आवासीय वास्तु के कुछ महत्वपूर्ण वास्तु सूत्र/वास्तु नियम —
वास्तु शास्त्र का प्रादुर्भाव वस्तुतः जन कल्याण के लिए ही भूमि पर हुआ है। भवन चाहें आवासीय अथवा औद्योगिक ही क्यों न हो, उसका निर्माण वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर ही करना चाहिए। यह इसलिए भी आवश्यक है कि वास्तु शास्त्र में निर्दिष्ट सूत्र व भवन-निर्माण की विधियों का उल्लेख इस विषय के पूर्वाचार्यों ने किया है, जो अत्यधिक मनन-चिंतन, खोज-परख व गहन अनुभव के आधार पर प्रतिपादित किए गए हैं।
अतः जब भी आपका इरादा भवन निर्माण का हो, तो यह शुभ कार्य करने से पहले वास्तु शास्त्र के अनुसार, उसके सभी पहलुओं पर विचार करना उत्तम होता है। जैसे शिलान्यास के लिए मुहूर्त्त काल, स्थिति, लग्न, कोण आदि। उसके बाद मकान में निर्मित किए जाने वाले कक्षों की माप, आंगन, रसोई घर, बैडरूम, कॉमन रूम, गुसलखाना, बॉलकनी आदि की स्थिति पर वास्तु के अनुरूप विचार करके ही भवन निर्माण करना चाहिए।
वास्तु शास्त्र का प्रादुर्भाव वस्तुतः जन कल्याण के लिए ही भूमि पर हुआ है। भवन चाहें आवासीय अथवा औद्योगिक ही क्यों न हो, उसका निर्माण वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर ही करना चाहिए। यह इसलिए भी आवश्यक है कि वास्तु शास्त्र में निर्दिष्ट सूत्र व भवन-निर्माण की विधियों का उल्लेख इस विषय के पूर्वाचार्यों ने किया है, जो अत्यधिक मनन-चिंतन, खोज-परख व गहन अनुभव के आधार पर प्रतिपादित किए गए हैं।
वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन में सबसे पहले दीवारों की ओर ध्यान देना चाहिए। दीवारें सीधी और एक आकृति वाली होनी चाहिए। कहीं से मोटी और कहीं से पतली दीवार होने पर अशुभ हो सकता है और गृह स्वामी अथवा गृह स्वामी का परिवार कष्ट में रह सकता है।
वास्तु के मूल सरल सिद्धान्तों को नव निर्माणाधीन भवनों में तो आसानी से अपनाया जाना संभव है एवं निर्मित भवनों में आंशिक परिवर्तनोंपरान्त सुखद परिणाम प्राप्त किये जा रहे है।
मिट्टी की दीवार अन्दर से तथा पत्थर एवं ईंट की दीवार बाहर की ओर से अन्दर लगानी चाहिए। कक्षों के निर्माण में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे दक्षिण व पश्चिम दिशा में भारी सामान रखे जाएँ तथा कक्षों के निर्माण के पश्चात् भी उनमें रखे जाने वाला सामान प्रायः दक्षिण पश्चिम में विशेष रूप से रखा जाए।
– गौ मुखी भूखंड निवास हेतु सौभाग्य शाली रहता हैं;अपितु वर्ताकार श्रेष्ट करी होता हें !!
– दो बड़े भवन के बीच भवन का रोग अपयश धन हानि कारक होता हें !!
– भवन के उत्तर और पूर्व में मार्ग होना शुभ होता हें !!
– भवन के द्वार के समीप खंबा गड्ढा मंदिर या उंचा पेड क्लेश प्रद रहता हें !!
