन निकालते देखे गये है,उनकी औलाद अधिक भौतिकता के कारण मानसिकता और रिश्तों को केवल संतुष्टि का कारण ही समझते है,और समय के रहते ही वे अपना मुंह स्वाभाविकता से फ़ेर लेते हैं।
छठे भाव में शुक्र—
छठे भाव को कालपुरुष के अनुसार बुध का घर माना जाता है,और कन्या राशि का प्रभाव होने के कारण शुक्र इस स्थान में नीच का माना जाता है,अधिकतर छठे शुक्र वाले जातकों के जीवन साथी मोटे होते है,और आराम तलब होने के कारण छठे शुक्र वालों को अपने जीवन साथी के सभी काम करने पडते है,इस भाव के जातकों के जीवन साथी किसी न किसी प्रकार से दूसरे लोगों से अपनी शारीरिक काम संतुष्टि को पूरा करने के चक्कर में केवल इसी लिये रहते है,क्योंकि छठे शुक्र वाले जातकों के शरीर में जननांग सम्बन्धी कोई न कोई बीमारी हमेशा बनी रहती है,चिढचिढापन और झल्लाहट के प्रभाव से वे घर या परिवार के अन्दर एक प्रकार से क्लेश का कारण भी बन जाते है,शरीर में शक्ति का विकास नही होने से वे पतले दुबले शरीर के मालिक होते है,यह सब उनकी माता के कारण भी माना जाता है,अधिकतर छठे शुक्र के जातकों की माता सजने संवरने और अपने को प्रदर्शित करने के चक्कर में अपने जीवन के अंतिम समय तक प्रयासरत रहतीं है। पिता के पास अनाप सनाप धन की आवक भी रहती है,और छठे शुक्र के जातकों के एक मौसी की भी जीवनी उसके लिये महत्वपूर्ण होती है,माता के खानदान से कोई न कोई कलाकार होता है, या मीडिया आदि में अपना काम कर रहा होता है।
सप्तम भाव में शुक्र—
सप्तम भाव में शुक्र कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार अपनी ही राशि तुला में होता है,इस भाव में शुक्र जीवन साथी के रूप में अधिकतर मामलों में तीन तीन प्रेम सम्बन्ध देने का कारक होता है,इस प्रकार के प्रेम सम्बन्ध उम्र की उन्नीसवीं साल में,पच्चीसवीं साल में और इकत्तीसवीं साल में शुक्र के द्वारा प्रदान किये जाते है,इस शुक्र का प्रभाव माता की तरफ़ से उपहार में मिलता है,माता के अन्दर अति कामुकता और भौतिक सुखों की तरफ़ झुकाव का परिणाम माना जाता है,पिता की भी अधिकतर मामलों में या तो शुक्र वाले काम होते है,अथवा पिता की भी एक शादी या तो होकर छूट गयी होती है,या फ़िर दो सम्बन्ध लगातार आजीवन चला करते है,सप्तम भाव का शुक्र अपने भाव में होने के कारण महिला मित्रों को ही अपने कार्य के अन्दर भागीदारी का प्रभाव देता है। पुरुषों को सुन्दर पत्नी का प्रदायक शुक्र पत्नी को अपने से नीचे वाले प्रभावों में रखने के लिये भी उत्तरदायी माना जाता है,इस भाव का शुक्र उदारता वाली प्रकृति भी रखता है,अपने को लोकप्रिय भी बनाता है,लेकिन लोक प्रिय होने में नाम सही रूप में लिया जाये यह आवश्यक नही है,कारण यह शुक्र कामवासना की अधिकता से व्यभिचारी भी बना देता है,और दिमागी रूप से चंचल भी बनाता है,विलासिता के कारण जातक अधिकतर मामलों में कर्म हीन होकर अपने को उल्टे सीधे कामों मे लगा लेते है।
आठवें भाव में शुक्र—
आठवें भाव का शुक्र जातक को विदेश यात्रायें जरूर करवाता है,और अक्सर पहले से माता या पिता के द्वारा सम्पन्न किये गये जीवन साथी वाले रिस्ते दर किनार कर दिये जाते है,और अपनी मर्जी से अन्य रिस्ते बनाकर माता पिता के लिये एक नई मुसीबत हमेशा के लिये खडी कर दी जाती है। जातक का स्वभाव तुनक मिजाज होने के कारण माता के द्वारा जो शिक्षा दी जाती है वह समाज विरोधी ही मानी जाती है,माता के पंचम भाव में यह शुक्र होने के कारण माता को सूर्य का प्रभाव देता है,और सूर्य शुक्र की युति होने के कारण वह या तो राजनीति में चली जाती है,और राजनीति में भी सबसे नीचे वाले काम करने को मिलते है,जैसे साफ़ सफ़ाई करना आदि,माता की माता यानी जातक की नानी