जानिए केसा रहेगा नव विक्रम संवत्सर ..74
इस नवसंवत्सर का नाम साधारण है। इस वर्ष का राजा मंगल और मंत्री बृहस्पति हैं। हालांकि नव वर्ष का पहला सूर्योदय 29 मार्च को होगा। ऐसे में सूर्य पूजा और नव वर्ष 29 मार्च को ही मनाया जाएगा।
मंत्री पद गुरु बृहस्पति के पास होने सामाजिक समरसता होगी बढ़ोतरी :—
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार राजा मंगल, मंत्री बृहस्पति, शस्य सूर्य, धान्येश शुक्र, मेघेश-बुध, फलेश-बुध, धनेश-शनि, दुर्गेश-बुध होंगे। मंत्री पद गुरु बृहस्पति के पास होने से सामाजिक समरसता में बढ़ोतरी होगी। इस वर्ष देश-दुनिया में कृषि, विज्ञान, तकनीकी, अध्यात्म और पर्यटन में अच्छी उन्नति के आसार हैं। ज्योतिषियों के अनुसार इस दौरान भारत शिक्षा के क्षेत्र में विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर होगा। मंगल और गुरु मित्र ग्रह एक राजा व एक मंत्री है। दोनों के प्रभाव में देश की जनता और सरकार चलेगी। विश्व में भारत का प्रभाव और सम्मान बढ़ेगा।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष श्री संवत 2074 का शुभारंभ इस बार “28 मार्च 20.7” प्रात:8:28 “मेष लग्न” व वृश्चिक नवांश से हो रहा हैं जिसमे लग्न मे मंगल बुध,पंचम भाव मे राहू,छठे भाव मे वक्री गुरु,नवम भाव मे शनि,एकादश भाव मे केतू तथा द्वादश भाव मे सूर्य,चन्द्र व वक्री शुक्र स्थित हैं |
लग्नेश मंगल का लग्न मे होना देश के लिए बहुत शुभता दर्शा रहा हैं जो देशवासियो के साहस व पुरुषार्थ द्वारा देश को आगे ले जाने के लिए प्रेरित कर रहा हैं संभव हैं की इस वर्ष भारत सरकार देश की रक्षा से संबन्धित कई बड़े सौदे व फैसले कठोरता से लागू करे | इस मंगल की दृस्टी चतुर्थ भाव व सप्तम भाव पर पड़ रही हैं जो देश के सुख व विदेश व्यापार भाव बनते हैं चूंकि इन दोनों भावो के स्वामी चन्द्र व शुक्र द्वादश भाव मे हैं जो स्पष्ट रूप से देश को विदेशो से बहुत लाभ होना बता रहे हैं | शुक्र चन्द्र दोनों चूंकि,कला,ग्लेमर,संगीत व मनोरंजन के कारक भी होते हैं जो भारतीय फिल्मों व संगीत का पूरे विश्व मे इस वर्ष डंका बजना तय कर रहे हैं संभव हैं की भारतीय कला जगत के किसी व्यक्ति को कोई बड़ा पुरस्कार इस वर्ष विश्वस्तर पर मिल जाए जिससे भारत की कला व फिल्मजगत की ख्याति और बढे |
इस वर्ष का लग्न भारत की वृष लग्न की पत्रिका का द्वादश भाव भी हैं जो इस वर्ष अर्थात 2017-2018 मे भारत को विदेशो से अच्छे समाचार,व्यापार,संधिया,लाभ व धन की प्राप्ति बता रहा हैं द्वादश भाव का स्वामी गुरु अपने भाव द्वादश के अतिरिक्त दसम भाव व धन भाव को भी दृस्ट कर स्पष्ट संकेत दे रहा हैं की सरकार द्वारा इस वर्ष विदेश नीति मे कोई बड़ा बदलाव किया जाएगा जिससे विदेशो से बहुत सा लाभ किसी ना किसी रूप मे देश को मिलेगा जो बड़े पैमाने मे धन के निवेश के रूप मे हो सकता हैं ( विदेश व्यापार का स्वामी व धन भाव का स्वामी शुक्र ऊंच अवस्था मे द्वादश भाव मे हैं )
28/./2017 को सूर्योदय के समय तिथि अमावस्या पड़ रही हैं और दिन मंगल वार पड़ रहा हैं क्यूंकी नववर्ष प्रात: 8:27 पर आरंभ होगा जिससे शुक्ल प्रतिपदा तिथि अगले दिन सूर्योदय के समय मानी जाएगी जो बुधवार का दिन बनेगा इस कारण इस वर्ष का राजा बुध बनेगा | बुध नव वर्ष कुंडली मे तीसरे व छठे भाव का स्वामी होकर लग्न मे लग्नेश मंगल संग ही स्थित हैं और सप्तम भाव को देख रहा हैं जिसका स्वामी द्वादश भाव मे ऊंच का होकर बैठा हैं तथा नवांश मे भी यह बुध छठे भाव से द्वादश भाव को देख रहा हैं जो विदेशो से लाभ,विदेशो से कर्ज़ के अतिरिक्त कर्जमाफ़ी के साथ साथ पड़ोसियो विशेषकर चीन व पाकिस्तान से विवाद,घुसपैठ,अनावश्यक तनाव अथवा युद्ध आदि की पुष्टि भी करा रहा हैं ऐसा विशेषकर 15 मई से 15 अक्तूबर के बीच होना संभव जान पड़ता हैं |
पंचमेश सूर्य का द्वादश भाव मे होना देश की जनता का रुझान विदेशो के प्रति बढ़ने की तरफ इशारा कर रहा हैं वही द्वादश तथा नवम भाव के स्वामी गुरु के छठे भाव मे वक्री अवस्था मे होना विदेशी पर्यटको से संबन्धित कोई बड़ा विवाद होने के साथ साथ विदेशो मे रह रहे भारतीयो से संबन्धित कोई ना कोई परेशानी भी बता रहा हैं |
