—   जाने और समझें पितृदोष से मुक्ति के अचूक उपाय    –

पितृऋण क्या है?
*पितृऋण का अर्थ पूर्वज और पिता का ऋण।
पिता के द्वारा ही हमें यह जन्म मिला है। यह ऋण हमारे पूर्वजों का माना गया है। 
यह पितृऋण भी कई प्रकार का होता है जिसका नीचे उल्लेख किया गया है।

पितृदोष क्या है?
*ज्योतिषीयों अनुसार पितृदोष कई प्रकार का होता है। कुंडली की भिन्न स्थिति अनुसार जाना जाता है कि किसी जातक को पितृदोष हैं। कहते हैं कि पितृदोष के होने से व्यक्ति की आर्थिक उन्नती रुक जाती है, गृहकलह होता है, घर में कोई मांगलिक कार्य नहीं हो पाता है।
* कुंडली का नौवां घर यह बताता है कि व्यक्ति पिछले जन्म के कौन से पुण्य साथ लेकर आया है। यदि कुंडली के नौवें में राहु, बुध या शुक्र है तो यह कुंडली पितृदोष की है।
* कुंडली के दशम भाव में गुरु के होने को शापित माना जाता है।
* सातवें घर में गुरु होने पर आंशिक पितृदोष।
* लग्न में राहु है तो सूर्य ग्रहण और पितृदोष, चंद्र के साथ केतु और सूर्य के साथ राहु होने पर भी पितृदोष होता है।
* पंचम में राहु होने पर भी कुछ ज्योतिष पितृदोष मानते हैं।
* जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है।
* विद्वानों ने पितर दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया है। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु 4-8-..वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितर दोष पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है।

पितृ बाधा : यदि आपके ग्रह-नक्षत्र भी सही हैं, घर का वास्तु भी सही है तब भी किसी प्रकार का कोई आकस्मिक दुख या धन का अभाव बना रहता है, तो फिर पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए। पितृ बाधा का मतलब यह होता है कि आपके पूर्वज आपसे कुछ अपेक्षा रखते हैं, दूसरा यह कि आपके पूर्वजों के कर्म का आप भुगतान कर रहे हैं, तीसरा यह कि आपके किसी पूर्वज या कुल के किसी सदस्य का रोग आपको लगा है, चौथा कारण यह कि कोई अदृश्य शक्ति आपको परेशान करती है।
निवारण : इसका सरल-सा निवारण है कि प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ना। श्राद्ध पक्ष के दिनों में तर्पण आदि कर्म करना और पूर्वजों के प्रति मन में श्रद्धा रखना भी जरूरी है।

पितृदोष उपाय :
* श्राद्ध कर्म अच्छे से करना चाहिए।
* दादा और पिता का अपमान नहीं करना चाहिए।
* अपने से बड़े लोगों का आशीर्वाद लेते रहना चाहिए।
* क्रोध और ईर्षा से दूर रहना चाहिए।
* परिवार खानदान के सभी पुरुष सदस्यों से बराबरी से सिक्के लेकर उसे शनि मंदिर में दान कर देना चाहिए।
* प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ते रहना चाहिए।

खास उपाय : पितृ दोष या ऋण को उतारने के तीन उपाय- देश के धर्म अनुसार कुल परंपरा का पालन करना, पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करना और संतान उत्पन्न करके उसमें धार्मिक संस्कार डालना। प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ना, भृकुटी पर शुद्ध जल का तिलक लगाना, तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के दिन गुड़-घी की धूप देना, घर के वास्तु को ठीक करना और शरीर के सभी छिद्रों को अच्छी रीति से प्रतिदिन साफ-सुधरा रखने से भी यह ऋण चुकता होता है।

पितृ ऋण : पितृ ऋण कई तरह का होता है। हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। स्वऋण या आत्म ऋण का अर्थ है कि जब जातक, पूर्व जन्म में नास्तिक और धर्म विरोधी काम करता है, तो अगले जन्म में, उस पर स्वऋण चढ़ता है। मातृ ऋण से कर्ज चढ़ता जाता है और घर की शांति भंग हो जाती है। बहन के ऋण से व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि जीने की इच्छा खत्म हो जाती है। भाई के ऋण से हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है। 28 से .6 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़ती है।

खास उपाय : इस ऋण को उतारने के तीन उपाय- देश के धर्म अनुसार कुल परंपरा का पालन करना, पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करना और संतान उत्पन्न करके उसमें धार्मिक संस्कार डालना। प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ना, भृकुटी पर शुद्ध जल का तिलक लगाना, तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के दिन गुड़-घी की धूप देना, घर के वास्तु को ठीक करना और शरीर के सभी छिद्रों को अच्छी रीति से प्रतिदिन साफ-सुधरा रखने से भी यह ऋण चुकता होता है।

ब्रह्मा ऋण : पितृ ऋण के अलावा एक ब्रह्मा ऋण भी होता है जिसे भी पितृ ऋण के अंर्तगत ही माना जा सकता है। ब्रम्हा ऋण वो ऋण है जो हम पर ब्रम्हा का कर्ज है। ब्रम्हाजी और उनके पुत्रों ने हमें बनाया तो किसी भी प्रकार के भेदवाव, छुआछूत, जाति आदि में विभाजित करके नहीं बनाया। विभाजित करके नहीं बनाया लेकिन पृथ्वी पर आने के बाद हमने उनके कुल को जातियों में बांट दिया। अपने ही भाइयों से विभाजित कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ की हमें युद्ध, हिंसा और अशांति को भोगना पड़ा और पड़ रहा है।
दूसरी ओर यह ऋण हमारे पूर्वजों, हमारे कुल, हमारे धर्म, हमारे वंश आदि से जुड़ा है। इस ऋण को पृथ्वी का ऋण भी कहते हैं, जो संतान द्वारा चुकाया जाता है। बहुत से लोग अपने धर्म, मातृभूमि या कुल को छोड़कर चले गए हैं। उनके पीछे यह दोष कई जन्मों तक पीछा करता रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपने धर्म और कुल को छोड़कर गया है तो उसके कुल के अंत होने तक यह चलता रहता है, क्यों‍कि यह ऋण ब्रह्मा और उनके पुत्रों से जुड़ा हुआ हैं।

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