कितना शुभ है ग्रह मालिक योग..????
जन्म के समय उपस्थित योगो का मानव जीवन से घनिश्ठ सम्बन्ध है , इन योगो के आधार पर ही मानव जीवन व्यतीत होता है । जन्म समय षुभ ग्रह योग होने पर जीवन सुख षान्ति पूर्वक व्यतीत होता है , तो अशुभ योग होने पर जीवन से निराष होना स्वाभाविक है , ज्योतिश के विभिन्न प्राचीन ग्रन्थो में कई प्रखर के शुभ योगो का वर्णन मिलता है , इन्ही सुखदायक योगो में ग्रहमालिका योगो का महत्वपूर्ण स्थान है , ग्रहमालिक योग में सामान्यतया सात ग्रहो का ही मूख्य रूप से ग्रहण है लेकिन कही – कही राहु केतु को षामिल कर भी ग्रहमालिका योग का वर्णन करते है ।
लग्नादिवाण संख्याक राषिगा नवखेचरा
स्थिताष्चेत्पî खेटाख्य मालिका योग उच्यते ।।
अर्थात यदि लग्न से प्रारम्भ कर सारे ग्रह पांचवे भाव तक स्थित हो तो पंच ग्रह मालिका योग होता है जिस प्रकार माली एक एक फूल को धागे में पिरोकर सुन्दर माला का रूप देता है वो माला आकर्शक एंव मनमोहक लगती है , इसी प्रकार माला जैसी स्थिति में यदि सभी ग्रह स्थित हो , एक भी भाव खाली न होतो उसका व्यक्तित्व आकर्शक एंव मनमोहक होता है । ग्रह एक दूसरे से अज्ञात षक्ति से बंधे होने के कारण उन ग्रहो के कारकत्वो के अनुसार जातक को सभी षुभ फलो की प्राप्ति अनायास ही होने लगती है । योग का भावनुसार प्रभाव भी अलग -अलग होता है । सारे ग्रह एक -एक करके छः राषियो में स्थित हो शटमालिका योग , सात भावो में हो तो सप्तमालिका योग होता है । यदि राहु केतु को भी षामिल करें तो ग्रह एक-एक भावो में स्थित होकर आठ भाव में अश्ठमालिका योग एंव नौ भावो में होने पर नवमालिका योग होता है ।
कुण्डली में सप्तमालिका योग उपस्थित होने पर यदि योग लग्न से निर्मित होतो माला योग होता है । इस योग में उत्पन्न जातक राजा एंव अनेक वाहनो का स्वामी होता है द्वितीय भाव से षुरू होने वाले योग को धनमाला योग कहते है । इस योग से जातक पषु प्रचुर धन सम्पत्ति का स्वामी , पितृभक्त एंव सुन्दर होता है । तीसरे भाव से विक्रम माला योग से जातक राजा , षुर , धनी लेकिन रोगी चतुर्थ भाव में बन्धुमाला होती है जिसके जातक दानी , अनेक देषो में घुमने वाला एंव सुखी होता है ।
पंचम भाव से मंत्रीमााला से जातक राजा या यज्ञकर्ता किर्तिमान होता है छठे भाव से इन्द्रमाला से जातक वर्शा से आत्मनिर्भर रहने वाला कभी सुखी कभी दुखी होता है । सप्तम भाव से काम माला से जातक सुन्दर स्त्री की प्राप्ति वाला , धनवान , सहयोगी , अश्टम भाव में निधनमाला से जातक दीर्घजीवी होता है लेकिन अन्य सुखो की प्राप्ति जीवन में कमजोर होती है । राज्य बाधा का भी सामना करना पड़ता है । नवम भाव से प्रारम्भ षुभमाला से जातक पितृभक्त , उचित आयु में भाग्योदय पाने वाला , धनी , मानी , धर्म , का पालन करने वाला , पूण्य कमाने वाला , तीर्थ यात्रा करने वाला तों दषम से कीर्तिमाला से जातक उत्तम कार्य व्यवसाय वाला धनवान वाला , व्यवहारिक होता है , एकादष भाव से विजय माला से जातक सभी कार्यो में दक्षता प्राप्त करने वाला , उत्तमलाभ एंव बन्धुसुख वाला तो द्वादष भाव से निर्मित पतनमाला से जातक अधिकखर्च करने से पतन की और अग्रसर लेकिन फिर भी माननीय होता है । लग्न से निर्मित मालिका योग नौका योग , चतुर्थ से कुट योग सप्तम से छत्र योग एंव दषम से चाप योग भी बनाते है । नौका योग में जातक जल से जीविका कमाने वाले , प्रसिद्ध , प्रसन्न , कंजूस , कुछ लोभी व दुश्ट होते है । कुट योग में झुठे ब्युरो अधिकारी , षटहीन , धुर्त , व क्रुर स्वभाव होते है । छात्र योग वाले लोगो को सहारा देने वाले , राजप्रिय , बुद्धिमान , तो चाप योग में झुठ के कार्य , कोतवाल , धोखेबाज मध्यावस्था में सुखी होते है ।
मालिक योग का प्रभाव कैसा रहता है । इसका उत्तम उदाहरण जवाहर लाल नेहरू की कुण्डली से देख सकते है इनकी कुण्डली में लग्न से छठे भाव तक सभी ग्रह स्थित है । चतुर्थ भाव में दो ग्रह षुक्र व बुध है । यदि राहु केतु षामिल करे तो भी द्वादष में राहु व छठे केतु तक सभी भावो में ग्रह है इनका जीवन अच्छा एंव व्यक्तित्व भी आकर्शण रहा है । ज्योतिश के महान विद्वान पण्डित मुकुन्द दैवज्ञ की कुण्डली में भी नवम से लग्न तक पंचमालिका योग बन रहा है , ये भी ज्योतिश के मुर्धन्य विद्वान युगो युग तक याद किए जाते रहेगें । इनका ज्योतिश जगत को दिया योगदान अमूल्य है अर्थात मालिका योगो में उत्पन्न जातक लोकप्रिय सेवाभावी , आकर्शक , व्यक्तित्व एंव प्रतिभा के धनी , सुखसमृद्धि दायक होते है ।
पं. दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार,
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) ..6023
मो0 नं0…. .