के लिये भी यह शुक्र अपनी गाथा के अनुसार वैध्वय प्रदान करता है,और उसे किसी न किसी प्रकार से शिक्षिका या अन्य पब्लिक वाले कार्य भी प्रदान करता है,जातक को नानी की सम्पत्ति बचपन में जरूर भोगने को मिलती है,लेकिन बडे होने के बाद जातक मंगल के घर में शुक्र के होने के बाद या तो मिलट्री में जाता है,या फ़िर किसी प्रकार की सजावटी टेकनोलोजी यानी कम्प्यूटर और अन्य आई टी वाली टेकनोलोजी में अपना नाम कमाता है। लगातार पुरुष वर्ग कामुकता की तरफ़ मन लगाने के कारण अक्सर उसके अन्दर जीवन रक्षक तत्वों की कमी हो जाती है,और वह रोगी बन जाता है,लेकिन रोग के चलते यह शुक्र जवानी के अन्दर किये गये कामों का फ़ल जरूर भुगतने के लिये जिन्दा रखता है,और किसी न किसी प्रकार के असाध्य रोग जैसे तपेदिक या सांस की बीमारी देता है,और शक्तिहीन बनाकर बिस्तर पर पडा रखता है। इस प्रकार के पुरुष वर्ग स्त्रियों पर अपना धन बरबाद करते है,और स्त्री वर्ग आभूषणो और मनोरंजन के साधनों तथा महंगे आवासों में अपना धन व्यय करती है।
नवें भाव का शुक्र—
नवें भाव का मालिक कालपुरुष के अनुसार गुरु होता है,और गुरु के घर में शुक्र के बै�� जाने से जातक के लिये शुक्र धन लक्ष्मी का कारक बन जाता है,उसके पास बाप दादा के जमाने की सम्पत्ति उपभोग करने के लिये होती है,और शादी के बाद उसके पास और धन बढने लगता है,जातक की माता को जननांग सम्बन्धी कोई न कोई बीमारी होती है,और पिता को मोटापा यह शुक्र उपहार में प्रदान करता है,बाप आराम पसंद भी होता है,बाप के रहते जातक के लिये किसी प्रकार की धन वाली कमी नही रहती है,वह मनचाहे तरीके से धन का उपभोग करता है,इस प्रकार के जातकों का ध्यान शुक्र के कारण बडे रूप में बैंकिंग या धन को धन से कमाने के साधन प्रयोग करने की दक्षता ईश्वर की तरफ़ से मिलती है,वह लगातार किसी न किसी कारण से अपने को धनवान बनाने के लिये कोई कसर नही छोडता है। उसके बडे भाई की पत्नी या तो बहुत कंजूस होती है,या फ़िर धन को समेटने के कारण वह अपने परिवार से बिलग होकर जातक का साथ छोड देती है,छोटे भाई की पत्नी भी जातक के कहे अनुसार चलती है,और वह हमेशा जातक के लिये भाग्य बन कर रहती है,नवां भाव भाग्य और धर्म का माना जाता है,जातक के लिये लक्ष्मी ही भगवान होती है,और योग्यता के कारण धन ही भाग्य होता है। जातक का ध्यान धन के कारण उसकी रक्षा करने के लिये भगवान से लगा रहता है,और वह केवल पूजा पा�� केवल धन को कमाने के लिये ही करता है। सुखी जीवन जीने वाले जातक नवें शुक्र वाले ही देखे गये है,छोटे भाई की पत्नी का साथ होने के कारण छोटा भाई हमेशा साथ रहने और समय समय पर अपनी सहायता देने के लिये तत्पर रहता है।
दशम भाव का शुक्र—-
दसम भाव का शुक्र कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार शनि के घर में विराजमान होता है,पिता के लिये यह शुक्र माता से शासित बताया जाता है,और माता के लिये पिता सही रूप से किसी भी काम के अन्दर हां में हां मिलाने वाला माना जाता है।छोटा भी कुकर्मी बन जाता है,और बडा भाई आरामतलब बन जाता है। जातक के पास कितने ही काम करने को मिलते है,और बहुत सी आजीविकायें उसके आसपास होती है। अक्सर दसवें भाव का शुक्र दो शादियां करवाता है,या तो एक जीवन साथी को भगवान के पास भेज देता है,अथवा किसी न किसी कारण से अलगाव करवा देता है। जातक के लिये एक ही काम अक्सर परेशान करने वाला होता है,कि कमाये हुये धन को वह शनि वाले नीचे कामों के अन्दर ही व्यय करता है,इस प्रकार के जातक दूसरों के लिये कार्य करने के लिये साधन जुटाने का काम करते है,दसवें भाव के शुक्र वाले जातक महिलाओं के लिये ही काम करने वाले माने जाते है,और किसी न किसी प्रकार से घर को सजाने वाले कलाकारी के काम,कढाई कशीदाकारी,पत्थरों को तरासने के काम आदि दसवें भाव के शुक्र के जातक के पास करने को मिलते है।
