आइये जाने केसे करें दीपावली पूजन –पूजन सामग्री एवं पूजन विधान,मन्त्र और आरती—-
शुभ मुहूर्त में सुख-समृद्धि दायक है श्रीगणेश-लक्ष्मी पूजा—
दीपावली यानी दीप पक्तियां, अमावस्या को जब चन्द्रमा और सूर्य दोनों किसी भी एक डिग्री पर होते हैं तो गहन अंधकार को जन्म देते हैं। दीपावली गहन अंधकार में भी प्रकाश फैलने का पर्व है, यह त्योहार हम सभी को प्रेरणा देता है कि अज्ञान रूपी अंधकार में भटकने के बजाये हम अपने जीवन में ज्ञान रूपी प्रकाश से उजाला करें और जगत के कल्याण में सहभागिता करें।
दीपावली की रात्रि को माता महालक्ष्मी की कृपा जिस व्यक्ति या परिवार पर हो जाये, वह कभी भी धन अभाव महसूस नहीं करता और हमेशा सुख-समृद्धि से युक्त हो जाता है।
धन की आवश्यकता हर किसी को होती है। धन के बिना जीवन अधूरा है क्योंकि आवश्यकताओं की पूर्ति धन के अभाव में नहीं हो सकती। जीवन जीने के लिये धन तो चाहिये ही! दीपावली के शुभ अवसर पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये कुछ पूजा-आराधना इस प्रकार से करनी चाहिये कि पूरे वर्ष धन-धान्य में वृद्धि होकर सुख-समृद्धि बनी रहे और निरन्तर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे। रावण के पास जो सोने की लंका थी, कहते हैं वह लंका रावण को महालक्ष्मी की कृपा से ही प्राप्त हुई थी। रावण के भाई कुबेर जो धनाधिपति के रूप में भी जाने जाते हैं, उनके साथ भी लक्ष्मी का शुभ आर्शीवाद ही था।
दीपावली के शुभ अवसर पर भगवती श्री महालक्ष्मी जी एवं श्रीगणेश जी का ही विशेष पूजन किया जाता है, क्योंकि पूरे वर्ष में एक यही पर्व है जिसमें लक्ष्मी का पूजन भगवान विष्णु के साथ नहीं होता क्योंकि भगवान विष्णु तो चार्तुमास शयन कर रहे हैं इसलिये लक्ष्मी जी के साथ श्री गणेश जी का पूजन दीपावली के शुभ अवसर पर किया जाता है।
जो व्यक्ति शास्त्रोक्त विधि से पूजन नहीं कर सकते, उनके लिये बिल्कुल ही सरल विधि दी जा रही है। महालक्ष्मी पूजन के लिये लक्ष्मी-गणेश की नवीन मूर्ति, श्रीयंत्रा, कुबेर मंत्रा, फल-फूल, धूप-दीपक, खील-बतासे, मिठाई, पंचमेवा, दूध, दही, शहद, गंगाजल, रोली, कलावा, कच्चा नारियल, तेल के दीपक, श्रद्धा व सामथ्र्य अनुसार दीपकों की कतार और एक घी के दीपक की आवश्यकता होती है।
पूजन के लिये एक थाली में रोली से ओम और स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर गणेश जी व माता लक्ष्मी जी को स्थापित करे। थाली में एक तरफ षोडस् मातृका पूजन के लिये रोली से .6 बिन्दु लगायें। नवग्रह पूजन के लिये रोली से ही खाने बनायें, सर्प आकृति बनायें, एक तरफ अपने पितरों को स्थान दें (थाली में एक बिन्दु लगायें) अब सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख बैठकर आचमन, पवित्राी-धारण-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़ते हुये गंगाजल छिड़के-
ओइम् अपवित्राः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोडपि वा।
य स्मरेत पुण्डरीकाक्षं सः बाह्य अत्यंतरः शुचि।।
इसके पश्चात् सभी देवी-देवताओं को गंगाजल छिड़ककर स्नान करायें, तिलक करें, डोरी (कलावा), तत्पश्चात गंगाजल मिले हुए जल से भरा लोटा या कलश का पूजन करे, डोरी बांधे, रोली से तिलक करे, पुष्प व चावल कलश पर वरूण देवता को नमस्कार करते हुये अर्पित करें।
इसके पश्चात् थाली में जो 9 खाने वाली जगह है, उस पर रोली, डोरी, पुष्प, चावल, फल, मिठाई आदि चढ़ाते हुये नवग्रह का ध्यान व प्रणाम करे और प्रार्थना करें कि सभी नवग्रह सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृह॰, शुक्र, शानि, राहू, केतू शान्ति प्रदान करें।
दीपावली (..11 )पर महालक्ष्मी पूजन मुहूर्त—–
घर में लक्ष्मी का वास हो, सुख-समृद्धि आये, घर में लक्ष्मी का स्थायी वास हो जाए, इसके लिये दीपावली का पूजन शुभ मुहूर्त में करें तथा लाभ उठाएँ।
26.10.2011 को दीपावली है.26.10.2011 को शाम 6 बज कर 49 मिनट से 8 बज कर 45 मिनट तक का मुहूर्त सबसे उत्तम है. यह वृष राशि स्थिर लग्न है.
