शनि की साढ़े साती और शांति के उपाय—
प्रायः जीवन में शनि की साढे सती तीन बार आती है। प्रथम बचपन में , दुसरी यौवनावस्था में और तीसरी वृध्दावस्था में । प्रथम का प्रभाव शिक्षा पर , द्वितीय का प्रभाव धन , मान-सम्मान, नौकरी – रोजगार आदि पर और तृतीय का प्रभाव आयु और स्वास्थ्य पर पडता है। ९ सितम्बर तक शनी सिंह राशी में रहेगा तथा ९ सितम्बर से वर्ष पर्यंत शनी कन्या राशी में रहेगा. वर्ष के आरम्भ से ९ सितम्बर तक कर्क, सिंह,कन्या राशी वालो को साढ़ेसाती एवम मकर, वृष राशी वालो को ढैया रहेगा,एव, ९ सितम्बर से वर्ष पर्यंत सिंह,कन्या, तुला राशीवालो को साढ़ेसाती तथा कुम्भ,मिथुन राशी वालो को ढैया रहेगा.
जिस व्यक्ति की जन्म कुंड़ली में शनि अच्छे स्थान पर अपनी उच्च राशि में या किसी शुभ फल देने वाले अपने मित्र गृह के साथ स्थित हो, तथा दशा अन्तर्दशा अच्छी चल रही हो, उनको शनि का अशुभ फल कम होगा। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडलि में चंद्र-शनि अशुभ ग्रह से युक्त, अशुभ स्थानो में हो तो साढेसती और ढैया उस व्यक्ति के लिये चिंता धन हानि, कार्य में विघ्न रोजगार में कमी परिवार में कलह, विघटन धन व्यय का कारण बनती हैं| शनि के अनिष्ट फल निवारण के लिये तेल के छाया पात्र का दान करना चाहीये| शनि मंत्र का जाप, दशांश हवन हनूमानजी की पूजा अभिषेक , तेल यूक्त सिंदुर अर्पण कर भक्ति पूर्वक शनिवार का व्रत, सप्त धान्य का दान, शनिवार को पीपल का पूजन करने से शनि का अनिष्ट फल निवृत होता हैं|
शनि की साढ़े साती के शांति उपाय—-
१॰ श्रीशिवशंकर पर ताँबे का सर्प (नाग) चढ़ाना हितकर है।
२॰ पाँच शनिवार लगातार किसी लोहे के पात्र में तेल लें और उसमें अपना चेहरा देखकर तेल आक के पौधे पर डाल दें। अन्तिम शनिवार अर्थात् पाँचवें शनिवार को तेल चढ़ाने के बाद तेल वाला पात्र आक के पौधे के पास ही गाड़ दें।
३॰ “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः” इस मंत्र का जप प्रतिदिन १०८ बार करें।
४॰ सात शनिवार तक आक के पौधे पर लोहे की सात कील चढ़ानी चाहिए।
५॰ काले रंग की वस्तुएं एवं सात बादाम सात शनिवार तक लगातार किसी मन्दिर में दान करें।
६॰ श्री हनुमान की पूजा-अर्चना तथा तेल युक्त सिंदूर समर्पण कर भक्तिपूर्वक शनिवार का व्रत करना चाहिए।
७॰ सूर्यास्त के उपरान्त “सुन्दरकाण्ड” का पाठ करना चाहिए। पाठ के दौरान स्वयं की लम्बाई के बराबर कच्चे सूत के धागे से बनी बत्ती का तेल से दीपक प्रज्जवलित रखें तथा प्रत्येक शनिवार को किसी भी हनुमान मन्दिर में हनुमान जी की प्रतिमा को सिंदूर, चमेली का तेल, चांदी के वर्क से चोला चढ़ावें। जनेऊ, लाल फूल की माला, लड्डु तथा पान अर्पण करें।
८॰ सात प्रकार के धानों का दान तथा शनिवार को प्रातः पीपल का पूजन करें।