दसम व एकादश भाव का स्वामी शनि नवम भाव मे होने से देश के राजा की विदेशी दौरो की पुष्टि कर रहा हैं स्पष्ट हैं की प्रधानमंत्री मोदी इस वर्ष भी कई बड़े देशो के अतिरिक्त पड़ोसी मुल्को की यात्रा भी करेंगे जिनसे देश को अवश्य ही बड़े पैमाने मे लाभ होगा |
सूर्य के मेष राशि मे प्रवेश वाले दिन के स्वामी को वर्ष का मंत्री माना जाता हैं इस वर्ष सूर्य 14/4/2017 को रात्रि 2:04 बजे मेष राशि मे प्रवेश करेगा क्यूंकी हिन्दू तिथि सूर्योदय से बदलती हैं इसलिए इस वर्ष का मंत्री गुरु बनेगा | गुरु नवमेश व द्वादशेश होकर वक्री अवस्था मे छठे भाव मे बैठा हैं जो दसम भाव व द्वादश भाव के अतिरिक्त दूसरे भाव को व उसके स्वामी शुक्र को भी देख रहा हैं जिससे सरकार द्वारा फाइनेंस व बैंकिंग सेक्टर मे किसी बड़े बदलाव का होना निश्चित होता दिख रहा हैं संभव हैं की वर्ष 2017-2018 मे सरकार टैक्स दरो मे बड़ी राहत प्रदान करने के साथ साथ कुछ नए बैंक भी खोले अथवा कुछ का राष्ट्रीयकरण करे जिससे बैंकिंग क्षेत्र मे उछाल आने से विस्तार होगा तथा नई नौकरिया पैदा होंगी जो बैंको को ब्याजदारों मे कमी करने पर मजबूर करेगा जिससे देश के आम आदमी को बहुत राहत प्राप्त होगी तथा निर्माण क्षेत्र मे भी विस्तार होगा |
गुरु मंत्री के रूप मे नवमेश व द्वादशेश होकर इस वर्ष दसम भाव व द्वादश भाव को दृस्टी दे रहा हैं दसम भाव जो की देश के राजा का होता हैं उसका स्वामी शनि नवम भाव से राजयोग निर्मित कर गुरु को दृस्टी देकर देश के राजा अर्थात प्रधानमंत्री मोदी को किसी बड़े अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार की प्राप्ति बता रहा हैं ऐसा जून-जुलाई अथवा सितंबर–अक्तूबर मे हो सकता हैं वही नवांश मे भी यह गुरु दसम भाव मे ही स्थित हैं जो सरकार का न्याय व्यवस्था अथवा सर्वोच्च न्यायालय से धर्म अथवा तीर्थ आदि से संबन्धित किसी प्रकार का विरोध व तनाव करवाना निश्चित कर रहा हैं |
स्वतंत्र भारत की कुंडली से देखे तो इस पूरे वर्ष भारत चन्द्र मे राहू की अंतर्दशा मे रहेगा चन्द्र भारत की पत्रिका मे तीसरे भाव मे स्वराशी का होकर संचार व खेल जगत मे भारत के लिए सुखद भविष्य बता रहा हैं वही राहू लग्न मे स्थित होकर राजनीतिक व संचार जगत मे भारत का लोहा पूरे विश्व मे मनवाने की पुष्टि कर रहा हैं राहू क्यूंकी शुक्र की राशि मे हैं तथा शुक्र देश का लग्नेश होने के साथ साथ महिलाओ का प्रतिनिधित्व भी करता हैं स्पष्ट हैं की देश की आधी आबादी अर्थात महिलाओ के लिए यह वर्ष कुछ खास उपलब्धियों वाला रहेगा | चन्द्र व राहू मे 3/11 का संबंध हैं जो ज्योतिषीय दृस्टी शुभ संबंध कहा जाता हैं |
संक्षेप मे कहें तो क्यूं की इस वर्ष के राजा बुध व मंत्री गुरु बन रहे हैं जो की ज्योतिषीय दृस्टी से शुभ ग्रह माने व समझे जाते हैं अत: यह वर्ष भारत के लिए अच्छी वर्षा व फसलों की भारी पैदावार होने से विशेषकर लाभदायक साबित होगा तथा देश इस वर्ष कई मामलो मे तेजी से तरक्की की और अग्रसर होगा |
इसी दिन कलश स्थापना, दुर्गा पाठ, रामायण पाठ प्रांरभ कर सकते हैं। घर पर केसरिया ध्वज लगाना, घर के मुख्य-मुख्य दरवाजों पर एक ओर देशी गाय के गोबर से दूसरी ओर हल्दी-घी से स्वस्तिक बनाना, नीम की कोमल पत्ती, काली मिर्च और मिश्री खाना लाभकारी होगा। गोबर, हल्दी और नीम सूक्ष्म जीवाणुओं को समाप्त करके ज्वर-चेचक- खसरा आदि रोगों से बचाने में सहायक होते हैं।
बन रहा दुर्लभ संयोग–इस वर्ष हनुमान जयंती नव विक्रम संवत्सर में 2074 यानि 11 अप्रैल 2017 (मंगलवार) को मनाई जाएगी। मंगलवार को नया संवत मंगलवार को राम नवमी, मंगलवार को ही हनुमान जयंती दुर्लभ संयोग है।
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जानिए विक्रम संवत्सर का इतिहास–
इसी दिन प्रतिपदा के दिन आज से 2074 वर्ष पूर्व उज्जयिनी नरेष महाराज विक्रमादित्य ने विदेषी आक्रांत शकों से भारत भूमि की रक्षा की और इसी दिन से कालगणना प्रारम्भ की गई। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमीसंवत् का नामकरण किया। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2074 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का जड़ से उन्मूलन कर देश से पराजित कर भगा दिया और उनके मूल स्थान अरब में विजय की पताका फहरा दी। साथ ही साथ यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कम्बोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहरा दी। इन्हीं विजय की स्मृति स्वरूप वर्ष प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती रही और आज भी बड़े उत्साह एवं ऐतिहासिक धरोहर की स्मृति के रूप में मनाई जा रही है। इनके राज्य में कोई चोर या भिखारी नहीं था। विक्रमादित्य ने विजय के बाद जब राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने प्रजा के तमाम ऋणों को माफ कर दिया तथा नये भारतीय कैलेण्डर को जारी किया, जिसे विक्रम संवत् नाम दिया।
