जीवन की उमंग और उत्साह का त्योहार वैशाखी—Sunil Kuamr Chaube—
भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता का मूल भाव ही पूरी दुनिया को भारत के करीब लाता है। इसी मूल भावना को मजबूत करने वाले अलग-अलग धर्मों के अनेक त्योहार यहां साल भर मनाए जाते हैं। वैशाखी एक ऐसा ही राष्ट्रीय त्योहार है। जिसे देश के विभिन्न भागों में रहने वाले सभी धर्मपंथ के लोग अलग-अलग तरीके से मनाते हैं।
जहां हिंदू धर्म पंचांग के अनुसार यह त्योहार मेष संक्रांति एवं वैशाख मास के प्रारंभ होने पर मनाया जाता है। वहीं देश के पंजाब प्रांत में और सिक्ख धर्मावलंबियों के बीच यह त्योहार बहुत उत्साह और उमंग से मनाया जाता है। सिक्ख समाज के लिए यह त्योहार धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है।
सिक्ख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने वैशाखी के दिन ही खालसा-पंथ की नींव डाली। ‘खालसा’ खालिस शब्द से बना है। जिसका अर्थ होता है- शुद्ध, पावन या पवित्र। खालसा-पंथ की स्थापना के पीछे गुरु गोविंद सिंह का मुख्य लक्ष्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके धार्मिक, नैतिक और व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना था। इस पंथ के द्वारा गुरु गोविंद सिंह ने लोगों को धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव छोड़कर इसके स्थान पर मानवीय भावनाओं को आपसी संबंधों में महत्व देने की भी दृष्टि दी। इसलिए छुआछूत की भावना को खत्म करने के उद्देश्य से ही उन्होंने वैशाखी के पवित्र दिन ही श्री गुरु गोविंद सिंह ने पंजाब के श्री केशगढ़, आनंदपुर साहिब में अपने चेलो, जो पंच प्यारे के नाम से प्रसिद्ध हैं और अलग-अलग जाति के थे, को अमृत पिलाया और उन चेलों के हाथों स्वयं अमृत पीकर सिंह नामक उपाधि प्राप्त की। साथ ही उन्होंने अपने गुरु का पद छोड़कर गुरुग्रंथ साहिब को सर्वोपरी मानकर गद्दी पर रख नई परंपरा की शुरुआत की। इस प्रकार इस शुभ दिन से ही गुरु गोविंद सिंह ने सिक्ख धर्म के साथ ही पूरे मानव समाज की धार्मिक, सामाजिक विचारधारा को नई दिशा दी।
इस दिन गुरुद्वारों में विशेषकर आनंदपुर साहिब में अरदास, शबद कीर्तन सहित कड़ा प्रसाद का वितरण, लंगर आदि विशेष धार्मिक आयोजन किये जाते हैं।
सामाजिक दृष्टि से विचार करें तो पंजाब देश का मुख्य कृषि प्रधान प्रांत है। जहां गेंहू की पैदावार काफी अधिक मात्रा में होती है। अत: इस क्षेत्र के अनके लोगों की आजीविका खेती से जुड़ी है। यही कारण है कि जब भी रबी की फसल पककर तैयार होती है, तब यहां पर उमंग और उत्साह का माहौल बन जाता है। वैशाखी पर्व पर यह सभी लोग मिलकर अच्छी फसल होने की खुशी को एक-दूसरे से बांटते हैं। इस पर्र्व पर सभी विशेष रूप से पंजाब का लोकनृत्य भांगड़ा और गिद्दा करते हैं। वास्तव में इन नृत्यों के पीछे भाव यही होता है कि सालभर की कड़ी मेहनत के बाद अच्छी फसल के रूप में जो सुपरिणाम मिला, अब उसकी कटाई के बाद सारी थकान मिटाकर आने वाले मौसम के लिए तन और मन को एक नई ऊर्जा से भरा जाए। ऐसा कर वे अपनी प्रसन्नता को इस अवसर पर प्रकट करते हैं। इस प्रकार वैशाखी मूलत: नई फसल की कटाई का उत्सव है। समय बीतने के साथ इस पर्व के साथ धार्मिक परंपराएं भी जुड़ गई। संभवत: इसीलिए कि समाज के संपन्न वर्ग के साथ ही कमजोर और निर्धन भी इस अवसर पर शामिल हो खुशीयों का आदान-प्रदान करें।
