कीजिये भाग्योदय हेतु श्रीमहा-लक्ष्मी-साधना( WORSHIP OF DEVI MAHALAXMI)—-
लक्ष्मी जी की साधना और पूजा मैं गुग्गल का महत्त्वपूर्ण स्थान हैं
गुग्गल की धुनी देने से लक्ष्मी जी का आकर्षण होता हैं
अगर महानिशा काल मैं आप कोयले या उपले सुलगा कर के एक पात्र मैं रख ले
और उसको अपने सामने रख कर गुग्गल को कूट कर उसकी छोटी छोटी गोलिया बना ले तथा उसे हर एक इस मंत्र के साथ ॐ श्री ह्रीं ऐं महालक्ष्मी स्वाहा और ॐ यक्षराज कुबेराए स्वाहा के साथ होम करते रहे यह आप १०८ बार कर सकते हैं …
यह लक्ष्मी जी का आकर्षण करने के लिए एक उत्तम उपाए हैं ..
भाग्योदय हेतु श्रीमहा-लक्ष्मी की तीन मास की सरल, व्यय रहित साधना है। यह साधना कभी भी ब्राह्म मुहूर्त्त पर प्रारम्भ की जा सकती है। ‘दीपावली’ जैसे महा्पर्व पर यदि यह प्रारम्भ की जाए, तो अति उत्तम।
‘साधना’ हेतु सर्व-प्रथम स्नान आदि के बाद यथा-शक्ति (कम-से-कम १०८ बार) “ॐ ह्रीं सूर्याय नमः” मन्त्र का जप करें।
फिर ‘पूहा-स्थान’ में कुल-देवताओं का पूजन कर भगवती श्रीमहा-लक्ष्मी के चित्र या मूर्त्ति का पूजन करे। पूजन में ‘कुंकुम’ महत्त्वपूर्ण है, इसे अवश्य चढ़ाए।
पूजन के पश्चात् माँ की कृपा-प्राप्ति हेतु मन-ही-मन ‘संकल्प करे। फिर विश्व-विख्यात “श्री-सूक्त” का १५ बार पाठ करे। इस प्रकार ‘तीन मास’ उपासना करे। बाद में, नित्य एक बार पाठ करे। विशेष पर्वो पर भगवती का सहस्त्र-नामावली से सांय-काल ‘कुंकुमार्चन’ करे। अनुष्ठान काल में ही अद्भुत परिणाम दिखाई देते हैं। अनुष्ठान पूरा होने पर “भाग्योदय” होता है।
।।श्री सूक्त।।
ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।
तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे।।
क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले।।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।