आइये जाने हृदय रोग के ज्योतिषीय कारण एवं उपचार——
कुंडली में षठा (६) घर रोग का स्थान है!अष्टम घर मृत्यु का और बाहरवा .. घर वयय खर्चे का स्थान है!जो ग्रह कुंडली के ६ भाव वे भाव में हो!अष्टम भाव में हो!बाहरवे भाव में हो छटेघर के मालिक से जो ग्रह छटे घर के मालिक के साथ हो! दूसरे घर के मालिक और सप्तम घर को मारक स्थान कहते है!
सूर्य हृदय का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका भाव पंचम है। जब पंचम भाव, पंचमेश तथा सिंह राशि पाप प्रभाव में हो तो हार्ट अटैक की सम्भावना बढ़ जाती है। सूर्य पर राहु या केतु में से किसी एक ग्रह का पाप प्रभाव होना भी आवश्यक है। जीवन में घटने वाली घटनाएं अचानक ही घटती हैं जोकि राहु या केतु के प्रभाव से ही घटती हैं। हार्ट अटैक भी अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के आता है, इसीलिए राहु या केतु का प्रभाव आवश्यक है।
—–यदि षष्ठेश केतु के साथ हो तथा गुरु, सूर्य, बुध, शुक्र अष्टम भाव में हों, चतुर्थ भाव में केतु हो तो हृदय रोग होता है।
—–चतुर्थेश लग्नेश, दशमेश व व्ययेश के साथ आठवें हो और अष्टमेश वक्री होकर तृतीयेश बनकर तृतीय भाव में हो व एकादश भाव का स्वामी लग्न में हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
—-षष्ठेश की अष्टम भाव में स्थित गुरु, सूर्य, बुध, शुक्र पर दृष्टि हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।
—-शनि दसवीं दृष्टि से मंगल को पीड़ित करे, बारहवें भाव में राहु तथा छठे भाव में केतु हो, चतुर्थेश व लग्नेश अष्टम भाव में व्ययेश के साथ युत हो तो भी हृदय रोग होता है।
—-सर्वविदित है की चौथा भाव और दसवां भाव हृदय कारक अंगों के प्रतीक हैं। चतुर्थ भाव का कारक चन्द्र भी आरोग्यकारक है। दशम भाव के कारक ग्रह सूर्य, बुध, गुरु व शनि हैं। पाचंवा भाव छाती, पेट, लीवर, किडनी व आंतों का है, ये अंग दूषित हों तो भी हृदय हो हानि होती है। यह भाव बुद्धि अर्थात् विचार का भी है। गलत विचारों से भी रोग वृद्धि होती है।
रोग के प्रकार के लिए पहले, छठे और बारहवें भाव को भी अच्छी तरह देखना चाहिए।
—–छठे भाव का कारक मंगल व शनि हैं। मंगल रक्त का कारक और शनि वायु का कारक है। ये भी रोग कारक हैं। आठवां भाव रोग और रोगी की आयु का सूचक है। आठवें का कारक शनि है। विचार करते समय भाव व उनके कारकों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
—-सूर्य, चन्द्र, मंगल, शनि, राहु व केतु ग्रह का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि ये सभी रोग हो प्रभावित करते हैं या बढ़ाते हैं।
—–जन्म नक्षत्रा मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी हों तो हृदय रोग अत्यन्त पीड़ादायक होता है।
—–मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुम्भ, मीन राशियां जिन जातकों की हैं, उनका यदि मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, कुम्भ या मीन लग्न हो तो उनको हृदय रोग अधिक होता है।
—-भरणी, कृत्तिका, ज्येष्ठा, विशाखा, आर्द्रा, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रा हृदय रोग कारक हैं।
—–एकादशी, द्वादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा एवं अमावस्या दोनों पक्षों की हृदय रोग कारक हैं। जिन जातकों का जन्म शुक्ल में हो तो उन्हें कृष्ण पक्ष की उक्त तिथियां एवं जिनका जन्म कृष्ण पक्ष में हो तो उन्हें शुक्ल पक्ष की उक्त तिथियों में यह रोग होता है।
—-अंग्रेजी/आंग्ल तिथियों में १,१०,१९,२८,१३,२२,४,९,१८ व २७ में ये रोग होता है।
हृदय रोग होगा या नहीं यह जानने के लिए कुछ ज्योतिष योगों की चर्चा करेंगे। इन योगों के आधार पर आप किसी की कुण्डली देखकर यह जान सकेंगे कि जातक को यह रोग होगा या नहीं। प्रमुख हृदय रोग संबंधी ज्योतिष योग इस प्रकार हैं-
