जानिए नक्षत्रों का आपके शरीर पर प्रभाव–


प्रिय पाठकों, सौरमंडल के सभी नौ ग्रहों का प्रभाव हमारे जीवन पर देखा जा सकता है। जन्म के समय मौजूद ग्रहों की स्थिति और नक्षत्रों के आधार पर हमारी कुंडली का निर्माण होता है और फिर यही ग्रह अपने-अपने स्वभाव अनुरूप हमारे जीवन को चलाते हैं। हमारे वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों को भी शरीर के आधार पर वर्गीकृत किया गया है | सभी नक्षत्र शरीर के किसी ना किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते ही हैं और इन अंगों से संबंधित परेशानी भी व्यक्ति को हो जाती हैं |ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा जाता है। यह प्रतीकात्मक है। नेत्र व्यक्ति को अच्छा व बुरा देखने तथा समझने का शक्तिशाली माध्यम है। 



कहा है- प्रत्यक्षं ज्योतिषंशास्त्रंचंद्राको यत्र साक्षिणो। 

रवि व चंद्रमा साक्षी हैं अतः ज्योतिष के विज्ञान या सत्य होने में कोई संदेह नहीं है |


आंतरिक व बाह्य रहस्यों को देखने में नेत्रों की भूमिका महत्वपूर्ण है।  जो नक्षत्र जन्म कुंडली में पीड़ित होता है उससे संबंधित बीमारी व्यक्ति को होने की संभावना बनती है अथवा जब कोई नक्षत्र गोचर में भी पीड़ित अवस्था में चल रहा हो तब उससे संबंधित परेशानी होने की भी संभावना बनती है | नक्षत्रों को शरीर पर विभाजित करने का वर्गीकरण उस वक़्त बहुत उपयोगी होता है जब किसी जातक की कुंडली का सही पता नहीं होता है यह देखने हो की प्रस्तुत कुंडली उसी जातक की है या नहीं ;अलग अलग ग्रह विभिन्न नक्षत्रों पर अपना एक अलग प्रकार का चिन्ह अथवा निशान देते है ! ग्रहों, राशियों व नक्षत्रों के तत्वों का ज्ञान, इसका प्रभाव मानव के अंतिम लक्ष्य मोक्ष का मार्गदर्शन करता है। भौतिक जगत में परमात्मा मानव जीवन देकर मोक्ष का अवसर प्रदान करता है।  यहाँ ग्रह-नक्षत्रों का सकारात्मक प्रभाव सहयोग देता है, नकारात्मक प्रभाव व्यवधान उत्पन्ना करते हैं। शनि एवं केतु मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं।  


भय पर शनि व केतु का आधिपत्य है। भूख पर रवि एवं बृहस्पति, यौन पर शुक्र तथा सुरक्षा पर चंद्र, मंगल तथा बुध का आधिपत्य है।   मानव शरीर के विभिन्ना धातु तत्वों का भी ब्रह्मांड के ग्रहों से सीधा संबंध है। शरीर की हड्डियों पर रवि, खून पर चंद्रमा, शरीर के मांस पर मंगल, त्वचा पर बुध, चर्बी पर बृहस्पति, वीर्य पर शुक्र तथा स्नायुमंडल शनि से संबंध रखता है।  बृहस्पति, रवि, चंद्रमा तथा नेपच्यून सतोगुण, शुक्र, बुध तथा प्लूटो रजोगुण तथा शेष तमोगुण के प्रतिनिधि हैं। जहाँ तक राशियों का प्रश्न है मेष, सिंह व धनु अग्नि तत्व, वृषभ, कन्या व मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला व कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक व मीन जल तत्व की राशियाँ हैं।आकाश तत्व इन सभी में .. प्रतिशत प्राप्त होता है।


नक्षत्रों का भी तत्व के आधार पर विभाजन भारतीय ज्योतिष में किया है- अश्विनी, मृगसर, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा वायु तत्व के नक्षत्र हैं। भरणी, कृत्तिका, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, पूर्वाषाढ़ा तथा दोनों भाद्रपद अग्नि तत्व के नक्षत्र हैं। रोहिणी, अनुराधा, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा पृथ्वी तत्व के तथा शेष जल तत्व के नक्षत्र हैं। आकाश तत्व इन सभी नक्षत्रों में 12 प्रतिशत प्राप्त होता है।    


इतना ही नहीं चिकित्सा ज्योतिष में भी पीड़ित नक्षत्रों के द्वारा यह ज्ञात किया जाता है की जातक को किस स्थान पर रोग की सम्भावना ज्यादा है और कहा बिलकुल नहीं है ! यह हमेशा से शोध का विषय रहा है !


ज्योतिष का फलित भाग इन ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों के मानव शरीर पर प्रभाव का अध्ययन करता है। जो पंचतत्व इन ग्रह-नक्षत्रों व राशियों में हैं, वे ही मानव शरीर में भी हैं,तो निश्चित ही इनका मानव शरीर पर गहरा प्रभाव है। भारतीय ज्योतिष ने सात ग्रहों को प्राथमिकता दी है- रवि, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि।   
यूं तो ये सभी ग्रह अलग-अलग स्थान पर निवास करते हैं लेकिन रक्त के प्रवाह के कारण, एक-दूसरे पर इनका प्रभाव देखा जा सकता है। इनकी स्थिति और निवास जानने के बाद निश्चित तौर पर जातक शारीरिक अंगों के रूप में अपने ग्रहों को समझ पाएंगे।मानव जीवन में कुछ गुण मूल प्रकृति के रूप में मौजूद होते हैं। प्रत्येक मनुष्य में प्राकृतिक रूप से आत्मा, मन, बल, वाणी, ज्ञान, काम तथा दुःख विद्यमान होते हैं। 


यह ग्रहों पर निर्भर करता है कि मानव जीवन में इनकी मात्रा कितनी है, विशेष रूप से प्रथम दो तत्वों को छोड़कर, क्योंकि आत्मा से ही शरीर है, यह रवि का अधिकार क्षेत्र है।मन चंद्रमा का है। मंगल- बल, वाणी- बुध, ज्ञान- बृहस्पति, काम- शुक्र तथा दुःख पर शनि का आधिपत्य है।  राहू एवं केतु चेतना से संबंधित हैं। शरीर आयुर्वेद के अनुसार त्रिदोष से पीड़ित हो सकता है, जो विभिन्ना रोगों के रूप में प्रकट होता है- वात, पित्त एवं कफ।   रवि, मंगल- पित्त, चंद्रमा- कफ, शनि- वायु, बुध- त्रिदोष, शुक्र- कफ एवं वात तथा बृहस्पति- कफ और पित्त का अधिपति है। शरीर की आंतरिक स्वास्थ्य रचना इन प्रवृत्तियों तथा ग्रहों के उचित तालमेल पर ही निर्भर है।  
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जानिए नक्षत्र क्या हैं?


नक्षत्र का सिद्धांत भारतीय वैदिक ज्योतिष में पाया जाता है। यह पद्धति संसार की अन्य प्रचलित ज्योतिष पद्धतियों से अधिक सटीक व अचूक मानी जाती है। आकाश में चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर अपनी कक्षा पर चलता हुआ 27.. दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है। इस प्रकार एक मासिक चक्र में आकाश में जिन मुख्य सितारों के समूहों के बीच से चन्द्रमा गुजरता है, चन्द्रमा व सितारों के समूह के उसी संयोग को नक्षत्र कहा जाता है। चन्द्रमा की 36.˚ की एक परिक्रमा के पथ पर लगभग 27 विभिन्न तारा-समूह बनते हैं, आकाश में तारों के यही विभाजित समूह नक्षत्र या तारामंडल के नाम से जाने जाते हैं। इन 27 नक्षत्रों में चन्द्रमा प्रत्येक नक्षत्र की 13˚20’ की परिक्रमा अपनी कक्षा में चलता हुआ लगभग एक दिन में पूरी करता है। प्रत्येक नक्षत्र एक विशेष तारामंडल या तारों के एक समूह का प्रतिनिधी होता है।