– सफेद रंग की सुगंधित मिट्टी वाली भूमि ब्राह्मणों के निवास के लिए श्रेष्ठ मानी गई हैं।
– लाल रंग की कसैले स्वाद वाली भूमि क्षत्रिय, राजनेता, सेना व पुलिस के अधिकारियों के लिए शुभ मानी गई है।
– हरे या पीले रंग की खट्टे स्वाद वाली भूमि व्यापारियों, व्यापारिक स्थलों तथा वित्तीय संस्थानों के लिए शुभ मानी गई है।
– काले रंग की कड़वे स्वाद वाली भूमि अच्छी नहीं मानी जाती। यह भूमि शूद्रों के योग्य है।
– मधुर, समतल, सुगंधित व ठोस भूमि भवन बनाने के लिए उपयुक्त है।
– खुदाई में चींटी, दीमक, अजगर, सांप, हड्डी, कपड़े, राख, कौड़ी, जली लकड़ी व लोहा मिलना शुभ नहीं माना जाता है।
– भूमि की ढलान उत्तर और पूर्व की ओर हो तो शुभ होती है। छत की ढलान ईशान कोण में होनी चाहिए।
– भूखंड के दक्षिण या पश्चिम में ऊंचे भवन, पहाड़, टीले या पेड़ शुभ माने जाते हैं।
– भूखंड से पूर्व या उत्तर की ओर कोई नदी या नहर हो और उसका प्रवाह उत्तर या पूर्व की हो तो शुभ माने जाते हैं। भूखंड के उत्तर, पूर्व या ईशान में भूमिगत जल स्रोत, कुआं, तालाब एवं बावड़ी शुभ माने जाते हैं।
– भूखंड का दो बड़े भूखंडों के बीच होना शुभ नहीं होता है। भवन का दो बड़े भवनों के बीच होना शुभ नहीं होता। – आयताकार, वृत्ताकार व गोमुखी भूखंड गृह वास्तु में शुभ होता है।
– वृत्ताकार भूखंड में निर्माण भी वृत्ताकार ही होना चाहिए।
– सिंह मुखी भूखंड व्यावसायिक वास्तु के लिए शुभ होता है।
– भूखंड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ माना जाता है। भूखंड के उत्तर और पूर्व में मार्ग शुभ माने जाते हैं।
– दक्षिण और पश्चिम में मार्ग व्यापारिक स्थल में लाभदायक माने जाते हैं।
– उत्तर दिशा जल तत्व की प्रतीक है। इसके स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा स्त्रियों के लिए अशुभ तथा अनिष्टकारी होती है। इस दिशा में घर की स्त्रियों के लिए रहने की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए।
– उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र अर्थात् ईशान कोण जल का प्रतीक है। इसके अधिपति यम देवता हैं। भवन का यह भाग ब्राह्मणों, बालकों तथा अतिथियों के लिए शुभ होता है।
– पूर्वी दिशा अग्नि तत्व का प्रतीक है। इसके अधिपति इंद्रदेव हैं। यह दिशा पुरुषों के शयन तथा अध्ययन आदि के लिए श्रेष्ठ है।
– दक्षिणी-पूर्वी दिशा यानी आग्नेय कोण अग्नि तत्व की प्रतीक है। इसका अधिपति अग्नि देव को माना गया है। यह दिशा रसोईघर, व्यायामशाला या ईंधन के संग्रह करने के स्थान के लिए अत्यंत शुभ होती है।
– दक्षिणी दिशा पृथ्वी का प्रतीक है। इसके अधिपति यमदेव हैं। यह दिशा स्त्रियों के लिए अत्यंत अशुभ तथा अनिष्टकारी होती है।
– दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र यानी नैऋत्य कोण पृथ्वी तत्व का प्रतीक है। यह क्षेत्र अनंत देव या मेरूत देव के अधीन होता है। यहाँ शस्त्रागार तथा गोपनीय वस्तुओं के संग्रह के लिए व्यवस्था करनी चाहिए।
– पश्चिमी दिशा वायु तत्व की प्रतीक है। इसके अधिपति देव वरुण हैं। यह दिशा पुरुषों के लिए बहुत ही अशुभ तथा अनिष्टकारी होती है। इस दिशा में पुरुषों को वास नहीं करना चाहिए।
– उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र यानी वायव्य कोण वायु तत्व प्रधान है। इसके अधिपति वायुदेव हैं। यह सर्वेंट हाउस के लिए तथा स्थायी तौर पर निवास करने वालों के लिए उपयुक्त स्थान है।
– आवासीय भूखंड में बेसमेंट नहीं बनाना चाहिये यदि आवश्यक हो तो उत्तर,पूर्व व ब्रह्म स्थान को छोड़ कर बनायें !!
