वास्तु निर्माण से सम्बंधित शास्त्रीय नियम—
प्राचीन एवम सर्वमान्य संहिता व वास्तु ग्रंथो में प्रतिपादित कुछ शास्त्रीय वास्तु नियमों का उल्लेख किया जाता है | वास्तु निर्माण में इनका प्रयोग करने पर वास्तु व्यक्ति के लिए सब प्रकार से शुभ ,समृद्धि कारक एवम मंगलदायक होता है |आजकल के तथाकथित वास्तु शास्त्रियों द्वारा जनसाधारण को व्यर्थ के बहम में डालने वाले तथा अपने ही गढे हुए नियमों पचडे में न पड़ कर केवल इन्हीं शास्त्रीय नियमों का पालन करने पर वास्तु सब प्रकार से शुभ होता है।
भूमि—
पूर्व ,उत्तर ,ईशान दिशाओं में झुकी भूमि शुभ होती है |
नदी के समीप ,बाम्बी वाली ,फटी , मन्दिर या चौराहे के निकट की भूमि आवास के लिए शुभ नहीं होती |
निर्माणाधीन भूखंड में से कोयला,अस्थि ,केश ,भस्म, भूसा ,कपास एवम चमड़ा आदि शल्य निकाल देने चाहियेंअन्यथा गृह वासिओं को कष्ट प्रदान करते हैं |
गृह निर्माण में वास्तु शास्त्र में वर्णित किसी एक ही वृक्ष की लकड़ी का प्रयोग हो तो शल्य दोष नहीं होता |
गृह निर्माण में शीशम ,खैर ,देवदार ,सागवान ,चंदन आदि वृक्षों की लकड़ी का प्रयोग करें ।
नवीन गृह में पुराने घर की लकड़ी का प्रयोग अशुभ फल दायक है |
वास्तु का आकार—
वर्गाकार तथा आयताकार भूखंड जिनके चारों कोण ९०-९० अंश के हों वास्तु के लिए शुभ होते हैं |
जितने भूखंड पर निर्माण किया जाना है ,उसकी लम्बाई ,चौडाई से दुगनी या अधिक नहीं होनी चाहिए |
भूखंड असमान भुजाओं या कोण का हो तो आस-पास जगह छोड़ कर गृह निर्माण वर्ग या आयत में ही करें | खालीजगह पर उद्यान -वनस्पति लगायें |
निर्माणाधीन भूखंड को दिक् शुद्ध अवश्य कर लें ,तभी वास्तु पुरूष के पूर्ण अंग वास्तु में आयेंगे तथा गृहस्वामी कोसुख,धन धान्य यश एवम समृद्धि प्राप्त होगी |
किस स्थान पर क्या बनायें..???
गृह के पूर्वी भाग में या उत्तरी भाग में जल का स्थान रखें |
आग्नेय कोण में रसोई घर बनवाएं |
शयन कक्ष को गृह के दक्षिणी भाग में निश्चित करें |
भोजन करने का स्थान पश्चिम दिशा में होना चाहिए |
पूजा गृह ईशान कोण में अधिक शुभ रहता है |
शौचालय नै ऋ त्य दिशा में बनवाएं |
नैऋत्य एवम पश्चिम दिशा के मध्य अध्ययन कक्ष शुभ रहता है |
सीढ़ी उत्तर या पश्चिम में शुभ हैं ,विषम संख्या में हों तथा सदैव दा ऍ ओर मुडती हों |ऊपर पूर्व या दक्षिण की ओरखुलती हों
गृह के प्रथम खंड में सूर्य किरण तथा वायु का आना बहुत शुभ होता है |
मुख्य द्वार—-
१५हाथ ऊँचा ,८ हाथ चौडा उत्तम एवम १३ हाथ ऊँचा ७ हाथ चौडा मध्यम कहा गया है |
मुख्य द्वार के सामने कोई वृक्ष ,स्तंभ ,मन्दिर ,दिवार का कोना ,पानी का नल ,नाली ,दूसरे घर का द्वार तथा कीच हो तो वेध करता है |
गृह की ऊंचाई से दुगनी दूरी पर वेध हो या गृह राजमार्ग पर स्थित हो तो वेध नहीं होता |
वास्तुराज वल्लभ के अनुसार सिंह -वृश्चिक -मीन राशिः वालों के लिए पूर्व दिशा में ,कर्क -कन्या -मकर राशिःवालों के लिए दक्षिण ,मिथुन -तुला -धनु राशिः वालों के लिए पश्चिम एवम मेष -वृष – कुम्भ राशिः वालों के लिएउत्तर दिशा में मुख्य द्वार बनवाना शुभ होता है |
वराह मिहिर के अनुसार जिस दिशा में मुख्य द्वार रखना है भूखंड की उस भुजा के बराबर आठ भाग करें ,पूर्वीदिशा में बांयें से तीसरा व चौथा भाग ,दक्षिण दिशा में केवल चौथा भाग ,पश्चिमी दिशा व उत्तरी दिशा में तीसराचौथा -पांचवां भाग मुख्य द्वार के निर्माण के लिए शुभ होता है |
– अन्य दोष निवारक वास्तु नियम—-
गृह में प्रवेश करते समय गृह का पृष्ठ भाग दिखना शुभ नहीं होता |
उत्तर एवम पश्चिम दिशा में रोशनदान शुभ नहीं होते |
पंचक नक्षत्रों में घर के लिए लकड़ी मत खरीदें |
घर के सभी द्वार एक सूत्र में होने चाहियें ,ऊपर की मंजिल के द्वारों किउंचाई नीचे के द्वारों से द्वादशांश छोटी होनी चाहिये |
गृह के द्वार अपने आप ही खुलते या बंद होते हो तो अशुभ है ।
गृह क द्वार प्रमाण से अधिक लम्बे हो तोरोग कारक तथा छोटे हो तो धन नाशक होते है ।
गृह द्वार पर मधु का छत्ता लगे या चौखट, दरवाजा गिर जाये तोगृह पति को कष्ट होता है ।
घर में चौरस स्तम्भ बनवाना शुभ होता है तथा गोल स्तम्भ बनवाना अशुभ ।
गृह वृद्धि चारो दिशाओ में समान होनी चाहिये । केवल पूर्वी दिशा में वृद्धि करने पर मित्र से वैर ,उत्तर में चिंता , पश्चिम में धन नाश तथा दक्षिण में क्षत्रु भय होता है ।
द्वार उपर के भाग मई आगे घुका हो तो संतान नाशक होता है ।
घर मई कपोत , गिद्ध , वानर , काक तथा भयानक चित्र शुभ नही होते ।
घर के उद्यान में अशोक, निम्बू ,अनार ,चम्पक , अंगूर , पाटल , नारियल ,केतकी ,शमी आदि वृक्षो का लगाना शुभहै।
घर के उद्यान में हल्दी , केला , नीम , बेहडा ,अरंड तथा सभी कांटे दार एवं दूध वाले वृक्ष लगाने का निषेध है ।
मुख्य द्वार पर स्वास्तिक , गणेश , कलश, नारियल ,शंख ,कमल आदि मंगलकारी चिह्नों को अंकित करने से गृह के दोषों का निवारण होता है ।
नवीन गृह में प्रवेश से पूर्व वास्तु पूजा तथा श्री रामचरितमानस का पाठ करने से समस्त वास्तुजनित दोष दूर हो जाते है ।

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