जानिए नक्षत्र का आपके जीवन पर प्रभाव–


चन्द्रमा का एक राशिचक्र 27 नक्षत्रों में विभाजित है, इसलिए अपनी कक्षा में चलते हुए चन्द्रमा को प्रत्येक नक्षत्र में से गुजरना होता है। 


आपके जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में स्थित होगा, वही आपका जन्म नक्षत्र होगा। आपके वास्तविक जन्म नक्षत्र का निर्धारण होने के बाद आपके बारे में बिल्कुल सही भविष्यवाणी की जा सकती है। अपने नक्षत्रों की सही गणना व विवेचना से आप अवसरों का लाभ उठा सकते हैं। इसी प्रकार आप अपने अनेक प्रकार के दोषों व नकारात्मक प्रभावों का विभिन्न उपायों से निवारण भी कर सकते हैं। नक्षत्रों का मिलान रंगों, चिन्हों, देवताओं व राशि-रत्नों के साथ भी किया जा सकता है। 


गंडमूल नक्षत्र – अश्विनी, आश्लेषा, मघा, मूला एवं रेवती !ये छ: नक्षत्र गंडमूल नक्षत्र कहे गए हैं !इनमें किसी बालक का जन्म होने पर 27 दिन के पश्चात् जब यह नक्षत्र दोबारा आता है तब इसकी शांति करवाई जाती है ताकि पैदा हुआ बालक माता- पिता आदि के लिए अशुभ न हो ! संस्था में गंडमूल दोष निवारण की विशेष सुविधा उपलब्ध है ! 


मूल नक्षत्र एवं उनके चरणों के प्रभाव—

क्या हैं गंड मूल नक्षत्र ??

राशि चक्र में ऎसी तीन स्थितियां होती हैं, जब राशि और नक्षत्र दोनों एक साथ समाप्त होते हैं।  यह स्थिति “गंड नक्षत्र” कहलाती है। इन्हीं समाप्ति स्थल से नई राशि और नक्षत्र की शुरूआत होती है।
 लिहाजा इन्हें “मूल नक्षत्र” कहते हैं। इस तरह तीन नक्षत्र गंड और तीन नक्षत्र मूल कहलाते हैं। 
 गंड और मूल नक्षत्रों को इस प्रकार देखा जा सकता है।  


अश्विनी—-
प्रथम चरण –पिता को कष्ट व भय
द्वितीय चरण —परिवार में सुख एवं ऐश्वर्या
त्रितय चरण —सरकार से लाभ एवं मंत्री पद की प्राप्ति
चतुर्थ चरण —परिवार को राज सम्मान व जातक को ख्याति


मघा—
प्रथम चरण —माता को कष्ट
द्वितीय —-पिता को भय
तृतीय —परिवार में सुख
चतुर्थ —जातक को धन विद्या का लाभ

ज्येष्ठा—-
प्रथम चरण —बड़े भाई को कष्ट
द्वितीय —छोटे भाई को कष्ट
तृतीय —माता को कष्ट
चतुर्थ —स्वयं का नाश


मूल नक्षत्र—
प्रथम चरण —पिता को कष्ट
द्वितीय –माता को कष्ट
तृतीय –धन नाश
चतुर्थ—सुख शांति आएगी


आश्लेषा नक्षत्र—
प्रथम चरण —शांति और सुख आएगा
द्वितीय —धन नाश
तृतीय —मातरिकष्ट
चतुर्थ–पिता को कष्ट

रेवती नक्षत्र—-
प्रथम चरण —राजकीय सम्मान
द्वितीय —-माता पिता को कष्ट
तृतीय —धन व आश्वर्य की प्राप्ति
चतुर्थ—परिवार में अनेक कष्ट

मूलों का शुभ या अशुभ प्रभाव आठ वर्ष की आयु तक ही होता है |
इस से उपर आयु वाले जातकों के लिए मूल शांति व उपचार की आवश्यकता नहीं है |
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गंड मूल नक्षत्र शांति मंत्र —


अश्विनी नक्षत्र (स्वामित्व अश्विनी कुमार):

 ॐ अश्विनातेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वतीवीर्यम। वाचेन्द्रोबलेनेंद्राय दधुरिन्द्रियम्।
 ॐ अश्विनी कुमाराभ्यां नम:।।
 (जप संख्या 5,000)।  


अश्लेषा (स्वामित्व सर्प):ॐ नमोस्तु सप्र्पेभ्यो ये के च पृथिवी मनु: ये अन्तरिक्षे ये दिवितेभ्य: सप्र्पेभ्यो नम:।। ॐ सप्र्पेभ्यो नम:।।  (जप संख्या 10,000)।  


मघा (स्वामित्व पितर): ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: पितामहेभ्य स्वधायिभ्य: स्वधा नम:। प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्य: स्वधा नम: अक्षन्नापित्रोमीमदन्त पितरोùतीतृपन्तपितर: पितर: शुन्धध्वम्।।
 ॐ पितृभ्यो नम:/पितराय नम:।। (जप संख्या 10,000)।

 

ज्येष्ठा (इन्द्र): ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र हवे हवे सुह्न शूरमिन्द्रम् ह्वयामि शक्रं पुरूहूंतमिन्द्र स्वस्तिनो मधवा धात्विंद्र:।। ॐ शक्राय नम:।। (जप संख्या 5,000)। 


 मूल (राक्षस): ॐ मातेव पुत्र पृथिवी पुरीष्यमणि स्वेयोनावभारूषा। तां विश्वेदेवर्ऋतुभि: संवदान: प्रजापतिविश्वकर्मा विमुच्चतु।। 
 ॐ निर्ऋतये नम:।। (जप संख्या 5,000)। 


  रेवती (पूष्ाा): ॐ पूषन् तवव्रते वयं नरिष्येम कदाचन स्तोतारस्त इहस्मसि।। ॐ पूष्णे नम:। (जप संख्या 5,000)।  
 गंड नक्षत्र स्वामी बुध के मंत्र  “ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्ठापूर्ते संसृजेथामयं च अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत।।” के नौ हजार जप कराएं। 


दशमांश संख्या में हवन कराएं। हवन में अपामार्ग (ओंगा) और पीपल की समिधा काम में लें।  


मूल नक्षत्र स्वामी केतु के मंत्र “ॐ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मय्र्याअपेशसे समुष्ाभ्दिजायथा:।।”


 के सत्रह हजार जप कराएं और इसके दशमांश मंत्रों के साथ दूब और सुख समर्धी के कुछ उपाय पीपल की समिधा काम में लेें मानव जीवन एसा जीवन जन्हा कोई सुखी नहीं हैं सब को कोई न कोई परेशानी रहती हैं 



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शुभ नक्षत्र – रोहिणी, अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढा, उत्तरा फाल्गुनी, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, पुनर्वसु, अनुराधा और स्वाति ये नक्षत्र शुभ हैं !इनमें सभी कार्य सिद्ध होते हैं ! 


मध्यम नक्षत्र – पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, ज्येष्ठा, आर्द्रा, मूला और शतभिषा ये नक्षत्र मध्यम होते हैं ! इनमें साधारण कार्य सम्पन्न कर सकते हैं, विशेष कार्य नहीं !  


अशुभ नक्षत्र – भरणी, कृत्तिका, मघा और आश्लेषा नक्षत्र अशुभ होते हैं !इनमें कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है !ये नक्षत्र क्रूर एवं उग्र प्रकृति के कार्यों के लिए जैसे बिल्डिंग गिराना, कहीं आग लगाना, विस्फोटों का परीक्षण करना आदि के लिए ही शुभ होते हैं !  


पंचक नक्षत्र – धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती ! ये पाँच नक्षत्र पंचक नक्षत्र कहे गए हैं ! इनमें समस्त शुभ कार्य जैसे गृह प्रवेश, यात्रा, गृहारंभ, घर की छत डालना, लकड़ी का संचय करना आदि कार्य नहीं करने चाहियें !


