मेरा ख्वाब(सपना)—
(पंडित दयानंद शास्त्री”विशाल”)
अर्ज किया हें की—-
यूं तो तुम्हारे क़दमों पर दिल,
बिछाने वाले लाखों मिल जायेंगे,
दर्द ऐ दिल को आँखों में,
छुपाने वाले “विशाल” बहुत मिल जायेंगे..
उन दिलों की धडकनों का क्या कहना..!!!!
जिन्हें”विशाल” यह मालूम तक नहीं…
नाजुक से दिल को तोड़कर …
हंसाने/मुस्कुराने वाले “विशाल” बहुत मिल जायेंगे..
तुझे चांदनी रात की नजरों से …
छुपाकर रखूं…
मेरे एक खवाब/सपने की तरह इसे सजाकर रखूं…
मेरी तक़दीर मेरे साथ नहीं हें ऐ मेरे दोस्त..
वर्ना “विशाल”जिंदगी भर के लिए..
इन्हें(सपने/ख्वाब को) अपना बनाकर रखूं..
———–पंडित दयानंद शास्त्री”विशाल”