रखें अपने वास्तु का ख्याल..लक्ष्मी प्राप्ति हेतु—
(धन-वैभव-सम्रद्धि दिलाता हे सही वास्तु)—-
यूं तो किसी को किस्मत से ज्यादा नहीं मिलता लेकिन कई बार अनेक बाधाओं के कारण किस्मत में लिखी धन-समृद्धि भी प्राप्त नहीं होती। वास्तु को मानने वाले अगर इसके मुताबिक काम करें तो उन्हें वो मिल सकता है जो अब तक नहीं मिला है।
– पूर्व दिशा : यहां घर की संपत्ति और तिजोरी रखना बहुत शुभ होता है और उसमें बढ़ोतरी होती रहती है।
– पश्चिम दिशा : यहां धन-संपत्ति और आभूषण रखे जाएं तो साधारण ही शुभता का लाभ मिलता है। परंतु घर का मुखिया अपने स्त्री-पुरुष मित्रों का सहयोग होने के बाद भी बड़ी कठिनाई के साथ धन कमा पाता है।
– उत्तर दिशा : घर की इस दिशा में कैश व आभूषण जिस अलमारी में रखते हैं, वह अलमारी भवन की उत्तर दिशा के कमरे में दक्षिण की दीवार से लगाकर रखना चाहिए। इस प्रकार रखने से अलमारी उत्तर दिशा की ओर खुलेगी, उसमें रखे गए पैसे और आभूषण में हमेशा वृद्धि होती रहेगी।
– दक्षिण दिशा : इस दिशा में धन, सोना, चाँदी और आभूषण रखने से नुकसान तो नहीं होता परंतु बढ़ोत्तरी भी विशेष नहीं होती है।
– ईशान कोण : यहां पैसा, धन और आभूषण रखे जाएं तो यह दर्शाता है कि घर का मुखिया बुद्धिमान है और यदि यह उत्तर ईशान में रखे हों तो घर की एक कन्या संतान और यदि पूर्व ईशान में रखे हों तो एक पुत्र संतान बहुत बुद्धिमान और प्रसिद्ध होता है।
– आग्नेय कोण : यहां धन रखने से धन घटता है, क्योंकि घर के मुखिया की आमदनी घर के खर्चे से कम होने के कारण कर्ज की स्थिति बनी रहती है।
– नैऋत्य कोण : यहां धन, महंगा सामान और आभूषण रखे जाएं तो वह टिकते जरूर है, किंतु एक बात अवश्य रहती है कि यह धन और सामान गलत ढंग से कमाया हुआ होता है।
– वायव्य कोण : यहां धन रखा हो तो खर्च जितनी आमदनी जुटा पाना मुश्किल होता है। ऐसे व्यक्ति का बजट हमेशा गड़बड़ाया रहता है और कर्जदारों से सताया जाता है।
– सीढ़ियों के नीचे तिजोरी रखना शुभ नहीं होता है। सीढ़ियों या टायलेट के सामने भी तिजोरी नहीं रखना चाहिए। तिजोरी वाले कमरे में कबाड़ या मकड़ी के जाले होने से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
– घर की तिजोरी के पल्ले पर बैठी हुई लक्ष्मीजी की तस्वीर जिसमें दो हाथी सूंड उठाए नजर आते हैं, लगाना बड़ा शुभ होता है। तिजोरी वाले कमरे का रंग क्रीम या ऑफ व्हाइट रखना चाहिए।
ये हें घर में सुख-शांति के लिए वास्तु टिप्स—
नया साल हो या कोई त्योहार, अधिकांश बधाई संदेशों में आपके चाहने वाले आपके जीवन में सुख शांति एवं समृद्धि की कामनाएं भेजते हैं। समृद्धि तो आपकी मेहनत पर निर्भर करती है, लेकिन सुख और शांति के लिए आप क्या कर सकते हैं। सुख और शांति के लिए जितना ज्यादा आपका व्यवहार मायने रखता है, उससे कहीं ज्यादा आपके घर का वास्तु।
मकान को घर बनाने के लिए जरूरी है, परिवार में सुख-शांति का बना रहना। और ऐसा होने पर ही आपको सुकून मिलता है। यदि आप घर बनवाने जा रहे हैं, तो वास्तु के आधार पर ही नक्शे का चयन करें। अपने आर्किटेक्ट से साफ कह दें, कि आपको वास्तु के हिसाब से बना मकान ही चाहिए। हां यदि आप बना-बनाया मकान या फ्लैट खरीदने जा रहे हैं, तो वास्तु संबंधित निम्न बातों का ध्यान रख कर अपने लिए सुंदर मकान तलाश सकते हैं।
