खुद को सँभालना सीखें—– अनुराग तागड़े
जिंदगी में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं, जब व्यक्ति हताश हो जाता है। जिंदगी बोझिल लगने लगती है और कुछ भी अच्छा नहीं लगता। यह ऐसा समय होता है, जब दोस्तों के साथ पार्टी में भी जाने का मन नहीं करता। असफलता हो निजी जिंदगी के रिश्तों की या स्वयं की असफलता के कारण ऐसा हो जाता है।
यह जिंदगी का महत्वपूर्ण समय होता है, जिसमें व्यक्ति का संपूर्ण करियर निर्भर करता है फिर वह नौकरी कर रहा हो या पढ़ाई। विपरीत परिस्थतियों को मात देना और साथ में स्वयं को भी संभालना न केवल थोड़ा मुश्किल काम है, बल्कि इसमें परिवार वालों का साथ भी जरूरी होता है।
एक युवा साथी थे काफी होशियार, स्मार्ट और सभी कामों को अलग ढंग से करने वाले। उन्हें बाइक चलाने का काफी शौक था और यही कारण था कि माता-पिता ने उन्हें एक पावर बाइक खरीद दी। ये युवा साथी बाइक पर इठलाते हुए सड़क पर निकलते थे और तेज गति में चलना इनका शौक था। माता-पिता समझाते भी थे, पर इन पर कोई असर नहीं पड़ता था। इस युवा साथी के सपने भी काफी बड़े थे।
वे अपना स्वयं का उद्योग आरंभ करना चाहते थे। इसके लिए वे एमबीए कर रहे थे और उसके बाद छोटा उद्योग आरंभ कर सपने की शुरुआत करना चाहते थे। एक दिन सड़क पर जा रहे ट्रक से भिड़ गए और गंभीर रूप से घायल हो गए। माता-पिता अस्पताल में पहुँचे, डॉक्टर ने बताया कि दोनों पैरों में गंभीर चोट लगी है और हो सकता है दोनों पैरों को काटना पड़े। यह सुनकर माता-पिता के जैसे होश ही उड़ गए।
रिश्तेदारों ने समझाया कि इतना ही मानों कि बेटा बच गया। कठोर मन से यह निर्णय लिया गया कि पैरों को काटा जाए। बेटा ठीक हो गया और जब पहली बार होश में आया तब उसे यह जानकार धक्का लगा कि अब जिंदगी भर उसे सहारे की जरूरत पड़ेगी। जब बेटा अस्पताल में था तब ही माता-पिता ने सोच लिया था कि चाहे जो हो जाए बेटे की हिम्मत को नहीं टूटने देंगे। बेटा घर पर आते ही माता-पिता ने बेटे के प्रति रुख बदल दिया।
माँ ने कठोर मन कर लिया और जितना हो सके बेटे को अपने मन से दैनिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया। कुछ ही समय में बेटे को लगने लगा कि माता-पिता का रुख उसके प्रति बदल गया है और उसे अपने काम स्वयं ही करना होंगे। माता-पिता ने यह भी कहा कि हम जिंदगी भर के लिए तुम्हारे साथ नहीं रहेंगे।
तुम्हें अपने लिए कुछ करना ही होगा। बेटे के अहं को हल्की ठेस पहुँचाई गई। बेटे को लगा कि उसे ही अपने लिए कुछ करना होगा। उसने स्वयं का उद्योग डालने की योजना बनाई ही थी, उसे मूर्तरूप देने के लिए उसने एमबीए पूर्ण करने का संकल्प लिया। एमबीए करने के दौरान ही उसके तीन अन्य दोस्त बने, जिनमें से एक विकलांग था और बाकी सामान्य। चारों ने मिलकर बड़ा उद्योग डालने की योजना बनाई और मात्र 5 वर्षों में सफलता अर्जित कर ली।
दोस्तों कहानी यह कहती है कि परिस्थितियाँ कैसी भी हो, हमें स्वयं को संभालना जरूरी है। परिवार के सदस्य हमारे लिए जितनी मदद और सहायता कर सकते हैं वह तो करते ही हैं, पर अंत में जब तक स्वयं को संभालने के लिए स्वयं से जिद करना पड़ती है तभी हमें सफलता मिलती है।
(सौजन्य से – नईदुनिया)