ग्यारहवें भाव का शुक्र—-
ग्यारहवां भाव संचार के देवता यूरेनस का माना जाता है,आज के युग में संचार का बोलबाला भी है,मीडिया और इन्टरनेट का कार्य इसी शुक्र की बदौलत फ़लीभूत माना जाता है,इस भाव का शुक्र जातक को विजुअल साधनों को देने में अपनी महारता को दिखाता है,जातक फ़िल्म एनीमेशन कार्टून बनाना कार्टून फ़िल्म बनाना टीवी के लिये काम करना,आदि के लिये हमेशा उत्साहित देखा जा सकता है। जातक के पिता की जुबान में धन होता है,वह किसी न किसी प्रकार से जुबान से धन कमाने का काम करता है,जातक का छोटा भाई धन कमाने के अन्दर प्रसिद्ध होता है,जातक की पत्नी अपने परिवार की तरफ़ देखने वाली होती है,और जातक की कमाई के द्वारा अपने मायके का परिवार संभालने के काम करती है। जातक का बडा भाई स्त्री से शासित होता है,जातक के बडी बहिन होती है,और वह भी अपने पति को शासित करने में अपना गौरव समझती है। जातक को जमीनी काम करने का शौक होता है,वह खेती वाली जमीनों को सम्भालने और दूध के काम करने के अन्दर अपने को उत्साहित पाता है,जातक की माता का स्वभाव भी एक प्रकार से ह�� ीला माना जाता है,वह धन की कीमत को नही समझती है,और माया नगरी को राख के ढेर में बदलने के लिये हमेशा उत्सुक रहती है,लेकिन पिता के भाग्य से वह जितना खर्च करती है,उतना ही अधिक धन बढता चला जाता है।
बारहवें भाव में शुक्र—
बारहवें भाव के शुक्र का स्थान कालपुरुष की कुन्डली के अनुसार राहु के घर में माना जाता है,राहु और शुक्र दोनो मिलकर या तो जातक को आजीवन हवा में उडाकर हवाई यात्रायें करवाया करते है,या आराम देने के बाद सोचने की क्रिया करवाने के बाद शरीर को फ़ुलाते रहते है,जातक का मोटा होना इस भाव के शुक्र की देन है,जातक का जीवन साथी सभी जातक की जिम्मेदारियां संभालने का कार्य करता है,और अपने को लगातार किसी न किसी प्रकार की बीमारियों का ग्रास बनाता चला जाता है,जातक का पिता या तो परिवार में बडा भाई होता है,और वह जातक की माता के भाग्य से धनवान होता है,पिता का धन जातक को मुफ़्त में भोगने को मिलता है,उम्र की बयालीसवीं साल तक जातक को मानसिक संतुष्टि नही मिलती है,चाहे उसके पास कितने ही साधन हों,वह किसी न किसी प्रकार से अपने को अभावग्रस्त ही मानता रहता है,और नई नई स्कीमें लगाकर बयालीस साल की उम्र तक जितना भी प्रयास कमाने के करता है,उतना ही वह पिता का धन बरबाद करता है,लेकिन माता के भाग्य से वह धन किसी न किसी कारण से बढता चला जाता है। उम्र की तीसरी सीढी पर वह धन कमाना चालू करता है,और फ़िर लगातार मरते दम तक कमाने से हार नही मानता है। जातक का बडा भाई अपने जुबान से धन कमाने का मालिक होता है,लेकिन भाभी का प्रभाव परिवार की मर्यादा को तोडने में ही रहता है,वह अपने को धन का दुश्मन समझती है,और किसी न किसी प्रकार से पारिवारिक महिलाओं से अपनी तू तू में में करती ही मिलती है,उसे बाहर जाने और विदेश की यात्रायें करने का शौक होता है,भाभी का जीवन अपनी कमजोरियों के कारण या तो अस्पताल में बीतता है,या फ़िर उसके संबन्ध किसी न किसी प्रकार से यौन सम्बन्धी बीमारियों के प्रति समाज में कार्य करने के प्रति मिलते है,वह अपने डाक्टर या महिलाओं को प्रजनन के समय सहायता देने वाली होती है। आप अन्य जानकारियों के लिये मुझे ईमेल कर सकते हैं
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शुक्र का राशि फल——
जन्म कुंडली में शुक्र का सभी राशियों में स्थित होने का फल इस प्रकार है :-