— सूर्य-शनि की युति त्रिाक भाव में हो या बारहवें भाव में हो तो यह रोग होता है।
—- अशुभ चन्द्र चौथे भाव में हो एवं एक से अधिक पापग्रहों की युति एक भाव में हो।
—- केतु-मंगल की युति चौथे भाव में हो।
—- अशुभ चन्द्रमा शत्रु राशि में या दो पापग्रहों के साथ चतुर्थ भाव में स्थित हो तो हृदय रोग होता है।
—- सिंह लग्न में सूर्य पापग्रह से पीड़ित हो।
— मंगल-शनि-गुरु की युति चौथे भाव में हो।
— सूर्य की राहु या केतु के साथ युति हो या उस पर इनकी दृष्टि पड़ती हो।
— शनि व गुरु त्रिक भाव अर्थात् ६, ८, १२ के स्वामी होकर चौथे भाव में स्थित हों।
— राहु-मंगल की युति १, ४, ७ या दसवें भाव में हो।
—- निर्बल गुरु षष्ठेश या मंगल से दृष्ट हो।
— बुध पहले भाव में एवं सूर्य व शनि षष्ठेश या पापग्रहों से दृष्ट हों।
— यदि सूर्य, चन्द्र व मंगल शत्रुक्षेत्री हों तो हृदय रोग होता है।
—- चौथे भाव में राहु या केतु स्थित हो तथा लग्नेश पापग्रहों से युत या दृष्ट हो तो हृदय पीड़ा होती है।
—- शनि या गुरु छठे भाव के स्वामी होकर चौथे भाव में स्थित हों व पापग्रहों से युत या दृष्ट हो तो हृदय कम्पन का रोग होता है।
—-लग्नेश चौथे हो या नीच राशि में हो या मंगल चौथे भाव में पापग्रह से दृष्ट हो या शनि चौथे भाव में पापग्रहों से दृष्ट हो तो हृदय रोग होता है।
—- चतुर्थ भाव में मंगल हो और उस पर पापग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो रक्त के थक्कों के कारण हृदय की गति प्रभावित होती है जिस कारण हृदय रोग होता है।
— पंचमेश षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश से युत हो अथवा पंचमेश छठे, आठवें या बारहवें में स्थित हो तो हृदय रोग होता है।
— पंचमेश नीच का होकर शत्रुक्षेत्री हो या अस्त हो तो हृदय रोग होता है।
— पंचमेश छठे भाव में, आठवें भाव में या बारहवें भाव में हो और पापग्रहों से दृष्ट हो तो हृदय रोग होता है।
—- सूर्य पाप प्रभाव में हो तथा कर्क व सिंह राशि, चौथा भाव, पंचम भाव एवं उसका स्वामी पाप प्रभाव में हो अथवा एकादश, नवम एवं दशम भाव व इनके स्वामी पाप प्रभाव में हों तो हृदय रोग होता है।
— मेष या वृष राशि का लग्न हो, दशम भाव में शनि स्थित हो या दशम व लग्न भाव पर शनि की दृष्टि हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।
—- लग्न में शनि स्थित हो एवं दशम भाव का कारक सूर्य शनि से दृष्ट हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।
—नीच बुध के साथ निर्बल सूर्य चतुर्थ भाव में युति करे, धनेश शनि लग्न में हो और सातवें भाव में मंगल स्थित हो, अष्टमेश तीसरे भाव में हो तथा लग्नेश गुरु-शुक्र के साथ होकर राहु से पीड़ित हो एवं षष्ठेश राहु के साथ युत हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
—- चतुर्थेश एकादश भाव में शत्राुक्षेत्राी हो, अष्टमेश तृतीय भाव में शत्रुक्षेत्री हो, नवमेश शत्रुक्षेत्री हो, षष्ठेश नवम में हो, चतुर्थ में मंगल एवं सप्तम में शनि हो तो जातक को हृदय रोग होता है।
—- लग्नेश निर्बल और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तथा चतुर्थ भाव में राहु स्थित हो तो जातक को हृदय पीड़ा होती है।
— लग्नेश शत्रुक्षेत्री या नीच का हो, मंगल चौथे भाव में शनि से दृष्ट हो तो हृदय शूल होता है।
— सूर्य-मंगल-चन्द्र की युति छठे भाव में हो और पापग्रहों से पीड़ित हो तो हृदय शूल होता है।
— मंगल सातवें भाव में निर्बल एवं पापग्रहों से पीड़ित हो तो रक्तचाप का विकार होता है।
— सूर्य चौथे भाव में शयनावस्था में हो तो हृदय में तीव्र पीड़ा होती है।