देश के विभिन्न भागों में यह त्योहार मनाया जाता है। बिहार में यह दिन ‘सतुआ संक्रांति’ या ‘सतुआयी’, मणिपुर में ‘चेरोवा’, तमिलनाडु में ‘चितरार पिरावि’ के नाम से मनाते हैं। बंगाल में भी इस दिन को नववर्ष के रूप में मनाते हैं। इस प्रकार यह पर्व एक ही दिन पूरे देश में नई ऊर्जा का संचार करता है।
पर्व की वैज्ञानिक दृष्टि यही है कि यह पर्व अप्रैल माह में मनाया जाता है, तब यह समय ग्रीष्म के आगमन और शीत ऋतु के मौसम की समाप्ति की ओर होता है। मध्यम तापमान होने से जहां पेड़-पौधे फलते-फूलते हैं, वहीं प्राणी जगत भी नई ऊर्जा से भर जाता है।
भारत की संस्कृ्ति में अनेक राज्य, अनेक धर्म, अनेक भाषाएं, अनेक रीति-रिवाजों को मानने वाले लोग एक साथ रहते है. अनेक संस्कृ्तियों का एक साथ रहना, हमें विश्व में एक नई पहचान देता है. साथ ही यह हमारी देश की अंखण्डता को ठिक उसी प्रकार सौन्दर्य प्रधान करता है, जिस प्रकार एक गुलदस्ते में कई रंग के फूल हों, तो उसकी सुन्दरता स्वयं ही दोगुनी हो जाती है.वैशाखी का पर्व भी भारत के लोगों को आपस में बांधे रखने में सहयोग करता है. क्योकि इस पर्व को भारत के प्रत्येक भाग में किसी न किसी रुप में मनाया जाता है. कई धर्म इसे अपने ढंग से मनाते है. ऎसे में इस पर्व का महत्व बढ जाता है.
उडिसा में वैशाखी पर्व एक नये रुप में
उडिसा समाज वैशाखी के दिन अर्थात .4 अप्रैल को पोणा संक्रान्ति पर्व के नाम से मनाता है. इस दिन यहां महिलाओं द्वारा शिवजी की पूजा कर दही-गुड से बनाया गया पोणा अर्पित किया जाता है. मंदिरों में अन्न और वस्त्र दान किये जाते है. इस दिन बनने वाले व्यंजनों में चावल की खीर विशेष रुप से मनाई जाती है. बैंगन, केला, आलू, कद्दू का डालमा बनाया जाता है. तथा अपने ईष्ट देव की पूजा कर पूरे वर्ष बारिश की कामना के साथ ही सुख-समृ्द्धि की प्रार्थना भगवान से की जाती है.
बंगाल में नववर्ष प्रारम्भ
बंगाल का नया वर्ष वैशाख महीने के पहले दिन अर्थात 14 अप्रैल से प्रारम्भ होता है. इस दिन को यहां शुभो नाँबो बाँरसो के नाम से जाना जाता है. बंगाल में इस दिन से ही फसल की कटाई शुरु होती है. यहां के लोग 14 अप्रैल के दिन नया काम करन शुरु करते है. महिलाएं इस दिन घर आई नई फसल के धान से पकवान बनाती है.
केरल का नववर्ष प्रारम्भ
भारत के दक्षिणी प्रदेश केरल में इस दिन धान की बुआई का काम शुरु होता है. इस दिन को यहां मलयाली न्यू ईयर विशु के नाम से पुकारा जाता है. 14 अप्रैल के दिन हल और बैलों को रंगोली से सजा कर, इनकी इस दिन पूजा की जाती है. और बच्चों को उपहार दिये जाते है.
असम का नववर्ष प्रारम्भ
1. अप्रैल के दिन असम के लोग नये वर्ष के दिन “बिहू” के रुप में मनाते है. बिहू अवसर पर यहां लोक नृ्त्य के साथ-साथ सार्वजनिक रुप से खुशी मनाई जाती है. वैशाखी क्षेत्रिय पर्व न होकर पूरे भारत में किसी न किसी रुप में मनाया जाता है.
तमिल का नववर्ष प्रारम्भ
तमिल के लोग 13 अप्रैल से नये साल का प्रारम्भ मानते है. इस दिन को तमिल लोग पुथांदु पर्व के नाम से मनाते है.
कश्मीर में नववर्ष का प्रारम्भ
शास्त्रों में उल्लेखित सप्तऋषियों के अनुसार 14 अप्रैल का दिन नवरेह नाम से, नववर्ष के महोत्सव के रुप में मनाया जाता है. यहां इस दिन लोग एक -दुसरे को बधाई देते है, तथा हर्ष और खुशी के साथ एक -दूसरे के घर मिलते आते है. कोई नया कार्य प्रारम्भ करने के लिये इस दिन को यहां विशेष रुप से प्रयोग किया जाता है.