९॰ लाजवन्ती, लौंग, लोबान, चौलाई, काला तिल, गौर, काली मिर्च, मंगरैला, कुल्थी, गौमूत्र आदि में से जो भी प्राप्त हो (कम से कम पांच या सात) के चूर्ण को जल में मिलाकर दक्षिणमुखी खड़े होकर स्नान करें। इस जल से स्नान करने के पश्चात् किसी भी तरह का साबुन या तेल का प्रयोग नहीं करें।
१०॰ बिच्छु की जड़ या शमी वृक्ष की जड़ का पूजन कर अभिमंत्रित कर काले कपड़े में बाँधकर श्रवण नक्षत्र में विधि पूर्वक धारण करने से शनि दोष क्षीण होता है।
११॰ लाल चंदन या काली वैजयन्ती की अभिमंत्रित माला धारण करें।
१२॰ शनिवार के दिन काले उड़द, तेल, तिल, लोहे से बनी वस्तु तथा श्याम वस्त्र दान देने से शनि पीड़ा का शमन होता है।
१३॰ काले घोड़े की नाल को प्राप्त कर उसमें से अपनी मध्यमा अंगुली की नाप का छल्ला बनवायें। इस छल्ले का मुँह खुला रखें। शनिवार के दिन कच्चे सूत से अपनी लम्बाई नाप कर उसको मोड़कर बत्ती बनाए, इस बत्ती से तेल का दीपक प्रज्जवलित कर उसमें छल्ला डाल दें तथा निम्नलिखित मन्त्र का काली वैजयन्ती माला से ५ माला जप करें-“ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनेश्चराय नमः” मंत्र जप के उपरान्त क्रमशः जल, पंचामृत तथा गंगाजल से छल्ले को स्नान कराकर मध्यमा अंगुली में धारण करें।
१४॰ एक गट (सूखा नारियल) लेकर उसमें चाकू से छोटा सा गोल छेद काट लें। इस छेद से नारियल में बूरा तथा बादाम, काजू, किशमिश, पिस्ता, अखरोट या छुआरा भी गट में भरें। अब इसे पुनः बन्द कर किसी पीपल के पास भूमि के अन्दर इस प्रकार गाड़ दें की चीटियां आसानी से तलाश लें, किन्तु अन्य जानवर न पा सकें। घर लौटकर पैर धोकर घर में प्रवेश करें। इस प्रकार ८ शनिवार तक यह क्रिया सम्पन्न करें।
१५॰ शिवलिंग पर कच्चा दूध चढावें व “अमोघ शिव कवच” का पाठ करें।
१६॰ प्रत्येक शनिवार जौ के आटे से बनी गोलियाँ मछलियों को खाने को डालें।
१७॰ “शनि वज्रपंजर कवच” , दशरथ-कृत-शनि-स्तोत्र अथवा शनैश्चरस्तवराजः का नियमित पाठ करें।
१८॰ एक काला छाता, सवा किलो काले चने, सवा किलो काले तिल, काला कम्बल, तेल का दीपक शनिवार कि दिन शनिदेव के मन्दिर में दान करें।
१९॰ भोजन करने से पूर्व परोसी गयी थाली में से एक ग्रास निकालकर काले कुत्ते को खिलाएँ अथवा शनिवार को शाम के समय उड़द की दाल के पकौडे व इमरती कुत्ते को खिलाए।
२०॰ शनिवार के दिन काले कपड़े में जौ, नारियल, लोहे की चौकोर शीट, काले तिल, कच्चे कोयले व काले चने को पोटली में बांधकर बहते हुए पानी में डालना शुभ रहता है।
२१॰ काली गाय व काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी रोटी, चने की दाल व गुड खिलाना लाभप्रद रहता है।
२२॰ दूध में शहद व गुड़ को मिलाकर वट वृक्ष को सींचे।
२३॰ शनिवार, अमावस्या आदि दिनों पर ‘शनि-मन्दिर’ में जाकर आक-पर्ण (मदार के पत्ते) एवं पुष्पों की माला मूर्ति पर चढ़ाएँ। एक या आधा चम्मच तेल भी चढ़ाएँ। अब मूर्ति के सामने बैठकर शान्त-चित्त से निम्न मन्त्र, मूर्ति के भ्रू-मध्य या दाहिनी आँख पर त्राटक-पूर्वक प्रेम-भाव से, ११ बार जपें-“नीलाञ्जन-समाभासं, रविपुत्रं यमाग्रजम्। छाया-मार्तण्ड-सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्।।”
