वास्तु शास्त्र ज्ञान—-
वास्तु अर्थात् वास्तव सच जो देख कर जानना और राह में चलने का ज्ञान पाना। सूर्य स्थिर है, पृथ्वी सूर्य का चक्कर .4 घंटा .. सेकण्ड में पूरा करती है। जहॉ पृथ्वी पर सूर्य दिखता है वहॉ चार पहर होती है-प्रभात, सुबह, दोपहर, शाम। 3 घंटे प्रभात, सुबह 3 घंटे होती है, 3 घंटे मध्यम पहर, दोपहर 3 घंटे होती है, शाम 3 घंटे होती है। उसके बाद 3 घंटे संध्यारात्री, 3 घंटे मध्यरात्रि, 3 घंटे रात्री। ऋतुएॅ तीन होती है सर्दी, गर्मी, वर्षा।
ऋषियों ने एक और ऋतु को जोडा है, ऋतुएॅ चार बताई है और पहर आठ बताई है चार दिन की, चार रात की। पृथ्वी सूर्य का चक्कर 24 घंटा तीस सैकण्ड में पूरा करती है। 30 सैकण्ड का अंतर होने की वजह से घडी के काटे से साल में 6 घंटे का अंतर होता है। 2 साल में एक रात बढती है, चार साल में दिन-रात। 3.दिन सूर्य उत्तरी दिशा में होता है। 31दिन छण्म्ण् ,30 दिन सुर्य पुरब में होता है। 30दिन सुर्य म्ण्ैण् में होता है। और ऋतु बदलती है। 1 ऋतु 15 जनवरी से आरंभ बहार का मौसम। 2 ऋतु 15 मार्च से आरंभ गर्मी का मौसम। 3 ऋतु 15 जून से वर्षा ऋतु आरंभ। 4 ऋतु 15 सितंबर से सर्दी का मौसम आरंभ।
ऋषियों ने आठ पहर बताई है:- 1. सूर्य कम तापमान 6 से 9 में होता है, 2. 9 से 12 मध्यम तापमान में होता है, 3. 12 से 3 अधिक तापमान में होता है, 4. 3 से 6 सुर्यास्त की ओर होता है। 5. संध्या से आरंभ 6 से 9, 9 से 12, 12 से 3, 3से 6 प्रभात। ऐसी ऋषियों ने आठ पहर बताई। चार पहर रात्रि चार पहर दिन सूर्य चारो दिशाओ में होता है। सूर्य हमारा पुज्यनीय है, पुर्वज है, पिता है। ऐसा मत देखकर ऋषियों ने पूर्वजो का स्थान पूर्व को देकर दिशा का मत दिया।
सूर्य को पिता का दर्जा देकर पिता का पग अर्थात् पैर पश्चिम में होता है। जो जन्म दाता है, वह हमारे अन्ताकर्ण का सवाल है। सवाल अर्थात् तर्क उत्तर दिशा में हमारे माता-पिता का स्थान देकर ऋषियों ने उत्तर दिशा की समझ का मार्ग बताया है। उत्तर का जवाब दक्षिण, दक्षिण अर्थात् आइना अर्थात् संतान। हम संतान ईश्वर के बताए मार्ग पर चलकर धन-वैभव को पाना और ईश्वर के सानिध्य पर चलना यह वास्तव सत्य ज्ञान है। चंद्र पृथ्वी का चक्कर 61 दिन 62 रात 1476 घटें में पूरा करता है। ऐसा ऋषियों ने जाना और इंसानो को वास्तु ज्ञान का ज्ञान कराया है। ऋषियों ने चंद्र को माता का दर्जा देकर स्थान बताया। सूर्य का खाद्य जल है नार्थ ईस्ट दिशा में जल होना चाहिए। मंदिर उत्तर कोण में, संतान प्रार्थक होता है, दक्षिण से उत्तर कोण में प्रार्थना करना। उत्तर कोण से पूरब दिशा में सूर्य को जल चढाना।
हर एक इंसान अपना घर बनाता है, घर में चार कोण होते है, चार दीवार एक छत। दया करने वाला ईश्वर। घर को सजाए, घर को बनाए उत्तरी कोण से दक्षिणी कोण तक। जल, अग्नि, मंदिर का स्थान देकर पूर्वजो का आर्शीवाद लेना और पर्यावरण सुरक्षा करना अर्थात् घर को स्वर्ग बनाना,घर का प्रवेश द्वार । ऋषियों ने जाना दिशा राशि के अनुसार ईश्वर देता है- मेष, वृषभ, मिथुन, पुर्व दिशा में घर का द्वार। 2 कर्क, सिहं, कन्या उत्तर दिशा में घर का द्वार। 3 तुला, वृश्चिक, धनु दक्षिण दिशा में घर का द्वार । 4 मकर, कुंभ, मीन पश्चिम दिशा में घर का द्वार। समझने का मार्ग दिखाया है, हर दिशा में सूर्य है, किसी भी दिशा में घर का प्रवेश हो, छण्म्ण्से ैण्म्ण्तक पूर्वजो का स्थान होता है।छण्म्ण् मंदिर, अग्नि, जल, । छण्ॅण् बार्थरूम, लैटरींग। ैण्म्ण् तिजोडी, धन संपत्ति रखने का स्थान। ैण्ॅण् रसोई घर। बाकी में बाकी के कार्य की व्यवस्था को बनाए। ऐसा करने से शुभ होता है और वास्तु ज्ञान पूर्ण ज्ञान का मार्ग अपनाना होता है।