शनि अमावस्या- पूजा-अर्चना से पूरी होगी हर मनोकामना—पं. विरेंद्र बाबा, राज ज्योतिषी
शनि देव की करुणा दृष्टि जिस पर पड़े उसका कल्याण हो जाता है। शनि देव को प्रसन्न करने की बेला चार साल बाद आई है। शनि जयंती और शनिचरी अमावस्या के एक साथ पड़ने से स्वार्थ सिद्धीयोग का सर्वोच्चम योग बन रहा है। इस स्वार्थ सिद्धी योग के शुभ मौके पर शनि दोष मुक्ति के लिए श्रद्धामय होकर शनि देव की उपासना करें, इससे सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी, अर्थात शनि देव की करुणा दृष्टि सदैव पड़ती रहेगी।
शनि देव को प्रसन्न करने का उपाय—
सुबह स्नानवृत करके शनिदेव का ध्यान करना चाहिए। शनिदेव को काला नारियल (नारियल को काले कपड़े में बांध कर) अर्पित करें, काली दाल, सरसों का तेल, काले कपड़ों का दान, जरूरतमंदों व रोगियों की सहायता करना, गरीबों को खाना खिलाना, दक्षिणा देना शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस दिन भक्तों को शनि देव का व्रत रखना चाहिए और शनि ग्रह का पूजन शुभ होगा।
वेदों के अनुसार शनि जयंती के दिन ही अमावस्या का आना शनिचरी अमावस्या कहलाता है। इसदिन रोहणी नक्षत्र का बनना स्वार्थ सिद्धी योग बनाता है। इससे शनि देव को प्रसन्न करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
आज है शनि जयंती…….
शनि के भक्तों के लिए आज का दिन बहुत खास है। आज शनि बाबा की जयंती है और श्नेच्री अमावस एक साथ हैं। आज का दिन अति पूज्य धर्म दान पुण्य वाला है। ये दिन दुर्लभ है क्योकि शनि दिवस को अमावस बड़े भाग्य से आती है। आजकल शनि की भक्ति का दौर है। इस दिन शनि की प्रिय वस्तूए लोहा काले तिल सरसों का तेल काली दाल और काला वस्त्र का दान सुपात्र को सूर्य उदय से लेकर अस्त होने तक घर के देहलीज़ पर बैठ कर उत्तर दिशा की और मुख करके शांत भाव से देना चाहिए। कथाओं में शनि को क्रूर ग्रह कहा गया है पर ये सब मिथ्या है। शनि तो न्याय का अधिकारी देव ग्रह है। शनि की ख़ुशी के लिए काले कुत्ते या काले भैंसा को काली दाल मे भात पका कर खिलाना चाहिए। साँझ को पीपल के पेड़ तले सरसों के तेल का दीपक जलाना अति उत्तम कहा गया है। स्मरण रहे शनि की दशा तीस मास हर किसी की राशि पर जरुर आती है। अमुक की जन्म कुंडली मे जन्म राशी से चोथे या आठवे भाव मे शनि हो तो इसको शनि ढईया भी कहते है। और यदि किसी जातक की जन्म कुंडली मे जन्मराशी से द्वादश भाव मे या फिर जन्मराशी मे या जन्मराशी से दुसरे भाव मे शनि हो तो आमुक को शनि की 9. मास की यातना भोगनी पडती है। जन्मराशी मे द्वादस भाव मे ढाई साल, फिर जन्मराशी मे शनि ढाई साल और फिर जन्मराशी से दुसरे भाव मे ढाई साल शनि विचरण करता है। पर जो जन मात पिता का आदर पूजा करता उसको शनि अपनी दशा मे भी पीड़ा