सबसे प्राचीन काल गणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन विक्रमी संवत् के रूप में इस शुभ एवं शौर्य दिवस को अभिषिक्त किया गया है। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचन्द्रजी के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय को याद करने का दिवस है। इसी दिन महाराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। इसी शुभ दिन महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज की स्थापना की थी। यह दिवस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक श्री केशव बलिराम हेडगेवार के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। पूरे भारत में इसी दिन से चैत्र नवरात्र की शुरूआत मानी जाती है।
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या नववर्ष का आरम्भ माना गया है। ‘गुड़ी’ का अर्थ होता है विजय पताका । ऐसा माना गया है कि शालिवाहन नामक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों का निर्माण किया और उनकी एक सेना बनाकर उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिये। उसमें सेना की सहायता से शक्तिषाली शत्रुओं को पराजित किया। इसी विजय के उपलक्ष्य में प्रतीक रूप में ‘‘षालिवाहन शक’ का प्रारम्भ हुआ। पूरे महाराष्ट्र में बड़े ही उत्साह से गुड़ी पड़वा के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। कष्मीरी हिन्दुओं द्वारा नववर्ष के रूप में एक महत्वपूर्ण उत्सव की तरह इसे मनाया जाता है।
इसे हिन्दू नव संवत्सर या नव संवत् भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारम्भ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत् के नये साल का आरम्भ भी होता है। सिंधी नववर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरू होता है जो चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस शुभ दिन भगवान् झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरूण देव के अवतार हैं।
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होगा 44वां नामक संवत्सर—
हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत 2074 एवं संवत्सरों की श्रृंखला का 44 वा साधारण नामक संवत्सर होगा। इस तिथि से विक्रम संवत का प्रारंभ भी होता है। मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारंभ किया था।
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अबूझ मुहूर्त—-
हिंदी पंचाग काल गणना का प्रथम माह चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा अर्थात गुड़ी पड़वा जिसे अबूझ मुहूर्त बताया है अर्थात बिना पंचांग देखे ही कोई भी शुभ कार्य इस दिन प्रारंभ कर सकते हैं। भगवान विष्णु का प्रथम मत्स्यावतार भी इसी दिन हुआ है।
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नव संवत्सर के राजा मंगल है—-
हिंदुओं के नए साल की शुरूआत 28 मार्च से होगी।विक्रम संवत 2074 प्रारंभ हो जाएगा। इस बार नव संवत्सर का नाम साधारण है। इसका राजा मंगल है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार मंगलवार के दिन 28 मार्च को नव संवत्सर प्रारंभ हो रहा है। जिस दिन नव संवत्सर प्रारंभ होता है। उन दिन के ग्रह को ही वर्ष का राजा माना जाता है। इस वर्ष गृह मंत्री मंडल के अनुसार मंगल को राजा का स्थान प्राप्त हुआ है। मंगल ग्रह होने कारण जनजीवन में उपयोग होने वाली सभी वस्तुओं में महगाई आएगी। बृहस्पति देव को मन्त्री पद मिला है।
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जानिए केसे शुरू हुआ विक्रम संवत—
विक्रम संवत हिन्दू पंचांग में समय गणना की प्रणाली का नाम है। यह संवत 57 ई.पू. आरम्भ होती है। इसका प्रणेता सम्राट विक्रमादित्य को माना जाता है। महाराष्ट्र में यह पर्व ‘गुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है। दरअसल ‘गुड़ी’ का अर्थ होता है ‘विजय पताका’। दुनिया का लगभग हर कैलेण्डर( पंचांग) सर्दी के बाद बसंत ऋतु से ही प्रारम्भ होता है।