——मेष में –शुक्र हो तो जातक रात्रि में अल्पदृष्टि वाला ,विरोध में तत्पर , अशांत ,ईर्ष्यालु ,वेश्यागामी ,अविश्वासी ,चोर,नीच प्रकृति का व स्त्री के कारण बंधन में जाने वाला होता है |
—–वृष में शुक्र हो तो जातक कृषक ,गंध –माल्य-वस्त्र युक्त ,दाता,अपने बन्धुओं की पालना करने वाला, सुन्दर, धनी, अनेक विद्याओं का ज्ञाता ,सबका हित करने वाला ,गुणवान व परोपकारी होता है |
—-मिथुन में शुक्र हो तो जातक विज्ञान –कला शास्त्र का ज्ञाता ,चतुरता से बोलने वाला,कृतज्ञ, प्रसिद्ध ,सुन्दर कामी ,लेखक, कवि ,प्रेमी, सज्जन ,गीत-संगीत से धन प्राप्त करने वाला ,देव –ब्राह्मण भक्त व स्थिर मैत्री रखने वाला होता है |
—-कर्क में शुक्र हो तो जातक रतिधर्मरत , पंडित, बली ,मृदु, प्रधान, इच्छित सुख व धन प्राप्त करने वाला ,सुन्दर ,डरपोक , अधिक स्त्रीसंग व मद्यपान से रोग पीड़ित होने वाला ,अपने किसी वंश दोष के कारण दुखी होता है |
—-सिंह में शुक्र हो तो जातक स्त्री सेवी ,अल्प पुत्र वाला,सुख –धन-आनंद से युक्त ,बन्धु प्रेमी ,परोपकारी, अधिक चिंताओं से रहित, गुरु –द्विज –आचार्य की सम्मति मानने वाला होता है |
कन्या में शुक्र हो तो जातक अल्प चिंता वाला ,मृदु,निपुण, परोपकारी, कलाकुशल, स्त्री से बहुत मीठा बोलने वाला ,तीर्थ व सभा में पंडित होता है |
—–तुला मे शुक्र हो तो जातक परिश्रम से धन पैदा करने वाला ,शूर,पुष्प –सुगंध –वस्त्र प्रेमी,विदेश में तत्पर ,अपनी रक्षा करने में निपुण ,कार्यों में चपल, धनी,पुण्यवान,शोभनीय , सौभाग्यवान , देव व द्विज की अर्चना से कीर्तिवान होता है |
—वृश्चिक में शुक्र हो तो जातक विद्वेषी ,नृशंस ,अधर्मी ,बकवास करने वाला ,श्रेष्ठ , भाइयों से विरक्त , अप्रशंसनीय ,पापी ,हिंसक ,दरिद्र ,नीचता में तत्पर,गुप्तांग रोगी व शत्रुनाशक होता है |
—-धनु में शुक्र हो तो जातक उत्तम धर्म-कर्म-धन से युक्त ,जगत प्रिय ,सुन्दर, श्रेष्ठ , कुल में धनी ,विद्वान ,मंत्री, ऊँचा शरीर ,चतुर होता है |
—–मकर में शुक्र हो तो जातक व्यय के भय से संतप्त ,दुर्बल देह ,उम्र में बड़ी स्त्री में आसक्त ,हृदय रोगी ,धन का लोभी ,लोभ वश असत्य बोल कर श्रेष्ठ गने वाला , निपुण ,क्लीव,दूसरे के धन की इच्छुक ,दुखी ,मूढ़ ,क्लेश सहन करने वाला होता है |
—कुम्भ में शुक्र हो तो जातक उद्वेग रोग तप्त ,विफल कर्म में संलग्न ,परस्त्रीगामी ,विधर्मी,गुरु व पुत्रों से वैर करने वाला ,स्नान –भोग –वस्त्राभूषणों से रहित ,व मलिन होता है |
—मीन में शुक्र हो तो जातक दक्ष ,दानी,गुणवान,महाधनी ,शत्रुओं को नीचा दिखाने वाला,लोक में विख्यात ,श्रेष्ठ ,विशिष्ट कार्य करने वाला ,राजा को प्रिय ,वाग्मी व बुद्धिमान ,सज्जनों से सम्मान पाने वाला ,वचन का धनी ,वंशधर व ज्ञानवान होता है |
(शुक्र पर किसी अन्य ग्रह कि युति या दृष्टि के प्रभाव से उपरोक्त राशि फल में परिवर्तन भी संभव है| )
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शुक्र का सामान्य दशा फल——
जन्म कुंडली में शुक्र स्व ,मित्र ,उच्च राशि -नवांश का ,शुभ भावाधिपति ,षड्बली ,शुभ युक्त -दृष्ट हो तो शुक्र की शुभ दशा में सुख साधनों में वृद्धि ,वाहन सुख ,धन ऐश्वर्य ,विवाह ,स्त्री सुख ,विद्या लाभ ,पालतू पशुओं की वृद्धि ,सरकार से सम्मान ,गीत –संगीत व अन्य ललित कलाओं में रूचि ,घर में उत्सव ,नष्ट राज्य या धन का लाभ ,मित्र –बन्धु बांधवों से समागम ,घर में लक्ष्मी की कृपा ,आधिपत्य ,उत्साह वृद्धि ,यश –कीर्ति ,श्रृंगार में रूचि ,नाटक –काव्य रसिक साहित्य व मनोरंजन में आकर्षण ,कन्या सन्तिति की संभावना होतीहै | चांदी ,चीनी,चावल ,दूध व दूध से बने पदार्थ,वस्त्र ,सुगन्धित द्रव्य ,वाहन सुख भोग के साधन ,आभूषण ,फैंसी आइटम्स इत्यादि के क्षेत्र में लाभ होता है |सरकारी नौकरी में पदोन्नति होती है | रुके हुए कार्य पूर्ण हो जाते हैं | जिस भाव का स्वामी शुक्र होता है उस भाव से विचारित कार्यों व पदार्थों में सफलता व लाभ होता है |
