सूर्य-साधना—
ज्योतिष की आंख सूर्य है,सूर्य साधना करने के बाद ही ज्योतिष का अंतरंग ज्ञान प्राप्त हो सकता है,सूर्य साधना कैसे की जाती है इसका विवेचन करने के लिये प्रयास किया है,किसी भी भूल को विद्वजन क्षमा करने की कृपा करेंगे और सुधार की प्रेरणा देंगे।
सूर्य मंत्र–
“ऊँ घृणि: सूर्य आदित्याय: नम:” यह सूर्य का मंत्र है।
सूर्य का पूजन यंत्र–
सूर्य यंत्र को अष्टगंध से बनी स्याही से भोजपत्र या तांबे की चौकोर प्लेट पर बनाकर पूजन के लिये स्थापित किया जाता है।
पूजा-विधि—
रविवार को प्रात:काल प्राणायाम आदि प्रात:कालीन क्रियाओं से निवृत होकर “पीठ-न्यास” करना चाहिये,न्यास में विशेषता यह है कि-’ह्रदय का पूर्वादि दिशाओं के भीतर प्रभुता,विमला,सारा,समारा,परमसुखा इन आधार शक्तियों का “अयं सूर्यमण्डलायदशकलात्मने नम:” इस प्रकार से न्यास करना चाहिये।आवरण पूजा हेतु श्रीसूर्ययंत्र का चित्र बनाकर उसे रखें। पहले दिशाओं में पीठ शक्तियों की पूजा करे,फ़िर प्रभूत विमल सार रूपा आधार शक्तियों का यजन करें,अन्त मे परमादि सुखम्पीठ स्वबिम्बान्त को कल्पित करें,फ़िर केशर के मध्य में “रां दीप्तायै नम:,रीं सूक्ष्मायै नम:,रूं जयायैनम:,रें भद्रायै नम:,रैं विभूत्यै नम:,रों विमलायै नम:,रौं अमौघाये नम:,रं विद्युतायै नम:,र: सर्व्वतोमुख्ये नम:” इस प्रकार पीठ शक्तियों का यजन करना चाहिये।
पीठ शक्तियों में दीप्ता,सूक्ष्मा,जया,भद्रा,विभूति,विमला,अमोघा,विद्युता,सर्वतोमुखी यह नौ पीठ शक्तियां मानी जाती है।
ऋष्यादि-न्यास–
इसके पश्चात ऋष्यादि न्यास करना चाहिये,शिरसिदेवभाग ऋषये नम:,मुखे गायत्रीछंदसे नम:,ह्रदि आदित्यायदेवत्यै नम: इस मंत्र के देवभाग ऋषि गायत्री छंद तथा दृष्ट्यादृष्ट के फ़ल देने वाले आदित्य देवता हैं।
करांग-न्यास—
इसके बाद करांग न्यास करना चाहिये,यथा- “सत्यायेतोजी ज्वालामणुहं फ़ट स्वाहा अंगुष्ठाभ्याम नम:। ब्रह्मणे तेजोज्वालामणे हुं तर्ज्जनीभ्यां स्वाहा। विष्णवेतेजोज्वालामणे हुं मध्यमाभ्यां
व्वषट। रुद्रायतेजो ज्वालामणे हुं अनामिकाभ्यां हुम। आग्नये तेजोज्वालामणे हुं कनिष्ठाभ्यांव्वौषट। सर्व्वायतेजोज्वालामणे हुं करतलपृष्ठभ्यांफ़ट। करन्यास के यही मंत्र है,एलिन उच्चारण का विशेष ध्यान देना चाहिये,हो सके तो साफ़ शुद्ध स्थान पर बैठ कर इन मंत्रों को उच्चारण के लिये पहले से ही प्रयास कर लेने से अशुद्धि का कोई भाव नही रह जाता है।
मूर्ति-न्यास–
इसके बाद मूर्ति का न्यास करना चाहिये,मूर्ति के लिये जो यंत्र बनाया हुआ है उसी का न्यास होता है,”ऊँ शिरसि आदित्याय नम:। मुखे ऐं रवये नम:। ह्रदये ऊँ भानवे नम:। गुह्ये इं भास्कराय नम:। चरणयों: अं सूर्याय नम:। निबन्ध के अनुसार न्यास की विधि इस प्रकार से है -“शिरसि ऊँ नम:। आस्ये ऊँ घृ नम:। कण्ठे ऊँ णि नम:। ह्रदि ऊँ सू नम:। कुक्षौ ऊँ र्य नम:। नाभौ ऊँ आ नम:। लिंगे ऊँ दि नम:। पादयो ऊँ त्य नम:। का रूप बताया गया है यह श्रद्धा के ऊपर निर्भर है कि पूजा में कौन सा भाव किस व्यक्ति के अन्दर प्रवेश करता है।
ध्यान के मंत्र–
ध्यान के मंत्र इस प्रकार से है,-“रक्ताब्जयुग्माभयदान हस्तंकेयूरहारांगद कुंडलाढ्यम। माणिक्य मोलिन्दिन नाथमीद्रेबन्धूककान्तिब्बिलसत्रिनेत्रम।”इस प्रकार से ध्यान करने के बाद मानसी पूजा करें,फ़िर कुंभ की स्थापना करेम,फ़िर गुरु की पूजा करने के बाद पीठ की पूजा करें,”ऊँ खं खखोल्काय नम:” मंत्र का मूर्ति में संकल्प करके पुनर्वार ध्यान करें,तथा आवाहनादि पंचपुष्पांजलिदान पर्यन्त विधिपूर्वक आवरण पूजा करें। निबन्ध में कहा है-“तारादि खंखखोल्काय मनुना मूर्ति कल्पना। साक्षिणं सर्ब्बलोकानान्तस्या मावाहयं पूजयेत॥” केसर में आग्न्यादि कोण के भीतर “सत्याय तेजोज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा ह्रदयाय नमं। ब्रह्मणे तेजोज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा शिरसे स्वाहा। विष्णवे तेजोज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा शिखाये वषट। रुद्राय तेजोज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा कवचाय हुम। अग्नये तेजो ज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा नेत्र त्राय वौषट। सर्व्वाय तेजोज्वालामणि हुं फ़ट स्वाहा अस्त्राय फ़ट। इस तरह से पूजा करने के बाद यंत्र के भीतर जो दल बने हुये है उनकी पूजा की जाती है।
पत्र के भीतर ब्रह्मा और अरुण की पूजा करें,तथा बाहरी भाग में ग्रहों की पूजा करें।
“ऊँ चन्द्राय नम:,ऊँ मंगलाय नम:,ऊँ बुद्धाय नम:,ऊँ बृहस्पतये नम:,ऊँ शुक्राय नम:,ऊँ शनिश्चराय नम:,ऊँ राहुवे नम:,ऊँ केतुवे नम: शारदा तंत्र में कहा गया है कि सूर्य के मंत्र का आठ लाख जाप करना चाहिये और उसका दशांश हवन करना चाहिये। मंत्र जाप के साथ में सूर्य कवच स्तोत्र आदि का पठन भी कल्याणकारी होता है।