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जानिए 12 महीनों के नाम—
कहते हैं कि पृथ्वी द्वारा 365/366 दिन में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मानकर कैलेण्डर तैयार किया गया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रखे गए हैं। हिंदी महीनों के 12 नाम हैं चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। इस साल में चातुर्मास पांच माह का है। भारतीय मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी) से कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवप्रबोधिनी) तक चौमासा माना जाता है। आधा आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और आधा कार्तिक माह बारिश के माने जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार अधिक मास का निर्णय अमांत मास (एक अमावस्या के अंत से अग्रिम अमावस्या के अंत तक) आधार पर होता है। हर माह में अलग राशियों की संक्रांति आती है। जिस अमांत मास में किसी राशि की संक्रांति नहीं होती उस मास को अधिक माना जाता है।
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जानिए कैसे मनायें नव वर्ष-नव संवत्सर —
नव वर्ष की पूर्व संध्या पर दीपदान करना चाहिये। घरों में शाम को 7 बजे लगभग घण्टा-घडियाल व शंख बजाकर मंगल ध्वनि से नव वर्ष का स्वागत करें। इष्ट मित्रों को एसएमएस, इमेल एवं दूरभाष से नये वर्ष की शुभकामना भेजना प्रारम्भ कर देना चाहिये। नव वर्ष के दिन प्रातःकाल से पूर्व उठकर मंगलाचरण कर सूर्य को प्रणाम करें। हवन कर वातावरण शुद्ध करें। नये संकल्प करें। नवरात्रि के नो दिन साधना के शुरू हो जाते हैं तथा नवरात्र घट स्थापना की जाती है। नव वर्ष का स्वागत करने के लिए अपने घर-द्वार को आम के पत्तों से अशोक पत्र से द्वार पर बन्दनवार लगाना चाहिये। नवीन वस्त्राभूषण धारण करना चाहिये। इसी दिन प्रातःकाल स्नान कर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल ले कर ‘ओम भूर्भुवः स्वः संवत्सर-अधिपति आवाहयामि पूजयामि च’ मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिये एवं नव वर्ष के अशुभ फलों के निवारण हेतु ब्रह्माजी से प्रार्थना करनी चाहिये। हे भगवन्! आपकी कृपा से मेरा यह वर्ष मंगलमय एवं कल्याणकारी हो। इस संवत्सर के मध्य में आने वाले सभी अनिष्ट और विघ्न शांत हो जाये।
नव संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतु काल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवाइन मिलाकर खाने से रक्त विकार आदि शारीरिक रोग होने की संभावना नहीं रहती है तथा वर्षभर हम स्वस्थ रह सकते हैं। इतना न कर सके तो कम-से-कम चार-पाँच नीम की कोमल पत्त्यिाँ ही सेवन कर ले तो पर्याप्त रहता है। इससे चर्मरोग नहीं होते हैं। महाराष्ट्र में तथा मालवा में पूरनपोली या मीठी रोटी बनाने की प्रथा है। महाराष्ट्रियन समाज में गुड़ी सजाकर भी बाहर लगाते हैं। यह गुड़ी नव वर्ष की पताका का ही स्वरूप है।
सच तो यह है कि विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति की याद दिलाता है और कम से कम इस बात की अनुभूति तो होती है कि भारतीय संस्कृति से जुड़े सारे समुदाय इसे एक साथ बिना प्रचार प्रसार और नाटकीयता से परे हो कर मनाते हैं। हम सब भारतवासियों का कर्त्तव्य है कि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक और भारतीय कैलेण्डर विक्रम संवत् के अनुसार इस दिन का स्वागत करें। पराधीनता एवं गुलामी के बाद अंग्रेजों ने हमें एक ऐसा रंग चढ़ाया कि हम अपने नव वर्ष को भूल कर-विस्मृत कर उनके रंग में रंग गये। उन्हीं की तरह एक जनवरी को नव वर्ष अधिकांश लोग मनाते आ रहे हैं। लेकिन अब देशवासी को अपनी भारतीयता के गौरव को याद कर नव वर्ष विक्रमी संवत् मनाना चाहिये जो आगामी 29 मार्च को है।
आप सभी को नव वर्ष की अनेक-अनेक शुभकामनाएँ यह वर्ष भारतीयों के लिये ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिये भी सुख, शांति एवं मंगलमय हो।
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ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री।।
