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कालसर्प योग के सफल होने की कहानी—-

भले ही सुनने में अजीब लगे, लेकिन एक बात पहले स्‍पष्‍ट कर देना चाहता हूं कि ऐसा कोई योग होता ही नहीं है
ज्‍योतिष की किसी भी शाखा में कभी भी कालसर्प जैसा योग नहीं बताया गया है। पिछले दो-तीन दशक में इस योग का जन्‍म हुआ और इसका असर इतना अधिक व्‍यापक बताया गया कि यह तेजी से सफल हुआ। आज भारत के किसी भी कोने में चले जाइए, पुराना हो या नया ज्‍योतिषी, प्राचीन भारतीय ज्‍योतिष का पक्षधर हो या पश्चिमी हर कोई कालसर्प योग को नकारने में असहज महसूस करेगा।
क्‍या है कालसर्प योग?
प्राचीन भारतीय ज्‍योतिष में सर्प योग बताया गया है। इस योग का अर्थ है कि कुण्‍डली में सात ग्रह राहू और केतु के एक ओर आ गए हैं। फर्ज कीजिए मेष में राहू है और तुला में केतु इसके साथ सारे ग्रह मेष से तुला या तुला से मेष के बीच हों। इसे सर्प योग कहा जाएगा। ऐसा माना गया है कि राहू सरीसृप है और इसके सिर से पूंछ के बीच सारे ग्रह हैं। बाद में जोधपुर के एक ज्‍योतिषी ने इस योग को कालसर्प बना दिया। यानि समय पर सांप कुण्‍डली मारकर बैठा हुआ। इन लोगों को उपचार नासिक के महाकाल मंदिर में शुरू किया गया और सफलता मिलने के कसीदे गढ़े गए। अति तो तब हुई जब जोधपुर से नासिक तक बाकायदा बस तक चलने लगी। बाद में देश के अन्‍य ज्‍योतिषियों ने भी बहती गंगा में हाथ धोए। सर्प से कालसर्प बना और कालसर्प से अब विषधकर कालसर्प, नागराज कालसर्प, विपरीत कालसर्प और राजयोग कालसर्प तक बनने लगे हैं। इससे जातकों को इस तरह शापित कर दिया जाता है कि संबंधित व्‍यक्ति के जुकाम भी हो जाए तो लगता है कालसर्प का दोष आड़े आ रहा है।

कैसे हुआ यह ?
इसे एक लाइन में कहूं तो लोगों के छिछले दु:खों ने इस योग का पोषण किया। अधिक स्‍पष्‍ट करूं तो प्रगति में बाधा एक ऐसा शब्‍द है जिसे कई मायनों में उपयोग किया जा सकता है। हर कोई जिन्‍दगी में भाग्‍योदय चाहता है। भाग्‍योदय का अर्थ हुआ कि छप्‍पर फाड़कर कब मिलेगा। होता यह है कि कुछ लोगों को छप्‍पर फाड़कर मिलता भी है। बाकी लोगों की आस बाकी रहती है। ऐसे में ‘छप्‍पर फटने में आ रही बाधा‘ के बारे में लोग जब ज्‍योतिषी से पूछते हैं तो ज्‍योतिषी उन्‍हें बतलाता है कि आपकी कुण्‍डली में कालसर्प योग है सो आप सफल नहीं हो सकते हैं। अब उपाय करना होगा। और लोग लग जाते हैं उपाय करने। उपाय के दौरान पूरा ध्‍यान सफलता और उसके प्रयासों पर लगता है। सफलता मिल जाए तो कालसर्प का ईलाज हो गया और सफलता न मिले तो ठीकरा बेचारे कालसर्प पर फूटना है ही।

कोई नहीं है शापित
एक बार रविन्‍द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि शिशु के जन्‍म को देखकर लगता है कि ईश्‍वर अब तक मनुष्‍य से निराश नहीं हुआ है। मुझे भी ऐसा लगता है। अगर एक इंसान ईश्‍वर की प्रिय संतान है तो हर इंसान ईश्‍वर की उतनी ही प्रिय संतान होगा। निर्गुण ब्रह्म की रुचि अलग-अलग इंसान पैदा करने की रही भी नहीं होगी। आवश्‍यकता है तो बस अपनी क्षमताओं को पहचानकर सफल होने की।

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