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नक्षत्रों को शरीरांगो पर विभाजित करने में विद्वानों में एक से अधिक मत रहे है | इस विवेचन के अनुसार आप अपनी कुंडली में स्थित विभिन्न नक्षत्रों का ध्यायन करके अपने शरीर के तीन, चोंट/घाव या उस नक्षत्र के विशेष प्रभाव को भली भांति जान सकते हैं |


.शास्त्रीय मत से नक्षत्र पुरुष का विचार  : —


शरीर के अंगो पर सभी नक्षत्रों का कोई क्रम नहीं है !
“वामनपुराणानुसार ” इनका विभाजन निम्नलिखित है —


क्रम.        नक्षत्र      –       शरीरांग
१.           अश्विनी   –       दोनों घुटने 
२.            भरणी     –       सिर 
३.           कृतिका    –       कटिप्रदेश 
४.            रोहिणी    –       दोनों टांगे 
५.            मृगशिरा  –       दोनों नेत्र 
६.            आर्द्रा       –        बाल 
७.            पुनर्वसु    –       अंगुलियाँ 
८.            पुष्य        –       मुख 
९.            आश्लेषा  –       नख 
१०.          मघा        –       नाक
११.    पूर्वा फाल्गुनी –      गुप्तांग 
१२. उत्तरा फाल्गुनी-      गुप्तांग 
१३.          हस्त       –      दोनों हाथ 
१४.         चित्रा        –      मस्तक 
१५.        स्वाति       –     दांत 
१६.        विशाखा     –    दोनों भुजाएं 
१७.        अनुराधा    –    ह्रदय, वक्षस्थल 
१८.        ज्येष्ठा      –    जिव्हा 
१९.         मूल         –    दोनों पैर 
२०.     पूर्वा षाढा     –    दोनों जांघें 
२१.   उत्तरा षाढा   –    दोनों जांघें 
२२.        श्रवण       –    दोनों कान 
२३.      धनिष्ठा      –    पीठ 
२४.     शतभिषा      –   ठोड़ी के दोनों पार्श्व 
२५.    पूर्वा भाद्रपद  –    बगल 
२६.  उत्तरा भाद्रपद –   बगल 
२७.        रेवती        –   दोनों कांख 


नोट : – 


i. शरीर में निशान और चोट का निश्चय करने में इसका उपयोग होता है ! क्रूर का बुरे ग्रह कुंडली में जिस नक्षत्र में गये हो उसी अंग पर घाव या निशान पैदा कर देते है ! 


ii. सूर्य चन्द्रमा के नक्षत्रानुसार उस अंग में चिन्ह आदि जन्मजात होता है या बना देता है ! 


iii. दशा-अन्तर्दशा में भी लग्ने वाली चोट का निर्धारण इसी से किया जाता है ! 


iv. जो नक्षत्र पापयुक्त हो, निर्बल ग्रह से युक्त हो वही अंग पीड़ित, शिथिल या दोषयुक्त होता है ! 


२. जन्म नक्षत्र से नक्षत्र पुरुष विचार : —


जातक के जन्म नक्षत्र से प्रारम्भ करके १,१,३,१,१,४,३,५,१,४,३ नक्षत्रों को सारणी के अनुसार स्थापित कर लें ! जिन नक्षत्रों पर पाप प्रभाव, क्रूर दृष्टि, नीच-शत्रु ग्रह होगा उन्ही नक्षत्रों के अंगो पर चोट व अन्य निशान उस ग्रह की दशा अन्तर्दशा में मिलेंगे ! यह विचार महर्षि पराशर ने बताया है ! 


अंग                          –      नक्षत्र 


मुख                          –     जन्म नक्षत्र  


वाम नेत्र                     –     १


माथा                         –     ३ 


छाती (दायीं)               –     १ 


गला (दक्षिण भाग)       –     १ 


दायाँ हाथ                   –     ४ 


दायाँ पैर                     –     ३ 


छाती (बायीं)               –     ५ 


गला (वाम bhag)        –     १  


बांया हाथ                  –     ४ 


दायाँ पैर                     –     ३ 


३. पाराशरीय मत : —


पराशर ने प्रश्न विचार हेतु अलग नक्षत्र पुरुष का वर्णन किया है ! 


क्रम.        नक्षत्र      –       शरीरांग
१.           अश्विनी   –       सर  
२.            भरणी     –       माथा  
३.           कृतिका    –       भौंहें 


४.            रोहिणी    –       आँखें  
५.            मृगशिरा  –       नाक  
६.            आर्द्रा       –       कान  
७.            पुनर्वसु    –       गाल  
८.            पुष्य        –      होंठ  
९.            आश्लेषा  –       ठुड्डी  
१०.          मघा        –      गला 
११.    पूर्वा फाल्गुनी –       कंधे  
१२. उत्तरा फाल्गुनी-        ह्रदय  
१३.          हस्त       –       बगलें  
१४.         चित्रा        –       छाती  
१५.        स्वाति       –       पेट  
१६.        विशाखा     –      नाभि 
१७.        अनुराधा    –      कमर  
१८.        ज्येष्ठा      –      जांघ  
१९.         मूल         –      नितम्ब  
२०.     पूर्वा षाढा     –       लिंग  
२१.   उत्तरा षाढा   –       अंडकोष 
२२.        श्रवण       –      पेडू  
२३.      धनिष्ठा      –      जंघा  
२४.     शतभिषा      –      घुटने  
२५.    पूर्वा भाद्रपद  –       पिंडली  
२६.  उत्तरा भाद्रपद –      टखने  
२७.        रेवती        –     पैर 


* ज्येष्ठा को जांघों के उपरी हिस्से अर्थात कमर के नीचे के आधे भाग में व धनिष्ठा को शेष जांघें समझे !


नोट : –  


रोगी, पलायित, विपत्ति ग्रस्त के विषय में व्यक्ति प्रश्न करे और प्रश्न करते समय पैर, कमर पिंडली, घुटना, नाभि, टखना, कान, माथा, आँखें, मुख, गला इनको छुए या प्रश्न समय प्रश्नगत व्यक्ति के जन्म नक्षत्र से विपत, वध, प्रत्यारी, वैनाशिक नक्षत्रों के अंगो को छुए या ये नक्षत्र प्रश्न समय विद्यमान हो तो प्रश्न पूछने वाले व्यक्ति को अशुभ फल मिलेगा|
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ये होगा आपके शरीर के अंगों पर तिल का मतलब—



शरीर के विभिन्न अंगों पर तिल के निशान को लेकर अनेक प्रकार की धारणाएं देखने, सुनने और पढ़ने को मिलती है। बदन पर तिल होने पर यह भी कहा जाता है कि उक्त स्थान पर व्यक्ति को पूर्व जन्म में चोट लगी थी। इस तरह की कई बातें तिल के बारे में प्रचलित हैं। आइए नजर डालते हैं, ऐसी कुछ धारणाओं पर –


