इस जानलेवा बीमारी (एड्स)में पी़ड़ानाशक है शुक्र मंत्र–
हिन्दू धर्म की पौराणिक प्रसंगों में देवासुर संग्राम प्रसिद्ध है। इस युद्ध में असुरों की सबसे बड़ी शक्ति उनके गुरु शुक्राचार्य बनें। शुक्राचार्य ने अद्भुत योगबल और तप से शिव को प्रसन्न कर विलक्षण संजीवनी विद्या प्राप्त की। जिसके द्वारा मृत देह फिर से जीवित हो सकती थी। दैत्य गुरु शुक्राचार्य महाज्ञानी व महायोगी माने गए हैं।
यही कारण है कि धर्मशास्त्रों दैत्यगुरु शुक्राचार्य की ही शुक्रदेव के रूप में उपासना जीवनदायी व संकटनाशक बताई गई है। जिसके लिये शुक्रवार का दिन शुभ माना गया है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक भी शुक्र ग्रह के शुभ प्रभाव सभी सांसारिक और भौतिक सुखों को देने वाले माने गये हैं। खासतौर पर वैवाहिक सुख, स्वास्थ्य, सुख-सुविधा के साधन प्राप्त होते हैं। वहीं शुक्र ग्रह की बुरी दशा में दाम्पत्य में विवाद, अभाव और रोगों से जूझना पड़ सकता है।
शुक्र ग्रह के स्वास्थ्य पर पडऩे वाले बुरे असर की बात करें तो शुक्र ग्रह योन सुखों का निर्धारक भी माना गया है। इसलिए शुक्र के कमजोर या बुरे योग योन समस्याओं और रोगों को जन्म देते हैं। योन रोगों में ही आज की सबसे गंभीर और लाइलाज बीमारी मानी गई है – एड्स।
वैसे एड्स से बचाव का तरीका मानसिक और शारीरिक संयम व सावधानियों को माना गया है। वहीं शास्त्रों में शुक्र के अनिष्टकारी दशा से पैदा हुए एड्स और अन्य योन रोगों में राहत पाने के लिये शुक्र पूजा और शुक्र मंत्र का ध्यान असरदार माना गया है। जानते हैं यह मंत्र और पूजा की सरल विधि –
– सक्षम होने पर रोगी स्वयं या उसके परिजन यह शुक्र उपासना व मंत्र जप कर सकते हैं। पूजा या मंत्र जप में कठिनाई हो तो विद्वान ब्राह्मण से कराना श्रेष्ठ उपाय है।
– प्रात: स्नान कर नवग्रह मंदिर या घर में शुक्रदेव की कांसे की प्रतिमा के सामने इस मंत्र से आवाहन करें –
ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं आवाह्याम्यहम्।।
– इसके बाद प्रतिमा को पवित्र जल से स्नान कराकर शुक्रदेव की पूजा सफेद सामग्री अर्पित कर करें। जिनमें सफेद चंदन, अक्षत, सफेद फूल, सफेद वस्त्र शामिल हों। दूध में बनी खीर का भोग लगाएं।
– पूजा के बाद नीचे लिखे शुक्र मंत्र का जप कर संबंधित रोग का अंत या राहत के साथ निरोगी जीवन की कामना करें –
ॐ अन्नात् परिसुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्। क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं, विपान्, शुक्रमंधस इन्द्रसयेन्द्रियमिदं पयोमृतम्मधुम्।।
– अंत में आरती करें। खीर का प्रसाद ग्रहण करें। इस दिन संभव हो तो शुक्रवार का व्रत कर रात में भोजन करें। यह मंत्र जप मूत्र रोगों, पथरी, वीर्य रोग का नाश करने भी प्रभावी है।