– बेसमेंट की उचाई .9 फिट और 0. फिट भूतल से उँचा होना चाहिये !!
– भवन की उचाई .. फिट और कम से कम 09 फिट अवशय होनी चाहिये !!
– भवन के दक्षिण भाग को उत्तर भाग से हमेशा उँचा बनायें !!
– आग्नेय, दक्षिणी-पूर्वी कोण में नालियों की व्यवस्था करने से भू-स्वामी को अनेक कष्टों को झेलना पड़ता है। – गृहस्वामी की धन-सम्पत्ति का नाश होता है तथा उसे मृत्युभय बना रहता है।
– दक्षिण दिशा में निकास नालियाँ भूस्वामी के लिए अशुभ तथा अनिष्टकारी होती हैं। गृहस्वामी को निर्धनता, राजभय तथा रोगों आदि समस्याओं से जूझना पड़ता है।
– उत्तर दिशा में निकास नालियाँ हों तो यह स्थिति भूस्वामी के लिए बहुत ही शुभ तथा राज्य लाभ देने वाली होती है।
– ईशान, उत्तर-पूर्व कोण में जल प्रवाह की नालियाँ भूस्वामी के लिए श्रेष्ठ तथा कल्याणकारी होती हैं। गृहस्वामी को धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है तथा आरोग्य लाभ होता है।
– भवन के द्वार के सामने मंदिर, खंभा व गड्ढा शुभ नहीं माने जाते। आवासीय भूखंड में बेसमेंट नहीं बनाना चाहिए।
– बेसमेंट बनाना आवश्यक हो तो उत्तर और पूर्व में ब्रह्म स्थान को बचाते हुए बनाना चाहिए।
– बेसमेंट की ऊंचाई कम से कम 9 फीट और 3 फीट तल से ऊपर हा ताकि प्रकाश और हवा आ जा सके।
– कुआं, बोरिंग व भूमिगत टंकी वास्तु पुरुष के अतिमर्म स्थानों को छोड़कर उत्तर, पूर्व या ईशान में बना सकते हैं। भवन की प्रत्येक मंजिल में छत की ऊंचाई 12 फुट रखनी चाहिए। 10 फुट से कम तो नहीं होनी चाहिए।
– भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊंचा होना चाहिए। भवन का पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊंचा होना चाहिए। भवन में नैत्य सबसे ऊंचा और ईशान सबसे नीचा होना चाहिए।
– भवन का मुखय द्वार ब्राह्मणों को पूर्व में, क्षत्रियों को उत्तर में, वैश्य को दक्षिण में तथा शूद्रों को पश्चिम में बनाना चाहिए। इसके लिए 81 पदों का वास्तु चक्र बनाकर निर्णय करना चाहिए।
– द्वार की चौड़ाई उसकी ऊंचाई से आधी होनी चाहिए। बरामदा घर के उत्तर या पूर्व में ही बनाना चाहिए। – खिड़कियां घर के उत्तर या पूर्व में बनाना चाहिए।
– खिड़कियां घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम बनानी चाहिए।
– ब्रह्म स्थान को खुला, साफ तथा हवादार रखना चाहिए। गृह निर्माण में 81 पद वाले वास्तु चक्र में 9 स्थान ब्रह्म स्थान के लिए नियत किए गये हैं।
– चार दीवारी के अंदर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में छोड़ें। उससे कम उत्तर में, उससे कम पश्चिम में, सबसे कम दक्षिण में छोड़ें। दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में, सबसे कम पूर्व में रखें।
– घर के ईशान कोण में पूजा घर, कुआं, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम, व बेसमेंट बनाया जा सकता है। घर की पूर्व दिशा में स्नान घर, तहखाना, बरामदा, कुआं, बगीचा व पूजा घर बनाया जा सकता है।
– घर की दक्षिण दिशा में मुखय शयन कक्ष, भंडार, सीढ़ियां व ऊंचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं।
– घर के नैत्य कोण में शयन कक्ष, भारी व कम उपयोगी सामान का स्टोर, सीढ़ियां, ओवर हैड वाटर टैंक व शौचालय बनाये जा सकते है॥
– घर की पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष, सीढ़ियां, अध्ययन कक्ष, शयन कक्ष, शौचालय व ऊंचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं।
– भवन का नेरित्य कोण {द.प.} को सबसे उँचा और ईशान कोण{पू.उ.} सबसे नीचा रखें !!
