आइये जाने वास्तु का प्रभाव—मकान मालकिन/गृहणी पर—
एक पुरानी कहावत है कि जहां नारियों का सम्मान होता है, वहां देवता निवास करते हैं। वैसे भी परिवार की धुरी का केंद्र “नारी” ही है। बिना गृहिणी के सुखद जीवन की कामना करना बेमानी है।
प्रत्येक व्यक्ति की ईच्छा होती है कि उसका भाग्य अच्छा हो और जीवन में अधिकसे अधिक सफलता प्राप्त हो, इसके लिए वो प्रयास भी करता है.
कर्म और धर्म का भीसहारा प्राप्त करने की कोशिश करता है, जीवन में बहुत बार उसे सफलता भी मिलती है.और कई बार असफलता का मुंह भी देखना पड़ता है.
भाग्य का मार्ग अधिकतर जॉब/ कैरियर के द्वारा ही खुलता है.यदि हमारा जॉब या व्यवसाय अच्छे परिणाम दे रहा है तो जीवन में किसी प्रकार की कोईभी समस्या नहीं होती है अगर कोई समस्या हो भी गयी तो शीघ्र दूर हो जाती है.
अच्छे भाग्य का तात्पर्य अच्छा धन, अच्छा स्वास्थ्य और अच्छा यश व् सम्मान यहीएक अच्छे भाग्य का स्वरुप होता है इसे ही प्राप्त करने के लिए मनुष्य जीवन में शुभऔर अशुभ कर्म करने को तत्पर रहता है. यदि किसी घर/मकान/आवास में निम्न दोष हें तो उस घर/मकान/आवास की महिलाएं/गृहणिया निम्न कारणों से बीमार/अस्वस्थ रह सकती हें अथवा आपेक्षित लाभ/सफलता नहीं प्राप्त कर सकेंगी..निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए—
यदि किचन का वास्तु सही न हो तो उसका विपरीत प्रभाव घर पर तो पड़ता ही है, साथ ही गृहस्वामिनी पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है, इसलिए किचन बनवाते समय किचन का वास्तु देखना और भी जरूरी हो जाता है। वास्तु के अनुसार किचन हमेशा आग्नेय कोण में होना चाहिए।
——वास्तु की दृष्टि से आपका किचन आग्नेय कोण में होना चाहिए। अगर ऐसा न भी हो तो किचन तटस्थ दिशा में बना हुआ होना चाहिए ताकि किचन के वास्तु से घर को व घरवालों को न कोई नुकसान हो और न ही कोई फायदा। अगर किचन आग्नेय कोण में नहींहैं और आप किचन का अधिक वास्तु लाभ चाहते हैं तो इसके लिए आप इस बात का ध्यान रखें कि खाना बनाते समय आपका मुंह पूर्व दिशा की ओर रहे। बर्तन धोने का सिंक उत्तर दिशा में हो। किचन के प्लेटफॉर्म के लिए काले के बजाय हरे रंग के मार्बल का इस्तेमाल करें।
—–यदि गृहिणी तनाव या मानसिक तौर पर दुखी रहती है, तो इसका एक कारण अग्नि कोण का दूषित होना हो सकता है। अर्थात भवन के अग्नि कोण में वास्तुदोष है।
इस कोण में दोष किस प्रकार के हो सकते हैं, इन्हें समझें——
—–आपके भवन का रसोईघर अग्नि कोण की जगह अन्यत्र तो बना हुआ नहीं है। यदि है तो गृहिणी तनाव में रहेगी।
—–नवदंपति का शयनकक्ष भी इस दिशा में नहीं हो।
—–अग्नि कोण में जल व्यवस्था या वाटर टैंक होना भी तनाव का कारण बन सकता है।
—–जल एवं अग्नि का स्थान पास-पास होना भी दोष उत्पन्न करता है।
—–चूल्हे के ऊपर बने रेक में जल व्यवस्था तो नहीं है।
—–अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए और अपने क़र्ज़ कोउतारने के लिए उत्तर दिशा में पीले फूलों का गुलदस्ता हमेशा रखें.
