आइये जाने की नववर्ष विक्रम संवत् ..69 में क्या और केसा रहेगा आपका भविष्य…???
हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को मुस्लिम समाज का नया साल हिजरी शुरू होता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 22 मार्च 20.2 को रात 7.10 बजे विक्रम संवत् 2069 का प्रारंभ कन्या लग्न में होगा। इस वर्ष विश्वावसु नाम का संवत्सर रहेगा, जिसका स्वामी राहु है। इस वर्ष का राजा और मंत्री शुक्र है साथ ही दुर्गेश का पद भी शुक्र के ही पास है।
पंचांग (पंच + अंग = पांच अंग) हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित कालदर्शक को कहते हैं।पंचांग हिन्दुओं को काल अथवा समय के धार्मिक एवं आध्यात्मिक पक्षों के आधार पर कार्य आरम्भ करने की जानकारी देता है ।
चूंकि हमारा राजकीय कैलेंडर ईसवी सन् से चलता है इसलिये नयी पीढ़ी तथा बड़े शहरों पले बढ़े लोगों में बहुत कम लोगों यह याद रहता है कि भारतीय संस्कृति और और धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला विक्रम संवत् देश के प्रत्येक समाज में परंपरागत ढंग मनाया जाता है।
देश पर अंग्रेजों ने बहुत समय तक राज्य किया फिर उनका बाह्य रूप इतना गोरा था कि भारतीय समुदाय उस पर मोहित हो गया और शनैः शनैः उनकी संस्कृति, परिधान, खानपान तथा रहन सहन अपना लिया भले ही वह अपने देश के अनुकूल नहीं था।
अंग्र्रेज चले गये पर उनके मानसपुत्रों की कमी नहीं है। सच तो यह है कि अंग्रेज वह कौम है जिसको बिना मांगे ही दत्तक पुत्र मिल जाते हैं जो भारतीय माता पिता स्वयं उनको सौंपते हैं।
सच तो यह है कि विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति की याद दिलाता है और कम से कम इस बात की अनुभूति तो होती है कि भारतीय संस्कृति से जुड़े सारे समुदाय इसे एक साथ बिना प्रचार और नाटकीयता से परे होकर मनाते हैं।
दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है, यहाँ तक की ईस्वी सन बाला कैलेण्डर (जो आजकल प्रचलन में है) वो भी मार्च से प्रारम्भ होना था। इस कलेंडर को बनाने में कोई नयी खगोलीये गणना करने के बजाये सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत) में से ही उठा लिया गया था। आइये जाने क्या है इस कैलेण्डर का इतिहास:
दुनिया में सबसे पहले तारों, ग्रहों, नक्षत्रो आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था, तारों, ग्रहों, नक्षत्रो, चाँद, सूरज……आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) तैयार किया, इसके महत्व को उस समय सारी दुनिया ने समझा। लेकिन यह इतना अधिक व्यापक था कि – आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था, खासकर पश्चिम जगत के अल्पज्ञानी तो बिल्कुल भी नहीं।
किसी भी विशेष दिन, त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए विद्वान् (पंडित) के पास जाना पड़ता था। अलग अलग देशों के सम्राट और खगोलशास्त्री भी अपने अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे। इसके प्रचलन में आने के 57 वर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर (ईस्वी सन) विकसित हुआ। लेकिन उसमें कुछ भी नया खोजने के बजाए, भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था। पृथ्वी द्वारा .65/366 में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए।
पहला महीना मार्च (एकम्बर) से नया साल प्रारम्भ होना था।
1. – एकाम्बर ( 31 )
2. – दुयीआम्बर (30)
3. – तिरियाम्बर (31)
4. – चौथाम्बर (30)
5.- पंचाम्बर (31)
6.- षष्ठम्बर (30)
7. – सेप्तम्बर (31)
8.- ओक्टाम्बर (30)
9.- नबम्बर (31)
10.- दिसंबर ( 30 )
11.- ग्याराम्बर (31)
12.- बारम्बर (30 / 29 ), निर्धारित किया गया।
सेप्तम्बर में सप्त अर्थात सात, अक्तूबर में ओक्ट अर्थात आठ, नबम्बर में नव अर्थात नौ, दिसंबर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है लेकिन फिर सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त (षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर – जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया।
इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए। फिर वर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया। नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे।
जनवरी (31), फरबरी (30/29), मार्च (31), अप्रैल (30), मई (31), जून (30), जुलाई (31),
अगस्त (30), सितम्बर (31), अक्टूबर (30), नवम्बर (31), दिसंबर ( 30) माना गया।
फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि – उसके नाम वाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि – उसके नाम वाला महीना 31 दिन का होना चाहिए।
राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सेप्तम्बर (30), अक्तूबर (31), नबम्बर (30), दिसंबर ( 31) का कर दिया।
एक दिन को एडजस्ट करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके (28/29) कर दिया गया।
मेरा आप सभी हिन्दुस्थानियों से निवेदन है कि – नकली कैलेण्डर के अनुसार नए साल पर, फ़ालतू का हंगामा करने के बजाये , पूर्णरूप से वैज्ञानिक और भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) के अनुसार आने वाले नव वर्ष प्रतिपदा पर, समाज उपयोगी सेवाकार्य करते हुए नवबर्ष का स्वागत करें …..!!
