आपका शयन कक्ष कहां हो ..???
शयन कक्ष का सम्पूर्ण भवन में महत्वपूर्ण स्थान रहता हैं । गृह स्वामी जब भवन का निर्माण करवाता हैं तो दिशा का चुनाव वास्तु आधार पर करना चाहिए । शयन कक्ष का निर्माण एवं उसको व्यवस्थित करते समय वैज्ञानिक तथ्यों एवं वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करना चाहिए, जिससे भवन में गृह-स्वामी और उसका परिवार सुखी रह सकें , मधुर निद्रा का आनन्द ले सके जिससे उसका अच्छा स्वास्थ्य रहे। अच्छे स्वास्थ्य के रहने पर कर्म क्षैत्र में अपनी पूरी क्षमता को प्रयोग कर पाता हैं । अतः यह आवश्यक हैं कि गृहस्वामी जब भवन का निर्माण करता है तो शयन कक्ष के लिए दिशा का चुनाव वास्तु आधार पर करें । किस दिशा में किस कक्ष को बनाने से क्या प्रभाव आता हैं वह निम्न हैं:-
पूर्व:- इस दिशा में शयन कक्ष बनाना अच्छा नहंी माना जाता हैं । यदि भवन में पूर्व दिशा में शयन कक्ष बना हुआ हैं तो उसे अविवाहित बच्चों के लिए शयन कक्ष के लिए कार्य में ले सकते हैं। इस कक्ष में नवविवाहित/विवाहित दम्पत्ति को नहंी सोना चाहिए । क्योकिं यह पवित्र (स्थान) दिशा होती हैं । जिसमें सम्भोग वर्जित हैं । पूर्व दिशा देवराज इन्द्र की होती हैं तथा ग्रहों में सूर्य-ग्रह की दिशा होती हैं । अतः पूर्व दिशा में यदि शयन कक्ष बना होतो उसे विवाहित नवयुगलों के लि शयन कक्ष के लिए प्रयोग में नहीं लेना चाहिए । बुजुर्गो एवं अविवाहित बच्चों के लिए शयन कक्ष के लिए प्रयोग में लाया जा सकता हैं ।
उत्तर पूर्व (ईशान):- इस दिशा में शयन कक्ष का निर्माण न करें तो श्रेष्ठ रहेगा, इस दिशा में स्थित स्थल को अन्य कार्य के लए प्रयोग में ले तो अच्छा रहेगा, यह पवित्र दिशा ईश्वर की होती हैं तथा ग्रहों में बृहस्पति की दिशा मानी जाती हैं । इस स्थल पर पूजा कक्ष या बच्चों के लिए अध्ययन/शयन कक्ष के लिए प्रयोग में ले सकते हेै। बड़ों के लिए यह वर्जित हैं । विवाहित जोड़ो को इस कक्ष में शयन नहंी करना चाहिए । उनके शयन करने पर कन्या संतान अधिक होने की सम्भावना बनी रहती हैं ।
उत्तर दिशा:- इस दिशा में शयन कक्ष का निर्माण किया जा सकता हैं, लेकिन गृहस्वामी को बेडरूम इस कक्ष के लिए उपयुक्त हीं हैं । इस कक्ष का प्रयोग घर के अन्य सदस्यों के लिए शयन कक्ष के लिए श्रेष्ठ रहेगा।
उत्तर पश्चिम:- इस दिशा में शयन कक्ष का निर्माण किया जा सकता हैं, यदि गृहस्वामी का व्यवसाय/सर्विस ऐसी होती हैं जिसमें अक्सर उन्हें टूर पर रहना होता हैं, उनके लिए वायव्य कोण में शयन कक्ष बनाना श्रेष्ठ रहेगा। इसके अतिरिक्त यह कक्ष मेहमानों के लिए ठहरने का सर्वश्रेष्ठ स्थल माना जा सकता हैं । जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब हो रहा हो, उन्हें इस दिशा के कक्ष में शयन करने से विवाह की सम्भावना प्रबल हो जाती हैं ।
पश्चिम दिशा:- इस दिशा में शयन कक्ष का निर्माण किया जा सकता हैं ।
दक्षिण-पश्चिम दिशा:- इस दिशा का कक्ष शयन के लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता हैं । गृहस्वामी के लिए इस दिशा में स्थित कक्ष सबसे उपयुक्त माना जाता हैं । नैऋत्य कोण पृथ्वी तत्व हैं अर्थात स्थिरता का प्रतीक हैं । अतः इस कक्ष में गृहस्वामी का शयन कक्ष होने पर वह निरोगी एवं भवन में दीर्घकाल तक निवास करता हैं ।
दक्षिण दिशा:- इस दिशा में शयन कक्ष गृहस्वामी के लिए उपयुक्त माना गया हैं । इस कक्ष का शयन के लिए प्रयोग गृहस्वामी के अतिरिक्त विवाहित दम्पत्तियों (विवाहित बेटों) के लिए भी उपयुक्त कक्ष माना जाता हैं ।
दक्षिण पूर्व:- इस दिशा में शयन कक्ष को बनाना उचित नहीं माना गया हैं । यदि गृहस्वामी ऐसे कक्ष में शयन करता हैं तो वह अनिद्रा से ग्रस्त अथवा क्रोध आना, पूर्ण असन्तुष्टि मस्तिष्क में बनी रहना, जल्दबाजी में निर्णय लेकर, नुकसान उठाने पर पछतावा बना रहना ।
पं. दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार,
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) ..6023
मो0 नं0 ….

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