श्रीगणेश वन्दना—
Om Gan Ganptye Namah:—
“Shri Ganesh ka Naam Liya to Badha Fatak nahi pati hai, Devon Ka vardan Barasta, Budhdhi vimal ban jati hai.”
Praying Lord Ganesha makes a human free from all problems and obstacles. He is marked by intelligence, sharpness and wisdom as he is blessed by other divinity powers. All our works starts with remembering to Lord Ganesha. Lord Ganesha is worshiped worldwide.
OM—
Om represents Shri Maha Ganpati. In hindu literature, all letters (of devnagri lipi or script) are worshiped as seed mantra or beej mantra. Every character describes a deity and is a perfect symbol and mantra of that particular deity. As example we can see Lord Ram by decorating “अ (A)” we can look Lord Hanuman by designing क्रौं (Kraun)”, and we can find face of Lord Krishna in शं (Shan)”. Like this we can take another example of “ई (E)” which is Beej Mantra of Shakti (Goddes of Power). For example the word “शव (Shav)” is used for a dead person in Hindi but when we add “ई” in “Shav” the association becomes “शिव” (Shiv)” means Kaal (death) of Kaal or Mahakaal which can conquer death. If we write ऊँ OM in reverse order it takes form of Allah (Holy God of Islam).
Place of Chandra Bindu ( ँ )—
Chandra Bindu in Omkar is right hand of Chandrama (Moon), and Chandrama (Moon) is covered in a Bindu which represents Al-might who made the universe and everything in this world. Simply we can say that Chandra Bindu associates power with OM. Here “अ (A)” means Aja (Brahma), “उ (U)” means Udar (Vishnu) and “म (M)” means Makar (Shiv) who are the powers of creation, coordination and destruction. These three power are safe in OM if they are covered by Chandra Bindu. Like this OM shows us the reality of God Almighty in a simple symbol.
Aradhna (worship) of Ganeshji as Brahma-Vidya (Supreme knowledge)
The Brahma Vidya is the mool (root) of all vidyas (knowledge). No one can be perfect in anything if he does not know Brahma Vidya. When we add power (Shakti or Bindu) in pronunciation generated from roof and nose, it makes Brahma Vidya. It is said that a dull person can be wise, intelligent and perfect in any Vidya (knowledge or science) if he/she practices Brahma Vidya continuously without laziness.
Pronunciation of Brahma Vidya with the Name of Ganeshji–
In Ganesha Mantra “Om Gan Ganpatye Namah:” “Gan” letter describes the complete Brahma Vidya. Continuously recitation of “Gan” seed mantra removes dirt of our roof and inner parts of nose, our nerves start to opening their gates to mind. Nervous system of eye, nose, ear and our sensory system begins to use its functioning and then it makes us more conscious, more wise and more intelligent.
Recitation of Brahma Vidya is worship of Sarv Ganpati (Maha Ganpati)–
अं आं इं ईं उं ऊं ऋं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं डं. चं छं जं झं यं टं ठं डं णं तं थं दं धं नं पं फ़ं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं त्रं ज्ञं, is Brahma Vidya. To do recitation from first to last and then in reverse order is said Anulom Vilom Vidya. But when we recite this vidya in the form of Ganeshji or Omkar, we start to touch higher level of Sadhna.