हिंदू धर्म की तरह ही हर धर्म में नया साल मनाया जाता है। लेकिन इसका समय भिन्न-भिन्न होता है तथा तरीका भी। किसी धर्म में नाच-गाकर नए साल का स्वागत किया जाता है तो कहीं पूजा-पाठ व ईश्वर की आराधना कर। आप भी जानिए किस धर्म में नया साल कब मनाया जाता है-
हिंदू नव वर्ष—–
हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा (इस बार 23 मार्च) से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल का आरंभ भी होता है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादि आदि नामों से भारत के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता है।
इस्लामी नव वर्ष—–
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को मुसलमानों का नया साल हिजरी शुरू होता है। इस्लामी या हिजरी कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है, जो न सिर्फ मुस्लिम देशों में इस्तेमाल होता है बल्कि दुनियाभर के मुसलमान भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए इसी का इस्तेमाल करते हैं।
ईसाई नव वर्ष—–
ईसाई धर्मावलंबी 1 जनवरी को नव वर्ष मनाते हंै। करीब 4000 वर्ष पहले बेबीलोन में नया वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी । तब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। तब से आज तक ईसाई धर्म के लोग इसी दिन नया साल मनाते हैं। यह सबसे ज्यादा प्रचलित नव वर्ष है।
सिंधी नव वर्ष—-
सिंधी नव वर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरु होता है, जो चैत्र शुक्ल दिवतीया को मनाया जाता है। सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरुणदेव के अवतार थे।
सिक्ख नव वर्ष—-
पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होला मोहल्ला (होली के दूसरे दिन) नया साल होता है।
जैन नव वर्ष—-
ज़ैन नववर्ष दीपावली से अगले दिन होता है। भगवान महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन यह शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं।
पारसी नव वर्ष—-
पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव पारसी लोग मनाते हैं। लगभग 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने पारसी धर्म में नवरोज मनाने की शुरुआत की। नव अर्थात् नया और रोज यानि दिन।
हिब्रू नव वर्ष—-
हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे । इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है । यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है ।
क्यों मनाते हैं ‘गुड़ी पड़वा’..????
