सजदा तेरे इरादे को…!!!!
नज़रे चुरा रहे हो क्यों, बचके जा रहे हो ,
सब कुछ तो ले चुके हो तुम, अब क्यों “विशाल”सता रहे हो.
दुनिया की उल्फतों से हरदम बचाया तुमको,
बेकार में दामन “विशाल” का अंगारों से जला रहे हो.
मैंने ख्वाहिशें अपनी सीने में दफ़न कर ली,
क्यों मेरे दिल के ज़ख्मों पर “विशाल” मरहम लगा रहे हो.
दिलवर बनके आये थे, दिलवर बनके रहते,
अब क्यों जुदा होके मुझ पर “विशाल” आंसू बहा रहे हो.
माजी की टीस में ही गुजर जायेगी ये रात
बुझते हुए चिराग से, “विशाल” न कर रोशनी की बात,
अब तो जनाब रूह मेरी, अंतिम सफ़र को चल दी,
अब क्यों मेरे जनाजे को “विशाल” कन्धा लगा रहे हो.
आप का अपना —
—-पंडित दयानन्द शास्त्री”विशाल”
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