– भवन के दक्षिण दिशा में मुख्य शयन् कक्ष बनायें !!
– सीढ़ियाँ हमेशा विषम संख्या और घड़ी की तरह घुमाउ दार होनी चाहियें !!!
– घर के वायव्य कोण में अतिथि घर, कुंवारी कन्याओं का शयन कक्ष, रोदन कक्ष, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम बनाये जा सकते हैं। घर का भारी सामान नैत्य कोण, दक्षिण या पश्चिम में रखना चाहिए।
– घर का हल्का सामान उत्तर, पूर्व व ईशान में रखना चाहिए। घर के नैत्य भाग में किरायेदार या अतिथि को नहीं ठहराना चाहिए।
– सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिए। (मतांतर से अपने घर में पूर्व दिशा में सिर करके सोना चाहिए, ससुराल में दक्षिण में सिर करके, परदेश में पश्चिम में सिर करके सोना चाहिए और उत्तर दिशा में सिर करके कभी नहीं सोना चाहिए।)
– दिन में उत्तर की ओर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग करना चाहिए।
– घर के पूजा गृह में बड़ी मूर्तियां नहीं होनी चाहिए।
– दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमती चक्र व दो शालिग्राम नहीं रखने चाहिए। भोजन सदा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके ही करना चाहिए।
– सीढ़ियों के नीचे घर, शौचालय व रसोई घर नहीं बनाना चाहिए। धन की तिजोरी का मुंह उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
– शयनकक्ष में पलंग को दक्षिणी दीवार से लगाकर रखें। सोते समय सिरहाना उत्तर में या पूर्व में कदापि न रखें। सिरहाना उत्तर में या पूर्व में होने पर गृहस्वामी को शांति तथा समृद्धि की प्राप्ति नहीं होती है।
– वास्तुशास्त्र घर को व्यवस्थित रखने की कला का नाम है। इसके सिद्धांत, नियम और फार्मूले किसी मंत्र से कम शक्तिशाली नहीं हैं। आप वास्तु के अनमोल मंत्र अपनाइए और सदा सुखी रहिए।
—————————————————————-
अष्ट दिशा एवं गृह वास्तु छः श्लोकी संपूर्ण गृह वास्तु के श्लोकों में कहा गया है:——
षोडशदिशा ग्रह वास्तु : ईशान कोण में देवता का गृह,
पूर्व दिशा में स्नान गृह, अग्नि कोण में रसोई का गृह,
उत्तर में भंडार गृह,
अग्निकोण और पूर्व दिशा के बीच में दूध-दही मथने का गृह,
अग्नि कोण और दक्षिण दिशा के मध्य में घी का गृह,
दक्षिण दिशा और र्नैत्य कोण के मध्य शौच गृह,
र्नैत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में विद्याभ्यास गृह,
पश्चिम और वायव्य कोण के मध्य में रति गृह, उत्तर दिशा और ईशान के मध्य में औषधि गृह,
र्नैत्य कोण में सूतिका प्रसव गृह बनाना चाहिए।
यह सूतिका गृह प्रसव के आसन्न मास में बनाना चाहिए। ऐसा शास्त्र में निश्चित है।
———————————————————–
वास्तु टिप्स: कौन सा समय किस काम के लिए होता है शुभ?