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या नववर्ष आरम्भ होता है| ‘गुड़ी’ का अर्थ होता है ‘विजय पताका’| कहा जाता है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों का निर्माण किया और उनकी एक सेना बनाकर उस पर पानी छिड़कर उनमें प्राण फूंक दिए| उसने इस सेना की सहायता से शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया| इसी विजय के प्रतीक के रूप में ‘शालिवाहन शक’ का प्रारंभ हुआ| महाराष्ट्र में यह पर्व ‘गुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है| कश्मीरी हिन्दुओं के लिए नववर्ष एक महत्वपूर्ण उत्सव की तरह है|
संस्कृति से जोड़ता है विक्रम संवत्-
गुलामी के बाद अंग्रेजों ने हम पर ऐसा रंग चढ़ाया ताकि हम अपने नववर्ष को भूल उनके रंग में रंग जाए| उन्ही की तरह एक जनवरी को ही नववर्ष मनाये और हुआ भी यही लेकिन अब देशवासियों को यह याद दिलाना होगा कि उन्हें अपना भारतीय नववर्ष विक्रमी संवत बनाना चाहिए, जो आगामी 23 मार्च को है|
वैसे अगर देखा जाये तो विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति से जोड़ता है| भारतीय संस्कृति से जुड़े सभी समुदाय विक्रम संवत् को एक साथ बिना प्रचार और नाटकीयता से परे होकर मनाते हैं और इसका अनुसरण करते हैं| दुनिया का लगभग हर कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतु से ही प्रारम्भ होता है| यही नहीं इस समय प्रचलित ईस्वी सन बाला कैलेण्डर को भी मार्च के महीने से ही प्रारंभ होना था| आपको बता दें कि इस कैलेण्डर को बनाने में कोई नयी खगोलीय गणना करने के बजाए सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत) में से ही उठा लिया गया था|
ये हें 12 महीनों के नाम-
ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी द्वारा 365/366 दिन में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मानकर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रखे गए हैं| हिंदी महीनों के 12 नाम हैं चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन|
इस साल में चातुर्मास पांच माह का—–
भारतीय मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी [देवशयनी] से कार्तिक शुक्ल एकादशी [देवप्रबोधिनी] तक चौमासा माना जाता है। आधा आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और आधा कार्तिक माह बारिश के माने जाते हैं। भाद्रपद दो होने से पूरा एक माह बारिश बढ़ेगा। देवशयनी एकादशी 30 जून 2012 को है और देवप्रबोधिनी एकादशी 24 नवम्बर 2012 को है।
जैन धर्मावलम्बियों के लिए वर्ष 2012 खुशखबर लेकर आया है। वर्ष 2012 में चातुर्मास (वर्षाकाल) पांच महीने का होगा। भाद्रपद दो होंगे यानी हिन्दी महीनों के अनुसार बारिश के समय में सीधे एक माह का इजाफा हो रहा है। विक्रम संवत् 2069 की भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा 18 अगस्त 2012 से अधिक [पुरूषोत्तम] मास शुरू होगा, जो भाद्रपद अमावस्या 16 सितम्बर 2012 तक रहेगा।
ज्यादा समय आराधना का ——
जैन परम्परा की मानें तो चातुर्मास के आयोजनों में एक माह का इजाफा होने से तप-आराधना का समय एक माह और मिलेगा। इससे अगले साल विभिन्न धार्मिक आयोजनों की अधिकता रहेगी।
यह है अधिक मास —–
शास्त्रों के अनुसार अधिक मास का निर्णय अमांत मास [एक अमावस्या के अंत से अग्रिम अमावस्या के अंत तक] आधार पर होता है। हर माह में अलग राशियों की संक्रांति आती है। जिस अमांत मास में किसी राशि की संक्रांति नहीं होती उस मास को अधिक माना जाता है। वर्ष 2012 में भाद्रपद में कन्या संक्रांति नहीं होने पर भाद्रपद अधिक हुआ है।
कैसे मनाएं हिन्दू नववर्ष..????