यदि शुक्र अस्त ,नीच शत्रु राशि नवांश का ,षड्बल विहीन ,अशुभभावाधिपति पाप युक्त दृष्ट हो तो शुक्र की अशुभ दशा में विवाह व दाम्पत्य सुख में बाधा ,धन की हानि ,घर में चोरी का भय ,गुप्तांगों में रोग,स्वजनों से द्वेष ,व्यवसाय में बाधा ,पशु धन की हानि , सिनेमा –अश्लील साहित्य अथवा काम वासना की ओर ध्यान लगे रहने के कुप्रभाव से शिक्षा प्राप्ति में बाधा होती है | जिस भाव का स्वामी शुक्र होता है उस भाव से विचारित कार्यों व पदार्थों में असफलता व हानि होती है |
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गोचर में शुक्र का प्रभाव —–
जन्म या नाम राशि से 1,2,3,4,5,8,9,11,12 वें स्थान पर शुक्र शुभ फल देता है |शेष स्थानों पर शुक्र का भ्रमण अशुभ कारक होता है |
जन्मकालीन चन्द्र से प्रथम स्थान पर शुक्र का गोचर सुख व धन का लाभ,शिक्षा में सफलता ,विवाह,आमोद-प्रमोद ,व्यापार में वृद्धि कराता है |
दूसरे स्थान पर शुक्र के गोचर से नवीन वस्त्राभूषण ,गीत संगीत में रूचि ,परिवार सहित मनोरंजन ,धनालाभ व राज्य से सुख मिलता है |
तीसरे स्थान पर शुक्र का गोचर मित्र लाभ ,शत्रु की पराजय ,साहस वृद्धि ,शुभ समाचार प्राप्ति ,भाग्य वृद्धि ,बहन व भाई के सुख में वृद्धि व राज्य से सहयोग दिलाता है |
चौथे स्थान पर शुक्र के गोचर से किसी मनोकामना की पूर्ति ,धन लाभ ,वाहन लाभ ,आवास सुख ,सम्बन्धियों से समागम ,जन संपर्क में वृद्धि व मानसिक बल में वृद्धि होती है |
पांचवें स्थान पर शुक्र के गोचर से संतान सुख ,परीक्षा में सफलता ,मनोरंजन ,प्रेमी या प्रेमिका से मिलन ,सट्टा लाटरी से लाभ होता है |
छ्टे स्थान पर शुक्र के गोचर से शत्रु वृद्धि ,रोग भय ,दुर्घटना ,स्त्री से झगडा या उसे कष्ट होता है |
सातवें स्थान पर शुक्र के गोचर से जननेंन्द्रिय सम्बन्धी रोग ,यात्रा में कष्ट ,स्त्री कोकष्ट या उस से विवाद ,आजीविका में बाधा होती है|
आ�� वें स्थान पर शुक्र के गोचर से कष्टों की निवर्ति ,धन लाभ व सुखों में वृद्धि होती है |
नवें स्थान पर शुक्र के गोचर राज्य कृपा,धार्मिक स्थल की यात्रा ,घर में मांगलिक उत्सव ,भाग्य वृद्धि होती है |
दसवें स्थान पर शुक्र के गोचर से मानसिक चिंता ,कलह,नौकरी व्यवसाय में विघ्न ,कार्यों में असफलता ,राज्य से परेशानी होती है |
ग्यारहवें स्थान पर शुक्र के गोचर से धन ऐश्वर्य की वृद्धि,कार्यों में सफलता, मित्रों का सहयोग मिलता है |
बारहवें स्थान पर शुक्र के गोचर सेअर्थ लाभ, भोग विलास का सुख,विदेश यात्रा ,मनोरंजन का सुख प्राप्त होता है |
( गोचर में शुक्र के उच्च ,स्व मित्र,शत्रु नीच आदि राशियों में स्थित होने पर , अन्य ग्रहों से युति ,दृष्टि के प्रभाव से , अष्टकवर्ग फल से या वेध स्थान पर शुभाशुभ ग्रह होने पर उपरोक्त गोचर फल में परिवर्तन संभव है | )
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शुक्र ग्रह के उपाय—-
01.शुक्र की वस्तुओं से स्नान —–
ग्रह की वस्तुओं से स्नान करना उपायों के अन्तर्गत आता है. शुक्र का स्नान उपाय करते समय जल में बडी इलायची डालकर उबाल कर इस जल को स्नान के पानी में मिलाया जाता है . इसके बाद इस पानी से स्नान किया जाता है. स्नान करने से वस्तु का प्रभाव व्यक्ति पर प्रत्यक्ष रुप से पडता है. तथा शुक्र के दोषों का निवारण होता है।
यह उपाय करते समय व्यक्ति को अपनी शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए। तथा उपाय करने कि अवधि के दौरान शुक्र देव का ध्यान करने से उपाय की शुभता में वृ्द्धि होती है। इसके दौरान शुक्र मंत्र का जाप करने से भी शुक्र के उपाय के फलों को सहयोग प्राप्त होता है।