पुनः रात्रि 1बज कर 17 मिनट से . बज कर 31 मिनट के बीच सिंहराशि स्थिर लग्न में पूजा कर लेना फलप्रद है.
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दीपावली पूजन सामग्री————————
धूप बत्ती (अगरबत्ती);चन्दन;कुमकुम;चांवल;अबीर;गुलाल;अभ्रक;हल्दी;चूड़ी;काजल;पायजेब;सोभाग्य द्रव्य-मेहंदी;बिछुड़ी अदि आभूषण;नाडा(मोली/लच्छा);
कपूर;केसर;रुई;यज्ञोपवित(जनेऊ)-पांच/५;रोली;सिंदूर;सुपारी पण के पत्ते;पुष्पमाला;कमल गत्ते;धनिया(खड़ा/बिना पिसा हुआ);पांच मेवा;गंगाजल;कुषा एवं दूर्वा;सप्तधान्य;सप्त म्रत्रिका ;शहद(मधु);चीनी(शक्कर);शुध्द घी;दूध;दहीं;
ऋतुफल–(गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि)
नैवेद्य या मिष्ठान्न –(पेड़ा, मालपुए इत्यादि)
इलायची (छोटी);लौंग;इत्र की शीशी;तुलसी दल;सिंहासन (चौकी, आसन)
पंच पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते)
औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि)
लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति);गणेशजी की मूर्ति;सरस्वती का चित्र;चाँदी का सिक्का
लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र
गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र
अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र
जल कलश (ताँबे या मिट्टी का)
सफेद कपड़ा (आधा मीटर)
लाल कपड़ा (आधा मीटर)
पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार)
दीपक
बड़े दीपक के लिए तेल
ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा)
श्रीफल (नारियल)
धान्य (चावल, गेहूँ)
लेखनी (कलम)
बही-खाता, स्याही की दवात
तुला (तराजू)
पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल)
एक नई थैली में हल्दी की गाँठ,
खड़ा धनिया व दूर्वा आदि
खील-बताशे
अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र
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तत्पश्चात् माता महालक्ष्मी जी का पूजन ’ओइम् महालक्ष्म्मै नमः‘ मन्त्र बोलते हुये सभी वस्तुएं यथा रोली, कलावा, पुष्प, मीठा व फल आदि लक्ष्मी जी को अर्पित करें। लक्ष्मी जी के पास बही खाते, कलम-दवात, कुबेर-यंत्रा, श्रीयंत्र आदि रखे।
कुबेर यंत्र पर ओम कुबेराय नमः मंत्र बोल कर पुष्प, चावल रोली,कलावा, फल व मिठाई आदि अर्पित करें। व्यापारी वर्ग बाट-तराजू की पूजा पुष्प चावल हाथ में लेकर ’ओम तुलाधिवठातृ देवतायें नमः‘ बोलते हुये अर्पित करे, इसके पश्चात् तेल के सभी दीपक जलाएं और पुष्प व चावल हाथ में लेकर ओम दीपावल्यै नमः का उच्चारण कर अर्पित करें।
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दीपावली ( 26 -10 -2011 )पूजन विधि——
कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। आज के दिन व्यापारी अपने बही खाते बदलते है तथा लाभ हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं। दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा हैं। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर में भाग्य की परीक्षा करना है। लोग जुआ खेलकर यह पता लगाते हैं कि उनका पूरा साल कैसा रहेगा।
पूजन विधानः दीपावली पर माँ लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती मैया की भी पूजा की जाती है। भारत मे दीपावली परम्प रम्पराओं का त्यौंहार है। पूरी परम्परा व श्रद्धा के साथ दीपावली का पूजन किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन में माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है। इसी तरह लक्ष्मी जी का पाना भी बाजार में मिलता है जिसकी परम्परागत पूजा की जानी अनिवार्य है। गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन भी किया जाता है। सरस्वती की पूजा का कारण यह है कि धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है इसलिए ज्ञान की पूजा के लिए माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