भारतीय इतिहास में जनप्रिय और न्यायप्रिय शासकों की जब भी बात चलेगी तो वह उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम के बगैर पूरी नहीं हो सकेगी। उनकी न्यायप्रियता के किस्से भारतीय परिवेश का हिस्सा बन चुके हैं। विक्रमादित्य का राज्य उत्तर में तक्षशिला जिसे वर्तमान में पेशावर (पाकिस्तान) के नाम से जाना जाता हैं, से लेकर नर्मदा नदी के तट तक था। उन्होंने यह राज्य मध्य एशिया से आये एक शक्तिशाली राजा को परास्त कर हासिल किया था। राजा विक्रमादित्य ने यह सफलता मालवा के निवासियों के साथ मिलकर गठित जनसमूह और सेना के बल पर हासिल की थी| विक्रमादित्य की इस विजय के बाद जब राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने प्रजा के तमाम ऋणों को माफ करने का ऐलान किया तथा नए भारतीय कैलेंडर को जारी किया, जिसे विक्रम संवत नाम दिया गया|
इतिहास के मुताबिक, अवन्ती (वर्तमान उज्जैन) के राजा विक्रमादित्य ने इसी तिथि से कालगणना के लिए ‘विक्रम संवत्’ का प्रारंभ किया था, जो आज भी हिंदू कालगणना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है| कहा जाता है कि विक्रम संवत्, विक्रमादित्य प्रथम के नाम पर प्रारंभ होता है जिसके राज्य में न तो कोई चोर हो और न ही कोई अपराधी या भिखारी था|
वहीँ, अगर ज्योतिष की माने तो प्रत्येक संवत् का एक विशेष नाम होता है| विभिन्न ग्रह इस संवत् के राजा, मंत्री और स्वामी होते हैं| इन ग्रहों का असर वर्ष भर दिखाई देता है| सिर्फ यही नहीं समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को ‘आर्य समाज’ स्थापना दिवस के रूप में चुना था|
नववर्ष की पूर्व संध्या पर दीप दान किया जाता है। घरों में शाम 7 बजे घंटा घडियाल व शंख बजा कर मंगल ध्वनि से नए साल का स्वागत किया जाएगा। इसके साथ ही शुरू होगा बधाई पत्रों, ई-मेल व एसएमएस के जरिए शुभकामनाएं भेजने का सिलसिला। नववर्ष के पहले दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर मंगलाचरण कर सूर्य देव को प्रणाम किया जाएगा और इसके बाद हवन करें तथा नए साल के लिए संकल्प लिया जाएगा। इसी दिन नवरात्रा घट स्थापना भी होगी। नवरात्रा के नौ दिन तक साधक देवी का ध्यान कर मंत्रों को सिद्ध करेंगे। इससे जीवन में श्रेष्ठ साधनों और अध्यात्म में नए सोपान प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। शास्त्रों में देवी को शक्ति का रूप माना गया है। जो साधक जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं वे नवरात्रा के नौ दिन उपवास कर देवी का ध्यान करें, इससे कई तरह की समस्याओं का समाधान होगा और विकास की गति तेज होगी।
हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 22 मार्च 2012 को रात 7.10 बजे विक्रम संवत् 2069 का प्रारंभ कन्या लग्न में होगा। इस वर्ष विश्वावसु नाम का संवत्सर रहेगा, जिसका स्वामी राहु है। विक्रमादित्य के समय इस कलेण्डर की शुरूआत हुई थी। इस कारण इसे विक्रम संवत कहा जाता है। यही भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार भी है। ऐसा माना जाता है कि यह सृष्टि रचना का पहला दिन है। इस वर्ष का राजा और मंत्री दोनों ही शुक्र है| 23 मार्च 2012 को इस धरा की 1955885113वीं वर्षगांठ है| इसी दिन ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की थी इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नए साल का आरम्भ मानते हैं| हिन्दू पंचांग का