—जिनके दायें कंधे पर तिल होता है, वे दृढ संकल्पित होते हैं।
—-यदि तिल पर बाल हो, तो वो शुभ नहीं माना जाता और न ही अच्छा लगता है।
—यदि तिल यदि बड़ा हो, तो शुभ होने के साथ शगुन बढ़ाता है।
— यदि तिल गहरे रंग का हो, तो माना जाता है कि बड़ी बाधाएं सामने आएंगी।
— शरीर के अंग विशेष पर हल्का रंग का तिल सकारात्मक विशेषता का सूचक माना जाता है।
—-जिस व्यक्ति के ललाट पर दायीं तरफ तिल हो, उसे प्रतिभा का धनी माना जाता है और बायीं तरफ होने पर उसे फिजूलखर्च व्यक्ति माना जाता है। जिसके ललाट के मध्य में तिल हो, उस व्यक्ति को अच्छा प्रेमी माना जाता है।
— यदि दायीं गाल पर तिल हो, वैवाहिक जीवन सफल रहता है। बायीं गाल पर तिल संघर्षपूर्ण जीवन का द्योतक है।
—जिस व्यक्ति के होंठों पर तिल होता है, उसे विलासी प्रवृत्ति का माना जाता है।
—ठोड़ी पर तिल इस बात का सूचक है कि व्यक्ति सफल और संतुष्ट है।
— यदि आंख पर तिल हो, तो माना जाता है कि व्यक्ति कंजूस प्रवृत्ति का है।
—- किसी की पलकों पर तिल होना इस बात का द्योतक है कि व्यक्ति संवेदनशील और एकांतप्रिय है।
— किसी के कान पर तिल इस बात का सूचक है कि व्यक्ति धीर, गंभीर और विचारशील है।
—-नाक पर तिल होने पर माना जाता है कि व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होगा।
— यदि गर्दन पर तिल वाला हो तो  व्यक्ति अच्छा दोस्त होता है।
— यदि किसी के कूल्हे पर तिल हो तो इस व्यक्ति शारिरिक व मानसिक दोनों स्तर पर परिश्रमी होता है।
—जिसके मुंह के पास तिल होता है, वह एक न एक दिन धन प्राप्त करता है।
—जिसके आंख के अंदर तिल हो, वह व्यक्ति कोमल हृदय अर्थात भावुक होता है।
— जिसकी दायीं भौं पर तिल हो ऐसे व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सफल रहता है।
— किसी के टखना पर तिल इस बात का सूचक है कि आदमी खुले विचारों वाला है।
—जोड़ों पर तिल होना शारिरिक दुर्बलता की निशानी माना जाता है।
— किसी के पांव पर तिल लापरवाही का द्योतक है।
— किसी की नाभि पर तिल मनमौजी प्रवृत्ति का संकेत है।
— किसी की कोहनी पर तिल होना विद्वान होने का संकेत है।
—कमर पर दायीं ओर तिल होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति अपनी बात पर अटल रहने वाला और सच्चाई पसंद करने वाला है।
—-जिसके घुटने पर तिल हो, वह व्यक्ति सफल वैवाहिक जीवन जीता है।
—-जिसके बायें कंधे पर तिल होता है, वह व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का होता है।
— यदि किसी के कंधे और कोहनी के मध्य तिल होने पर माना जाता है कि व्यक्ति में उत्सुक प्रवृत्ति का है।
—जिस व्यक्ति के कोहनी और पोंहचे के मध्य कहीं तिल होता है, वह रोमांटिक प्रवृत्ति का होता है।


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नक्षत्र और शरीर के अंग—



इस लेख के माध्यम से आज आपके सामने नक्षत्र व उससे संबंधित शरीर के अंगों के बारे में बताया जाएगा-


अश्विनी—
अश्विनी नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है. यह पहला नक्षत्र है और इसलिए यह सिर का प्रतिनिधित्व करता है. मस्तिष्क संबंधित जितनी भी बाते हैं उन सभी को अश्विनी नक्षत्र से देखा जाता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन्हीं से संबंधित बीमारियों का सामना व्यक्ति को करना पड़ता है|


भरणी—
भरणी नक्षत्र दूसरे स्थान पर आने वाला नक्षत्र है और शुक्र इसके इसके अधिकार क्षेत्र में मस्तिष्क का क्षेत्र, सिर के अंदर का भाग व आँखे आती है. जन्म कुंडली या गोचर में इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन्हीं अंगों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है |


कृत्तिका—
यह तीसरा नक्षत्र है और सूर्य इसके स्वामी हैं. इस नक्षत्र के अन्तर्गत, सिर, आँखें, मस्तिष्क, चेहरा, गर्दन, कण्ठनली, टाँसिल व निचला जबड़ा आता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर आपको इससे संबंधित बीमारी होने की संभावना बनती है|


रोहिणी–
यह चौथा नक्षत्र है और इसके स्वामी चंद्रमा है. इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में चेहरा, मुख, जीभ, टांसिल, गरदन, तालु, ग्रीवा, कशेरुका, अनुमस्तिष्क आते हैं. जन्मकालीन रोहिणी नक्षत्र अथवा गोचर का यह नक्षत्र जब पीड़ित होता है तब इन अंगो में पीड़ा का अनुभव व्यक्ति को होता है|


मृगशिरा—
यह नक्षत्र पांचवें स्थान पर आने वाला नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह मंगल है. इस नक्षत्र के पहले व दूसरे चरण में ठोढ़ी, गाल, स्वरयंत्र, तालु, रक्त वाहिनियाँ, टांसिल, ग्रीवा की नसें आती हैं. तीसरे व चौथे चरण में गला आता है और गले की आवाज आती है. बाजु व कंधे आते हैं, कान आता है. ऊपरी पसलियाँ आती हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित समस्या से जूझना पड़ता है |


आर्द्रा– 
यह छठे स्थान पर आने वाला नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह राहु है. इस नक्षत्र के अधिकार में गला आता है, बाजुएँ आती है और कंधे आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित बीमारी होने की संभावना बनती है|


पुनर्वसु—
यह सातवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बृहस्पति है. इस नक्षत्र के पहले, दूसरे व तीसरे भाग के अधिकार में कान, गला व कंधे की हड्डियाँ आती हैं. पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में फेफड़े, श्वसन प्रणाली, छाती, पेट, पेट के बीच का भाग, पेनक्रियाज, जिगर तथा वक्ष आता है. जब यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इस नक्षत्र से संबंधित भागों में बीमारी होने की संभावाना बनती है|


पुष्य—
यह भचक्र का आठवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी शनि है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत फेफ़ड़े, पेट तथा पसलियाँ आती हैं. अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इससे संबंधित शरीर के अंग में पीड़ा पहुंचती है |


आश्लेषा—
यह नौवां नक्षत्र है और इसका स्वामी बुध है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत फेफड़े, इसोफेगेस, जिगर, पेट का मध्य भाग, पेनक्रियाज आता है. अगर यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन अंगों से जुड़ी परेशानियाँ व्यक्ति को होती हैं |


मघा–
यह भचक्र का दसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह केतु है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत पीठ, दिल, रीढ़ की हड्डी, स्पलीन, महाधमनी, मेरुदंड का पृष्ठीय भाग आते हैं. जब भी यह नक्षत्र पीड़ित होगा तब व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से होकर गुजरना पड़ेगा |


पूर्वाफाल्गुनी—
यह ग्यारहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह शुक्र है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत मेरुदंड व दिल आता है और जब भी यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन दोनो से संबंधित कोई शारीरिक समस्या हो सकती है |


उत्तराफाल्गुनी—
यह बारहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी सूर्य है. इस नक्षत्र के पहले चरण में मेरुदंड आता है. दूसरे, तीसरे व चौथे
चरण में आंते आती है, अंतड़ियाँ आती हैं और इसका निचला भाग आता है. जन्म कुंडली में इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओ का सामना करना पड़ सकता है |


हस्त—
यह तेरहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी चंद्रमा है. इसके अधिकार में आंते, अंतड़ियाँ, अंत:स्त्राव ग्रंथियाँ,
इंजाइम्स आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों में पीड़ा होने की संभावना बनती है |


चित्रा–
यह भचक्र का चौदहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी मंगल ग्रह है. इस नक्षत्र के पहले व दूसरे चरण में उदर का निचला भाग आता है, तीसरे व चौथे चरण में गुरदे, कटि क्षेत्र, हर्निया, मेरुदंड का निचला भाग, नसों की गति आदि आती है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन्हीं अंगों में कष्ट होता है |


स्वाति —
यह भचक्र का पंद्रहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह राहु है. त्वचा, गॉल ब्लैडर, गुरदे, मूत्रवाहिनी इस नक्षत्र के अधिकार क्षेत्र में आती हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों से जुड़ी बीमारी होने की संभावना बनती है |


विशाखा
यह सोलहवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी बृहस्पति हैं. इस नक्षत्र के पहले, दूसरे व तीसरे चरण में पेट का निचला हिस्सा, गॉल ब्लैडर के आसपास के अंग, गुरदा, पेनक्रियाज संबंधित ग्रंथि आती है. चौथे चरण में ब्लैडर, मूत्रमार्ग, गुदा, गुप्तांग तथा प्रौस्टेट ग्रंथि आती है |


अनुराधा
यह भचक्र का सत्रहवाँ नक्षत्र है और शनि इसका स्वामी है. ब्लैडर, मलाशय, गुप्तांग, गुप्तांगों के पास की हड्डियाँ, नाक की हड्डियाँ आदि सभी इस नक्षत्र के अंदर आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित समस्याओं से होकर गुजरना पड़ता है |