इंद्रा नगर, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
इस नवसंवत्सर का नाम साधारण है। इस वर्ष का राजा मंगल और मंत्री बृहस्पति हैं। हालांकि नव वर्ष का पहला सूर्योदय 29 मार्च को होगा। ऐसे में सूर्य पूजा और नव वर्ष 29 मार्च को ही मनाया जाएगा।
मंत्री पद गुरु बृहस्पति के पास होने सामाजिक समरसता होगी बढ़ोतरी :—
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार राजा मंगल, मंत्री बृहस्पति, शस्य सूर्य, धान्येश शुक्र, मेघेश-बुध, फलेश-बुध, धनेश-शनि, दुर्गेश-बुध होंगे। मंत्री पद गुरु बृहस्पति के पास होने से सामाजिक समरसता में बढ़ोतरी होगी। इस वर्ष देश-दुनिया में कृषि, विज्ञान, तकनीकी, अध्यात्म और पर्यटन में अच्छी उन्नति के आसार हैं। ज्योतिषियों के अनुसार इस दौरान भारत शिक्षा के क्षेत्र में विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर होगा। मंगल और गुरु मित्र ग्रह एक राजा व एक मंत्री है। दोनों के प्रभाव में देश की जनता और सरकार चलेगी। विश्व में भारत का प्रभाव और सम्मान बढ़ेगा।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष श्री संवत 2074 का शुभारंभ इस बार “28 मार्च 20.7” प्रात:8:28 “मेष लग्न” व वृश्चिक नवांश से हो रहा हैं जिसमे लग्न मे मंगल बुध,पंचम भाव मे राहू,छठे भाव मे वक्री गुरु,नवम भाव मे शनि,एकादश भाव मे केतू तथा द्वादश भाव मे सूर्य,चन्द्र व वक्री शुक्र स्थित हैं |
लग्नेश मंगल का लग्न मे होना देश के लिए बहुत शुभता दर्शा रहा हैं जो देशवासियो के साहस व पुरुषार्थ द्वारा देश को आगे ले जाने के लिए प्रेरित कर रहा हैं संभव हैं की इस वर्ष भारत सरकार देश की रक्षा से संबन्धित कई बड़े सौदे व फैसले कठोरता से लागू करे | इस मंगल की दृस्टी चतुर्थ भाव व सप्तम भाव पर पड़ रही हैं जो देश के सुख व विदेश व्यापार भाव बनते हैं चूंकि इन दोनों भावो के स्वामी चन्द्र व शुक्र द्वादश भाव मे हैं जो स्पष्ट रूप से देश को विदेशो से बहुत लाभ होना बता रहे हैं | शुक्र चन्द्र दोनों चूंकि,कला,ग्लेमर,संगीत व मनोरंजन के कारक भी होते हैं जो भारतीय फिल्मों व संगीत का पूरे विश्व मे इस वर्ष डंका बजना तय कर रहे हैं संभव हैं की भारतीय कला जगत के किसी व्यक्ति को कोई बड़ा पुरस्कार इस वर्ष विश्वस्तर पर मिल जाए जिससे भारत की कला व फिल्मजगत की ख्याति और बढे |
इस वर्ष का लग्न भारत की वृष लग्न की पत्रिका का द्वादश भाव भी हैं जो इस वर्ष अर्थात 2017-2018 मे भारत को विदेशो से अच्छे समाचार,व्यापार,संधिया,लाभ व धन की प्राप्ति बता रहा हैं द्वादश भाव का स्वामी गुरु अपने भाव द्वादश के अतिरिक्त दसम भाव व धन भाव को भी दृस्ट कर स्पष्ट संकेत दे रहा हैं की सरकार द्वारा इस वर्ष विदेश नीति मे कोई बड़ा बदलाव किया जाएगा जिससे विदेशो से बहुत सा लाभ किसी ना किसी रूप मे देश को मिलेगा जो बड़े पैमाने मे धन के निवेश के रूप मे हो सकता हैं ( विदेश व्यापार का स्वामी व धन भाव का स्वामी शुक्र ऊंच अवस्था मे द्वादश भाव मे हैं )
28/./2017 को सूर्योदय के समय तिथि अमावस्या पड़ रही हैं और दिन मंगल वार पड़ रहा हैं क्यूंकी नववर्ष प्रात: 8:27 पर आरंभ होगा जिससे शुक्ल प्रतिपदा तिथि अगले दिन सूर्योदय के समय मानी जाएगी जो बुधवार का दिन बनेगा इस कारण इस वर्ष का राजा बुध बनेगा | बुध नव वर्ष कुंडली मे तीसरे व छठे भाव का स्वामी होकर लग्न मे लग्नेश मंगल संग ही स्थित हैं और सप्तम भाव को देख रहा हैं जिसका स्वामी द्वादश भाव मे ऊंच का होकर बैठा हैं तथा नवांश मे भी यह बुध छठे भाव से द्वादश भाव को देख रहा हैं जो विदेशो से लाभ,विदेशो से कर्ज़ के अतिरिक्त कर्जमाफ़ी के साथ साथ पड़ोसियो विशेषकर चीन व पाकिस्तान से विवाद,घुसपैठ,अनावश्यक तनाव अथवा युद्ध आदि की पुष्टि भी करा रहा हैं ऐसा विशेषकर 15 मई से 15 अक्तूबर के बीच होना संभव जान पड़ता हैं |
पंचमेश सूर्य का द्वादश भाव मे होना देश की जनता का रुझान विदेशो के प्रति बढ़ने की तरफ इशारा कर रहा हैं वही द्वादश तथा नवम भाव के स्वामी गुरु के छठे भाव मे वक्री अवस्था मे होना विदेशी पर्यटको से संबन्धित कोई बड़ा विवाद होने के साथ साथ विदेशो मे रह रहे भारतीयो से संबन्धित कोई ना कोई परेशानी भी बता रहा हैं |