नहीं देते हैं। जिस पर शनि की कुद्रिष्टी पड़ जाये उसको कोई नहीं बचा सकता है। शनि धोखा, ईर्ष्या, छल व् मक्कारी करने वाले को माफ़ नहीं करते। शनि को खुश करने के लिए नित्य हनुमान चालीसा का पाठ शुभकर होता है। शनि ही एकल ग्रह है जो अपनी अगली और पिछली राशी पर ढाई साल तक छाया प्रभाव बनाये रहता है। शनि अपनी दशा मे सब को एक नजर से देखते हैं। क्योकि ये न्यायप्रिय हैं। शनि की प्रसन्नता हेतु शनि के दस नाम का उचार्ण करना चाहिए; “पिंगल, कृष्णा, छाया- नन्दन, व-भ्रू, कोन्न्स्थ, रोद्र, दुःख-भंजन; सौरी, मंद, शनि दश नामा, भानु पुत्र पुज्य्ही सब कामा ” !! प्रात शनि सिमरन और सूर्य दर्शन श्रेयकर होता है। शनि या सूर्य की प्रतिमा के सम्मुख भूमि पर लेट कर नतमस्तक हो व्न्धना करनी चाहिए। शनि की देह नीली व नजर विकराल लाल आंखें चार भूजैं हैं। शनि के सात वाहन मृग, स्वाना, गदर्भ, दिग्गज, गज और ज्म्ब्क, सिंह हैं। ये सब ही नखधारी हैं। और शनि के चार चरण लोहा, तांबा, चांदी व् स्वर्ण हैं। राजा दक्ष, भोले शंकर, हरिश्चन्द्र, रजा नल, पांडव, कौरव, राजा राम, राजा जंक, राजा दशरथ, गणपति और महाराज दमयंती, लंकेश, राजा बली और राजा बाली, सती द्रोपदी, माता सीता, सती सवित्री, आदि को शनि ने भीष्म दुःख देकर परीक्षा ली। शनि पिता दिनकर भगवान और माता छाया के सूत और यमुना व् यम के अग्रज भ्राता हैं। मकर और कुम्भ राशी व पुष्य, उत्तर भाद्रपद सहित अनुराधा के अधिकारी हैं। शनि बाबा की जाती क्षत्रिय और गोत्र कश्यप है। शनि भगवान शंकर व कृष्ण भगत हैं और मित्र काल भेरव, बुध व राहू हैं। शनि की दशा मे शनि का ही प्रिय रत्न नीलम धारण करो। शनि दशा मे लोह्पत्र मे भोजन करो और भूमि शयन करो तो शनि की क्रूर दशा से बचाव रहता है। शनि अपनी माता के संताप दुःख के कारण ही पिता सूर्य के घोर विरोधी हुए थे। शनि स्तुति मे सदा ही उनकी नजर नीची रखने की विनती करनी चाहिए। बाकि सब देवी देवता की नजर उपर ही मांगनी चाहिए। शनि-अमावस को शनि पूजन ध्यान दान दया धर्म का बड़ा मर्म होता है। शनि को मोदक मिष्ठान पान-सुपारी भी प्रिय हैं। शनि की आशीष से न्याय, लोह का व्यापार, पेट्रो प्रोडक्ट्स, ट्रांसपोर्ट निर्माण, कलपुर्जे व मुरम्मत, का व्यवसाय अत्तिलाभ्प्र्द साबित होता है। शनि आराधना जन्म-जन्म के जीवन मरण के बंधन से मुक्त करती है।
शनि की चाल रहस्यमई होती है। विश्वास धेर्य धर्म वाले पर शनि की किरपा रहती है। करजई मानस को शनि स्रोत्र का .8 या .0 शनि दिवस पथ करना हितकर होता है। बाँझ ओरतें शनि की उपासना करके सन्तान सुख पति हैं क्योकि शनि नारी जात का आदर करते हैं। करजई व्यक्ति को युधिष्ठर -नारद सम्वाद का श्रवण करना लाभप्रद होता है। शनि चालीसा पाठ भगत हनुमान की आरती के बिना अधुरा माना जाता है।