.. मकान का मुख्य द्वार दक्षिण मुखी नहीं होना चाहिए। इसके लिए आप चुंबकीय कंपास लेकर जाएं। यदि आपके पास अन्य विकल्प नहीं हैं, तो द्वार के ठीक सामने बड़ा सा दर्पण लगाएं, ताकि नकारात्मक ऊर्जा द्वार से ही वापस लौट जाएं।
.. घर के प्रवेश द्वार पर स्वस्तिक या ऊँ की आकृति लगाएं। इससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
.. घर की पूर्वोत्तर दिशा में पानी का कलश रखें। इससे घर में समृद्धि आती है।
4. घर के खिड़की दरवाजे इस प्रकार होनी चाहिए, कि सूर्य का प्रकाश ज्यादा से ज्यादा समय के लिए घर के अंदर आए। इससे घर की बीमारियां दूर भागती हैं।
5. परिवार में लड़ाई-झगड़ों से बचने के लिए ड्रॉइंग रूम यानी बैठक में फूलों का गुलदस्ता लगाएं।
6. रसोई घर में पूजा की अल्मारी या मंदिर नहीं रखना चाहिए।
7. बेडरूम में भगवान के कैलेंडर या तस्वीरें या फिर धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए। बेडरूम की दीवारों पर पोस्टर या तस्वीरें नहीं लगाएं तो अच्छा है। हां अगर आपका बहुत मन है, तो प्राकृतिक सौंदर्य दर्शाने वाली तस्वीर लगाएं। इससे मन को शांति मिलती है, पति-पत्नी में झगड़े नहीं होते।
8. घर में शौचालय के बगल में देवस्थान नहीं होना चाहिए।
9. घर में घुसते ही शौचालय नहीं होना चाहिए।
1.. घर के मुखिया का बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में अच्छा माना जाता है।
इनका भी रखें ध्यान/ख्याल—
भूखण्ड का चयन करते समय जिस प्रकार भू-स्वामी को वास्तु शास्त्र में वर्णित शुभाशुभ का ध्यान रखना आवश्यक होता है, उससे भी कहीं अधिक भवन निर्माण के समय ध्यान रखना चाहिए। मकान निर्माण में दिशाओं का अपना अलग ही महत्व है।
दिशाओं के अधिपति व फलाफल इस प्रकार हैं:-
दिशा अधिपति फल।
उत्तर कुबेर धन्य-धान्य की वृद्धि।
दक्षिण यम शोक।
पूरब इन्द्र देव अभ्युदम।
पश्चिम वरुण देव जल की कभी कमी नहीं रहेगी।
ईशान ईश्वर धर्म, स्वर्ग प्राप्ति।
आग्नेय अग्नि तेजोभिवृद्धि।
नैऋत्य निवृत्ति शुद्धता-स्वच्छता।
वायव्य वायु वायु प्राप्ति।
ऊर्ध्व ब्रह्मा आध्यात्मिक।
भूमि अन्न, भू-संपदा, सांसारिक सुख।
ये दसों दिशाओं के स्वामी हैं, दिग्पाल हैं, अतः प्रत्येक काम में सफलता के लिए अधिपति की प्रार्थना करना न भूलना चाहिए। जिस दिशा का अधिपति हो, उसके स्वभाव के अनुरूप उस दिशा में कर्म के लिए भवन में कक्षों का निर्माण कराए जाने पर ही वास्तु संबंधी दोषों से बचा जा सकता है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, पंच तत्व को अपने भवन के अधीन बनाना ही सच्चे अर्थों में वास्तु शास्त्र का रहस्य होता है।
इसलिए मकान बनाते समय उपरोक्त पंच तत्वों के लिए जो प्रकृति जन्य दिशाएँ निर्धारित हैं, उन्हीं के अनुरूप दिशाओं में कक्षों का निर्माण किया जाना चाहिए। प्रकृति के विरूद्ध किए गए निर्माण एवं स्वेच्छाचारिता से प्रकृति विरूद्ध दूषित तत्वों के कारण रोग, शोक, भय आदि फलाफल प्राप्त होते हैं।
What is Vaastu?
