*********योग***** -पवन तलहन**
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योग का आदर्श —
योग द्वरा मनुष्य अपने स्वरुप सच्चिदानंद का अनुभव कर लेता है! योग का ध्येय वह तुरिय नामक परम आत्मा में स्थिति है, जिसमें जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति किसीका भी अनुभव न हो और न इनके आगामी बीज भी रहे तथा जिसमें परम आनंद निरंतर अनुभव होता रहे!
योग के तीन प्रभेद
१–एक तत्त्व की दृढ भावना
२–मन की शान्ति
३–प्राणों का स्पंदन का निरोध!
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१—एक तत्त्व का दृढ अभ्यास
तीन प्रकार के अभ्यास-
१–ब्रह्मअभ्यास
२–अभाव-भावना
३–केवालीभाव!
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२——मनोलय —–
३—मन को शांत करने के उपाय—
जिसके १० प्रकार के भेद हैं—-
१–ज्ञानयुक्ति
२–संकल्पत्याग
३–भोगों से विरक्ति
४–वासनात्याग
५–अहंभाव का नाश
६–असंग का अभाव
७–कर्तृत्व भाव का त्याग
८–सर्वत्याग
९–समाधि का अभ्यास
१०–लयक्रिया!
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योग की सात भूमिकाएं–
१–शुभेच्छा
२–विचारणा
३–तनुमानसा
४–सत्त्वापत्ति
५–असंगति
६–पदार्थाभावानी
७–तुर्यगा !
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३—प्राण-निरोध
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