—–शास्त्र अनुसार भोजन बनाते समयआप जिस दिशा में खड़े हैं उसकी शक्ति को, पका हुआ भोजन अवश्य ग्रहण करेगा।
——ईधन का अधिक जलना या भोजन स्वादिष्ट नहीं बनना वास्तुदोष का सूचक है।
——पड़ोसियों से अनावश्यक विवाद, घर में कलह या पति-पत्नी के बीच तनाव वास्तुदोष का सूचक है।
—–पुत्र का हमेशा बीमार रहना या पढ़ाई में मन नहीं लगना घर में वास्तुदोष होने का सूचक है।
—–भोजन बनाते समय की आदर्श स्थिति यह है कि आपका मुंह पूर्व दिशा की ओर हो।
——अगर आपकामुंह दक्षिण की ओर है तो घर की महिलाओं को समस्याएं आ सकती हैं। और अगर दक्षिणपश्चिम की ओर मुंह है तो घर की सुख-शांति पूरी तरह से भंग हो जाएगी।
——पश्चिम की ओर मुंह करके भोजन पकाने से त्वचा व हड्डीसंबंधी रोग हो सकते हैं यदि उत्तर की ओर मुंह करके भोजन पकाया जाए तो आर्थिक हानिहोने का भय रहता है।
——अगर रसोई उत्तर-पश्चिम में तो भी बेहतर यही होगा कि खानाबनाते समय पूर्व की ओर मुंह करके खड़े हों।यदि आपकी रसोईउत्तर दिशा की ओर है तो मुट्ठीभर साबुत धनिया पीले कपड़े में बांधकर रसोई की उत्तरदिशा में रख दें. अपने भवन की दक्षिण- पश्चिम दिशा हमेशा भारी रखें.
—-वास्तु के अनुसार किचन में रखी वस्तुओं से परिवार में सुख-शांति व समृद्धि बढ़ती है।
—–किचन व बाथरूम का एक सीध में साथ-साथ होना शुभ नहीं होता है। ऐसे घर में रहने वालों को जीवनयापन करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
—–किचन में पूजा स्थान बनाना शुभ नहीं होता। जिस घर में किचन के अंदर ही पूजा का स्थान होता है, उसमें रहने वाले गरम दिमाग के होते हैं।
—–घर के मुख्य द्वार के ठीक सामने किचन नहीं बनाना चाहिए। मुख्य द्वार के एकदम सामने का किचन गृहस्वामी के भाई के लिए अशुभ होता है।
——-अपनी रसोई में हल्के चटक रंगों का प्रयोग अच्छी लाइटिंग के साथ करें। जैसे सफेद, क्रीम, हल्के पीले रंगो के साथ रसोई बड़ी लगेगी। अगर रसोई में खिड़की है तो दिन में उसे जरूर खोलें जिससे रसोई में प्राकृतिक रोशनी आ सके।
——बैठक के ठीक सामने किचन का होना अशुभ होता है। ऐसे में रिश्तेदारों के मध्य शत्रुता रहती है। बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाइयां आती हैं।
——यदि आपके ऑफिस का द्वार दक्षिण की ओर या दक्षिण – पश्चिम कीतरफ है तो द्वार पर एक चांदी या ताम्बे का स्वास्तिक स्थापित करें.
—–यदि आपके ऑफिस का मुख्य द्वार दक्षिण – पूर्व है तो चांदीका स्वास्तिक नौ उँगल लम्बाई और नौ उँगल चौड़ाई का द्वार पर स्थापित करें.
—-सफलता प्राप्त करने के लिए हमेशा दक्षिण- पश्चिम अर्थातनैॠत्य कोण में अपना बिस्तर लगाना चाहिए और शयन कक्ष में जूते-चप्पल आदि भूल कर भीनहीं रखें. इसके अलावा आर्थिक उन्नति प्राप्त करने के लिए बिस्तर में भोजन नहींकरना चाहिए.
—-यदि विदेश में सफलता प्राप्त करनी है या आयात – निर्यात सेसम्बंधित कार्य में सफलता प्राप्त करनी है तो अपने आर्यालय के मेज के वायव्य कोणमें एक शंख और एक ग्लोब रखें तथा ग्लोब को प्रतिदिन तीन से चार बार घुमाया जाए तोविदेशों से भी सहयोग प्राप्त होता है और लाभ मिलता है.