How does it work?
Vaastu is a science, which deals with the creation of a harmonious energy field in a structure. It has nothing to do with religion, rituals or astrology. Making Vaastu a part of these subjects can only do injustice to this science. It is basically a science of structures and to derive the benefits from it and to appreciate it, it is necessary to treat the subject as a pure science. Diluting the subject with superstition in whichever manner can only harm the growth of this science and deny the spread of this valuable knowledge far and wide.
In the last five years or so Vaastu has become a household name in India. It is difficult to find an architect or a builder today in India who has not heard of Vaastu. Such is the popularity of the subject that architects no longer shun clients who are desirous of building houses or offices as per Vaastu. One can confidently say that Vaastu has taken firm roots in India.
Not that the critics of the subject are silent. If any, their voices have grown shriller. They accuse the ‘Vaastu pundits’ of taking advantage of the gullibility of the masses. I recently read a report that an astro-scientist while criticizing Vaastu had offered to stay in any defective building to prove that it could not affect him. Another architect complained loudly that Vaastu pundits were arresting the growth of young architects from exhibiting their ideas and talent.
These are extreme positions. Fortunately no one takes them seriously. And rightly so. If one has to be taken seriously one has to adopt a scientific approach to disprove a statement. For that the following steps are necessary:-
a) Understanding the concept
b) Extensive verification स्तुदिएस
c) Conclusions based on statistics
That is the accepted scientific route. But the critics never followed this method and completely relied on their shrill voices only. Justifiably the public has rejected them outright.
One should not try to force one’s views on somebody only because one holds a position of authority. Neither should one criticize a subject or a concept because of one’s own prejudices. These people cannot be taken as scientifically tempered. They should be just ignored.
Proving Vaastu as a subject without foundation is not at all a difficult task for the gentlemen who want to do just that. All that have to do is to come out with a list of at least twenty five buildings which do not follow the rules of Vaastu but where the occupants or users of the building are happy, healthy and prosperous over several decades and another twenty five buildings several decades and another twenty five buildings which are conforming to Vaastu but are witness to great familial problems. If they can publish their findings and can establish that the results are indeed contrary to what Vaastu claims to achieve, then the subject of Vaastu will really disappear once and for all. A study of this type is truly scientific and those who complain about Vaastu will have to necessarily undertake this study before proclaiming that it is not a science.
I believe the subject is a science and that it holds tremendous potential to enrich our lives. I have kept an open mind on the subject and my studies show that here indeed is a science, which is consistent with results. I, therefore, recommend this wholeheartedly for one and all.
Before we proceed further we will briefly run through the methodology of Vaastu. We have to first know how it works. Only then understand we can how the defects come in the way of getting Vaastu benefits.
Basically Vaastu is all about the interaction of various forms of energy in a structure. As you are aware the whole universe is one expanding mass formed at the time of the big bang. The expansion still goes on churning out more and more galaxies and star systems. From all these astral bodies various types of radiations are being emitted. All radiations are again a form of energy. Although we classify various forms of energy as heat, light, magnetic, electric etc., each can be converted to other and hence all forms of energy are fundamentally the same. There are some forms of energy, which we can see, or feel like ordinary light and sound. As our senses operate in a limited spectrum we do not perceive the other forms of energy like ultraviolet rays or infrared rays or supersonic sounds, but they are as much real as the other forms we perceive. As matter is also condensed form of energy, we can easily see that all we perceive as matter or energy is in fact energy only. Thus we ourselves are a part of this energy field.