— लग्नेश चौथे भाव में निर्बल हो, भाग्येश, पंचमेश निर्बल हो, षष्ठेश तृतीय भाव में हो, चतुर्थ भाव पर केतु का प्रभाव हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।
आइये जाने कुछ जरुरी कारण–ह्रदय रोग के डाक्टरी(चिकित्सीय) कारण—
—-अनियमित व अनियंत्रित खानपान।
—-नियमित व्यायाम का अभाव।
—-भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देना।
—-भोजन लेने के ठीक बाद सोना।
—-वसायुक्त भोजन का अधिक मात्रा में सेवन करना।
—काफी देर तक एक ही स्थिति में बैठने से हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है। खासकर महिलाओं के संदर्भ में यह अधिक खतरनाक हो सकता है।एक नए अध्ययन के मुताबिक, देर तक एक ही स्थिति में बैठी रहने वाली महिलाओं के फेफड़ों में रक्त का थक्का बनने का खतरा सक्रिय रहने वाली महिला की तुलना में दो से तीन गुना अधिक होता है, जो खतरनाक हो सकता है। यह पहला अध्ययन है जिसमें बताया गया है कि देर तक एक ही स्थिति में बैठे रहने से ‘पल्मोनरी इम्बोलिज्म’ का खतरा बढ़ सकता है, जो हृदय रोग का एक सामान्य कारण है।यह अध्ययन रिपोर्ट ‘ब्रिटिश मेडिकल जर्नल’ में प्रकाशित हुई है। इसके मुताबिक ‘पल्मोनरी इम्बोलिज्म’ तब होता है जब पैरों की नस से फेफड़ों तक होने वाला रक्त का प्रवाह जम जाता है। सांस लेने में कठिनाई, छाती में दर्द और कफ इसके लक्षण हैं।इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने 69,95. महिला नर्सो का 18 साल तक अध्ययन किया। हर दो साल पर इनसे इनकी जीवनशैली को लेकर सवाल किए गए। उन्होंने पाया कि देर तक (काम के अतिरिक्त सप्ताह में 41 घंटे) बैठी रहने वाली महिलाओं में ‘पल्मोनरी इम्बोलिज्म’ का खतरा उन महिलाओं से दो गुना अधिक होता है, जो कम समय तक (काम के अतिरिक्त सप्ताह में 10 घंटे) बैठती हैं।
ह्रदय रोग का उपचार/इलाज—
—ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक ‘सुपर फूलगोभी’ विकसित करने का दावा किया है, जो कि लोगों को हृदय रोग और कैंसर से बचा सकता है.नॉरविच स्थित इंस्टिच्यूट ऑफ फूड रिसर्च और जॉन इन्नेस सेंटर के एक दल ने बताया नया स्ट्रेन जिसे बेनफोर्ट नाम दिया गया है, दिखने में सामान्य फूलगोभी की तरह ही है. लेकिन पोषक तत्व ग्लुकोराफानिन इसमें तीन गुणा अधिक पाया जाता है.अनुसंधान में पता चला है कि ग्लुकोराफानिन हदय रोगों और कैंसर को रोकने में मदद कर सकता है. इस पोषक तत्व को परिवर्तित करके यौगिक सल्फोराफेन बना लिया गया है.वैज्ञानिकों ने बताया कि यह यौगिक दिल का दौरा, कैंसर की शुरूआती अवस्था में अनियंत्रित कोशकीय विभाजन के लिए जिम्मेवार जलन को स्पष्ट तौर पर कम करने और रोगों के खिलाफ लड़ने वाले एंटी-ऑक्सिडेंट की मौजूदगी को बढ़ाता है.आनुवांशिक इंजीनियरिंग के बजाय जनन (ब्रीडिंग) के जरिये सुपर फूलगोभी विकसित करने वाले वैज्ञनिकों का कहना है कि यह सामान्य फूलगोभी के मुकाबले सल्फोराफेन के स्तर को दो से चार गुणा तक बढ़ा देता है.अखबार ‘डेली एक्सप्रेस’ ने इस दल के नेतृत्व करने वाले र्रिचड मिथेन के हवाले से लिखा है, ‘‘हमलोगों के अनुसंधान ने स्वास्थ्य के लिए इस तरह की सब्जियों की भूमिका पर नया प्रकाश डाला है. इसके जरिये रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली सब्जियों को और अधिक पोषणदायी बनाया जा सकता है.’’ब्रिटेन के विज्ञान मंत्री डेविड विलेट्टस ने कहा, ‘‘इस उत्कृष्ट शोध से ब्रिटेन में पैदा होने और बिकने वाले उत्पादों के वाणिज्यिकरण को बढ़ावा मिलेगा. इससे कृषि, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था को सचमुच में बढ़ावा मिलेगा.’’इस सब्जी को ब्रिटेन में मार्क्स एंड स्पेंसर रिटेल चेन के जरिये बेचा जा रहा है और इसके एक पैक की कीमत दो पाउंड से भी कम है.