——-यदि आपकी उन्नति या वेतन वृद्धि या वार्षिक उन्नति(promotionor increment ) मिलने मेंदेरी हो रही है या किसी कारण वश नहीं मिल पा रही है, और आपके जूनियर आपसे आगे निकलरहे है तो यह अवश्य ध्यान दे
कि..आपका बिस्तर उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर नहीं होनाचाहिए, यदि उत्तर- पश्चिम अर्थात वायव्य कोण में आपका बिस्तर है तो आपको जीवन मेंउन्नति के मार्ग में अनावश्यक बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है.
सब कुछ होते हुए भी परिणाम आपके विरुद्ध जाएगा या विलंबता के साथ आपको प्राप्त होगा.
अगर ऐसा नहीं होता तो घर में आने वाली किसी भी परेशानी का कारण किचन के वास्तुदोष को ही मान लिया जाता है, जो उचित नहीं है। किचन का आग्नेय कोण में होना तो शुभ होता है पर इसके अलावा भी कुछ अन्य उपाय करके किचन के वास्तुदोष को खत्म किया जा सकता है।
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उत्तर की रसोई -गृहणी रोगिणी होई—–
रसोई घर किसी भी भवन का मुख्य अंग है.यही वह स्थान है जहाँ से सम्पूर्ण परिवार का स्वास्थ्य सञ्चालन होता है.यह रसोई पकाने वाले पर निर्भर करता है कि वह सदस्यों को स्वस्थ एवं जीवंत रखने लायक भोजन उपलब्ध कराये.परन्तु रसोई की मालकिन गृहणी का स्वास्थ्य रसोई की दिशा पर निर्भर करता है.वास्तु शास्त्र क़े अनुसार रसोई घर भवन की दक्षिण -पूर्व दिशा (S . E .) अर्थात आग्नेय कोण में स्थित होना चाहिए. ऐसे स्थान पर पकाया गया भोजन सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक होता है तथा गृहणी का स्वास्थ्य भी उत्तम रखता है.आग्नेय कोण दिशा का स्वामी शुक्र ग्रह होता है और शुक्र स्त्रियों का कारक ग्रह है.आजकल लोग वास्तु शास्त्र क़े अज्ञान से तथा अन्य कारणों से मन चाहे स्थानों पर रसोई निर्मित करा लेते हैं परिणाम स्वरूप गृहणी पर उसका दुष्प्रभाव भी पड़ सकता है.
उत्तर दिशा धन क़े देवता कुबेर की होती है.इस स्थान पर रसोई घर बनाने से धन का अपव्यय होता है.उत्तर दिशा पुरुष कारक वाली है अतः स्त्री का स्वास्थ्य क्षीण होता है.उत्तर दिशा की रसोई वाली गृहणियां अल्पायु में ही वीभत्स रोगों का शिकार हो जाती हैं.३० -३५ आयु वर्ग की गृहणियां गम्भीर ऑपरेशनों का सामना कर चुकी हैं. प्रौढ़ महिलाएं ,अल्सर /कैसर से पीड़ित हैं.जिन लोगों ने बाद में उत्तर दिशा में रसोई स्थानांतरित कर दी है उनमे से एक गृहिणी आये दिन अस्पताल क़े चक्कर काटने लगी है. एक साधन सम्पन्न परिवार की गृहिणी जिनके घर क़े ईशान कोण (N E ) में शौचालय क़े कारण पुरुष वर्ग प्रभावित था ही उत्तर में रसोई कर दिए जाने क़े बाद कमर व घुटनों क़े दर्द तथा मानसिक अवसाद से पीड़ित रहने लगी है.
सारांश यह कि उत्तर की रसोई न केवल गृहणी हेतु वरन सम्पूर्ण परिवार क़े लिए हानिदायक होती है.
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यदि उपरोक्त कारण घर में उत्पन्न हो रहे हों, तो वास्तुदोष निवारण द्वारा इनका समाधान किया जाना संभव है।
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पंडित दयानन्द शास्त्री
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