In Nature the conversion of one form of energy to other is a continuous process. For example, the sun’s energy is absorbed by the plants to prepare the food, which is later taken by animals and humans. Thus the light energy of the sun is used by the plants to produce food, which is in the form of mechanical energy. When it is consumed by humans and animals it is converted into muscular energy, which helps them to sustain themselves.
Further any form of energy under a set of circumstances produces a sense of comfort or uneasiness in an organism. For example, a cool breeze on a hot day is very pleasant but on a chilly day is quite uncomfortable. A glowing hearth on a chilly night has a soothing and cozy effect, but on a hot day is decidedly uncomfortable.
Music played on an instrument helps a person to relax and ease his tension, but the continuous noise of passing traffic can set the nerves of a person on the edge.
Thus we see that for any energy to have the best effect on a living person it is necessary that it be supplied at a level, which the organism cherishes. We loosely term places, which have a calming effect on us as ‘atmosphere’. Many a time we classify various structures as having ‘good’ or ‘bad’ atmosphere. If someone asks us to explain the term ‘atmosphere’, we may be at a loss for words. It is not the lighting or ventilation. It is not the wall colors or the polished flooring. It is not the painting on the wall or the Persian carpet on the floor. It is not the gentle music or the comfortable furniture. Still we understand the term ‘atmosphere’ and nod our head wisely although we are unable to explain it.
It is probably instinctive and lies beyond comprehension. It cannot be measured or compared with other entities. But we all know that it exists and various from place to place.
If you have a pet you will notice how sensitive it is to what we call atmosphere. In your house it searches for a specific place where it will curl to relax. Take it away from that place but it will return again and again to the same place. Dogs and cats are endowed with this instinctive ability to find the right atmosphere. We are certainly not as sensitive as they are but all the same we are affected by the atmosphere of a place to some degree.
Vaastu is basically all about creation of this subtle conducive atmosphere in a structure. You have entered houses where you find the atmosphere pleasant. Automatically you relax and are at your witty best. Your responses are cheerful, careful, sensitive and measured. The house brings cheer to you and you in turn bring cheer to others because you are cheerful. And then there are those gloomy houses, dull classrooms, dark laboratories, stinking offices where you start counting your minutes to get out at the first opportunity. People throng to holy places, sacred temples, sea beaches, waterfalls and lakesides, all because of this ‘atmosphere’. Hence we have to concede that every place has an ‘atmosphere’ which either is positive or negative. While a human being thrives in a positive atmosphere he is bogged down by negative emotions in a ‘negative’ atmosphere.
A ‘positive’ atmosphere brings out the best in us. Our mind is calm and relaxed and the body feels healthy and strong. This atmosphere makes us think positively, makes our approaches positive and hence positive results automatically follow. Everyone coming under the influence of this atmosphere is a happy family and everything in there lives goes so smoothly that we come in the conclusion that they are blessed. Take the family in an ‘negative’ atmosphere and you find that for no fault of their’s they undergo tension and mental torture. The body is tense, prone to illness of one type or other. The mind is tense leading to strained relationships, which forms a vicious cycle around them and aggravates all kinds of sufferings.
Thus if we are successful in creating this ‘good atmosphere’ inside a structure we will succeed in ensuring the health and happiness of the inhabitants. The same principles apply for a shopping establishment, industry or a business center. In all these places, the workers are cheerful, their approach is positive and the plans are put into faultless execution ensuring an all-round growth of the enterprise.
