शनि अमावस्या का दुर्लभ योग .4 दिसंबर,2..1 को–(57 वर्ष बाद अपने नक्षत्र में शनि मानेगी अमावस्या)
शनि अमावस्या शुभ हो—-
शनिश्चरी अमावस्या को न्याय के देवता शनिदेव सभी को अभय प्रदान करते हैं। ऐसा शास्त्रों में उल्लेख किया गया है। सनातन संस्कृति में अमावस्या का विशेष महत्व है और अमावस्या अगर शनिवार के दिन पड़े तो इसका मतलब सोने पर सुहागा से कम नहीं। ज्योतिष के अनुसार, जिन जातक की जन्म कुंडली या राशियों पर शनि की साढ़ेसाती व ढैया का प्रभाव है वे इसकी शांति व अच्छे फल प्राप्त करने के लिए 24 दिसंबर को पड़ने वाली शनिश्चरी अमावस्या पर शनिदेव का विधिवत पूजन कर पर्याप्त लाभ उठा सकते हैं।
शनिवार को पडने वाली अमावस्या को शनैश्चरी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन मनुष्य विशेष अनुष्ठानों से पितृदोष और कालसर्प दोष से मुक्ति पा सकता है। इसके अलावा शनि का पूजन और तैलाभिषेक कर शनि की साढेसाती, ढैय्या और महादशा जनित संकट और आपदाओं से भी मुक्ति पाई जा सकती है, इसलिए शनैश्चरी अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध जरूर करना चाहिए। यदि पितरों का प्रकोप न हो तो भी इस दिन किया गया श्राद्ध आने वाले समय में मनुष्य को हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है, क्योंकि शनिदेव की अनुकंपा से पितरों का उद्धार बडी सहजता से हो जाता है।
इस बार 57 साल बाद अपने नक्षत्र केतु और अपनी उच्च राशि तुला में शनिवार के दिन 24 दिसंबर को शनि अमावस्या आ रही हैं। शनि अमावस्या में शनिदेव की पूजा करने से कालसर्प, पितृदोष, साढ़ेसाती एवं शनि की ढैया वाले जातकों को विशेष राहत मिलती है। मलमास और अपने क्रोधी नामक संवत्सर में आने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता हैं। 24 दिसम्बर को सुबह सूर्योदय से शनि अमावस्या प्रारंभ होगी, जो रात्रि 11.40 बजे तक रहेगी।ज्योतिषाचार्य पं. दयानंद शास्त्री के अनुसार इससे पूर्व वर्ष 1954 में ऐसा हुआ था, जब अपने नक्षत्र और उच्च राशि तुला में शनि अमावस्या आई हो। इस बार मूल नक्षत्र केतु का काल 24 दिसंबर को सुबह 9.19 बजे ज्येष्ठा नक्षत्र का उपरांत प्रारंभ होगा।
शनिदेव को परमपिता परमात्मा के जगदाधार स्वरूप कच्छप का ग्रहावतार और कूर्मावतार भी कहा गया है। वह महर्षि कश्यप के पुत्र सूर्यदेव की संतान हैं। उनकी माता का नाम छाया है। इनके भाई मनु सावर्णि, यमराज, अश्वनी कुमार और बहन का नाम यमुना और भद्रा है। उनके गुरु शिवजी हैं और उनके मित्र हैं काल भैरव, हनुमान जी, बुध और राहु। ग्रहों के मुख्य नियंत्रक हैं शनि। उन्हें ग्रहों के न्यायाधीश मंडल का प्रधान न्यायाधीश कहा जाता है। शनिदेव के निर्णय के अनुसार ही सभी ग्रह मनुष्य को शुभ और अशुभ फल प्रदान करते हैं। न्यायाधीश होने के नाते शनिदेव किसी को भी अपनी झोली से कुछ नहीं देते। वह तो शुभ-अशुभ कर्मो के आधार पर मनुष्य को समय-समय पर वैसा ही फल देते हैं जैसे उन्होंने कर्म किया होता है।
क्रूर नहीं कल्याणकारी हैं शनि—-
लोग शनिदेव को क्रूर, क्रोधी, कष्टदायक और अमंगलकारी देवता समझते हैं शनि की साढेसाती, ढैय्या और महादशा और अंतरदशा होने पर लोग शनिदेव की शरण में आते हैं जबकि हकीकत यह है कि शनि मंगलकारी हैं। वह दुखदायक नहीं, सुखदायक हैं। शनि अशांति नहीं देते, शांति देते हैं। शनि भाग्यविधाता हैं, कर्म के दाता हैं, शनि मोक्ष के दाता हैं। शनि एक न्यायप्रिय ग्रह हैं। शनिदेव अपने भक्तों को भय से मुक्ति दिलाते हैं।