इस दिन धन व लक्ष्मी की पूजा के रूप में लोग लक्ष्मी पूजा में नोटों की गड्डी व चाँदी के सिक्के भी रखते हैं। इस दिन रंगोली सजाकर माँ लक्ष्मी को खुश किया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर, इन्द्र देव तथा समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान की भी पूजा की जाती है। तथा रंगोली सफेद व लाल मिट्टी से बनाकर व रंग बिरंगे रंगों से सजाकर बनाई जाती है।
विधिः दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व हैं। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छः चौमुखे दीपक दोनो थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें। इन सब दीपको को प्रज्जवलित करके जल, रोली, खील बताशे, चावल, गुड, अबीर, गुलाल, धूप, आदि से पूजन करें और टीका लगावें। व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर आकर पूजन करें। पहले पुरूष फिर स्त्रियाँ पूजन करें। स्त्रियाँ चावलों का बायना निकालकर कर उस रूपये रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श करके उन्हें दे दें तथा आशीवार्द प्राप्त करें। पूजा करने के बाद दीपकों को घर में जगह-जगह पर रखें। एक चौमुखा, छः छोटे दीपक गणेश लक्ष्मीजी के पास रख दें। चौमुखा दीपक का काजल सब बडे बुढे बच्चे अपनी आँखो में डालें।
दीपावली पूजन कैसे करें—-
प्रातः स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
अब निम्न संकल्प से दिनभर उपवास रहें-
मम सर्वापच्छांतिपूर्वकदीर्घायुष्यबलपुष्टिनैरुज्यादि-
सकलशुभफल प्राप्त्यर्थं
गजतुरगरथराज्यैश्वर्यादिसकलसम्पदामुत्तरोत्तराभिवृद्ध्यर्थं
इंद्रकुबेरसहितश्रीलक्ष्मीपूजनं करिष्ये।
संध्या के समय पुनः स्नान करें।
लक्ष्मीजी के स्वागत की तैयारी में घर की सफाई करके दीवार को चूने अथवा गेरू से पोतकर लक्ष्मीजी का चित्र बनाएं। (लक्ष्मीजी का छायाचित्र भी लगाया जा सकता है।)
भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, कदली फल, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ बनाएं।
लक्ष्मीजी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बाँधें।
इस पर गणेशजी की मिट्टी की मूर्ति स्थापित करें।
फिर गणेशजी को तिलक कर पूजा करें।
अब चौकी पर छः चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखें।
इनमें तेल-बत्ती डालकर जलाएं।
फिर जल, मौली, चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करें।
पूजा पहले पुरुष तथा बाद में स्त्रियां करें।
पूजा के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें।
एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर निम्न मंत्र से लक्ष्मीजी का पूजन करें-
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्वदर्चनात॥
इस मंत्र से इंद्र का ध्यान करें-
ऐरावतसमारूढो वज्रहस्तो महाबलः।
शतयज्ञाधिपो देवस्तमा इंद्राय ते नमः॥
इस मंत्र से कुबेर का ध्यान करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः॥
इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेशजी तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।
तत्पश्चात इच्छानुसार घर की बहू-बेटियों को आशीष और उपहार दें।
लक्ष्मी पूजन रात के बारह बजे करने का विशेष महत्व है।
इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली, हरी ग्वार की फली तथा पाँच लड्डू रखकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें।
उन्हें लड्डुओं से भोग लगाएँ।
दीपकों का काजल सभी स्त्री-पुरुष आँखों में लगाएं।
फिर रात्रि जागरण कर गोपाल सहस्रनाम पाठ करें।
इस दिन घर में बिल्ली आए तो उसे भगाएँ नहीं।
बड़े-बुजुर्गों के चरणों की वंदना करें।
व्यावसायिक प्रतिष्ठान, गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करें।
रात को बारह बजे दीपावली पूजन के उपरान्त चूने या गेरू में रुई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल्ल, लोढ़ा तथा छाज (सूप) पर कंकू से तिलक करें। (हालांकि आजकल घरों मे ये सभी चीजें मौजूद नहीं है लेकिन भारत के गाँवों में और छोटे कस्बों में आज भी इन सभी चीजों का विशेष महत्व है क्योंकि जीवन और भोजन का आधार ये ही हैं)