दसम व एकादश भाव का स्वामी शनि नवम भाव मे होने से देश के राजा की विदेशी दौरो की पुष्टि कर रहा हैं स्पष्ट हैं की प्रधानमंत्री मोदी इस वर्ष भी कई बड़े देशो के अतिरिक्त पड़ोसी मुल्को की यात्रा भी करेंगे जिनसे देश को अवश्य ही बड़े पैमाने मे लाभ होगा |
सूर्य के मेष राशि मे प्रवेश वाले दिन के स्वामी को वर्ष का मंत्री माना जाता हैं इस वर्ष सूर्य 14/4/2017 को रात्रि 2:04 बजे मेष राशि मे प्रवेश करेगा क्यूंकी हिन्दू तिथि सूर्योदय से बदलती हैं इसलिए इस वर्ष का मंत्री गुरु बनेगा | गुरु नवमेश व द्वादशेश होकर वक्री अवस्था मे छठे भाव मे बैठा हैं जो दसम भाव व द्वादश भाव के अतिरिक्त दूसरे भाव को व उसके स्वामी शुक्र को भी देख रहा हैं जिससे सरकार द्वारा फाइनेंस व बैंकिंग सेक्टर मे किसी बड़े बदलाव का होना निश्चित होता दिख रहा हैं संभव हैं की वर्ष 2017-2018 मे सरकार टैक्स दरो मे बड़ी राहत प्रदान करने के साथ साथ कुछ नए बैंक भी खोले अथवा कुछ का राष्ट्रीयकरण करे जिससे बैंकिंग क्षेत्र मे उछाल आने से विस्तार होगा तथा नई नौकरिया पैदा होंगी जो बैंको को ब्याजदारों मे कमी करने पर मजबूर करेगा जिससे देश के आम आदमी को बहुत राहत प्राप्त होगी तथा निर्माण क्षेत्र मे भी विस्तार होगा |
गुरु मंत्री के रूप मे नवमेश व द्वादशेश होकर इस वर्ष दसम भाव व द्वादश भाव को दृस्टी दे रहा हैं दसम भाव जो की देश के राजा का होता हैं उसका स्वामी शनि नवम भाव से राजयोग निर्मित कर गुरु को दृस्टी देकर देश के राजा अर्थात प्रधानमंत्री मोदी को किसी बड़े अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार की प्राप्ति बता रहा हैं ऐसा जून-जुलाई अथवा सितंबर–अक्तूबर मे हो सकता हैं वही नवांश मे भी यह गुरु दसम भाव मे ही स्थित हैं जो सरकार का न्याय व्यवस्था अथवा सर्वोच्च न्यायालय से धर्म अथवा तीर्थ आदि से संबन्धित किसी प्रकार का विरोध व तनाव करवाना निश्चित कर रहा हैं |
स्वतंत्र भारत की कुंडली से देखे तो इस पूरे वर्ष भारत चन्द्र मे राहू की अंतर्दशा मे रहेगा चन्द्र भारत की पत्रिका मे तीसरे भाव मे स्वराशी का होकर संचार व खेल जगत मे भारत के लिए सुखद भविष्य बता रहा हैं वही राहू लग्न मे स्थित होकर राजनीतिक व संचार जगत मे भारत का लोहा पूरे विश्व मे मनवाने की पुष्टि कर रहा हैं राहू क्यूंकी शुक्र की राशि मे हैं तथा शुक्र देश का लग्नेश होने के साथ साथ महिलाओ का प्रतिनिधित्व भी करता हैं स्पष्ट हैं की देश की आधी आबादी अर्थात महिलाओ के लिए यह वर्ष कुछ खास उपलब्धियों वाला रहेगा | चन्द्र व राहू मे 3/11 का संबंध हैं जो ज्योतिषीय दृस्टी शुभ संबंध कहा जाता हैं |
संक्षेप मे कहें तो क्यूं की इस वर्ष के राजा बुध व मंत्री गुरु बन रहे हैं जो की ज्योतिषीय दृस्टी से शुभ ग्रह माने व समझे जाते हैं अत: यह वर्ष भारत के लिए अच्छी वर्षा व फसलों की भारी पैदावार होने से विशेषकर लाभदायक साबित होगा तथा देश इस वर्ष कई मामलो मे तेजी से तरक्की की और अग्रसर होगा |
इसी दिन कलश स्थापना, दुर्गा पाठ, रामायण पाठ प्रांरभ कर सकते हैं। घर पर केसरिया ध्वज लगाना, घर के मुख्य-मुख्य दरवाजों पर एक ओर देशी गाय के गोबर से दूसरी ओर हल्दी-घी से स्वस्तिक बनाना, नीम की कोमल पत्ती, काली मिर्च और मिश्री खाना लाभकारी होगा। गोबर, हल्दी और नीम सूक्ष्म जीवाणुओं को समाप्त करके ज्वर-चेचक- खसरा आदि रोगों से बचाने में सहायक होते हैं।
बन रहा दुर्लभ संयोग–इस वर्ष हनुमान जयंती नव विक्रम संवत्सर में 2074 यानि 11 अप्रैल 2017 (मंगलवार) को मनाई जाएगी। मंगलवार को नया संवत मंगलवार को राम नवमी, मंगलवार को ही हनुमान जयंती दुर्लभ संयोग है।
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जानिए विक्रम संवत्सर का इतिहास–
इसी दिन प्रतिपदा के दिन आज से 2074 वर्ष पूर्व उज्जयिनी नरेष महाराज विक्रमादित्य ने विदेषी आक्रांत शकों से भारत भूमि की रक्षा की और इसी दिन से कालगणना प्रारम्भ की गई। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमीसंवत् का नामकरण किया। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2074 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का जड़ से उन्मूलन कर देश से पराजित कर भगा दिया और उनके मूल स्थान अरब में विजय की पताका फहरा दी। साथ ही साथ यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कम्बोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहरा दी। इन्हीं विजय की स्मृति स्वरूप वर्ष प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती रही और आज भी बड़े उत्साह एवं ऐतिहासिक धरोहर की स्मृति के रूप में मनाई जा रही है। इनके राज्य में कोई चोर या भिखारी नहीं था। विक्रमादित्य ने विजय के बाद जब राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने प्रजा के तमाम ऋणों को माफ कर दिया तथा नये भारतीय कैलेण्डर को जारी किया, जिसे विक्रम संवत् नाम दिया।
