ध्यान——
ध्यान के बारे में क्या कहू ? आप को बाज़ार में लाखों किताबे मिलेगी जो आप को ध्यान लगाने की विधिं सिखायेगी|आप देखते हो शिवर लग रहे है हजारो की गिनती में लोग आखें मूँद कर बैठ जाते है और कहते है बहुत अन्नंद आया|कोई बाएँ स्वर को चला रहा है कोई दायें को, कोई दोनों को चला रहा है|कोई बुद्ध की मूर्ति के सामने खडा है|कोई ऑडियो कैसेट चला रहा है|अब बड़ी मजेदार बात है की ये जो ऑडियो कैसेट वाले साधक है, लाइट गई नहीं की उन का ध्यान टूट जाता है|आप क्या कर रहे हो ? अब जिस की मूर्ति के सामने आप ध्यान लगा कर बैठे हो उन के समय में तो लाइट भी नहीं होती थी अविष्कार ही नहीं हुआ था|
ध्यान तो वो चीज है की आप कही भी किसी भी पल किसी भी अवस्था में कर सकते हो,किसी भी जगह पर हो इस से कोई फर्क नहीं होता|मुझे ध्यान की लम्बी चौडी कहानी तो नहीं आती है| हां, आप की जिज्ञासा जरुर पूरी हो जाये गी |
यह शब्द हम बचपन से सुनते आये है, जब स्कूल में पढ़ते थे तो टीचर कहते थे आज कल आप का ध्यान किधर है? आप ध्यान नहीं देते ध्यान दोगे तो समझ में आयेगा|हर जगह आप को जताया जाता है| कहने का मतलब है की आप हर वक़त ध्यान में ही होते हो आप उस के बिना नहीं रह सकते फर्क है तो बस यह की आप किस के ध्यान में रहते हो,मेरी सोच इस में बहुत दूसरी है में सोचता हूँ की कुछ ध्यान या कुछ चीजो का ध्यान ऐसा होता है,जो आप को उर्जावान बना देता है, उर्जा से भर देता है, आप का रोम रोम पुलकित हो जाता है आप उर्जा से भर जाते हो, जैसे नयापन आ गया है, कुछ नया हो गया है |और इस के विपरीत कुछ ध्यान ऐसी चीजो का हो जाता है जो आप की उर्जा को पी जाता है, आप खाली हो जाते हो जैसे आप के शरीर से कुछ बाहर निकल गया है आप उर्जा हीन शक्ति हीन हो जाते हो मुर्दा हो जाते हो|
ध्यान सिर्फ एक मिनट—-
मात्र अभिनय—
इसे थोडा ज़िन्दगी में प्रयोग करो | दुकान जाओ, काम करो, लेकिन दूर भी बने रहो | तुम्हारे काम और तुम्हारे होने में एक फासला बना रहे | काम अभिनय हो जाये, नाटक हो जाये, लीला हो जाये | तुम कर्ता न रहो | बस ! सूत्र सध गया | तुम अभिनेता हो जाओ | अभिनय की कला तुम्हारे पुरे जीवन का सूत्र बन जाये | क्यों की वही परमात्मा के होने का ढंग है | वही तुम्हारा साधना – पथ होगा |
मोन का रंग—-
जब भी आप को नीले रंग का कोई दृश्य दिखे – आकाश का नीलापन – तो बस शांत बैठ जाये और उसकी नीलिमा में देखते रहें | और आपको एक गहन शांति अनुभव होगी | जब भी आप नीले रंग का ध्यान करेंगे, एक गहन शांति आप पर उतर आएगी |
नीला रंग सबसे अधिक आध्यात्मिक रंगों में से एक है, क्यों क्योंकि वह शांति का, मोंन का रंग है | वह थिरता का, विश्राम का, लीनता का रंग है | तो जब भी आप गहन शांति में होते हैं, अचानक आप भीतर एक नीली ज्योति महसूस करेंगे | और यदि आप अपने भीतर नीली ज्योति का भाव करें तो आप एकदम शांत महसूस करेंगे | यह दोनों तरफ से काम करता है |
उर्जा का स्तम्भ—-
यदि आप मौन खड़े रहे तो तुरंत एक तरह की शांति आपको घेरने लगेगी | इसे अपने कमरे के कोने में करके देखें | कमरे के कोने में, कुछ न करते हुए, बस चुपचाप खड़े हो जाएँ | अचानक उर्जा भी आपके भीतर थिर खड़ी हो जाएगी | बैठे हुए आप कई तरह के उपद्रव मन में महसूस करेंगे, क्योकि बैठने की मुद्रा एक विचारक की मुद्रा है | खड़े होने में उर्जा एक स्तम्भ के समान प्रवाहित होती है और समान रूप से पूरे शरीर में बहती है | खड़ा होना सुंदर अनुभव है |