दूसरे दिन प्रातःकाल चार बजे उठकर पुराने छाज में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाते समय कहें ‘लक्ष्मी-लक्ष्मी आओ, दरिद्र-दरिद्र जाओ’।
लक्ष्मी पूजन के बाद अपने घर के तुलसी के गमले में, पौधों के गमलों में घर के आसपास मौजूद पेड़ के पास दीपक रखें और अपने पड़ोसियों के घर भी दीपक रखकर आएं।
मंत्र-पुष्पांजलि :
( अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें) :-
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।
(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)
प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें :-
क्षमा प्रार्थना :
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ॥
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वम् मम देवदेव ।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।
त्राहि माम् परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥
पूजन समर्पण :
हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :-
‘ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतुः’
(जल छोड़ दें, प्रणाम करें)
विसर्जन :
अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें :-
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥
ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!!
लक्ष्मीजी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत हर-विष्णु-धाता ॥ॐ जय…
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय…
तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता ।
जोकोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता ॥ॐ जय…
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय…
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय…
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता ॥ॐ जय…
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ॐ जय…
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता ।
उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता ॥ॐ जय…
(आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सभी लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।)
परमात्मा की पूजा में सबसे ज्यादा महत्व है भाव का, किसी भी शास्त्र या धार्मिक पुस्तक में पूजा के साथ धन-संपत्ति को नहीं जो़ड़ा गया है। इस श्लोक में पूजा के महत्व को दर्शाया गया है-
‘पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्यु पहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥’
पूज्य पांडुरंग शास्त्री अठवलेजी महाराज ने इस श्लोक की व्याख्या इस तरह से की है
‘पत्र, पुष्प, फल या जल जो मुझे (ईश्वर को) भक्तिपूर्वक अर्पण करता है, उस शुद्ध चित्त वाले भक्त के अर्पण किए हुए पदार्थ को मैं ग्रहण करता हूँ।’
भावना से अर्पण की हुई अल्प वस्तु को भी भगवान सहर्ष स्वीकार करते हैं। पूजा में वस्तु का नहीं, भाव का महत्व है।
परंतु मानव जब इतनी भावावस्था में न रहकर विचारशील जागृत भूमिका पर होता है, तब भी उसे लगता है कि प्रभु पर केवल पत्र, पुष्प, फल या जल चढ़ाना सच्चा पूजन नहीं है। ये सभी तो सच्चे पूजन में क्या-क्या होना चाहिए, यह समझाने वाले प्रतीक हैं।
पत्र यानी पत्ता। भगवान भोग के नहीं, भाव के भूखे हैं। भगवान शिवजी बिल्व पत्र से प्रसन्न होते हैं, गणपति दूर्वा को स्नेह से स्वीकारते हैं और तुलसी नारायण-प्रिया हैं! अल्प मूल्य की वस्तुएं भी हृदयपूर्वक भगवद् चरणों में अर्पण की जाए तो वे अमूल्य बन जाती हैं। पूजा हृदयपूर्वक होनी चाहिए, ऐसा सूचित करने के लिए ही तो नागवल्ली के हृदयाकार पत्ते का पूजा सामग्री में समावेश नहीं किया गया होगा न!
