क्या आप जानते हें..???
..जब रिलाएंस रिटेल कारोबार में आया तो उनकी दुकानदारी को बढाने के लिए , एक खेल खेला गया वो भी सुप्रीम कोर्ट के जरिये , सुप्रीम कोर्ट ने एक फेसला दिया गया की सडको गली के नुक्कडो पर खाने पीने की दुकाने नहीं होंगी …..यानी कोर्ट ने पूंजिपतियो के फायदे के लिए अपने फेसले दिए ……आपको सुप्रेमे कोर्ट का एक फेसला और बता दू की आजकल अगर आप कांट्रेक्ट पर है , अड् होक पर है डेली वेज पर है तो आप चाहे पचास साल नोकरी कर ले आप अपने आपको को पर्मानंट होने की मांग नहीं कर सकते …दरसल अब पूरा का पूरा पोलटिकल – इकोनोमिकल माकेनिस्म तैयार क्या जा रहा है पूंजिपतियो को लाभ पहुचाने के लिए …. एफ डी ई .. प्राण घातक है गद्दार नेता और मीडिया अभी कह रहा है की जनता को लाभ होगा , लेकिन कुछ ही साल के बाद सरकार , मीडिया कोर्ट सब इनके गुलाम बन कर रहेंगे ….राजीव गाँधी ने कहा थे १९९१ में की हम सिर्फ बीमार उद्योग का ही निजीकरण और वेद्शी पूंजी निवेश करेंगे लेकिन असलियत क्या है सब आपके सामने है..???
आखिकार कब तक चलता रहेगा ये बंदरबांट का खेल.???
भारत में जब भी चुनाव आते हें..केंद्र या फिर राज्यों के…हर बार कोई विदेशी कंपनी आ जाती हें ढेर सारा कला धन/रिश्वत का पैगाम/ऑफर लेकर
फिर शुरू/चालू होता हें जी असली बन्दर बाँट का खेल…सारी की की सारी पार्टियाँ अपनी-अपनी ओकात/हेन्सियत हे हिसाब से उसमे से अपना-अपना पार्ट/हिस्सा मांगने के लिए .ड्रामा चालू कर देते हें..
कोई बंद करवाता हें.. तो कोई धरना-प्रदर्शन का ड्रामा करवाता हें..???आख़िरकार ये लोग समझते क्या हें हम सभी भारत वासियों को..???
आपको शायद पता न हो किन्तु ..09 में आया भारतीय जनता पार्टी का चुनाव मेनोफेस्टो फदी का समर्थन करता हें..
यूपीए सरकार के रीटेल में एफडीआई वाले फैसले का विरोध कर रही बीजेपी 2004 में खुद इसके पक्ष में थी। 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का घोषणा पत्र कहता है, ‘ व्यापार और रोजगार की वृद्धि के लिए उचित कानूनी और आर्थिक तरीकों के जरिए संगठित रीटेल ट्रेड को इंटरनैशनल पैटर्न पर बढ़ावा दिया जाएगा। रीटेल में 26 फीसदी एफडीआई की अनुमति दी जाएगी। भारतीय उत्पादों के लिए विदेशी रीटेल चेन को प्रोत्साहित किया जाएगा। ’ हालांकि अब बीजेपी छोटे और खुदरा व्यापारियों के हित की बात करते हुए रीटेल में एफडीआई का विरोध कर रही है।
2004 में जब यह घोषणा पत्र जारी किया गया था उसी वक्त एनडीए सरकार ने रिसर्च एजेंसी आईसीआरआईईआर की रिपोर्ट मानी थी जो विदेशी रीटेलर्स को अनुमति देने के फायदों और नुकसान पर आधारित थी। हालांकि जब तक यह रिपोर्ट दी जाती तब तक एनडीए सरकार की जगह यूपीए सत्ता में आ चुकी थी। यूपीए ने अपने पहले शासन काल के दौरान लेफ्ट पार्टियों के दबाव की वजह से केवल सिंगल ब्रैंड रीटेल की अनुमति दी थी।
2009 में बीजेपी ने अपना रुख बदल लिया था। 2009 के लोकसभा चुनावों के लिए जारी घोषणा पत्र में कहा गया था कि रीटेल में एफडीआई को अनुमति नहीं दी जाएगी। बीजेपी के एक प्रवक्ता से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस बात से साफ इंकार कर दिया कि बीजेपी कभी रीटेल में एफडीआई चाहती थी।
क्या कोई जवाब देगा इस सवाल का..???