पहला महीना चैत्र होता है| यही नहीं शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी कि नवरात्रि स्थापना का पहला दिन भी यही है| ऐसी मान्यता है कि इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में आ जाते हैं और किसी भी नए काम को शुरू करने के लिए यह मुहूर्त शुभ होता है| आज से एक अरब 97 करोड़, 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना की थी। इसी तरह नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में राज्य स्थापित करने के लिए यही दिन चुना। महाभारत के अनुसार 5111 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ।
पश्चिमी कलेण्डर गणना पद्धति जहां सौर गणना पर आधारित है वहीं भारतीय गणना पद्धति मास यानी महीने की गणना चंद्रमा और वर्ष की गणना सूर्य के आधार पर करती है। इसके लिए ऋग्वेद में एक सूत्र है
‘वेदमासो घृतव्रतो द्वादश प्रजावत:। वेदा य उपजायते।’
इसका अर्थ है घृतव्रत अर्थात वरुण बारह महीनों और उनमें उत्पन होने वाले प्राणियों अर्थात अधिक मास को जानता है। यहां अधिक मास स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन इस वाक्य में अधिक मास निहित है। इसी ऋचा में स्पष्ट किया गया है कि सामान्य तौर पर वर्ष में बारह महीने होते हैं। चंद्रमा को गणना का आधार बनाने का एक कारण यह स्पष्ट होता है कि रात के समय नक्षत्रों से होकर तेज गति से गुजरता चंद्रमा दिखाई देता था, जबकि दिन में सूर्य की रोशनी में नक्षत्रों को देखने का तब कोई साधन नहीं रहा होगा। ऐसे में मास की गणना चंद्रमा के आधार पर की गई। इसके बहुत बाद में सौरमास का प्रचलन शुरू हुआ होगा।
संवत्सर के रूप को बताने वाली ऋचाएं वेदों में मिलती हैं।
‘द्वादश प्रघयश्चक्रमेकं त्रीणी नभ्यानि क उ तच्चिकेत।
तस्मिन्त्साकं त्रिशता न शंकवोSर्पिता: षष्टिर्न चलाचलास:।।’
इसका अर्थ है कि संवत्सर रूप एक चक्र है। बारह मास ही उसके बारह अरे हैं और 360 दिन उसके 360 कांटे हैं। रात और दिन जुड़े हुए हैं। इसी तरह मास के नाम भी स्पष्ट किए गए हैं। इनके नाम हैं मधु, माधव, शुक्र, शुचि, नभस्, नभस्य, इष, ऊर्ज, सहस्, सहस्य, तपस् तथा तपस्य । मधु और माधव महीने वसंत ऋतु के, शुक्र और शुचि महीने ग्रीष्म ऋतु के, नभस और नभस्य महीने वर्षा ऋतु के, इष और ऊर्ज महीने शरद ऋतु के, सहस और सहस्य महीने हेमंत ऋतु के तथा तपस और तपस्य महीने शिशिर ऋतु के हैं। इस तरह छह ऋतुओं का एक संवत्सर होता है।
जानिए वर्ष विक्रम संवत् 2069 के दौरान ग्रहों की स्थिति—-
विक्रम संवत् 2069 में शनि अधिकांश समय तुला राशि में ही व्यतीत करेगा। यह शनि की उच्च राशि है। हालांकि 16 मई को ही यह वक्र गति से घूमता हुआ कुछ समय के लिए कन्या राशि में लौटेगा। यहां शनि का ठहराव 4 अगस्त तक रहेगा और फिर से तुला राशि में लौट आएगा और पूरे संवत्सर वहीं रहेगा। वृहस्पति साल के शुरूआत में जहां मेष राशि में होगा वहीं 17 मई को यह अपनी राशि बदलकर वृष में चला जाएगा। मेष जहां मंगल के अधिकार की राशि है वहीं वृष शुक्र के अधिकार वाली राशि है। संवत्सर समाप्त होने तक गुरु इसी राशि में बना रहेगा। नववर्ष प्रवेश के समय राहू वृश्चिक और केतू वृष राशि में होंगे। हमेशा वक्री चलने वाले ये छाया ग्रह 6 दिसम्बर को राशि बदलेंगे। राहू तुला और केतू मेष राशि में आ जाएंगे। बड़े ग्रहों का राशि परिवर्तन संकेत देता है कि मई के बाद देश, समाज, व्यापार एवं अन्य क्षेत्रों में बड़े परिवर्तन दिखाई देंगे। सितम्बर में राजनीति में बड़ी उथल-पुथल के संकेत हैं।