02.शुक्र की वस्तुओं का दान —- शुक्र की दान देने वाली वस्तुओं में घी व चावन का दान किया जाता है। इसके अतिरिक्त शुक्र क्योकि भोगविलास के कारक ग्रह है। इसलिये सुख- आराम की वस्तुओं का भी दान किया जा सकता है। बनाव -श्रंगार की वस्तुओं का दान भी इसके अन्तर्गत किया जा सकता है । दान क्रिया में दान करने वाले व्यक्ति में श्रद्धा व विश्वास होना आवश्यक है। तथा यह दान व्यक्ति को अपने हाथों से करना चाहिए। दान से पहले अपने बडों का आशिर्वाद लेना उपाय की शुभता को बढाने में सहयोग करता है।
03.शुक्र मन्त्र का जाप —– शुक्र के इस उपाय में निम्न श्लोक का पाठ किया जाता है।
“ऊँ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा ”
शुक्र के अशुभ गोचर की अवधि या फिर शुक्र की दशा में इस श्लोक का पाठ प्रतिदिन या फिर शुक्रवार के दिन करने पर इस समय के अशुभ फलों में कमी होने की संभावना बनती है। मुंह के अशुद्ध होने पर मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर विपरीत फल प्राप्त हो सकते है।
वैवाहिक जीवन की परेशानियों को दूर करने के लिये इस श्लोक का जाप करना लाभकारी रहता है । वाहन दुर्घटना से बचाव करने के लिये यह मंत्र लाभकारी रहता है।
04.शुक्र का यन्त्र —–
शुक्र के अन्य उपायों में शुक्र यन्त्र का निर्माण करा कर उसे पूजा घर में रखने पर लाभ प्राप्त होता है। शुक्र यन्त्र की पहली लाईन के तीन खानों में 11,6,13 ये संख्याये लिखी जाती है। मध्य की लाईन में 12,10, 8 संख्या होनी चाहिए। तथा अन्त की लाईन में 07,14,9 संख्या लिखी जाती है।
शुक्र यन्त्र में प्राण प्रतिष्ठा करने के लिये किसी जानकार पण्डित की सलाह ली जा सकती है. यन्त्र पूजा घर में स्थापित करने के बाद उसकी नियमित रुप से साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए.
05 .–शुक्र गृह का रत्न/रत्न धारण :—हीरा अथवा जरकिन , श्वेत पुखराज,
सफेद मूंगा – चांदी या श्वेत धातु में मढ़वा कर पंचोपचार पूजन, प्राण प्रतिष्ठा करा कर, तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए।
यह रत्न शुक्र को बलवान बनाने के लिए धारण किये जाते है तथा धारक के लिए शुभ होने पर यह उसे सांसरिक सुख-सुविधा, ऐशवर्य, मानसिक प्रसन्नता तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है। हीरे के अतिरिक्त शुक्र को बल प्रदान करने के लिए सफेद पुखराज भी पहना जाता है। शुक्र के यह रत्न रंगहीन तथा साफ़ पानी या साफ़ कांच की तरह दिखते हैं। इन रत्नों को आम तौर पर दायें हाथ की मध्यामा उंगली में शुक्रवार की सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता है। रत्न धारण करने से ग्रह बलवान हो जाता है परन्तु ये सुनिश्चित कर लें की आपकी कुंडली के हिसाब से रत्न धारण कर सकते हैं या नहीं। अच्छा रहेगा किसी योग्य ज्योतिषी से रत्न धारण की सलाह ले लें।
06 .–औषधि धारण :—- शुक्रवार के दिन गुलर की जड़ को सफेद कपड़े में बांध कर व सफेद धागे में (यदि रेशम का हो तो अच्छा है) बांध कर गले या बांह में धारण करना चाहिए। ऐसा करने से शुक्र देव प्रसन्न होते हैं।
कुछ अन्य उपाय,शुक्र को बलि करने के लिए—–
===- काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
– शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
— किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।
—- 10 वर्ष से कम आयु की कन्या को भोजन कराए और चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।
—- अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