— पका हुआ पीला काशीफल( कद्दू) लेकर उसके बीज निकाल करके किसी भी मन्दिर के प्रांगण में रखकर ईश्वर से स्वस्थ होने की कामना करते हुए रख दें। उपाय सूर्योदय के उपरान्त एवं सूर्यास्त से पूर्व करें। किसी के लिए वही कर सकता है जिसका रोगी से रक्त का संबंध हो। यह अनुसार अल्पतम तीन दिन करें और अधिक कष्ट है तो अधिक दिन भी कर सकते हैं। यहां आस्था एवं निरन्तरता महत्वपूर्ण है।
—-गुड़ की चासनी में आटा गूंथकर अधपकी रोटी तन्दूर में लगवा लें। रोटी की संख्या निर्धारित करने के लिए जिस दिन उपाय करना हो उस दिन रोगी के आसपास जितने लोग हों उन्हें गिनकर चार की संख्या अतिरिक्त जोड़ लें तदोपरान्त उतनी रोटी बनवा लें। इन रोटियों को बराबर मात्राा में दो भाग में करके एक भाग कुत्तों को और दूसरा भाग गायों को खिला दें यह सोचकर कि रोगी स्वस्थ हो जाए।
—- रोगी के सिरहाने एक सिक्का रखकर या श्रद्धानुसार रखकर उसे अगले दिन सूर्योदय के उपरान्त भंगी को दें। यह नित्य करें और ४३ दिन तक बिना नागा करें। मन में भाव रोगी के ठीक होने का रखें।
—-हृदय रोग को दूर रखना हो या कोलेस्ट्राल से बचना हो तो खूब टमाटर खाइए और स्वस्थ रहिए।
—–हृदय रोग आज के समय में किसी भी उम्र को अपना शिकार बना सकता है ,यह रोग आज भी मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। आधुनिक विज्ञान में हृदय रोगों को कार्डीयकडीजीज के नाम से जाना जाता है। हृदय रोगों में कोरोनरीहार्टडीजीज, कार्डीयोमायोपैथी, कार्डीयोवास्कुलरडीजीज, इस्चमीकहार्टडीजीज, हार्टफेलियर आदि अनेक रोग आते हैं। आज आपको हम एक अनुभूत प्रयोग (नुस्खा )बताते हैं,जो हृदय से सम्बंधित अनेक समस्याओं में कारगर है :—–
—- घृतकुमारी के रस ,तुलसी के पत्ते के रस,पान के पत्ते का रस,ताजे गिलोय के पंचांग का रस ,सेब का सिरका एवं लहसुन की कली इन सबको समान मात्रा में उबालकर एक चौथाई शहद के साथ उबाल लें और नियमित एक चम्मच खाली पेट लें ,आपको हृदय रोगों से बचाव सहित रोगजन्य स्थितियों में हृदय को मजबूती प्रदान करने वाला अनुभूत योग है, यह ,आप प्रयोग करें और हृदय रोगों से बचे रहें।
—-बादाम के नियमित सेवन से लोगों को दिल की बीमारी होने का खतरा कम होता है.अमेरिका में हर पांच में से एक व्यक्ति इस सिंड्रोम से ग्रस्त है. साथ ही अधिक उम्र के लोगों में इसके लक्षण अधिक पाए जाते हैं.विज्ञान पत्रिका प्रोटियोम रिसर्च में बार्सिलोना विश्वविद्यालय के एक बयान के हवाले से कहा गया है कि उपापचयी सिंड्रोम यानी मेट्स से टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग होने का खतरा बढ़ जाता है.विरगिली विश्वविद्यालय की मानव पोषण इकाई की क्रिस्टीना एन्ड्रेस लेक्यूवा और उनकी सहयोगियों ने पाया कि दुनियाभर में ज्यादा से ज्यादा लोगों में मोटापा बढ़ने का मतलब यह है कि अधिक-से-अधिक लोग उपापचयी सिंड्रोम्स से प्रभावित हो रहे हैं.