सूर्य, वास्तु शास्त्र को प्रभावित करता है इसलिए जरूरी है कि सूर्य के अनुसार ही हम भवन निर्माण करें तथा अपनी दिनचर्या भी सूर्य के अनुसार ही निर्धारित करें।
1- सूर्योदय से पहले रात्रि 3 से सुबह 6 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त होता है। इस समय सूर्य घर के उत्तर-पूर्वी भाग में होता है। यह समय चिंतन-मनन व अध्ययन के लिए बेहतर होता है।
2- सुबह 6 से 9 बजे तक सूर्य घर के पूर्वी हिस्से में रहता है इसीलिए घर ऐसा बनाएं कि सूर्य की पर्याप्त रौशनी घर में आ सके।
3- प्रात: 9 से दोपहर 12 बजे तक सूर्य घर के दक्षिण-पूर्व में होता है। यह समय भोजन पकाने के लिए उत्तम है। रसोई घर व स्नानघर गीले होते हैं। ये ऐसी जगह होने चाहिए, जहां सूर्य की रोशनी मिले, तभी वे सुखे और स्वास्थ्यकर हो सकते हैं।
4- दोपहर 12 से 3 बजे तक विश्रांति काल(आराम का समय) होता है। सूर्य अब दक्षिण में होता है, अत: शयन कक्ष इसी दिशा में बनाना चाहिए।
5- दोपहर 3 से सायं 6 बजे तक अध्ययन और कार्य का समय होता है और सूर्य दक्षिण-पश्चिम भाग में होता है। अत: यह स्थान अध्ययन कक्ष या पुस्तकालय के लिए उत्तम है।
6- सायं 6 से रात 9 तक का समय खाने, बैठने और पढऩे का होता है इसलिए घर का पश्चिमी कोना भोजन या बैठक कक्ष के लिए उत्तम होता है।
7- सायं 9 से मध्य रात्रि के समय सूर्य घर के उत्तर-पश्चिम में होता है। यह स्थान शयन कक्ष के लिए भी उपयोगी है।
8- मध्य रात्रि से तड़के 3 बजे तक सूर्य घर के उत्तरी भाग में होता है। यह समय अत्यंत गोपनीय होता है यह दिशा व समय कीमती वस्तुओं या जेवरात आदि को रखने के लिए उत्तम है।
————————————————————————————
वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन में सबसे पहले दीवारों की ओर ध्यान देना चाहिए। दीवारें सीधी और एक आकृति वाली होनी चाहिए। कहीं से मोटी और कहीं से पतली दीवार होने पर अशुभ हो सकता है और गृह स्वामी अथवा गृह स्वामी का परिवार कष्ट में रह सकता है।
अपने-अपने घर से सभी को बेहद लगाव होता है। घर में हमें सुख-शांति, मान-सम्मान और धन-वैभव सहित सभी सुविधाएं प्राप्त होती हैं। किसी भी मकान को घर बनाने के लिए कई प्रयास करने होते हैं, मकान बनने के बाद उससे सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि सही मुहूर्त में गृह प्रवेश किया जाए।
आकाश, वायु, जल, पृथ्वी और अग्नि इन पाॅच तत्वों से मनुष्य ही नहीं समस्त चराचरों का निर्माण हुआ है। हर तत्व की प्रगति को गहनता से समझकर कोटि-कोटि वास्तु सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए। समाज में हर तबके के व्यक्ति के लिए मकान की लम्बाई, चैड़ाई, गहराई, ऊँचाई निकटवर्ती वनस्पति, पर्यावरण, देवस्थान, मिट्टी का रंग, गंध विभिन्न कई बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए सतत् अनुकरणीय सिद्धान्तों की रचनाएं की ताकि समाज में निम्न, मध्यम और उच्च सभी वर्गों के व्यक्ति स्वस्थ रहते हुए शतायु हो सके।