पत्र यानी वेद-ज्ञान, ऐसा अर्थ तो गीताकार ने खुद ही ‘छन्दांसि यस्य पर्णानि’ कहकर किया है। भगवान को कुछ दिया जाए वह ज्ञानपूर्वक, समझपूर्वक या वेदशास्त्र की आज्ञानुसार दिया जाए, ऐसा यहां अपेक्षित है। संक्षेप में पूजन के पीछे का अपेक्षित मंत्र ध्यान में रखकर पूजन करना चाहिए। मंत्रशून्य पूजा केवल एक बाह्य यांत्रिक क्रिया बनी रहती है, जिसकी नीरसता ऊब निर्माण करके मानव को थका देती है। इतना ही नहीं, आगे चलकर इस पूजाकांड के लिए मानवके मन में एक प्रकार की अरुचि भी निर्माण होती है।
इसके पश्चात अन्त में थाली में कपूर और घी का दीपक रखकर गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की आरती करें। स्वयं व परिवार के सभी सदस्यों को भी तिलक करें व रक्षा-सूत्रा हाथ में बांधें, इसके पश्चात् हाथ में पुष्प व चावल लेकर संकल्प करें, अपना नाम और गोत्रा बोलते हुये कि मैं सपरिवार आज दीपावली के शुभ अवसर पर महालक्ष्मी का पूजन, कुबेर व गौरी-गणपति के साथ धन-धान्यादि, पुत्रा-पौत्रादि, सुख समृद्धि हेतु कर रहा हूं। हाथ के पुष्प व चावल नीचे छोड़ दें। फिर निम्न प्रार्थना करें:-
’इन्द्र, पूषा, बृहस्पति हमारा कल्याण करें, पृथ्वी, जल अग्नि, औषधि हमारे लिये हितकारी हो, भगवान विष्णु हमारा कल्याण करे। अग्नि देवता,सूर्य देवता, चन्द्रमा देवता, वायु देवता, वरूण देवा व इन्द्र आदि देवता हमारी रक्षा करें। सभी दिशाओं और पृथ्वी पर शांति रहे। हम गणेश जी, लक्ष्मी-नारायण, उमा-शिव, सरस्वती, इन्द्र, माता-पिता व कुल देवता ग्राम या नगर देवता, वास्तुदेवता, स्थान देवता, एवम् सभी देवताओं और ब्राहमणों को प्रमाण करते हैं।
इसके बाद ’ओम श्री गणेशाय नमः‘ बोलते हुये गणेश जी का पुष्प, दूर्बादल आदि से पूजन करें। भगवान गणेश जी को नैवेद्य मिठाई, फल समर्पित करें। फिर पुष्प व चावल (अक्षत) हाथ में लेकर ओम भूभुर्वः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः बोलते हुये माता पार्वती का पूजन करे, नैवेद्य व फल समर्पित करें। हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
तत्पश्चात् पुष्प व अक्षत हाथ में लेकर 16 बिन्दु अर्थात षोडशमात् का पूजन करें, पुष्प, चावल, फल, मिठाई, डोरी (कलावा) रोली आदि समर्पित करें, प्रमाण करें, प्रार्थना करें:-
’हे विष्णु प्रिये लक्ष्मी जी हमें धन-धान्य से परिपूर्ण रखें। आप ही सर्व हैं। हमें पूजन, मंत्रा, क्रिया नहीं आती, हम अपराधी हैं, पापी हैं। आपके इस पूजन में किसी प्रकार की, किसी भी वस्तु की कमी या त्राुटि हो, कमी हो तो हमें क्षमा करना। यह कहते हुये पुष्प और अक्षत लक्ष्मी जी पर अर्पित कर दें और फिर हाथ जोड़कर पूरी श्रद्धा से यह प्रार्थना करें कि भगवान गणेश जी व माता लक्ष्मी जी हमारे घर में स्थायी निवास करें और अन्य सभी देवी देवता हमें आर्शीवाद देते हुये अपने-अपने स्थान पर प्रस्थान करने की कृपा करें। इसके पश्चात् भोग लगाकर प्रसाद को घर में सबको बांटकर ग्रहण करें।