शोधकर्ताओ ने बादाम से होने वाले फायदे की जांच करने के लिए 22 मेट्स प्रभावित मरीजों को 12 सप्ताह तक बादाम की अधिक मात्रा वाले आहार पर रखा.बाद में उनकी तुलना 20 मेट्स प्रभावित मरीजों के उस समूह से की गई जिन्हें बादाम की कम मात्रा वाले आहार पर रखा गया था.शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि बादाम की अधिक मात्रा खाने वाले मरीजों के शरीर में कई प्रकार के अच्छे परिवर्तन हुए हैं.उन्हीं बदलावों में से एक था मरीजों में सेरोटोनिन मेटाबोलाइट का स्तर बढ़ना.शोधकर्ताओं के मुताबिक सेरोटोनिन एक ऐसा रसायन होता है जो भूख लगने के एहसास को कम करता है, जिससे लोग खुश और स्वस्थ महसूस करते हैं और हृदय का स्वास्थ्य अच्छा रहता है.
——हृदयरोग की जड़ में अनेक कारण हो सकते हैं- धूम्रपान, गलत खान-पान, आराम की जिंदगी, चलने-फिरने और शारीरिक श्रम में कोताही या फिर दौड़-धूप और तनाव की अधिकता। लेकिन एक कारण ऐसा भी है, जिसके बारे में कोई नहीं सोचता। यही नहीं, नीद की कमी होने पर मस्तिष्काघात (लकवा मार जाने) का खतरा भी 15 प्रतिशत बढ़ जाता है। प्रश्न यह है कि कितने घंटे की नींद को ‘कम नींद’ माना जाए? इन वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि कोई हर दिन 5-6 घंटे भी नहीं सोता, तो उसे नींद की कमी से पीड़ित माना जाना चाहिए।कम भी खतरनाक, ज्यादा भी नुकसानदेह —बात यहीं समाप्त नहीं होती। नींद और स्वास्थ्य के बीच अजीब-सा रिश्ता है। आप सोचते हैं कि नींद की कमी से स्वास्थ्य बिगड़ता है, तब उसकी अधिकता से स्वास्थ्य जरूर बनता होगा, तो आप गलत सोचते हैं। स्वास्थ्य नींद की कमी से ही नहीं, अधिकता से भी बिगड़ता है। संतुलित भोजन की तरह शरीर को नींद भी संतुलित मात्रा में चाहिऐ। न अधिक, न कम।वार्विक मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों ने पाया कि जो लोग नियमित रूप से हर रात बहुत देर तक सोते हैं (8-9 घंटों से अधिक), वे भी दिल के दौरे या लकवे को न्यौता देते हैं। उनके प्रसंग में दिल का दैरा पड़ने का खतरा .8 प्रतिशत, जबकि लकवा मार जाने का ख़तरा 65 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
—-विश्व भर में हृदय रोग से पीड़ित लोग अपने बचाव के लिए सब कुछ करने के बाद भी जीवन बचाने में असमर्थ रहते हैं। योग के दैनिक जीवन में प्रयोग से हृदय रोग से बचना संभव है। हृदय को प्राप्त रक्त संचार कम होने से वह आगे रक्त प्रसारण करने में असमर्थ होकर कार्य रोकता है और हृदयाघात होता है। धमनियों में मोटे रक्त (अधिक कोलेस्ट्रॉल) का संचार सुचारु रूप से नहीं होना इसका प्रमुख कारण है।चयापचप (मेटाबोलिज्म) हमारे शारीरिक परिश्रम और दैनिक जीवन में प्राप्त भोजन पर निर्भर करता है। आधुनिक जीवन में शारीरिक परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं होती और भोजन में अधिक मात्रा में वसा, प्रोटीन व कार्बोज की मात्रा बढ़ती जाती है। 25 से 30 साल की आयु में इसकी जाँच रक्त परीक्षण (लिपिड प्रोफाइल) प्रति वर्ष कराना चाहिए। इसके साथ ही दैनिक जीवन में योग करना चाहिए जिससे चयापचप सामान्य रहे।योगाभ्यास से हृदय-फेफड़ों की माँसपेशियाँ लोचदार रहने से हृदय में रक्त संचार सहज होता है। योगाभ्यास से यह लोच चौबीस घंटे रहता है क्योंकि योग में शरीर गर्म नहीं किया जाता तथा शरीर के सामान्य तापमान पर ही दैनिक योगाभ्यास से लचीलापन आता है। यह अन्य व्यायाम की विधा में संभव नहीं है।