अतः जब भी आपका इरादा भवन निर्माण का हो, तो यह शुभ कार्य करने से पहले वास्तु शास्त्र के अनुसार, उसके सभी पहलुओं पर विचार करना उत्तम होता है। जैसे शिलान्यास के लिए मुहूर्त्त काल, स्थिति, लग्न, कोण आदि। उसके बाद मकान में निर्मित किए जाने वाले कक्षों की माप, आंगन, रसोई घर, बैडरूम, कॉमन रूम, गुसलखाना, बॉलकनी आदि की स्थिति पर वास्तु के अनुरूप विचार करके ही भवन निर्माण करना चाहिए।
जीवन के है बस तीन निशान रोटी, कपड़ा और मकान यानि की जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में मकान 33 प्रतिशत पर काबिज है। आदि मानव के सतत् सक्रिय मस्तिष्क की शाश्वत चिंतन प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप ही विभिन्न प्रकार के विषयों में उसका दैनिक अनुभव जन्य ज्ञान दिनोंदिन परिष्कृत परिमार्जित एवं नैसर्गिंक अभिवृद्धि करता हुआ चन्द्रकालाओं की भाॅति अब तक प्रतिक्षण प्रगतिशील रहा एवं रहेगा।
आजकल चूंकि लोगों के घर छोटे-छोटे होते हैं, पैसे और समय की कमी होती है, इसलिए लोगों के लिए अपने घर को वास्तु के हिसाब से बनवाना संभव नहीं होता।
जैसा घर मिला, उसकी में गुजारा करना पडता है। अपने घर के वास्तु दोष आप इस तरह ठीक कर सकती हैं-घर की दीवारों पर मल्टीकलर ना कराएं। खसकर लाल और काले रंग को कम से कम यूज में लाएं।
घर के बडों का कमरा अगर साउथ-वेस्ट में ना हो, तो वे अपना कमरा बदल लें। अगर ऎसा करना संभव ना हो, तो उन्हें अपना बेड इस दिशा में खिसका लेना चाहिए।
नए घर में प्रवेश से पहले वास्तु शांति अर्थात यज्ञादि धार्मिक कार्य अवश्य करवाने चाहिए। वास्तु शांति कराने से भवन की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है तभी घर शुभ प्रभाव देता है। जिससे जीवन में खुशी व सुख-समृद्धि आती है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार मंगलाचरण सहित वाद्य ध्वनि करते हुए कुलदेव की पूजा व वृद्धों का सम्मान करके व ब्राह्मणों को प्रसन्न करके गृह प्रवेश करना चाहिए।
गृह प्रवेश के पूर्व वास्तु शांति कराना शुभ होता है। इसके लिए शुभ नक्षत्र वार एवं तिथि इस प्रकार हैं-
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, व शुक्रवार शुभ हैं।
शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी।
शुभ नक्षत्र- अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, उत्ताफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति, अनुराधा एवं मघा।
अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं भद्रादि का विचार कर लेना चाहिए।
———————————————————————————-
वैवाहिक सुख के लिए विशेष वास्तु उपाय—-
किसी ने ठीक ही कहा है कि आपकी प्यारी भारी लाइफ कितनी सफल है इसका अंदाजा आपके बेडरूम को देखकर लगाया जा सकता है। आपकी खुशहाल लाइफ को ज्यादा रोमांचक बनाने में बेडरूम का अपनी ही जगह है।
बेडबेडरूम यानी आपका पर्सनल रूम सही मायनों में वो जगह है जहां पर पति-पत्नी अपना ज्यादातर वक्त एक-दूसरे के साथ बिताते हैं। बेडरूम ही उनके प्यार, दुलार, लडाई, झगडों जैसी खट्टी-मीठी यादों को सहेज कर रखता है।
बेडरूम के MIRROR में नहीं दिखना चाहिए पति-पत्नी के निजी काम, क्योंकि…