ज्येष्ठा
यह भचक्र का अठारहवाँ नक्षत्र है और बुध इसका स्वामी है. गुदा, जननेन्द्रियाँ, बृहदआंत्र, अंडाशय तथा गर्भ ज्येष्ठा नक्षत्र में आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है |


मूल—
यह भचक्र का उन्नीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बुध है. इस नक्षत्र के अंतर्गत कूल्हे, जांघे, गठिया की नसें, ऊर्वस्थि, श्रांणिफलक आदि अंग आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से जुड़े रोग हो सकते हैं |


पूर्वाषाढ़ा–
यह भचक्र का बीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह शुक्र है. इसके अन्तर्गत कूल्हे, जांघे, नसें, श्रोणीय रक्त ग्रंथियाँ, मेरुदंड का सेक्रमी क्षेत्र आदि अंग आते हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगो से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है|


उत्तराषाढ़ा—
यह इक्कीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह सूर्य है. इस नक्षत्र के पहले चरण में जांघे आती हैं, ऊर्वस्थि रक्त
वाहिनियाँ आती हैं. इस नक्षत्र के दूसरे, तीसरे व चौथे चरण में घुटने व त्वचा आती है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है |


श्रवण—
यह भचक्र का बाईसवाँ नक्षत्र है और चंद्रमा इसका स्वामी है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत घुटने, लसीका वाहिनियाँ तथा त्वचा आती है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है |


धनिष्ठा
यह भचक्र का तेईसवाँ नक्षत्र है और मंगल इसका स्वामी है. इस नक्षत्र के पहले व दूसरे चरण में घुटने की ऊपर की हड्डी आती है जो टोपी के समान दिखती है. तीसरे व चतुर्थ चरण में टखने, टखने और घुटनों के बीच का भाग आता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों में परेशानी का अनुभव होता है |


शतभिषा—
यह भचक्र का चौबीसवाँ नक्षत्र है और इसका स्वामी राहु है. घुटनों व टखनों के बीच का भाग, पैर की नलियों की मांस पेशियाँ इस नक्षत्र के अन्तर्गत आती हैं. जब यह नक्षत्र पीड़ित होता है तब इन अंगों से संबंधित रोग होने की संभावना बनती है |


पूर्वाभाद्रपद—
यह भचक्र का पच्चीसवाँ नक्षत्र है और बृहस्पति इसका स्वामी है. इस नक्षत्र के पहले, दूसरे व तीसरे चरण में टखने आते हैं. चतुर्थ चरण में पंजे व पांव की अंगुलियाँ आती है. जब भी यह नक्षत्र पीड़ित होगा तब इन अंगों से संबंधित
परेशानियों का सामना करना पड़ेगा |


उत्तराभाद्रपद—
यह भचक्र का छब्बीसवाँ नक्षत्र है और शनि इसके स्वामी है. इस नक्षत्र के अन्तर्गत पैर के पंजे आते हैं. जन्म कुंडली में अथवा गोचर में इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को पंजों से संबंधित परेशानी से गुजरना पड़ सकता है |