योगाभ्यास में प्रमुख रूप से ये प्रयोग करने चाहिए…
अनुलोम-विलोम : कमर व गर्दन सीधी रखकर हवादार कमरे में बैठें। एक नथूने से धीरे-धीरे लंबी व गहरी श्वास फेफड़ों में भरे और धीरे-धीरे दूसरे नथूने से लेने के दोगुने समय में बाहर निकालें। फिर उसी नथूने से श्वास लेकर पहले वाले नथूने से धीरे-धीरे इसी प्रकार निकालें। इस प्रकार 1:2 के अनुपात में 10 से 15 बार श्वास-प्रश्वास करें।
भस्त्रिका प्राणायाम : दोनों नथूनों से जल्दी-जल्दी श्वास-प्रश्वास 10 बार करके धीरे से लंबी श्वास भरके यथाशक्ति भीतर रोकें और धीरे-धीरे बाहर निकालें। तीन बार इसे दोहराएँ।
मार्जरासन : यह हृदय-फेफड़ों की माँसपेशियों को लोचदार बनाता है। चौपाए की तरह घुटनों एवं हाथों के बल होकर गर्दन-कमर ऊपर-नीचे 10 बार करें।
शशकासन : वज्रासन में बैठकर सामने झुकें। हाथों को लंबा रखें। माथा हो सके तो जमीन पर रखें। 10 से 15 बार श्वास-प्रश्वास लेने तक इसी स्थिति में रहने का प्रयास करें।
वक्रासन : यह चयापचप को सामान्य रखने में मदद करता है। पैर जमीन पर लंबे कर, एक पैर मोड़कर दूसरे पैर के घुटने के पास जमाकर वही हाथ पीछे रखें। दूसरा हाथ घुटने के ऊपर से होते हुए लंबे पैर का घुटना पकड़कर कमर को पीछे वाले हाथ की तरफ घुमाएँ और 10-15 श्वास-प्रश्वास करें। ऐसा ही दूसरी तरफ से करें।
धनुरासन : पेट के बल लेट जाएँ और घुटनों से पैर मोड़कर टखनों को दोनों हाथों से मजबूती से पकड़े और धीरे-धीरे शरीर को ऊपर उठाएँ। तने हुए शरीर के साथ 10-15 श्वास-प्रश्वास करें और धीरे-धीरे शरीर को पुनः जमीन पर लाएँ।
उत्तानपादासन : पीठ के बल लेटकर दोनों हाथों को बगल में रखकर दोनों पैरों को 45 डिग्री का कोण बनाते हुए उठाएँ और 10-15 श्वास-प्रश्वास करें। इसके बाद पैरों को धीरे-धीरे नीचे करें। इसे तीन बार दोहराएँ।
शवासन : पीठ के बल, पैरों के बीच डेढ़ फुट का अंतर रखकर लेटे और हाथों को शरीर से आधा फुट दूर, कमर-गर्दन सीधी रखें। आँखें बंद करके शरीर ढीला छोड़ें और गहरी 10 श्वास-प्रश्वास करें। फिर 50 साधारण श्वास गिनकर उठ जाएँ
।
कुछ अन्य सावधानियां–उपाय—-
—-चिकित्सक की सलाह मानें।
—–हर माह अपना चेकअप कराएँ।
—-वसायुक्त भोजन की मात्रा कम करें।
—-अपनी लंबाई व उम्र के हिसाब से वजन नियंत्रित रखें।
—-नियमित व्यायाम व ध्यान करें।
—-तनाव को कम करने का प्रयास करें।
—–हृदय संबंधी बीमारियों के लिए संबंधित विशेषज्ञ का चयन करें।
—–सदैव प्रसन्न रहें।
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