ऊँ गं गणपतये नम:—
“श्री गणेश का नाम लिया तो बाधा फ़टक न पाती है,देवों का वरदान बरसता बुद्धि विमल बन जाती है”कहावत सटीक भी और खरी भी उतरती है.बिना गणेश के कोई भी काम बन ही नही सकता,चाहे कितने ही प्रयास क्यों नही किये जायें,भारत ही नही विश्व के कौने कौने मे भगवान श्री गणेश जी की मान्यता है,कोई किस रूप में पूजता है तो कोई किसी रूप में उनकी पूजा और श्रद्धा रखता है।
ऊँ–
ऊँ का वास्त्विक रूप ही गणेश जी का रूप है,हिन्दू धर्म के अन्दर अक्षरों की पूजा की जाती है,अक्षर को ही मान्यता प्राप्त है,हर देवता का रूप है हिन्दी भाषा का प्रत्येक अक्षर,”अ” को सजाया गया और श्रीराम की शक्ल बन गयी,”क्रौं” को सजाया गया तो हनुमान जी का रूप बन गया,”शं” को सजाया गया तो श्रीकृष्ण का रूप बन गया,इसी तरह से मात्रा को शक्ति का रूप दिया गया,जैसे “शव” को मुर्दा का रूप तब तक माना जायेगा जब तक कि छोटी इ की मात्रा को इस पर नही चढाया जाता,छोटी की मात्रा लगाते ही “शव” रूप बदल कर और शक्ति से पूरित होकर “शिव” का रूप बन जाता है। ऊँ को उल्टा करने पर वह “अल्लाह” का रूप धारण कर लेता है.
चन्द्र बिन्दु का स्थान—
ऊँ के ऊपर चन्द्र बिन्दु का स्थान चन्द्रमा की दक्षिण भुजा का रूप है,चन्द्रमा का आकार एक बिन्दु के अन्दर बताया गया है,और बिन्दु को ही श्रेष्ठ उपमा से सुशोभित किया गया है,बिन्दु का रूप उस कर्ता से है जिससे श्रष्टि का निर्माण किया है,अ उ और म के ऊपर भी शक्ति के रूप में चन्द्र बिन्दु का रूपण केवल इस भाव से किया गया है कि अ से अज यानी ब्रह्मा,उ से उदार यानी विष्णु और म से मकार यानी शिवजी का भी आस्तित्व तभी सुरक्षित है जब वे तीनो शक्ति रूपी चन्द्र बिन्दु से आच्छादित है।
ब्रह्म-विद्या है श्रीगणेश जी आराधना में—
ब्रह्म विद्या को जाने बिना कोई भी विद्या मे पारंगत नही हो पाता है,तालू और नाक के स्वर से जो शक्ति का निरूपण अक्षर के अन्दर किया जाता है वही ब्रह्मविद्या का रूप है। बीजाक्षरों को पढते समय बिन्दु का प्रक्षेपण करने से वह ब्रह्मविद्या का रूप बन जाता है.ब्रह्मविद्या का नियमित उच्चारण अगर एक मंदबुद्धि से भी करवाया जाये तो वह भी विद्या में उसी तरह से पारंगत हो जाता है जैसे महाकवि कालिदास जी विद्या में पारंगत हुये थे।
गणेशजी के नाम के साथ ब्रह्मविद्या का उच्चारण—
ऊँ गं गणपतये नम: का जाप करते वक्त “गं” अक्षर मे सम्पूर्ण ब्रह्मविद्या का निरूपण हो जाता है,गं बीजाक्षर को लगातार जपने से तालू के अन्दर और नाक के अन्दर जमा मल का विनास होता है और बुद्धि की ओर ले जाने वाली शिरायें और धमनियां अपना रास्ता मस्तिष्क की तरफ़ खोल देतीं है,आंख नाक कान और ग्रहण करने वाली शिरायें अपना काम करना शुरु कर देतीं है और बुद्धि का विकास होने लगता है.
ब्रह्म विद्या का उच्चारण ही सर्व गणपति की आराधना है—
अं आं इं ईं उं ऊं ऋं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं डं. चं छं जं झं यं टं ठं डं णं तं थं दं धं नं पं फ़ं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं त्रं ज्ञं,ब्रह्म विद्या कही गयी है। उल्टा सीधा जाप करना अनुलोम विलोम विद्या का विकास करना कहा जाता है,लेकिन इस विद्या को गणेश की शक्ल में या ऊँ के रूप को ध्यान में रख कर करने से इस विद्या का विकास होता चला जाता है।