रेवती—
यह भचक्र का सत्ताईसवाँ व अंतिम नक्षत्र है और इसका स्वामी ग्रह बुध है. इस नक्षत्र के अधिकार में पंजे व पैर की अंगुलियाँ आती हैं. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन अंगों से जुड़ी बीमारी हो सकती है |
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नक्षत्र एवं उसमें जन्मे बालक का नक्षत्र फल—जन्म नक्षत्र फल :- 
अश्वनी नक्षत्र :धनी, हंसमुख, सुंदर, बुद्दिमान, अच्छी पोशाक, आभूषण पहनने का शौक़ीन, गठीला शरीर, जनप्रिय | हर काम में होशियार | परोपकारी, यशस्वी, वाहन एवं नौकर युक्त| भाग्योदय २० वर्ष बाद , यशस्वी, एश्वर्य संपन्न, नम्र स्पष्ट वक्ता अस्थिर चरित्रवान | स्वार्थपूर्ति के लिए विश्वासघात भी कर ले | क्रूर गृह की दशा में सूर्य, मंगल व् गुरु के अंतर में शत्रु कष्ट, चोरी का भय |
भरणी नक्षत्र :सत्यवादी, स्वाथ्य अच्छा, बीमार कम रहे | सुमार्ग पर चले, सुखी स्त्रियों में आशक्त, अस्थिर मनोवृत्ति, अस्थिर विचार, विदेश गमन की इच्छा, दीर्घायु, शत्रु विजयी, भाग्योदय २५ वर्ष बाद | कभी चोट लगकर अंग भंग होना संभव | कम बोलने वाला, क्रूर व् कृतघ्न, नीच कर्म रत, क्रूर गृह की महादशा तथा चन्द्र – राहू – शनि की अंतर दशा में शत्रु – कष्ट, चोरी भय |
कृतिका नक्षत्र :कामी चरित्र हीन, कंजूस, कृतघ्न, मित्र एवं सम्बन्धियों से बिगाड़ हो | जिस  काम में  हाथ डाले उसे पूरा करके छोड़े | अच्छे भोजन आदि का शौक़ीन | स्त्रियों से मित्रता बढाने में सिद्धहस्त | किसी विशेष विषय में दक्ष | स्वेच्छानुसार कार्य करने वाला | बुद्दिमान लोभी, प्रसिद्ध, तेजस्वी, आशावादी, बाह्य व्यक्तित्व शानदार,  विद्वान देखने में भव्य | मुकदमेबाजी में रूचि रखने वाला चालाक | भाग्योदय २९ वर्ष बाद , क्रूर गृह की दशा तथा मंगल, गुरु, बुध, की अन्तर्दशा में शत्रुकष्ट चोरी का भय |
रोहिणी नक्षत्र :सुंदर आकर्षक लुभावना व्यक्तित्व, सत्य एवं मधुर भाषी जनप्रिय कार्य पटु कलाकार सांसारिक कार्य बुद्धि से संपन्न करे दृढ प्रतिज्ञ | रात का जन्म होतो झूठ बोलने वाला | कठोर मन वासना अधिक वासना पूर्ती के लिए कुछ भी कर सकता है | भोगी धन व् स्मरण शक्ति तीव्र , नेत्र बड़े ललाट चौड़ा आलसी भाग्योदय ३० वर्ष के पश्चात | क्रूर गृह की दशा में राहू शनि व् केतु के अंतर में शत्रु कष्ट चोरी का भय |
मृगशिरा नक्षत्र  :शोख तबियत स्त्रियों से संपर्क रखे | कामी तीव्र गति से चले घमंडी छोटी छोटी बात पर बिगड़े  क्रोधी चालाक काम निकालने में निपुण | लड़ाई फसाद के कामों में रूचि रखे, प्रियजन के अनादर में खुश रहे, डरपोक विद्वान् विवेकशील यात्रा में रूचि, धन संतान व् मित्रों से युक्त, विद्वान होते हुए भी  चंचल वृत्ति, अभिमान की मात्रा विशेष रहे | भाग्योदय २८ वर्ष पश्चात क्रूर गृह की दशा गुरु – बुध, शुक्र के अंतर में शत्रु – कष्ट चोरी का भय |
आद्रा नक्षत्र :नम्र स्वभाव मजबूत दिल बुद्दिमान कोई कष्ट आये तो घबराये नहीं | जो कमाए खर्च हो जाए | अन्नादि का भी संग्रह न हो पाए | धन दौलत के सुख से वंचित रहे | अच्छे कामों में रूचि रखे | विचलित मन मस्तिष्क वाला, बलवान क्षुद्र व् ओछे विचार युक्त कम शिक्षित आडम्बरी धार्मिक कामों में व्यर्थ प्रदर्शन करने वाला | ये प्राय: फिटर ओवेरसिएर, फोरमैन, इंजनीयर इत्यादि होते हैं | भाग्योदय २५ वर्ष बाद में होता है | क्रूर गृह की दशा में शनि – केतु – सूर्य के अंतर में शत्रु – कष्ट चोरी का भय |
पुनर्वसु नक्षत्र :बुद्दिमानविद्वान् शीतल स्वभाव बहु मित्रों वाला संतान सुख युक्त, श्वेत वस्तुओं में रूचि, सफर बहुत करे | काव्य प्रेमी माता  पिता का भक्त | आनंदमय जीवन | अपने कार्यों में प्रसिद्धी प्राप्त करे | परोपकारी होते हुए भी स्वस्वार्थ में कमी नहीं आने देता, प्यास खूब लगती है | अहंकारी दुष्ट, दुर्बुद्दी – दुष्कर्मी , मुर्ख परिजन को दुःख व् कष्ट देने वाला गरीब | भाग्योदय २४ वर्ष के पश्चात, क्रूर गृह की दशा में बुध – शुक्र – चन्द्र के अंतर में शत्रु कष्ट चोरी का भय |
पुष्य नक्षत्र :बुद्दिमान, सुशील होशियार धर्म में आस्था रखे | कामी दुसरे का काम संवारने का प्रयत्न करे, जो मिले सो खा लेवे | दुसरे की बात शीघ्र समझने वाला | चतुर कार्य दक्ष सुन्दर मेधावी सत्यवादी कुटुंब प्रेमी विशाल ह्रदय माना प्रेमी ईश्वर भक्त राज्य पक्ष से सम्मानित वाक् पटु कार्य कुशल देव – गुरु – अतिथि प्रेमी | द्रढ़ देहि करुण मन | कवि लेखक पत्रकार वकील अध्यन – अध्यापन में रूचि लेने वाला | प्रशासनिक कार्यों में दक्ष वस्त्राभूषण नौकर वाहन युक्त होता है | भाग्योदय ३५ वर्ष पश्चात | समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त, क्रूर गृह की दशा में केतु, सूर्य व् मंगल के अंतर में शत्रु  कष्ट चोरी का भय |
आश्लेषा नक्षत्र : नेक कामों की नक़ल करे कुटुंब बड़ा हो साधू संतों की सेवा करे | अपनी अकड में रहे किसी को भी खातिर में नहीं लाये | सदैव अपना फायदा सोचे नेकी बुराई की परवाह नहीं करे, रिश्तेदारों से अनबन रहे शराब आदि में ज्यादा रूचि रखे, झूठा, कृतघ्न धूर्त लम्पट अत्यंत क्रोधी दुराचारी निर्लज्ज शत्रु विजयी औषधी व्यापार में लाभ, परस्त्रीगामी वासना की पूर्ती के लिए निम्नतम काम करने के लिए तैयार हो जाता है  | अविश्वास की  चरम सीमा को पार करने वाला होता है |भाग्योदय  ३० वर्ष पश्चात  होता है क्रूर गृह की महादशा में शुक्र चन्द्र राहु के अंतर में शत्रु कष्ट चोरी का भय होता है |                                                                                                                                                                  
मघा नक्षत्र :धनवान पत्नी से प्यार करने वाला खुशहाल माता पिता की सेवा करने वाला चतुर व्यवहार कुशल व्यापार में लाभ कमाने वाला, योजनाकार काम पिपासु अस्थिर चित्तवृत्ति किन्तु अत्यंत साहसी | स्वास्थ्य निर्बल रहना घमंडी किन्तु परिश्रमी अपने अहं पूर्ति के लिए कुछ भी करने वाला | धनाड्य किन्तु स्त्रियों में आशक्त रहने वाला व्यर्थ वाद विवाद में समय व्यतीत होना | किसी भी  बात की जड़ तक पहुँचने की क्षमता रखना | भाग्योदय २५ वर्ष के बाद होना | क्रूर गृह की दशा में सूर्य मंगल व् गुरु के अंतर दशा में शत्रु कष्ट एवं चोरी का भय |
पूर्वा – फाल्गुनी :इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला शत्रु विजयी, होशियार हर काम में निपुण मृदु भाषी दिलखुश बड़े लोगों से सम्बन्ध रखने वाला | स्त्रियों के लीये आकर्षक विधावान किसी सरकारी काम से सम्बन्ध रखने वाला एवं राजकीय सम्मान पाने  वाला | शफर का शौक़ीन व् दानी होता है | वस्त्राभूषण वाहन धनवान व् संतान युक्त व् नृत्य – संगीत प्रेमी होता है | हंसी  मजाक व् चापलूसी करने में  माहीर होता है | अधिक मित्रवान होता है तथा  सुंदर सुगठित शरीर वाला उग्र स्वभाव वाला नेतृत्व प्रधान जीवन  जीने वाला | भाग्योदय २८ – ३२ वर्ष के बीच में होगा, क्रूर गृह की महादशा में चन्द्र राहु शनि के  अंतर दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय हो सकता है |
उत्तर – फाल्गुनी : धनी व् धन इकठ्ठा करने वाला विलासी व् पहलवानी का शौक करने वाला तथा कुशाग्र बुद्धि वाला एवं मृदुभाषी सत्य बोलने वाला, दूसरों का काम दिल से करने वाला अधिक संतान वाला अपनी मेहनत के बल पर धनी बनने वाला | पत्नी से मनमुटाव व् घर में कलेश रहना गृहस्थ जीवन में भाग्योदय ३० – ३२ वर्ष की उम्र में होना | क्रूर गृह  की महादशा में मंगल गुरु व् बुध के अंतर में शत्रु कष्ट चोरी का  भय  हो सकता है |
हस्त नक्षत्र :अपनी जाति बिरादरी में मुखिया बन सकता है | विरोधियों से लड़ना झगड़ना, झूठ  व् धोखेबाजी की आदत होना भाई बंधुओं से दूर रहना चरित्र हीन क्रोधी शराबी होना पत्नी रोगी होना व् संतान का गलत आदतों में पड़ना | अशांत मन रहना भाग्यशाली सम्मानित व् सुखी होना निर्दयी होना | आजीवन कलह वाला वातावरण बनाये रखना स्वभाव से क्रूर होना | बुरे कार्य करना डकैती डालना व् हिंसा करना आदि | भाग्योदय ३०- ३२ वर्ष में होना | क्रूर गृह की महादशा में राहु – शनि – केतु के अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय बना रहना |