—– सुबह उठते ही बिना बोले मां के चरण स्पर्श करें।
—– शुक्रवार के दिन रोज कौए को चावल और खुरा खिलाएं।
—- पत्नी को खुश रखे।
— किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।
—- शुक्रवार के दिन गाय के दुध से स्नान करना चाहिए।
– –किसी मन्दिर में गाय का घी दान दें।
— जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं।
—-संतान प्राप्ति की कामना से शुक्र को बलि बनाने का सबसे असरदार उपाय है हरसिंगार का पौधा लगाना तथा उसको सींचना। अपने छोटे बच्चे की तरह उसको देखभाल करनी चाहिए।
—–संतान प्राप्ति के लिए दूसरा अचूक उपाय है नवरात्रि में मां दुर्गा के लिए व्रत रखना, अखंड ज्योत जलाना, दुर्गा सप्तशती का पाठ करना तथा नवमी वाले दिन 2 से 10 साल तक की कन्याओं को दूध से बनी खीरे खिलाना। संतान प्राप्ति के लिए पंचमी के दिन माँ स्कंदमाता तथा अष्टमी के दिन माँ महागौरी की विशेष पूजा की जाती है …
—-लक्ष्मी जी की अराधना करें। शुक्रवार को लक्ष्मी नारायण मंदिर जाएँ। पति अपनी पत्नी को 1 गुलाब को फूल दे।
—-तुरंत स्फटिक की माला धारण करें।
—-स्त्री तथा अपनी पत्नी का कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए।
—शुक्रवार को कन्याओं को खीर खिलाएं। स्वयं भी खाएं।
—– परफ्यूम का प्रयोग भी शुक्र को बलवान बनाता है।शुक्र के बलवान हो जाने पर व्यक्ति सभी तरह के प्रेम सुख और समृद्धि की प्राप्ती होती है साथ ही उसका वैवाहिक जीवन भी सुखद होता है।
—-स्फटिक का शिवलिंग घर में स्थापित कर भगवान् शिव तथा मातारानी से संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।
—-किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय 10 वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।
—–अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
—-किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।
—–शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध की कुछ बूंदे जल में मिलाकर स्नान करना चाहिए।
—-चांदी का कड़ा पहनें।
—–सफ़ेद कपड़ों तथा खुशबूदार वस्तुओं जैसे की इत्र का प्रयोग जरूर करें।
—–श्रीसूक्त का पाठ करें।
—–नेत्रहीन व्यक्तियों की सेवा करें
—–गाय का पीला घी मंदिर में देने से भी शुक्र को बल मिलता है।
—-प्रतिदिन मंदिर जाकर या घर के ही पूजाघर में निम्न श्लोक का पाठ किया जाता है—
—–शुक्र ग्रहों में सबसे चमकीला है और प्रेम का प्रतीक है. इस ग्रह के पीड़ित होने पर आपको ग्रह शांति हेतु सफेद रंग का घोड़ा दान देना चाहिए. रंगीन वस्त्र, रेशमी कपड़े, घी, सुगंध, चीनी, खाद्य तेल, चंदन, कपूर का दान शुक्र ग्रह की विपरीत दशा में सुधार लाता है.
—-शुक्र से सम्बन्धित रत्न का दान भी लाभप्रद होता है. इन वस्तुओं का दान शुक्रवार के दिन संध्या काल में किसी युवती को देना उत्तम रहता है.
——-दान व्रत ,जाप – शुक्रवार के नमक रहित व्रत रखें , साथ में “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः” इस मन्त्र का 16000 की संख्या में जाप करें |
——- शुक्रवार को आटा ,चावल दूध ,दही, मिश्री ,श्वेत चन्दन ,इत्र, श्वेत रंग का वस्त्र ,चांदी इत्यादि का दान करें |
——शुक्र की दान देने वाली वस्तुओं में घी व चावल का दान किया जाता है. इसके अतिरिक्त शुक्र क्योकि भोग-विलास के कारक ग्रह है. इसलिये सुख- आराम की वस्तुओं का भी दान किया जा सकता है. बनाव -श्रंगार की वस्तुओं का दान भी इसके अन्तर्गत किया जा सकता है ….दान क्रिया में दान करने वाले व्यक्ति में श्रद्धा व विश्वास होना आवश्यक है. तथा यह दान व्यक्ति को अपने हाथों से करना चाहिए. दान से पहले अपने बडों का आशिर्वाद लेना उपाय की शुभता को बढाने में सहयोग करता है.