विक्रम संवत् 2069 में होंगे दो सूर्य व एक चंद्र ग्रहण—-
विक्रम संवत् 2069 का प्रारंभ 23 मार्च, शुक्रवार से हो रहा है। ज्योतिष के अनुसार इस संवत् में दो सूर्य व एक चंद्रग्रहण होगा। इनमें से सिर्फ एक सूर्यग्रहण ही भारत में दिखाई देगा शेष दो भारत में दिखाई नहीं देने से इनका विशेष महत्व नहीं रहेगा। मुख्य बात यह रहेगी कि प्रथम दो ग्रहण पंद्रह दिन के अंतराल में होंगे। जानिए संवत् 2069 में कब-कब होंगे ग्रहण-
कंकड़ाकृति सूर्यग्रहण—–
साल का पहला कंकड़ाकृति सूर्यग्रहण ज्येष्ठ मास की अमावस्या (20 मई, रविवार) को होगा। यह ग्रहण कृत्तिका नक्षत्र, वृष राशि में होगा, जो भारत के केवल पूर्वी भाग में खण्डग्रास रूप में दिखाई देगा। ग्रहण का मोक्ष दूसरे दिन यानी 21 मई, सोमवार को सुबह 4 बजकर 51 मिनिट पर होगा।
खण्डग्रास चंद्रग्रहण—-
संवत् 2069 के ज्येष्ठ मास में दूसरा ग्रहण भी होगा। ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा (4 जून, सोमवार) को खण्डग्रास चंद्रग्रहण होगा, यह भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए धार्मिक दृष्टि से भारत में इसकी कोई मान्यता नहीं रहेगी। यह ग्रहण ज्येष्ठा नक्षत्र, वृश्चिक राशि में होगा। एशिया, ऑस्टे्रलिया, उत्तर और दक्षिण अमेरिका, पेसिफिक महासागर में यह ग्रहण दिखाई देगा।
खग्रास सूर्यग्रहण —-
साल का तीसरा और अंतिम खग्रास सूर्यग्रहण कार्तिक मास की अमावस्या (13/14 नवंबर, मंगलवार) को होगा। यह ग्रहण भी भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए धार्मिक दृष्टि से भारत में इसका कोई महत्व नहीं रहेगा। यह ग्रहण विशाखा नक्षत्र तुला राशि में होगा। यह ग्रहण दक्षिण अमेरिका, न्यूजीलैंड, ऐन्टार्कटिका, पेसिफिक महासागर और ऑस्ट्रेलिया में दिखाई देगा।
व्यापर/बिजनेस के लिए उथल-पुथल वाला रहेगा विक्रम संवत् 2069 ——
हिंदू नव वर्ष यानी विक्रम संवत् 2069 का प्रारंभ इस बार 23 मार्च से हो रहा है। सितारे कहते हैं कि व्यापार की दृष्टि से यह वर्ष काफी उथल-पुथल वाला रहेगा। सबसे अधिक उतार-चढ़ाव शेयर बाजार में देखने को मिलेगी। इस साल राहु, शनि और मंगल व्यापार पर पूरा-पूरा असर डालेंगे। व्यापार में तेजी-मंदी का दौर साल के अंत तक जारी रहेगा। जानिए कैसा रहेगा व्यापार के लिए संवत् 2069-
विक्रम संवत् 2069 में पूरे वर्ष राहु मंगल के घर वृश्चिक राशि में भ्रमण करेगा जिसके कारण सोना-चांदी, लोहा के बाजार में उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा। शनि राहु का द्विद्वादश योग विश्व बाजार में उतार-चढ़ाव का कारण रहेगा। औद्योगिक क्षेत्रों में थोड़ी मंदी रहेगी लेकिन तेल, खाद्य पदार्थ, कोयला, बिजली, रसोई गैस व धातु के भावों में वृद्धि होने के योग हैं। मनोरंजन एवं कॉस्मेटिक्स व्यापार में मंदी आएगी। तुला राशि में शनि के जाने से अनाज की कमी होगी जिसके कारण दाम में अचानक वृद्धि होगी।
शेयर बाजार—
शनि-गुरु आमने-सामने (प्रतियोग) सम सप्तम योग बना रह हैं जिससे शेयर बाजार थोड़े घटकर बढ़ेंगे। मार्च के बाद व्यापार थोड़ा सोच-समझकर करें। अप्रैल में उतार-चढ़ाव जारी रहेगा। जून में बड़ा फेरबदल होने की संभावना है। अक्टूबर-नवंबर में शेयर बाजार में अचानक गिरावट दर्ज की जाएगी जो बड़ी नुकसानदायक साबित होगी।
केसा रहेगा नववर्ष विक्रम संवत् 2069 का सभी राशियों पर प्रभाव…????