(वास्तु के अनुसार सजायें अपना बेडरूम)वास्तुसम्मत हो आपका शयनकक्ष—–
पति-पत्नी के रिश्तों पर बेडरूम का भी काफी प्रभाव होता है। जी हां आप मानें या नहीं, वास्तु के मुताबिक बेडरूम की साज सज्जा ही पति-पत्नी के बीच के रिश्तों की मुधरता तय करती है। चलिये बात अगर बेडरूम की आ ही गई है, तो उसकी साज सज्जा पर भी गौर कर ही लेते हैं। यहां हम आपको 10 टिप्स देंगे वास्तु के नियमों के मुताबिक बेडरूम को कैसे सजाएं।
हम जब किसी अपार्टमेंट में फ्लैट खरीदते हैं, तो चाह कर भी वास्तु के सारे नियमों के मुताबिक नहीं चल पाते। क्योंकि बिल्डर अपने मुताबिक बिल्डिंग बनाते हैं, आपके नहीं। तो ऐसे में अगर आप उसी बने हुए रूम को अपने तरीके से सजाएं वो भी वास्तु के मुताबिक, तो आपके जीवन में खुशियां हमेशा बनी रहेंगी। यदि आपका बेडरूम अच्छा है, तो घर में मानसिक शांति बनी रहेगी और आपकी सेक्सुअल लाइफ भी बेहतरीन रहेगी। प्रस्तुत हैं 10 टिप्स वास्तु की-
1. बेडरूम किसी प्रकार की चर्चा व बहस करने के लिए नहीं होता। यह सिर्फ आराम करने व सोने और लाइफ पार्टनर के साथ मस्ती करने के लिए होता है। बेडरूम में प्यार के अलावा अन्य बातें नहीं करनी चाहिये।
2. बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और इसी कोने में बेड भी रखना चाहिये। यदि आपने अपना बेड कमरे के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखा तो आपको ठीक से नींद नहीं आयेगी, आप तनाव से घिरे रहेंगे, आपको गुस्सा जल्दी आयेगा और बेचैनी सी बनी रहेगी।
3. बेडरूम की बाहरी दीवारों पर टूट-फूट या दरार नहीं होनी चाहिये। इससे घर में परेशानियां आती हैं।
4. यह वो रूम होता है, जहां आप दिन भर के सात से 10 घंटे तक बिताते हैं, यानी इसके वास्तु का सीधा प्रभाव आपके जीवन पर पड़ता है।
5. मकान के मालिक अगर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित बेडरूम में सेते हैं, तो अस्थिरता बनी रहती है, लिहाजा इस दिशा में घर के मालिक का बेडरूम नहीं होना चाहिए। घर के अन्य सदस्यों का बेडरूम यहां हो सकता है।
5. घर के मालिक का बेडयम दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए, यदि किसी कारणवश नहीं है, तो दूसरा विकल्प दक्षिण या पश्चिम में हो सकता है।
6. बेड का सिरहाना दक्षिण की ओर होना चाहिये। इससे बेचैनी नहीं रहती है और रात में अच्छी नींद आती है उसका स्वास्थ्य उत्तम रहता है। उत्तर की तरफ सिर करके सोने से खराब सपने आते हैं और नींद अच्छी नहीं आती और स्वास्थ्य खराब रहता है। वहीं पूर्व की ओर सिर करने से ज्ञान बढ़ता है, जबकि पश्चिम की ओर सिर करके सोने से स्वास्थ्य खराब रहता है।
7. बेडरूम में कोई ऐसी तस्वीर मत लगायें, जो हिंसा दर्शा रही हो। बेडरूम की दीवार का रंग चटक नहीं होना चाहिये। साथ ही जिस तरफ बेड के सिरहाने वाली दीवार पर घड़ी, फोटो फ्रेम आदि नहीं लगायें, इससे सिर में दर्द बना रहता है। अच्छा होगा यदि आप बेड के ठीक सामने वाली दीवार पर कुछ मत लगायें। इससे मन की शांति बनी रहती है।