——ग्रह की वस्तुओं से स्नान करना उपायों के अन्तर्गत आता है. शुक्र का स्नान उपाय करते समय जल में बडी इलायची डालकर उबाल कर इस जल को स्नान के पानी में मिलाया जाता है . इसके बाद इस पानी से स्नान किया जाता है. स्नान करने से वस्तु का प्रभाव व्यक्ति पर प्रत्यक्ष रुप से पडता है. तथा शुक्र के दोषों का निवारण होता है. यह उपाय करते समय व्यक्ति को अपनी शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए. तथा उपाय करने कि अवधि के दौरान शुक्र देव का ध्यान करने से उपाय की शुभता में वृ्द्धि होती है. इसके दौरान शुक्र मंत्र का जाप करने से भी शुक्र के उपाय के फलों को सहयोग प्राप्त होता है
—–शुक्र ग्रह से सम्बन्धित क्षेत्र में आपको परेशानी आ रही है तो इसके लिए आप शुक्रवार के दिन व्रत रखें. मिठाईयां एवं खीर कौओं और गरीबों को दें. ब्राह्मणों एवं गरीबों को घी भात खिलाएं.
—-अपने भोजन में से एक हिस्सा निकालकर गाय को खिलाएं. शुक्र से सम्बन्धित वस्तुओं जैसे सुगंध, घी और सुगंधित तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
—–वस्त्रों के चुनाव में अधिक विचार नहीं करें.
——काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
—–शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए। किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।
—– शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।
शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे उपाय /टोटकों हेतु शुशुक्रवार के दिन करे तो ज्यादा प्रभावशाली होते है या जिस दिन शुक्र का कोईनक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में अधिक शुभ होते हैं, उस दिन करें।
“ऊँ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा “
—-शुक्र गायत्री मंत्र का जप—-
सरल शब्दों में कहें तो इस मंत्र का जप व्यक्ति को तन, मन से जोशीला और जवां बनाए रखता है। जिससे हर कोई भौतिक सुखों को प्राप्त करने में सक्षम बन सकता है।
– शुक्रवार के दिन किसी नवग्रह मंदिर या घर के देवालय में यथासंभव शुक्रदेव की सोने से बनी मूर्ति या लिंग रूप प्रतिमा की यथाविधि पूजा करें। – पूजा में दो सफेद वस्त्र, सफेद फूल, गंध और अक्षत चढ़ाएं। – पूजा के बाद शुक्रदेव को खीर या घी से बने सफेद पकवान का भोग लगाएं। – पूजा के बाद इस शुक्र गायत्री मंत्र का यथाशक्ति जप कर अंत में अगरबत्ती या घी के दीप जलाकर आरती करें। कम से कम 108 बार इस मंत्र का जप करना श्रेष्ठ होता है
– ऊँ भृगुवंशजाताय विद्यमहे। श्वेतवाहनाय धीमहि।तन्नो : कवि: प्रचोदयात॥
इस मंत्र से शुक्र ग्रह का देव रूप स्मरण शारीरिक, मानसिक रुप से जोश, उमंग बनाए रख तमाम सुखों को देने वाला होता है।
——-शुक्र स्त्री गृह है ,मनुष्य की कामुकता से इसका सीधा सम्बन्ध भी है ,और हर प्रकार के सौंदर्य और ऐश्वर्य से ये सीधे सम्बन्ध रखता है .शुक्र के लिए ओपल ,हीरा , स्फटिक का प्रयोग करना चहिये और यदि ये बहुत ही खराब है तो पुरुषों को अश्विनी मुद्रा या क्रिया रोज करनी चहिये .”ओम रीम दूम दुर्गाय नमः” इसकी एक माला रोज करनी चहिये शुक्र को अच्छा करने के लिए .

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    • मै ‘पं.विशाल दयानन्द शास्त्री’,
      Worked as a Professional astrologer & an vastu Adviser at self employed.
      I am an Vedic Astrologer & an Vastu Expert and Palmist.
      अपने बारे में ज्योतिषीय जानकारी चाहने वाले सभी जातक/जातिका …मुझे अपनी जन्म तिथि,..जन्म स्थान, जन्म समय.ओर गोत्र आदि की पूर्ण जानकारी देते हुए समस या ईमेल कर देवे..समय मिलने पर में स्वयं उन्हें उत्तेर देने का प्रयास करूँगा..
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      —-पंडित दयानन्द शास्त्री”विशाल”,
      मेरा कोंटेक्ट नंबर हे—-
      MOB.—-.09.–9669.90067(M.P.)—
      —Waataaap—0091–90.9390067….
      मेरा ईमेल एड्रेस हे..—-
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      (Consultation fee—
      —-For Kundali-2100/- rupees…।।
      —For Vastu Visit–11,000/-(1000 squre feet) एवम् आवास, भोजन तथा यात्रा व्यय अतिरिक्त…।।
      —For Palm reading/ hastrekha–2100/- rupees…।।

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