इसका प्रयोग करके देखें, क्योंकि आपमें से बहुतों को यह बहुत अच्छा लगेगा | यदि आप एक घंटा खड़े रह सकें तो बहुत अच्छा होगा | बिना कुछ किये, बिना हिले-दुले खड़े भर रहने से ही आप पायेंगे कि आपके भीतर कोई चीज ठहर गई है, शांत हो गई है और आप स्वएं को एक उर्जा का स्तम्भ जैसा महसूस करेंगे | शरीर का पता नहीं चलेगा |
गडडा खोदो—
तुम्हारे मन में क्रोध उठा है | किसी ने गाली दे दी, या किसी ने अपमान कर दिया, या घर में किसी ने तुम्हारी कोई बहुमूल्य चीज तोड़ दी और तुम क्रोधित हो गए हो | एक काम करो | जाकर, घर के बाहर बगीचे में कुदाली लेकर एक दो फिट का गडडा खोद डालो | और तुम बड़े हैरान होगे कि गड्डा खोदते – खोदते क्रोध तिरोहित हो गया |क्या हुआ ? जो क्रोध तुम्हारे हाथों में आ गया था, जो किसी को मारने को उत्सुक हो गया था, वह उर्जा उपयोग कर ली गई | या घर के दौड़कर तीन चक्कर लगा आओ | और तुम पाओगे कि लौटकर तुम हलके हो गए | वह जो क्रोध उठा था,जा चुका |
गर्भ की शांति—-
मौन को अपना ध्यान बनने दें | जब भी आप को समय मिले, मौन में सिमट कर बैठ जायें – और सच में यही मेरा मतलब है : सिमट जाएं – जैसे की आप अपनी माँ के गर्भ में एक छोटे से बच्चे हैं | ऐसे बैठे रहे | फिर धीरे – धीरे आपको लगेगा कि अपना सिर जमीन पर टिका दें | तब सिर को जमीन पर टिक जाने दें | गर्भ कि मुद्रा में आ जायें, जैसे कि बच्चा गर्भ में सिकुड़ा रहता है | और आप अनुभव करेंगे कि शांति उतर रही है, वही शांति जो माँ के गर्भ में थी |
तो अपने बिस्तर में, कम्बल के नीचे, गर्भ में बच्चे कि तरह गुड़ीमुड़ी हो जायें और शांत – मौन, बिना कुछ किये स्थिर पड़े रहें | कुछ विचार कभी – कभी आयेंगे, उन्हें आने दें, आप उदासीन बने रहें, उनमें कोई दिलचस्पी न लें | यदि वे आयें तो ठीक ; न आयें तो ठीक | उनसे लड़ें नहीं, उन्हें धक्का देकर भगाएं नहीं | यदि आप लडेंगे, तो आप विचलित हो जायेंगे | अगर आप उन्हें धक्का देकर भगायेंगे, तो वे और – और आयेंगे | अगर आप चाहेंगे कि वे न आएं, तो वे भी जिद में आ जायेंगे | आप तो बस उनके प्रति उदासीन रहें | उन्हें वहां परिधि पर चलनें दें, जैसे कि ट्रैफिक का शोर हो रहा हो | और सच में वह ट्रैफिक का शोर ही है – मस्तिस्क कि लाखों कोशिकाओं का ट्रैफिक जो एक – दूसरे के साथ संपर्क कर रही है और उर्जा घूम रही है, विद्वुत एक कोशिका से दूसरी कोशिका में छलांग लगा रही है | वह एक बड़ी मशीन कि गूंज जैसा ही है | तो उसे चलने दें | आप उसके प्रति बिलकुल तटस्थ रहें | आपको उससे कुछ लेना – देना नहीं है, वह आपकी समस्या नहीं है | दूसरे कि समस्या हो सकती है, लेकिन आप कि नहीं है | आपको उससे क्या लेना – देना ? और आप हैरान हो जाएंगे – ऐसे पल आयेंगे जब वह शोर खो जायेगा, बिलकुल खो जायेगा और आप स्वएं में स्थिर अकेले बचे रहेंगे |
सब काल्पनिक है
कभी सिनेमाघर में इसका प्रयोग करें | यह एक अच्छा ध्यान है | बस इतना स्मरण रखने कि चेष्ठा करें कि यह काल्पनिक है, यह काल्पनिक है ….स्मरण रखें कि यह काल्पनिक है और पर्दा ख़ाली है | और आप चकित हो जाएंगे – केवल कुछ सेकंड के लिए आप स्मरण रख पाते है और फिर भूल जाते हैं, फिर यह यथार्थ लगने लगता है | जब भी आप स्वएं को भूल जाते हैं,सपना असली हो जाता है | जब भी आप स्वएं स्मरण रखते हैं – कि मैं असली हूँ, आप अपने को झकझोरते हैं – तब पर्दा पर्दा रह जाता है और जो भी उस पर चल रहा है सब काल्पनिक हो जाता है |