>जब भी अपनों को आजमाया हे….
हमने खुद से फरेब खाया हे…..
जेसा चाहा उसे बनाया हे…
जितना फ़ोलाद को तपाया हे…..
चंद रोजा इस जिंदगानी का ………
कोई मकसद समझ नहीं पाया हे……….
जितने वाले खुद समझाते हे…….
किस तरह से मुझे हराया हे……..
सारे बेज़ा उसूल लगते हे…….
भूखे बच्चो को जब रुलाया हे………
हंसते हंसते निकल पड़े आँसू………..
बीता लम्हा अब याद आया हे……….
सारी duniya बुरी नहीं “bandhu”……..
कोई to हे जो काम आया हे……………….
### dayanand “bandhu”