महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा .. जून 2.20 को है। ऐसे में 22 जून 2020 तक रथ निर्माण का कार्य संपन्न करने के लिए ओडिशा हाईकोर्ट ने निर्देश जारी किया है। हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह निर्देश दिया है। वहीं दूसरी तरफ रथ निर्माण का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है ऐसे में 22 जून 2020 तक रथ निर्माण का कार्य पूरा कर लिए जाने की का आश्वासन एजी ने हाईकोर्ट को दिया है।
यह रहेगा रथयात्रा का पूरा कार्यक्रम–
- 5 जून 2020 को देव स्नान पूर्णिमा उत्सव का आयोजन
- 6 से .9 जून 2020 तक भगवान 14 दिन के लिए अनासर (आइसोलेशन में रहेंगे)
- 20 जून 2020 को नेत्रा उत्सव और नाबा जौबन दर्शन
- 23 जून 2020 को रथयात्रा
- 1 जुलाई 2020 को बहुदा यात्रा या वापसी रथ यात्रा।
इस वर्ष 2020 में प्रशासन की यह हैं तैयारियाँ–
पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की कोरोना संक्रमण के कारण जारी लॉकडाउन के चलते रथ निर्माण कार्य का शुभारंभ निर्धारित अक्षय तृतीया के दिन नहीं हो पाया था। 13 दिन बाद 8 मई से महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए रथ निर्माण का कार्य शुुरु हुआ है। इस दिन से युद्ध स्तर पर तीनों रथों का निर्माण कार्य चल रहा है। रथ निर्माण स्थल पर कोरोना संक्रमण को देखते हुए व्यापक इंतजाम किए गए हैं। जहां से रथ खींचने की शुरुआत की जाती है उस स्थान के “बड़ा डंडा” कहा जाता है। इस बार यहां पर केवल मंदिर समिति और सुरक्षाबलों को आने दिया जाएगा। हर बार की तरह इस बार भी दूरदर्शन पर इसको प्रसारित किया जाएगा। जितने दिन भगवान जगन्नाथ यात्रा का उत्सव चलेगा उतने दिन तक पुरी आने वाली सभी ट्रेनों को रद्द कर दिया है। साथ ही पुरी से जुड़े सभी हाइवे भी यात्रा तक बंद रहेंगे।
पूर्णिमा स्नान उत्सव में भगवान को कई तीर्थ स्थानों के जल में सुगंध मिलाकर उससे अभिषेक करवाया जाता है। इस पर्व में जो सेवक शामिल होते हैं उन्हें गरबाड़ू कहा जाता है। स्नान यात्रा मंदिर के अंदर ही मेघनाद पचेरी में आयोजित होगी। उत्सव में भाग लेने वाले वाले सभी गरबाड़ू सेवकों को कोरोना सेफ्टी निदेशों का पालन करना होगा। माना जा रहा है जितने दिन उत्सव चलेगा उतने दिन पुरी से जुड़ने वाले सभी हाईवे बंद कर दिए जाएंगे। पुरी आने वाली सभी ट्रेनों को भी रद कर दिया गया है।
रथ यात्रा में शामिल होने वाले को मिलता हैं यज्ञ बराबर पुण्य-
भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का अवतार माना गया हैं। जिनकी महिमा का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों में भी किया गया हैं। ऐसी मान्यता हैं कि जगन्नाथ रथयात्रा में भगवान श्रीकृष्ण और उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ होता हैं। जो इस रथयात्रा में शामिल होकर रथ को खींचते हैं उन्हें सौ यज्ञ के बराबर पुण्य लाभ मिलता हैं। रथयात्रा के दौरान लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं एवं रथ को खींचने के लिए श्रद्धालुओं का भारी तांता लगता हैं। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द श्री जी के अनुसार जगन्नाथ यात्रा हिन्दू पंचाग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती हैं। जो इस वर्ष 23 जून 2020 को निकलेगी। यात्रा में शामिल होने के लिए देश भर से श्रद्धालु यहां पहुँच रहें हैं।
जानिए जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व-
हिन्दू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का एक बहुत बड़ा महत्व हैं। मान्यताओं के अनुसार रथ यात्रा को निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुँचाया जाता हैं। यहाँ भगवान जगन्नाथ आराम करते हैं। गुंडिचा माता मंदिर में भारी तैयारी की जाती हैं एवं मंदिर की सफाई के लिये इंद्रद्युमन सरोवर से जल लाया जाता हैं। यात्रा का सबसे बड़ा महत्व यही है कि यह पूरे भारत में एक पर्व की तरह मनाया जाता हैं। चार धाम में से एक धाम जगन्नाथ मंदिर को माना गया हैं। इसलिए जीवन में एक बार इस यात्रा में शामिल होने का शास्त्रों में भी उल्लेख हैं। जगन्नाथ रथयात्रा में सबसे आगे भगवान बालभद्र का रथ रहता हैं बिच में भगवान की बहन सुभद्रा का एवं अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ रहता हैं। इस यात्रा में जो भी सच्चे भाव से शामिल होता हैं उसकी मनोकामना पूर्ण होकर उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