सबसे प्राचीन काल गणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन विक्रमी संवत् के रूप में इस शुभ एवं शौर्य दिवस को अभिषिक्त किया गया है। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचन्द्रजी के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय को याद करने का दिवस है। इसी दिन महाराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। इसी शुभ दिन महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज की स्थापना की थी। यह दिवस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक श्री केशव बलिराम हेडगेवार के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। पूरे भारत में इसी दिन से चैत्र नवरात्र की शुरूआत मानी जाती है।
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या नववर्ष का आरम्भ माना गया है। ‘गुड़ी’ का अर्थ होता है विजय पताका । ऐसा माना गया है कि शालिवाहन नामक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों का निर्माण किया और उनकी एक सेना बनाकर उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिये। उसमें सेना की सहायता से शक्तिषाली शत्रुओं को पराजित किया। इसी विजय के उपलक्ष्य में प्रतीक रूप में ‘‘षालिवाहन शक’ का प्रारम्भ हुआ। पूरे महाराष्ट्र में बड़े ही उत्साह से गुड़ी पड़वा के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। कष्मीरी हिन्दुओं द्वारा नववर्ष के रूप में एक महत्वपूर्ण उत्सव की तरह इसे मनाया जाता है।
इसे हिन्दू नव संवत्सर या नव संवत् भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारम्भ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत् के नये साल का आरम्भ भी होता है। सिंधी नववर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरू होता है जो चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस शुभ दिन भगवान् झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरूण देव के अवतार हैं।
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होगा 44वां नामक संवत्सर—
हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत 2074 एवं संवत्सरों की श्रृंखला का 44 वा साधारण नामक संवत्सर होगा। इस तिथि से विक्रम संवत का प्रारंभ भी होता है। मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारंभ किया था।
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अबूझ मुहूर्त—-
हिंदी पंचाग काल गणना का प्रथम माह चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा अर्थात गुड़ी पड़वा जिसे अबूझ मुहूर्त बताया है अर्थात बिना पंचांग देखे ही कोई भी शुभ कार्य इस दिन प्रारंभ कर सकते हैं। भगवान विष्णु का प्रथम मत्स्यावतार भी इसी दिन हुआ है।
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नव संवत्सर के राजा मंगल है—-
हिंदुओं के नए साल की शुरूआत 28 मार्च से होगी।विक्रम संवत 2074 प्रारंभ हो जाएगा। इस बार नव संवत्सर का नाम साधारण है। इसका राजा मंगल है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार मंगलवार के दिन 28 मार्च को नव संवत्सर प्रारंभ हो रहा है। जिस दिन नव संवत्सर प्रारंभ होता है। उन दिन के ग्रह को ही वर्ष का राजा माना जाता है। इस वर्ष गृह मंत्री मंडल के अनुसार मंगल को राजा का स्थान प्राप्त हुआ है। मंगल ग्रह होने कारण जनजीवन में उपयोग होने वाली सभी वस्तुओं में महगाई आएगी। बृहस्पति देव को मन्त्री पद मिला है।
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जानिए केसे शुरू हुआ विक्रम संवत—
विक्रम संवत हिन्दू पंचांग में समय गणना की प्रणाली का नाम है। यह संवत 57 ई.पू. आरम्भ होती है। इसका प्रणेता सम्राट विक्रमादित्य को माना जाता है। महाराष्ट्र में यह पर्व ‘गुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है। दरअसल ‘गुड़ी’ का अर्थ होता है ‘विजय पताका’। दुनिया का लगभग हर कैलेण्डर( पंचांग) सर्दी के बाद बसंत ऋतु से ही प्रारम्भ होता है।