रखे इन चीजों/बातों का ध्यान जब बनवाएं नया मकान—
नए भवन के निर्माण कराते समय आप अपने शहर के किसी अच्छे वास्तु के जानकार से सलाह अवश्य लें। वास्तु का प्रभाव भवन के रहने वाले व्यक्तियों पर अवश्य पढ़ता है। परंतु इसके साथ-साथ व्यक्ति विशेष के ग्रह योग भी वास्तु के प्रभाव को घटाते-बढ़ाते हैं। हो सकता है कि एक व्यक्ति को कोई विशेष स्थान तकलीफ न दे पर वही स्थान दूसरे व्यक्ति को अत्यंत तकलीफदायक हो।
नए भवन निर्माण के समय कुछ मुख्य बातों पर ध्यान अवश्य दें…।
– भवन के लिए चयन किए जाने वाले प्लॉट की चारों भुजा राइट एगिंल (90 डिग्री अंश कोण) में हों। कम ज्यादा भुजा वाले प्लॉट अच्छे नहीं होते।
– प्लाट जहाँ तक संभव हो उत्तरमुखी या पूर्वमुखी ही लें। ये दिशाएँ शुभ होती हैं और यदि किसी प्लॉट पर ये दोनों दिशा (उत्तर और पूर्व) खुली हुई हों तो वह प्लॉट दिशा के हिसाब से सर्वोत्तम होता है।
– प्लॉट के पूर्व व उत्तर की ओर नीचा और पश्चिम तथा दक्षिण की ओर ऊँचा होना शुभ होता है।
– प्लाट के एकदम लगे हुए, नजदीक मंदिर, मस्जिद, चौराह, पीपल, वटवृक्ष, सचिव और धूर्त का निवास कष्टप्रद होता है।
– पूर्व से पश्चिम की ओर लंबा प्लॉट सूर्यवेधी होता है जो कि शुभ होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर लंबा प्लॉट चंद्र भेदी होता है जो ज्यादा शुभ होता है ओर धन वृद्धि करने वाला होता है।
– प्लॉट के दक्षिण दिशा की ओर जल स्रोत हो तो अशुभ माना गया है। इसी के विपरीत जिस प्लॉट के उत्तर दिशा की ओर जल स्रोत (नदी, तालाब, कुआँ, जलकुंड) हो तो शुभ होता है।
– जो प्लॉट त्रिकोण आकार का हो, उस पर निर्माण कराना हानिकारक होता है।
– भवन निर्माण कार्य शुरू करने के पहले अपने आदरणीय विद्वान पंडित से शुभ मुहूर्त निकलवा लेना चाहिए।
– भवन निर्माण में शिलान्यास के समय ध्रुव तारे का स्मरण करके नींव रखें। संध्या काल और मध्य रात्रि में नींव न रखें।
– नए भवन निर्माण में ईंट, पत्थर, मिट्टी ओर लकड़ी नई ही उपयोग करना। एक मकान की निकली सामग्री नए मकान में लगाना हानिकारक होता है।
– भवन का मुख्य द्वार सिर्फ एक होना चाहिए तो उत्तर मुखी सर्वश्रेष्ठ एवं पूर्व मुखी भी अच्छा होता है। मुख्य द्वार की चौखट चार लकड़ी की एवं दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए।
– भवन के दरवाजे अपने आप खुलने या अपने आप बंद न होते हों यह भी ध्यान रखना चाहिए। दरवाजों को खोलने या बंद करते समय आवाज होना अशुभ माना गया है।
– भवन में सीढ़ियाँ वास्तु नियम के अनुरूप बनानी चाहिए, सीढ़ियाँ विषम संख्या (5,7, 9) में होनी चाहिए।
आपकी ख़ुशी/उन्नति का राज छुपा हें इन दिशाओं में—