जगन्नाथ पुरी रथ-यात्रा की महिमा।
पूर्व भारतीय उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, भगवान श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला-भूमि है। उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथ जी ही माने जाते हैं। यहाँ के वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं। इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से सम्पूर्ण जगत का उद्भव हुआ है। श्री जगन्नाथ जी पूर्ण परात्पर भगवान है और श्रीकृष्ण उनकी कला का एक रूप है। ऐसी मान्यता श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य पंच सखाओं की है। पूर्ण परात्पर भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है। यह रथयात्रा पुरी का प्रधान पर्व भी है। इसमें भाग लेने के लिए, इसके दर्शन लाभ के लिए हज़ारों, लाखों की संख्या में बाल, वृद्ध, युवा, नारी देश के सुदूर प्रांतों से आते हैं। हिन्दू समाज में चार धामों का महत्त्व सर्वोपरि बताया गया है. ऐसा माना जाता है कि चार धाम की यात्रा कर ली तो मोक्ष मिल जायेगा. इन्ही चार धामों में से एक पुरी में भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथ-यात्रा की भव्यता और दिव्यता किसे नहीं सुहाती है।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि श्री जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा का यह उत्सव पारंपरिक रीति के अनुसार बड़े ही धूमधाम से आयोजित किया जाता है. अगर इसकी तिथि की बात करें तो, रथ उत्सव आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया से शुरू हो कर शुक्ल एकादशी तक चलता है. प्रचलित कथाओं के अनुरूप, इस रथ यात्रा में भगवान श्री कृष्ण जिन्हें भगवान जगन्नाथ भी कहते हैं, उनके रथ के साथ-साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी बनाया जाता है। ये सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से बनाये जाते हैं, जिसे ‘दारु’ कहते हैं. इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है, जिसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है। इतनी बड़े उत्सव का प्रबंधन भी अपने आप में अनुपम है, क्योंकि इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील, कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है. रथों के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होता है। इस आध्यात्मिक अवसर के प्रयोग हेतु जब ये तीनों रथ तैयार हो जाते हैं, तब ‘छर पहनरा’ नामक अनुष्ठान संपन्न किया जाता है, जिसके तहत पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं तथा ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और रास्ते को साफ़ करते हैं। भगवान जगन्नाथ की इसी लीला को देखने विश्व भर से हिन्दू समुदाय के लोग पूरी पहुँचते हैं तथा इस आध्यात्मिक-यात्रा का लाभ उठाते हैं।
इस अवसर का थोड़ा विस्तार से वर्णन करते हैं तो रथ यात्रा महोत्सव में पहले दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा का रथ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया की शाम तक जगन्नाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थिति गुंडीचा मंदिर तक खींच कर लाया जाता है। इसके बाद दूसरे दिन रथ पर रखी जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी की मूर्तियों को विधि पूर्वक उतार कर इस मंदिर में लाया जाता है और अगले 7 दिनों तक श्री जगन्नाथ जी यहीं निवास करते हैं. इसके बाद आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन वापसी की यात्रा की जाती है, जिसे बाहुड़ा यात्रा कहते हैं. इस दौरान पुन: गुंडिचा मंदिर से भगवान के रथ को खींच कर जगन्नाथ मंदिर तक लाया जाता है. मंदिर तक लाने के बाद प्रतिमाओं को पुन: गर्भ गृह में स्थापित कर दिया जाता है। कहते हैं जिन्हें रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है, वह महाभाग्यवान हो जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष-प्राप्ति की बात भी कही गयी है. जो भी हो, भक्तों में उत्साह, उमंग और अपार श्रद्धा का संचार दिख जाना इस अवसर की भव्यता आप ही बता देता है. वैसे तो जगन्नाथ मंदिर और यात्रा के बारे में कई पौराणिक कथाएं है और उन्हीं में से एक के अनुसार द्वारका में एक बार श्री सुभद्रा जी ने नगर देखना चाहा, तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें रथ पर बैठाकर नगर का भ्रमण कराया. इसी घटना की याद में हर साल तीनों देवों को रथ पर बैठाकर नगर के दर्शन कराए जाते हैं। हिन्दुओं की आस्था का एक केन्द्र भगवान जगन्नाथ की जगन्नाथ पुरी का मंदिर भी है, जो 10वीं शताब्दी में निर्मित है और इतिहासकारों के अनुसार मन्दिर का निर्माण राजा इन्द्रद्विमुना ने कराया था।