–शायद ही ऐसा कोई घर होगा जहां आइना या मिरर न हो लेकिन यदि मिरर बेडरूम में भी है तो कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। यदि पति-पत्नी मिरर के संबंध में लापरवाही बरतते हैं तो यह उनके वैवाहिक सुख के लिए अच्छा नहीं है।
—पति-पत्नी का जीवन सुखी और प्यारभरा हो इसलिए कई उपयोगी टिप्स बताई गई हैं। इन बातों को अपनाने से वैवाहिक जीवन में खुशियां और संपन्नता बनी रहती है। पति-पत्नी अपने बीच किसी तीसरे व्यक्ति को हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकते लेकिन कुछ लोगों को ऐसी परिस्थिति का भी सामना करना पड़ जाता है।
—-वास्तु के अनुसार ऐसी परिस्थिति उत्पन्न न हो इसके लिए एक महत्वपूर्ण टिप्स दी गई है। पति-पत्नी के रिश्तों पर बेडरूम की व्यवस्था का गहरा प्रभाव पड़ता है। बेडरूम की हर वस्तु दोनों के रिश्तों को प्रभावित करती है।
—–यदि पति-पत्नी के कमरे में कोई अशुभ प्रभाव देने वाली वस्तु रखी है तो इनके बीच तनाव उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है। किसी के भी बेडरूम में यदि कोई दर्पण लगा है और उस दर्पण में बेड या पलंग का प्रतिबिंब दिखता है तो यह रिश्तों में खटास पैदा कर सकता है।
—-वैवाहिक जीवन को सुखी बनाए रखने के लिए बेडरूम में सोते समय दर्पण को ढंककर रखना चाहिए। इसके अलावा बेडरूम में कहीं भी कोई शीशा अस्पष्ट या टूटा हुआ या चटका हुआ नहीं होना चाहिए। यह भी पति-पत्नी के रिश्तों में दरार पैदा कर सकता है।
—-बेड के सामने यदि कोई दर्पण हो तो पति-पत्नी को चाहिए कि रात को सोते समय उस शीशे को ढंक दें, उस पर कोई पर्दा डालकर रखें। वास्तु के अनुसार सोते समय दर्पण में पति-पत्नी का प्रतिबिंब दिखाई देने से उनके जीवन में कई प्रकार की परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं।
—-ऐसे दर्पण के प्रभाव से दोनों के बीच तनाव इतना बढ़ जाता है कि वे घर के बाहर शांति तलाशने लगते हैं और ऐसे में पति-पत्नी के बीच किसी अन्य व्यक्ति का प्रवेश होने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं।
—-जोड़े में मछलियां रखना भी बहुत अच्छा उपाय है। इससे ऐसी सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे पति-पत्नी में आकर्षण बढ़ता है और दांपत्य जीवन में सामंजस्य बना रहता है।
इस उपाय से तलाक जैसी सभी संभावनाएं समाप्त हो जात है। पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल बना रहता है। इसे भोजन करने वाली जगह पर रखना चाहिए।
—-वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की हर चीज का प्रभाव हमारी सोच-विचार पर पड़ता है। ऐसे में घर में वहीं वस्तुएं रखना चाहिए जिनसे घर के सदस्यों के विचार शुद्ध रहे और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हो।
टूटी-फूटी और बेकार तस्वीर या मूर्तियां नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है जिससे घर का वातावरण भी वैसा ही हो जाता है। सदस्यों का मन अशांत रहता है और घर में परेशानियां पैदा होती हैं। परिवार में क्लेश, पति-पत्नी के रिश्ते में तनाव भी उत्पन्न हो जाता है। साथ ही घर में धन के प्रवाह में रुकावट आती है।