वास्तु के अनुसार इन 10 दिशाओं में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का राज छिपा हुआ है जो एक शून्य में अपने आपको समाहित किए हुए है यानी सिर्फ शून्य जो एक है और शून्य भी। वास्तव में शून्य ही अपने आपमें सब कुछ समेटे हुए है। पृथ्वी, सूर्य, चंद्रादि ग्रह, उपग्रह सभी इस शून्य (10 दिशाओं) से उत्पन्न हुए। जलाशय में किसी टुकड़े को फेंकने पर जल तरंगे शून्य आकृति से गोलाकार में आकर किनारे में लुप्त हो जाती हैं। जिससे यह अनुमान लगता है कि अखिल विश्व व ब्रह्माण्ड शून्य (दिशा) में समाया है, शून्य को वास्तु में ब्रह्मस्थान कहा गया है जहाँ से दस दिशाएँ गुजरती हैं, इनका केन्द्र बिन्दु और परिधि भी शून्य है।
चाहे वह कम्प्यूटर हो या गणितीय संसार इस एक शून्य (दिशाओं) के बिना सब मिथ्या है। इन दिशाओं (शून्य) को स्वीकार करने पर ही कम्प्यूटर क्रांति और गणितीय संसार पूर्णरूप से सफल हो पाया। एक के साथ मिलकर शून्य दस दिशाओं का निर्माण करता है जिनके इर्द-गिर्द सम्पूर्ण सृष्टि घूम रही है। गणित में यह सीधे 10 गुना हो जाता है अर्थात् दस दिशाएँ जिनके आगे कुछ भी नहीं है।
मानव जीवन को प्रत्येक तत्व दो प्रकार से नकारात्मक और सकारात्मक तौर पर प्रभावित करते हैं। मानव इनके सहारे ही सम्पूर्ण प्राकृतिक ऊर्जा, चुम्बकीय तरंगे तथा अन्य सकारात्मक ऊर्जा को प्राप्त करता है। चुम्बकीय तरंगे व प्राकृतिक ऊर्जा के स्रोत भी एक निश्चित दिशा में लाभ-हानि, प्रतिकूलता व अनुकूलता प्रदान करने में सहायक होते हैं। जिससे जीवन को प्रगति की रफ्तार मिल पाती है तथा व्यक्ति का विकास व उन्नति संभव हो पाती है।
हवा के चलने को आज भी भारत में उसे उसी दिशा का नाम दे दिया जाता है जैसे- पूर्व से चलने वाली हवा को पुरवाई इसी प्रकार अन्य दिशाओं में चलने वाली हवाओं का नाम होता है। प्रत्येक मानव जब भी चलता है किसी न किसी दिशा में ही चलता है बिना दिशा वह कभी चल ही नहीं सकता या तो वह सही दिशा में जाएगा या गलत दिशा में, गलत दिशा में चलने वाले को दिशाहीन, पथ भ्रष्ट की संज्ञा दी जाती है।
व्यक्ति, परिवार, समुदाय, समाज व राष्ट्र तथा विश्व की दिशा सही है तभी वह विकास कर सकता है, अपनी दशा को सुधार सकता है। दिशा ही तो है जिसके सहारे जीवन में सुख और दुःख की सौगात आया करती है। इन दिशाओं का बड़ा महत्त्व है चाहे वह लक्ष्य प्राप्त करने हेतु हो या फिर भवन निर्माण में हो, प्रत्येक पल हम इन दिशाओं के सहारे चलते हैं वास्तु में इन दिशाओं का विशेष महत्त्व है।
जैसे किसी व्यक्ति को जीवन पथ में चलने की दिशा हीनता उसे कहीं का नहीं छोड़ती उसी प्रकार वास्तु शास्त्र में या भवन निर्माण में की गई दिशाओं की उपेक्षा उसे आजीवन भटकाती रहती है उसे कभी भी सुख चैन नहीं मिल पाता है।
सही और गलत दिशाओं का चयन बिल्कुल आप पर निर्भर है। जीवन में हमें हर पल सही दिशा की जरूरत रहती है। चाहे वह अध्ययन का क्षेत्र हो या व्यापारिक क्षेत्र या फिर भवन बनाने का क्षेत्र, सभी के नियम व दिशाएँ हैं जिनके सदुपयोग से आप अपने जीवन में बद्तर दशा को सुधार बेहतर बना सकते हैं। आधुनिकता की दौड़ व जानकारी के अभाव में हम वास्तु जैसे अमूल्य भवन निर्माण की कला के प्रयोग से वंचित रह जाते हैं जिसके कारण प्राकृतिक ऊर्जा का प्रवेश अवरूद्ध हो जाता है और जीवन भ्रम, दुःख, हानि, तनाव, क्रोध के भंवर में फँस जाता है।