चित्रा नक्षत्र : चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाला बुद्धिमान साहसी धनवान दानी सुशील शरीर सुन्दर स्त्री व् संतान का सुख पाने वाला होता है | धर्म में आस्था रखने वाला व् आयुर्वेद को जानने वाला, भवन निर्माण में रूचि रखने वाला होता है | सौंदर्य प्रसाधन प्रेमी चित्रकला व् अभिनय का जानकार बहुमूल्य वस्तुओं का व्यापार करने वाला तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला, गायन गणित व् औषधियों तथा लेखनकला से धनोपार्जन करने वाला होगा | भाग्योदय ३३ से ३८ वर्ष में होगा | क्रूर गृह की महादशा में गुरु, बुध, शुक्र, के अंतर में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा|
स्वाति नक्षत्र : समझदार शीतल स्वभाव मित्रवत  होशियार व् व्यापार में  निपुण  होगा | कुशल व्यवसायी व् व्यापार तथा बौद्धिक कार्यों  द्वारा मनचाहा लाभ अर्जित करना व् यस प्राप्त करना | शिक्षा अधूरी छोड़नी पद सकती है, आर्थिक द्रष्टि से संपन्न व् ऐश्वर्यशाली होगा | अपने समाज में पूर्ण  सम्मान प्राप्त करेगा | इंजीनियर व् टेक्नीकल  कार्य करेगा परोपकारी व् साधू संतों की सेवा करने वाला बनेगा | भाग्योदय ३० से ३६ वर्ष में होगा | क्रूर गृह के महादशा में  शनि, केतु, सूर्य के अंतर में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा |
विशाखा नक्षत्र :इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला सुंदर धनवान मगर खोटे कामों में रूचि रखने वाला व् लड़ाई झगडा करने वाला, कृपन लोभी वाक्पटु सामान्य बुद्धि वाला क्रोधी अहंकारी दम्भी कामासक्त शराबी जुआरी स्त्री के वशीभूत होने वाला पाप पुण्य से दूर रहने वाला मतलबी अचानक धन प्राप्त करने वाला शत्रु विजयी |भाग्योदय २१-२८-३४ वर्ष में होगा | कलह पूर्ण जीवन यापन करना | क्रूर गृह के महादशा में बुध, शुक्र, चन्द्र, के अंतर में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा |
अनुराधा नक्षत्र : शक्तिशाली व् स्थूल शरीर वाला धनवान मान,सम्मान, पाने वाला, विधा कला व् काम धंधे में निपुण ज्यादा शफर करने वाला होगा | अस्थिर मनोवृत्ति साहसी  पराक्रमी मिलनसार  यशस्वी स्वालंबी रौबीला  सुन्दर व्यतित्व का धनी बहुत खाने वाला धार्मिक अध्ययनशील एकांत प्रिय दानी सहिष्णु होगा | सरकारी नौकरी पाने वाल स्वार्थ पूर्ती हेतु छल प्रपंच करने वाला मृदुभाषी स्त्रियों के दिलों में राज करने वाला होगा |  भाग्योदय ३९ वर्ष पश्चात होगा | क्रूर गृह  की महादशा में केतु सूर्य मंगल के अंतर में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय  रहेगा
ज्येष्ठा नक्षत्र :चतुर सभी कार्यों में होशियार बहुमित्र संतोषी शीतल स्वभाव कला की शौक़ीन क्रोधी धर्म के अनुरूप चलने वाली पराई स्त्री पर आशक्त होने वाला | सम्पूर्ण विधा का ज्ञान प्राप्त करना सुन्दर व्यतित्व वाला अपने कार्य में दक्ष अच्छी संतान प्राप्त करने वाला, गृहस्थ जीवन का अधूरा सुख प्राप्त करने वाला कवि लेखक पत्रकार साहित्यकार प्रशाशक निरीक्षक वकील चार्टर्ड एकाउंटेंट आदि हो सकते हैं | उम्र के २७,३१,४९ वर्ष स्वास्थ्य की द्रष्टि ठीक नहीं रहेंगे| क्रूर गृह की महादशा में शुक्र,चन्द्र,राहु, की अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा |
मूल नक्षत्र :विशाल ह्रदय दानी गंभीर धनी अपने समाज में सम्मान पाने वाला कमजोर स्वास्थ्य प्रायः बीमार रहने वाला वाकपटु चतुर  कृतघ्न दुष्ट धूर्त विश्वासघाती स्वार्थी वाचाल लोकप्रिय हिंसक क्रोध करने वाला होता है व् उसके जीवन में बार – बार दुर्घटनाएँ होती हैं | भाग्योदय २७ या ३१ वें वर्ष  में  होता  है | क्रूर गृह की  महादशा में सूर्य मंगल गुरु की अंतर दशाओं में शत्रु कष्ट व् चोरी का  भय रहेगा |
पूर्वा-आषाढ़ नक्षत्र :बुद्धिमान उपकारी सबका मित्र सभी कामों में होशियार संतान के प्रति सुखी, उदार स्वाभिमानी, शत्रुहंता, श्रेष्ठ मित्रों वाला अधिक धन नहीं होने पर भी कोई काम नहीं रुकना, भाग्यशाली, कार्य कुशल, यशस्वी, पत्नी का भी पूर्ण सुख रहता है | भाग्योदय २८ वें वर्ष में होता है | क्रूर गृह की महादशा में चन्द्र, राहू, शनि, की अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय होता है |
उत्तरा-आषाढ़ नक्षत्र : परोपकारी,मान सम्मान पाने वाला, होशियार, चतुर, बहादुर,संगीत प्रेमी, विनम्र शांत स्वभाव वाला, धार्मिक सुखी, सर्व प्रिय, विद्वान, बुद्धिमान, मेहनती धनी, सट्टेबाजी आदि का शौक पालना, तश्करी एवं अन्य कुसंगति में पड़ना, कामुक व् वेश्यागामी होना, जीवन में अनायास ही धन की प्राप्ति होना | भाग्योदय ३१ वें वर्ष में होगा, क्रूर गृह की महादशा में मंगल,गुरु, बुध, के अंतरदशा में शत्रु-कष्ट व् चोरी का भय रहता है |
श्रवण नक्षत्र : धनी बहुत बोलने वाला, गंभीर बुद्धिमान साहसी प्रसिद्द नेकनाम व् पत्नी सुन्दर हो | राग विधा गणित ज्योतिष में लगाव रखे, असंकुचित विचार दुसरे के दिल से भेद पाए | १९ – २४ वा वर्ष खराब रह सकता है | विवेकी विद्वान उच्च विचार धार्मिक शोभायमान व्यक्तित्व, उच्च पदाधिकारी बन सकता है काव्य संगीत में रूचि रखने वाला सिनेमा प्रेमी होगा | क्रूर गृह की महादशा में राहु – शनि – केतु के अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय हो सकता है |
धनिष्ठा नक्षत्र : राग विधा में अधिक रूचि रखने वाला होगा | भाई बंधुओं से बहुत प्यार रखे | धनी नेकनाम साहसी अच्छे काम करने वाला व् स्त्री का प्यारा होगा | सरकारी कार्य से सम्बन्ध रहेगा व् जवाहरात पहनने का शौक़ीन होगा तथा लोगों में इज्जत व् मान सम्मान प्राप्त करेगा | १५, १९, २३, वर्ष शुभ नहीं होंगे | धर्मं कर्म में लिप्त रहने वाला एश्वर्या संपन्न उदार व् समाज में सम्मान पाने वाला होगा | वासना ग्रस्त  कामुक व् परस्त्रीरत हो सकता है | पत्नी व् पत्नी पक्ष से हमेशा दबा रहेगा लोभी तथा स्त्रियों से लुटने वाला होगा | क्रूर गृह की महादशा में गुरु, बुध, शुक्र, की अंतर दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय हो सकता है |
शतभिषा नक्षत्र : धनी सत्यवादी दानी प्रसिद्द अच्छे काम करने वाला बुद्धिमान होशियार सफल शत्रु विजेता इज्जत प्राप्त करने वाला होता है | सरकार से सम्मान प्राप्त करने वाला दूसरी स्त्री से लगाव रखने वाला तथा २८ वाँ वर्ष विशेष महत्वपूर्ण हो सकता है | सत्य भाषी परन्तु जुआरी, व्यसनी सट्टेबाज साहसी परन्तु शांत स्वभाव में कठोरता निडर ज्योतिष प्रेमी साधारण धन एवं दुसरे के माल को हड़पने की इच्छा हमेशा बनी रहती है | क्रूर गृह के महादशा में शनि केतु सूर्य की अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा |
पूर्वा-भाद्रपद नक्षत्र : धनी सुंदर बहुत बोलने वाला, विधावान कला कुशल एवं अधिक सोने वाला कई पत्नियों वाला, संतान से सुख प्राप्त करने वाला छोटी छोटी बातों में गुस्सा होने वाला होता है| भाग्योदय १९ से २१ वर्ष में होता है | अपने कार्य में दक्ष व् चतुर तथा धूर्त व् डरपोक धनवान होते हुए भी निर्धन हो जाता है | कम सहन शक्ति वाला विचारों में कामुकता वाला, स्त्रियों से धोखे खाना वाला, पत्नी स्वभाव से चंचंल व् उग्र होती है, गृहस्थ जीवन सामान्य रहेगा | क्रूर गृह के महादशा में बुध, शुक्र, चन्द्र, के अंतर में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय रहेगा |
उत्तरा-भाद्रपद नक्षत्र : सुन्दर पराक्रमी साहसी बुद्धिमान रंग गोरा वाचाल दानी शत्रु विजेता धर्मात्मा धनवान होता है | उदार परोपकारी, सुखी, धन-धान्य व् संतान युक्त जीवन | अध्ययनशील, शास्त्रों के ज्ञाता वाक्पटु जिम्मेदार, लेखक, पत्रकार, संगीतज्ञ, सफल गृहस्थ जीवन, म्रदु भाषी पत्नी वाला होता है | भाग्योदय २७ से ३१ वर्ष में संभव है | क्रूर गृह की महादशा में केतु, सूर्य, मंगल, की अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट एवं चोरी का भय रहता है |
रेवती नक्षत्र : माता पिता की सेवा करने वाला, बुद्धिमान साधू स्वभाव तेज वाणी व् मित्रों से खुश रहने वाला होता है | शरीर पुष्ट निरोगी काया साहसी एवं सर्वप्रिय धनवान सुपुत्रवान कामातुर सुन्दर चतुर मेधावी, कुशाग्रबुद्धि, सलाह देने में होशियार,अच्छा व्यापारी, कवि लेखक, पत्रकार, निबंधकार, उपन्यासकार आदि होता है| स्वभाव शौम्य दृढ निश्चय वाला, प्रतिभाशाली सर्वगुण संम्पन्न सुन्दर पत्नी वाला चरित्रवान गृह कार्य में दक्ष मधुर भाषी होता है | १७ वें, २१ वें, २४ वें वर्ष ठीक नहीं होंगे | क्रूर गृह की महादशा में शुक्र- चन्द्र – राहु की अन्तर्दशा में शत्रु कष्ट व् चोरी का भय हो सकता |
अभिजीत नक्षत्र : अभिजीत नक्षत्र में जन्म लेने वाला सुन्दर होशियार अपराजित दृढ निश्चयी व् भाग्यवान धनवान सर्वगुण संपन्न मेहनत करने वाला शक्तिशाली व्यक्ति होता है |उपरोक्त नक्षत्र बहुत कम उपयोग में लाया जाता है, इसलिए ज्यादातर लोग इसका वर्णन कम ही करते हैं