आंघ्रप्रदेश का नववर्ष प्रारम्भ
भारत के अधिकतर त्यौहार कृ्षि आधारित है. भारत के जिन प्रदेशों में आजीविका का मुख्य साधन कृ्षि है, उन सभी प्रदेशो में फसल के पकने या घर आने पर उस दिन को एक पर्व के रुप में मनाया जाता है. आंध्रप्रदेश भी क्योकि एक कृ्षि क्षेत्र है. इसलिये 14 अप्रैल के दिन का किसानो के लिये यहां विशेष महत्व हो जाता है. इसे उगादि तिथि अर्थात युग के प्रारम्भ के रुप में मनाया जाता है.
महाराष्ट्र का नववर्ष प्रारम्भ
महाराष्ट् प्रदेश में 14 अप्रैल के दिन को सृ्ष्टि के प्रारम्भ का दिन मानकर हर्षोउल्लास से मनाया जाता है. 14 अप्रैल से जुडी मान्यता के अनुसार इस दिन से समय ने चलाना शुरु किया था. महाराष्ट में नववर्ष के अवसर पर श्रीखंड और पूरी बनाकर इस पर्व को मनाया जाता है. नवर्ष के दिन यहां गरीबों को भोजन व दान आदि किया जाता है. और घरों में बच्चे नये वस्त्र धारण करते है.
इस प्रकार भारत के कोने-कोने में यह पर्व किसी न किसी रुप में मनाया जाता है. वैशाखी जैसे पर्व भारत कि संस्कृ्ति को अखंड बनाये रखने में सहयोग करते है. यह पर्व भारतियों को एकता, भाईचारे और उन्नति के सूत्र में बांधे रखने में सहायता करता है.
वैशाखी पर्व देश के अन्य राज्यों में
वैशाखी पर्व केवल सिक्ख समाज का पर्व नहीं है. अपितु इस दिन केरल, उडिसा, आसाम राज्यों में यह दिन नये वर्ष के आगमन का दिन होता है. इस दिन समाज में नये साल के आने की खुशी में संकल्प और नये कार्य प्रारम्भ किये जाते है.
मलयालम समाज के लिये “विशु” पूजन का दिवस
वैशाखी के दिन को मलयालम समाज नये साल के रुप में मनाता है. इस दिन मंदिरोम में विशुक्कणी के दर्शन कर समाज के लिये नव वर्ष का स्वागत करते है. इस दिन केरल में पारंपरिक नृ्त्य गान के साथ आतिशबाजी का आनन्द लिया जाता है. विशेष कर अय्यापा मंदिर में इस दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है. विशु यानी भगवान “श्री कृ्ष्ण” और कणी यानी “टोकरी”
विशुक्कणी पर्व के नाम से जाना जाने वाले इस पर्व पर भगवान श्री कृ्ष्ण को टोकरी में रखकर उसमें कटहल, कद्दू, पीले फूल, कांच, नारियल और अन्य चीजों से सजाया जाता है. सबसे पहले घर का मुखिया इस दिन आंखें बंद कर विशुक्कणी के दर्शन करता है. कई जगहों पर घर के मुखिया से पहले बच्चों को देव विशुक्कणी के दर्शन कराये जाते है. नव वर्ष पर सबसे पहले देव के दर्शन करने का उद्देश्य, शुभ दर्शन कर अपने पूरे वर्ष को शुभ करने से जुडा हुआ है.
असम में वैशाखी पर्व का एक नया रुप “बिहू”
14 अप्रैल का दिन अर्थात वैशाखी पर्व को असमिया समाज एक नये रुप में मनाता हे. यहां यह पर्व दो दिन का होत है. वैशाखी से एक दिन पहले असम के लोग बिहू के रुप में इस पर्व को मनाते है. जिसमें मवेशियों कि पूजा की जाती है. तथा ठिक वैशाखी के दिन यहां जो पर्व मनाया जाता है, उसे रंगीली बिहू के नाम से जाना जाता है.
इस दिन असम में कई सांस्कृ्तिक आयोजन किये जाते है. क्योकि कोई भी पर्व बिना व्यंजनों के पूरा नहीं होता है. इसलिये खाने में इस दिन यहां “पोहे” के साथ दही का आनन्द लिया जाता है. असम का जीवन कृ्षि से जुडा हुआ होने के कारण लोग यह कामना करते है कि पूरे वर्ष अच्छी बारिश होती रहे.

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