धन-वैभव, मान-समान और ज्ञान आदि की प्राप्ति देवों और ऋषियों की अनुकंपा से होती है जबकि आरोग्य लाभ, पुष्टि और वंश वृद्धि के लिए पितरों का अनुग्रह जरूरी है। देवों और ऋषियों से संबंधित जप-तप और यज्ञ से मनुष्य को वही चीजें हासिल हो सकती हैं जिन्हें प्रदान करना उनके अधिकार में है, किंतु जिस व्यक्ति पर पितृकोप होता है वह देवों या ऋषियों को प्रसन्न करने से दूर नहीं होता। उसके लिए पितृकोप शांत करने वाले अनुष्ठान जरूरी होते हैं। ऐसे में शनि अमावस्या पर की गई पूजा और अनुष्ठान से पितर खुश होते हैं और लोगों को पितृकोप से निजात मिलती है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को सदा तत्पर रहना चाहिए क्योंकि पितरों के आशीर्वाद से ही सांसारिक अभ्युदय और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। पितृदोष या कालसर्पदोष ग्रस्त, असाध्य रोगों से पीडित, संतानहीन मनुष्य को शनि अमावस्या पर पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस दिन मनुष्य को सरसों का तेल, उडद, काला तिल, देसी चना, कुलथी, गुड शनियंत्र और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री अपने ऊपर वार कर शनिदेव के चरणों में चढाकर शनिदेव का तैलाभिषेक करना चाहिए।
—-श्याम रंग के शनिदेव —-: शनिदेव का रंग श्यामवर्ण है और अमावस्या की रात्रि भी काली होती है। दोनों के ही गुणधर्म एक समान हैं। इसलिए शनिदेव को अमावस्या अधिक प्रिय है। पूर्व से ही अमावस्या पर शनिदेव का पूजन शास्त्री, आचार्य, तांत्रिक विशेष रूप से करते हैं।
—-शनि की कृपा का पात्र बनें —: शनि की कृपा का पात्र बनने के लिए शनिश्चरी अमावस्या को सभी जातकगण विधिवत आराधना करें। भविष्यपुराण के अनुसार शनिश्चरी अमावस्या शनिदेव को अधिक प्रिय रहती है। 24 दिसंबर को शनिवार के दिन शनिश्चरी अमावस्या का योग बन रहा है।
क्यों बना यह संयोग —: पंचागों के अनुसार वर्तमान में क्रोधी नाम का संवत्सर चल रहा है। इसके स्वामी शनिदेव हैं।. वर्ष पूर्व 2008 में मलमास में शनि अमावस्या आई थी। अगले वर्ष 2012 में एक बार अप्रैल में शनि अमावस्या आएगी।
आइये जानिए इस शनि अमावस्या का प्रभाव और क्या करें उपाय अपनी राशी अनुसार इस दुर्लभ शनि अमवस्या पर—-
आपकी राशि- प्रभाव – उपचार
मेष – दुर्घटना, यश हानि – शनि का तेलाभिषेक
वृष – आकस्मिक लाभ – लोहे की वस्तुदान
मिथुन – रोग व शत्रु पीड़ा – उड़द की वस्तुदान
कर्क – कर्ज से मुक्ति – शनि का तेलाभिषेक
सिंह – पारिवारिक कलह – बंदरों को गुड़ एवं चने
कन्या – धनलाभ, विदेशयात्रा – लोहे की वस्तुदान
तुला – मान-सम्मान में वृद्धि – उड़द की वस्तुदान
वृश्चिक – मानसिक क्लेश – लोहा एवं तेलदान
धनु – स्थान परिवर्तन, विदेश यात्रा- काले वस्त्रदान
मकर – आर्थिक लाभ, समृद्धि – शनि यंत्र की पूजन
कुंभ – राज पद की प्राप्ति – पानी में कोयला प्रवाह
मीन – कार्य सिद्धि – तेल, तिल व गुड़ का दान
शनि अमावस्या है तो क्यों न शनिदेव से अपने बुरे कर्मों के लिए माफ़ी मांग लें —