बेहतरीन कला का नमूना पेश करता ये मंदिर अपनी शानदार चमक और आकर्षण के साथ, आपको प्राचीन युग की भव्यता का दर्शन कराता है. मंदिर की ऊंचाई 65 फुट है और इसकी दीवारों पर भगवान कृष्ण के जीवन का चित्रण करती हुयी उत्कृष्ट कलाकृति उकेरी गयी है. ये सब और अन्य कई कारक हर साल लाखों श्रद्धालुओं को जगन्नाथ मंदिर की ओर आकर्षित करते हैं। वैसे तो साल भर देशी-विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं लेकिन रथ महोत्सव पर पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है।
पूरी के श्री जगन्नाथ मंदिर का एक बड़ा आकर्षण यहां की रसोई भी है।
यह रसोई भारत की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जानी जाती है. इस विशाल रसोई में भगवान को चढाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 500 रसोईए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं. इस प्रसाद में दाल-चावल के साथ कई अन्य चीजें भी होती हैं जो भक्तों को बेहद कम कीमत पर उपलब्ध कराई जाती है. नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का प्रसाद यहां विशेष रूप से मिलता है। एक और बात जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिन्दू लोगों का प्रवेश वर्जित है और विदेशी पर्यटकों को भी केवल मंदिर परिसर में आने की इजाजत हैं गर्भ गृह में नहीं. इसके पीछे वहां की पण्डे-पुरोहितों द्वारा बनाये गए नियम ही हैं, जो सालों से परंपरा की रूप में निभाए जाते हैं। हालाँकि, आने वाले दिनों में अगर कोई ऐसी मांग करता है तो बदलाव की राह भी दिख सकती है।
खैर, गर्भ-गृह तो एक आस्था का विषय मात्र है ओर इस आध्यात्मिक स्थल का असल लाभ तो इसकी भव्यता देखते ही बनती है. आध्यात्म, टूरिज़म का बेहतर स्थल बन कर आज भी परंपरा को निभाने वाला स्थान है श्री जगन्नाथपुरी! तो अगली बार अगर आपको भी मौका मिले तो उड़ीसा के पूरी शहर में हर साल आयोजित होने वाले जगन्नाथ रथ यात्रा में जरूर शामिल हों और अपने हाथों से भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य जरूर प्राप्त करें, साथ ही इससे सम्बंधित दर्शनीय-स्थलों को देखना न भूलें
जगन्नाथ रथयात्रा का इतिहास-
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा देश में एक पर्व की तरह मनाई जाती हैं इसलिए पूरी के अलावा कई जगह यह यात्रा निकाली जाती हैं। रथयात्रा को लेकर कई तरह की मान्यताएं एवं इतिहास हैं। बताया जाता हैं कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की चाह रखते हुए भगवान से द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन को रथ में बैठाकर नगर का भ्रमण करवाया। जिसके बाद से यहाँ हर वर्ष जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाती हैं। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा की प्रतिमायें रखी जाती हैं और उन्हें नगर का भ्रमण करवाया जाता हैं। यात्रा के तीनों रथ लकड़ी के बने होते हैं जिन्हें श्रद्धालु खींचकर चलते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं एवं भाई बलराम के रथ में 14 व बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं। यात्रा का वर्णन स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण, बह्म पुराण आदि में मिलता हैं। इसीलिए यह यात्रा हिन्दू धर्म में क विशेष महत्व रखती हैं
स्वागत हे आप सभी का…इस ब्लॉग “विनायक वास्तु टाईम्स “में…..यहाँ आप पढ़ सकते हे …संकलन —वास्तु..लालकिताब..ज्योतिष…हस्तरेखा …कर्मकांड और मंत्र-तंत्र-यन्त्र …जेसे विषयों पर लेख ..जिन्हें कई विद्वान् और अनुभवी विभूतियों ने लिखा हे…आइये आपना ज्ञान बढाकर …समाज कल्याण कर पुण्य कमाइए….
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