अब सूर्य-भगवान् को गायत्री-मन्त्र से एक बार अर्घ्य दें। या “ॐ ह्रीं सूर्याय नमः” का यथा-शक्ति जप करें।
२४॰ ‘आक’ के कुछ पत्ते सुखाकर उसका चूर्ण तैयार करके रखें। १ चौरस १ इंच लोहे के टुकड़े पर “ॐ चैतन्य-शनैश्चरम्” यह मन्त्र खुदवा लें। यदि धनाभाव हो, तो कम से कम एक काला गोल पत्थर ले आकर उसमें ‘शनिदेव’ की भावना रख, पूजा-स्थान में रखें। ‘भगवान् शनि’ के प्रति “चैतन्य” की भावना रखनी चाहिए।
उक्त प्रतिमा को किसी थाली में रखकर उसका पूजन करें। गन्ध, हल्दी-कुंकुम और ११ उड़द चढ़ाएँ। आक के १०८ पुष्प “ॐ चैतन्य-शनीश्चराय नमः” मन्त्र से अर्पित करें। ‘आक’ के ही सूखे पत्तों के चूर्ण की धुप दें। दीप दिखाकर सुख-शन्ति हेतु ‘शनि’ की प्रार्थना करें। भोजन में उड़द के बड़ों का नैवेद्य देना चाहिए।
हर शनिवार को उक्त उपासना करें। उपासना-काल में शनिवार को नही; गुरुवार को उपवास करें। यह बात ध्यान में रखें। ‘साढ़े साती’ काल पूर्ण होने के ढाई मास बाद उपासना बन्द करें और प्रतिमा को जलाशय में विसर्जित कर दें।
॰ शिवलिंग का यथा शक्ति पूजन करें। हो सके, जलाभिषेक करें। पाँच श्वेत पुष्प और एक बिल्व-पत्र चढ़ाएँ। शिव-मन्त्र का जप करें, फिर प्रार्थना करें। यथा-“ॐ श्रीशंकराय नमः। श्रीकैलास-पतये नमः। श्रीपार्वती-पतये नमः। श्रीविघ्न-हर्ताय नमः। श्रीसुख-दात्रे नमः। ॐ शान्ति! शान्ति!! शान्ति!!!”
इस प्रकार प्रार्थना के शिवलिंग के सामने एक नारियल और एक मुठ्ठी गेहूँ रखें। नमस्कार कर घर वापस आएँ।
२५॰ शनि एवं शनि-भार्या-स्तोत्र का नित्य तीन पाठ करने से ‘शनि-ग्रह’ की पीड़ा निश्चय की दूर होती है—-
यः पुरा राज्य-भ्रष्टाय, नलाय प्रददो किल। स्वप्ने शौरिः स्वयं, मन्त्रं सर्व-काम-फल-प्रदम्।।१
क्रोडं नीलाञ्जन-प्रख्यं, नील-जीमूत-सन्निभम्। छाया-मार्तण्ड-सम्भूतं, नमस्यामि शनैश्चरम्।।२
ॐ नमोऽर्क-पुत्राय शनैश्चराय, नीहार-वर्णाञ्जन-नीलकाय।
स्मृत्वा रहस्यं भुवि मानुषत्वे, फल-प्रदो मे भव सूर्य-पुत्र।।३
नमोऽस्तु प्रेत-राजाय, कृष्ण-वर्णाय ते नमः। शनैश्चराय क्रूराय, सिद्धि-बुद्धि प्रदायिने।।४
य एभिर्नामभिः स्तौति, तस्य तुष्टो भवाम्यहम्। मामकानां भयं तस्य, स्वप्नेष्वपि न जायते।।५
गार्गेय कौशिकस्यापि, पिप्लादो महामुनिः। शनैश्चर-कृता पीड़ा, न भवति कदाचन।।६
क्रोडस्तु पिंगलो बभ्रुः, कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः। शौरिः शनैश्चरो मन्दः, पिप्लादेन संयुतः।।७
एतानि शनि-नामानि, प्रातरुत्थाय यः पठेत्। तस्य शौरेः कृता पीड़ा, न भवति कदाचन।।८
ध्वजनी धामनी चैव, कंकाली कलह-प्रिया। कलही कण्टकी चापि, अजा महिषी तुरगंमा।।९
नामानि शनि-भार्यायाः, नित्यं जपति यः पुमान्। तस्य दुःखा विनश्यन्ति, सुख-सौभाग्यं वर्द्धते।।१०