नाराज रुष्ट सनिदेव को मानाने/प्रसन्न करने के उपाय-टोटके—इस अवसर पर विशेष प्रयोग कर आप शनिदेव को प्रसन्न कर सकते हैं। कुछ विशेष पेड़-पौधों की जड़ों व माला धारण करने से शनि का बुरा प्रभाव कम होता है। नीचे ऐसे ही कुछ पेड़-पौधों की जानकारी दी गई है। इन उपायों को करने से आपके जीवन से शनि संबंधी परेशानियां कम हो जाएंगी—
—-शनिमंत्र व स्तोत्र सर्वबाधा निवारक वैदिक गायत्री मंत्र—- ‘ॐ भगभवाय विद्महे मृत्युरुपायधीमहि, तन्नो शनि: प्रचोदयात्।’
—-प्रतिदिन श्रध्दानुसार शनि गायत्री का जाप करने से घरमें सदैव मंगलमय वातावरण बना रहता है।
—-वैदिक शनि मंत्र —-ॐ शन्नोदेवीरमिष्टय आपोभवन्तु पीतये शंय्योरभिस्रवन्तुन:।
—-शनिदेव को प्रसन्न करने का सबसे पवित्र औरअनुकूल मंत्र है इसकी दो माला सुबह शाम करने से शनिदेव की भक्ति व प्रीति मिलती है।’पौराणिक’ शनि मंत्र –ॐ ह्रीं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतंतं नमामि शनैश्चरम्॥
—यह बहुत ही सटीक फल देने वाला शनि मंत्र है। इसका यदि सवाकराड़ जाप स्वयं करे या विद्वान साधकों से करवाएं तो जातक राजा के समान सुख प्राप्तकरता है।
—-शनि ग्रह पीड़ा निवारण मंत्र सूर्यपुत्रे दीर्घ देहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:। मंदचार:प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु में शनि:॥
—-सूर्योदय के समय, सूर्य दर्शन करते हुए इस मंत्र का पाठकरना शनि शांति में विशेष उपयोगी होता है।कष्ट निवारण शनि मंत्र —-नीलाम्बर: शूलधर: किरीटी गृघ्रस्थितस्त्रसकरो धनुष्मान्।चर्तुभुज: सूर्यसुत: प्रशान्त: सदाऽस्तुं मह्यं वरंदोऽल्पगामी॥
—-इस मंत्र से अनावश्यकसमस्याओं से छुटकारा मिलता है। प्रतिदिन एक माला सुबह शाम करने से शत्रु चाह करभी नुकसान नहीं पहुंचा पायेगा।
—–सुख-समृध्दि दायक शनि मंत्र —कोणस्थ:पिंगलो वभ्रु:कृष्णौ रौद्रान्त को यम:। सौरि: शनैश्चरौ मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:॥
—-इस शनि स्तुति कोप्रात:काल पाठ करने से शनिजनित कष्ट नहीं व्यापते और सारा दिन सुख पूर्वक बीतताहै।शनि पत्नी नाम स्तुति —ॐ शं शनैश्चराय नम: ध्वजनि धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया।कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा॥ ॐ शं शनैश्चराय नम:
यह बहुत ही अद्भुत औररहस्यमय स्तुति है यदि आपको कारोबारी, पारिवारिक या शारीरिक समस्या हो।इस मंत्रका विधिविधान से जाप और अनुष्ठान किया जाये तो कष्ट आपसे कोसों दूर रहेंगे। यदिआप अनुष्ठान न कर सकें तो प्रतिदिन इस मंत्र की एक माला अवश्य करें घर में सुख-शांतिका वातावरण रहेगा।
—–ॐ शं शनैश्चराय नम:
– लाल चंदन की माला को अभिमंत्रित कर पहनने से शनि के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं।
– शमी वृक्ष की जड़ को विधि-विधान पूर्वक घर लेकर आएं। शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में किसी योग्य विद्वान से अभिमंत्रित करवा कर काले धागे में बांधकर गले या बाजू में धारण करें। शनिदेव प्रसन्न होंगे तथा शनि के कारण जितनी भी समस्याएं हैं उनका निदान होगा।
– काले धागे में बिच्छू घास की जड़ को अभिमंत्रित करवा कर शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में धारण करने से भी शनि संबंधी सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
– पीपल के पेड़ पर प्रतिदिन जल चढ़ाने और दीपक लगाने से भी शनिदेव प्रसन्न हो जाते हैं।