‘विक्रम संवत 2069 सभी जातकों के लिए फायदेमंद साबित होगा। शुक्र ग्रह के प्रभाव के कारण यह वर्ष विशेष फलदायक भी साबित होगा।’
मेष : राजनीति और व्यापार में रुतबा बढ़ेगा। मेष राशि के जातकों के लिए इस वर्ष स्थायीत्व में कमी आ सकती है लेकिन अप्रेल और मई जहां शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अपेक्षाकृत उत्तम हैं वहीं साल के अंत तक वित्तीय स्थिति में सुधार होने की गुंजाइश है।
वृष :साहित्य, संगीत और नौकरीपेशा के लिए फलदायक रहेगा। वृष राशि के जातकों के लिए हालांकि वर्ष की शुरूआत इतनी अच्छी नहीं है, लेकिन मई से 4 अगस्त तक स्थितियां फिर से कुछ बेहतर होंगी। वर्ष के अंत में चिंताएं बढ़ सकती हैं।
मिथुन: साल के उत्तरार्द्ध तक वक्त मुश्किल भरा होगा। जून के बाद बाहरी संबंधों से भी लाभ मिल सकता है। बीमारियों का निदान अथवा समाधान दिसम्बर के बाद पुख्ता होने की संभावना है। स्वास्थ्य का ध्यान रखे जाने की जरूरत है।
कर्क: रुके हुए काम बनेंगे। प्रेम संबंध में प्रगाढ़ता आएगी। इस वर्ष आय के स्रोत अपेक्षाकृत कम लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं। कर्क राशि के जातकों के परिवार में मांगलिक कार्य होंगे। वर्ष के अंत तक छोटी के योग बन रहे हैं।
सिंह : वर्ष के पूर्वाद्ध में नया काम करने से बचें। सिंह राशि वाले जातकों के लिए स्थावर संपत्तियां बनाने के लिए यह वर्ष उपयोगी सिद्ध हो सकता है। वर्ष की शुरूआत छोटी यात्राओं के साथ हो सकती है, लेकिन साल के अंत तक यात्राओं का दौर कम होगा।
कन्या : दोस्तों का सहयोग मिलेगा, व्यवसाय में परेशानी होगी। साल के अंत तक कई अटके हुए काम निकलने शुरू होंगे। कन्या राशि के जातकों को दिसम्बर में केतू के राशि परिवर्तन के बाद परिस्थितियों में अपेक्षाकृत तेज सुधार दिखाई देगा।
तुला: कारोबार और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। शनि के तुला राशि में प्रवेश के साथ ही समय में अपेक्षाकृत सुधार दिखाई देना शुरू हो चुका होगा। मई से अगस्त के बीच का समय कुछ कठिन होगा, लेकिन इसके बाद फिर से काम बनने शुरू हो जाएंगे।
वृश्चिक: अपने मन की सुनें। विद्यार्थियों के लिए अनुकूल समय। रोगों के प्रति सावधान रहें। वृश्चिक राशि के जातकों के दिमाग में एक के बाद दूसरा फितूर हावी रह सकता है। भैरव उपासना से लाभ होगा। जीवन साथी के प्रति संबंधों को गंभीरता से लें।
धनु: नौकरीपेशा और व्यापारी वर्ग के लिए विशेष फलदायक। लाभ के कई अवसर बनेंगे। धनु राशि वाले जातक उन्हें भुनाने का प्रयास करें। साल की शुरूआत की तुलना में साल के आखिरी महीने अधिक लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। उत्पादन से जुड़े लोग अधिक लाभ में रहेंगे।
मकर: पुराने कर्जों से मुक्ति, मुकदमों से परेशानी संभव। कार्यक्षेत्र में प्रगति के अवसर मिलेंगे। मकर राशि के जातकों के पिता एवं बॉस के साथ संबंध सुधरेंगे। कार्य अथवा व्यापार में साख एवं प्रसिद्धि में बढ़ोतरी होने की गुंजाइश है।
कुंभ: शुरुआत में कड़ी मेहनत की जरूरत, अंत तक बेहतर होगी स्थिति। इस राशि के जातकों के लिए मांगलिक कार्यों अथवा आमोद-प्रमोद के लिए यात्राओं का सिलसिला चल सकता है। इस साल नए कार्य शुरू करने पर भाग्य भी साथ देगा। माता के स्वास्थ्य के प्रति गंभीर रहें।
मीन : मानसिक अशांति का समय, प्रेमभाव से मिलेगा लाभ। अब तक आई जड़ता इस साल खत्म हो सकती है। मीन राशि के जातकों के लिए कुछ यात्राएं करना लाभदायक सिद्ध होगा। कुछ आकस्मिक लाभ भी प्राप्त हो सकते हैं।