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जानिए 12 महीनों के नाम—
कहते हैं कि पृथ्वी द्वारा 365/366 दिन में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मानकर कैलेण्डर तैयार किया गया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रखे गए हैं। हिंदी महीनों के 12 नाम हैं चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। इस साल में चातुर्मास पांच माह का है। भारतीय मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी) से कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवप्रबोधिनी) तक चौमासा माना जाता है। आधा आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और आधा कार्तिक माह बारिश के माने जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार अधिक मास का निर्णय अमांत मास (एक अमावस्या के अंत से अग्रिम अमावस्या के अंत तक) आधार पर होता है। हर माह में अलग राशियों की संक्रांति आती है। जिस अमांत मास में किसी राशि की संक्रांति नहीं होती उस मास को अधिक माना जाता है।
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जानिए कैसे मनायें नव वर्ष-नव संवत्सर —
नव वर्ष की पूर्व संध्या पर दीपदान करना चाहिये। घरों में शाम को 7 बजे लगभग घण्टा-घडियाल व शंख बजाकर मंगल ध्वनि से नव वर्ष का स्वागत करें। इष्ट मित्रों को एसएमएस, इमेल एवं दूरभाष से नये वर्ष की शुभकामना भेजना प्रारम्भ कर देना चाहिये। नव वर्ष के दिन प्रातःकाल से पूर्व उठकर मंगलाचरण कर सूर्य को प्रणाम करें। हवन कर वातावरण शुद्ध करें। नये संकल्प करें। नवरात्रि के नो दिन साधना के शुरू हो जाते हैं तथा नवरात्र घट स्थापना की जाती है। नव वर्ष का स्वागत करने के लिए अपने घर-द्वार को आम के पत्तों से अशोक पत्र से द्वार पर बन्दनवार लगाना चाहिये। नवीन वस्त्राभूषण धारण करना चाहिये। इसी दिन प्रातःकाल स्नान कर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल ले कर ‘ओम भूर्भुवः स्वः संवत्सर-अधिपति आवाहयामि पूजयामि च’ मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिये एवं नव वर्ष के अशुभ फलों के निवारण हेतु ब्रह्माजी से प्रार्थना करनी चाहिये। हे भगवन्! आपकी कृपा से मेरा यह वर्ष मंगलमय एवं कल्याणकारी हो। इस संवत्सर के मध्य में आने वाले सभी अनिष्ट और विघ्न शांत हो जाये।
नव संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतु काल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवाइन मिलाकर खाने से रक्त विकार आदि शारीरिक रोग होने की संभावना नहीं रहती है तथा वर्षभर हम स्वस्थ रह सकते हैं। इतना न कर सके तो कम-से-कम चार-पाँच नीम की कोमल पत्त्यिाँ ही सेवन कर ले तो पर्याप्त रहता है। इससे चर्मरोग नहीं होते हैं। महाराष्ट्र में तथा मालवा में पूरनपोली या मीठी रोटी बनाने की प्रथा है। महाराष्ट्रियन समाज में गुड़ी सजाकर भी बाहर लगाते हैं। यह गुड़ी नव वर्ष की पताका का ही स्वरूप है।
सच तो यह है कि विक्रम संवत् ही हमें अपनी संस्कृति की याद दिलाता है और कम से कम इस बात की अनुभूति तो होती है कि भारतीय संस्कृति से जुड़े सारे समुदाय इसे एक साथ बिना प्रचार प्रसार और नाटकीयता से परे हो कर मनाते हैं। हम सब भारतवासियों का कर्त्तव्य है कि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक और भारतीय कैलेण्डर विक्रम संवत् के अनुसार इस दिन का स्वागत करें। पराधीनता एवं गुलामी के बाद अंग्रेजों ने हमें एक ऐसा रंग चढ़ाया कि हम अपने नव वर्ष को भूल कर-विस्मृत कर उनके रंग में रंग गये। उन्हीं की तरह एक जनवरी को नव वर्ष अधिकांश लोग मनाते आ रहे हैं। लेकिन अब देशवासी को अपनी भारतीयता के गौरव को याद कर नव वर्ष विक्रमी संवत् मनाना चाहिये जो आगामी 29 मार्च को है।
आप सभी को नव वर्ष की अनेक-अनेक शुभकामनाएँ यह वर्ष भारतीयों के लिये ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिये भी सुख, शांति एवं मंगलमय हो।
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ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री।।
इंद्रा नगर, उज्जैन (मध्य प्रदेश)