वास्तु ही एक ऐसा विषय है जो दिशाओं तथा प्राकृतिक ऊर्जा का तालमेल बिठाते हुए जीवन के रास्तों को सुगम बनाता है। इस कला के प्रयोग से जहाँ हम प्राकृतिक तालमेल बैठाते हुए हानि से बच सकते हैं वही भवन अति सुन्दर और मजबूत तथा टिकाऊ भी बनाते हैं। वास्तु शास्त्र में दिशाओं को विशेष स्थान प्राप्त है जो इस विज्ञान का आधार है। यह दिशाएँ प्राकृतिक ऊर्जा और ब्रह्माण्ड में व्याप्त रहस्यमयी ऊर्जा को संचालित करती हैं जो राजा को रंक और रंक को राजा बनाने की शक्ति रखती हैं। इस शास्त्र के अनुसार प्रत्येक दिशा में अलग-2 तत्व संचालित होते हैं और उनका प्रतिनिधित्व भी अलग-2 देवताओं द्वारा होता है।
इस प्रकार है-
– उत्तर दिशा के देवता कुबेर हैं जिन्हें धन का स्वामी कहा जाता है और सोम को स्वास्थ्य का स्वामी कहा जाता है। जिससे आर्थिक मामले और वैवाहिक व यौन संबंध तथा स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
– उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) के देवता सूर्य हैं जिन्हें रोशनी और ऊर्जा तथा प्राण शक्ति का मालिक कहा जाता हैं। इससे जागरूकता और बुद्धि तथा ज्ञान मामले प्रभावित होते हैं।
– पूर्व दिशा के देवता इंद्र हैं जिन्हें देवराज कहा जाता है। वैसे आम तौर पर सूर्य ही को इस दिशा का स्वामी माना जाता जो प्रत्यक्ष रूप से सम्पूर्ण विश्व को रोशनी और ऊर्जा दे रहे हैं। लेकिन वास्तुनुसार इसका प्रतिनिधित्व देवराज करते हैं। जिससे सुख-संतोष तथा आत्मविश्वास प्रभावित होता है।
– दक्षिण-पूर्व (अग्नेय कोण) के देवता अग्नि देव हैं जो आग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिससे पाचन शक्ति तथा धन और स्वास्थ्य मामले प्रभावित होते हैं।
– दक्षिण दिशा के देवता यमराज हैं जो मृत्यु देने के कार्य को अंजाम देते हैं। जिन्हें धर्मराज भी कहा जाता है। इनकी प्रसन्नता से धन, सफलता, खुशियाँ व शांति प्राप्ति होती है।
– दक्षिण-पश्चिम दिशा के देवता निरती हैं जिन्हे दैत्यों का स्वामी कहा जाता है। जिससे आत्मशुद्धता और रिश्तों में सहयोग तथा मजबूती एव आयु प्रभावित होती है।
– पश्चिम दिशा के देवता वरूण देव हैं जिन्हें जलतत्व का स्वामी कहा जाता है। जो अखिल विश्व में वर्षा करने और रोकने का कार्य संचालित करते हैं। जिससे सौभाग्य, समृद्धि एवं पारिवारिक ऐश्वर्य तथा संतान प्रभावित होती है।
– उत्तर-पश्चिम के देवता पवन देव है। जो हवा के स्वामी हैं। जिससे सम्पूर्ण विश्व में वायु तत्व संचालित होता है। यह दिशा विवेक और जिम्मेदारी योग्यता, योजनाओं एवं बच्चों को प्रभावित करती है।
इस प्रकार यह ज्ञात होता है कि वास्तु शास्त्र में जो दिशा निर्धारण किया गया है वह प्रत्येक पंच तत्वों के संचालन में अहं भूमिका निभाते हैं। जिन पंच तत्वों का यह मानव का पुतला बना हुआ है अगर वह दिशाओं के अनुकूल रहे तो यह दिशाएँ आपको रंक से राजा बना जीवन में रस रंगो को भर देती हैं।