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Sg
Star No
Nakshatra & Lord
Body Pars
Disease

A
R
I
E
S
1
Aswini
Ketu
Head, Cerebral Hemisphere
Congestion in brain, Thrombosis, Epilepsy, Fainting, Head injury, strokes, spasm, coma, malaria, trance, small pox, headache, neuralgia, cerebral hemorrhage.




2
Bharani
Venus
Head, Cerebral Hemisphere, Eyes, Organs within Head.
Forehead injury, cold, venereal distemper, syphilis, reins, affected, dissipating sexual habits & weakness, cataract head.




3
Kritika
Head, Eyes, Brain, Vision, 2nd, 3rd, 4thqtrs: Face, Neck, Larynx, Tonsils,Lower Jaw.
Cerebral Meningitis, Carbuncle Sharp Fever, Malaria, Plague, Small Pox, Cuts, Wounds, Brain Fever, Injury, Accidents, Explosions, Fire, Accident.

T
A
U
R
U
S
3
Kritika
Sun



4
Rohini
Moon
Face, Mouth, Tongue, Tonsils, Palate, Neck, Cerebellum, Cervical Vertebrae.
Apoplexy, Breast Pain, Swellings, Sore Throat, Cold, Cough, Goiter, Let-Feet Pain irregular menses.




5
Mrigshira
Face, Chin, Cheeks, Larynx, Palate, Arteries, Veins, Inflamed Tonsils Throat, Vocal Cord, Arms, Shoulders, Ears, Thymus, Upper Ribs.
Inflamed tonsils, Pimples, Throat Pain, Goiter, Adenoids, Diphtheria, Constipation, Venereal Distemper,


G
E
M
I
N
I
5
Mrigshira
Mars


6
Ardra
Rahu
Throat, Arms, Shoulders.
Septic Throat, Mumps, Asthma, Dry Cough, Ear-Pus, Eosinophilia, Diphtheria, Ear trouble.




7
Punarvasu
Jupiter
Ear, Throat, Shoulders Blades, Lungs, Chest, Stomach, Diaphragm, Pancreas, Lobes of Liver, Respiratory System, Thoracic.
Bronchitis, Pneumonia mummae, lacteals, Thoraces, Chest, Beriberi, Upset stomach, corrupt blood, tuberculosis, liver trouble, dyspepsia



C
A
N
C
E
R
7
Punarvasu


Pushya
Saturn
Lungs, Stomach, Ribs, Lips, Mouth, Ears
Tuberculosis, Gastriculer, Gall Stone, Cough, Nausea, Belching, Bruises, Cancer, Jaundice, Hiccups, Eczema, Dyspepsia, Ulceration in respiratory system.




9
Ashlesha
Mercury
Lungs, Stomach, Esophagus, Diaphragm, Pancreas, Liver, Tissue Cells, Fibers
Cold-stomach dropsy, windiness, knees & leg pains, Hysteria nervousness, indigestion, phlegm, flatulence, wind pressing diaphragm making breathing difficult.




L
E
O
10
Magha
Heart, Back, Spinal Chord, Spleen, Dorsal, Region of Spine Aorta.
Sudden heart shock, grief, poisoning, backache, cholera, fainting, spinal-meningitis, palpitation, gravel in kidneys, humours.




11
Purva Phalguni
Venus
Heart, Spinal Cord
Spine-curvature, anemia, leg pain, swelling of ankles, B.P, affected valves, hydraemia, aneurysm.




12
Uttara Phalguni
Spinal Cord, Intestines, Bowels and Liver.
Spotted fever, pains, B.P, fainting, madness, brain, blood, clotting, palpitation, stomach disorders, sore-throat, bowel-tumours, neck selling.

V
I
R
G
O
12
Uttara Phalguni
Sun



13
Hasta
Moon
Bowels, Intestines, Secreting Glands, Enzymes.
Gas formation, loose bowels, short breath, worms, hysteria, typhoid, diarrhea, cholera, dysentery, fearcomplex, weakness of arms & shoulders, bowel disorders.




14
Chitra
Belly, Lower Part, Kidneys, Loins, Hernia, Lumber Region of Spine, Vasomotor System.
Excess urine, renal stone brain fever, lumbago, kidney hemorrhage, ulcers, sharp-acute pains, wounds choleric humor, itching, irritation, worms, leg-pain, dry gripping pains appendicitis, hernia, headache, sun stroke.


L
I
B
R
A
14
Chitra
Mars


15
Swati
Rahu
Skin, Kidneys, Urethra, Bladder
Body gasses, leprosy, urinary skin trouble, hernia, eczema, brightsdisease, urethra-ulcerated, Polyuria trouble.




16
Vishakha
Jupiter
Lower Abdomen, Bladder Parts, Kidneys, Pancreatic Gland, Bladder, Urethra, Genitals, Rectum, Prostate Gland, Descending Colon.
Womb disease, nose-bleeding, renal stone, dropsy, rupture, prostate-enlargement, fibroid, tumour, menstrual abnormal bleeding urinary trouble.



S
C
O
R
P
I
O
16
Vishakha

17
Anuradha
(Delta Scorpio)
Saturn
Bladder, Genitals, rectum, Nasal Bones, Bones near Genitals,
Suppression of menses, constipation, sterility, piles, nasal catarrh phlegm, fracture of high-bones, sore-throat strictures.




18
Jyeshta
Mercury
Colon, anus, Genitals, Ovaries, Womb
Bleeding piles, bowel-infection, tumours, fistula, distemper in secret parts, leucorrhoea, pain in arm & shoulders.




S
A
G
I
T
T
A
R
I
U
S
19
Moola
Ketu
Hips, Thighs, Femur, Ileum, Sciatica Nerve.
Rheumatism, hp-disease, pulmonary troubles.




20
Purva Ashadha
Venus
Thighs, Hips, FiliacArteries and Veins,Cocygeal and Sacral Regions of Spine.
Sciatica, diabetes, rheumaticism, hip gout, respiratory disease, lung cancer, purification of blood, surfeit cold.




21
Uttara Ashadha
Thighs, Tumour, Arteries, Skin, Knees, Patella
Eczema, skin disease, leprosy, dull pain, digestive trouble, palpitation of heart, rheumatism, cardiac thrombosis, stomach trouble due to gas.

C
A
P
R
I
C
O
R
N
21
Uttara Ashadha
Sun



22
Shravani
Moon
Lymphatic Vessels, Knees, Skin.
Eczema, skin disease, leprosy, pus formation, Tuberculosis, Rheumatism, Boils, Pleurisy, Filarial, Poor digestion.




23
Dhanishtha                     
Knee Cap bones, Ankle, Limbs, Portion between Knees & Ankles.
Malaria, Filarial, High Fever, Boils, Elephantiasis, dry cough, hiccups,


A
Q
U
A
R
I
U
S
23
Dhanishtha
Mars


24
Shatabhisha
Rahu
Portion between knees and ankles, calf muscles
Rheumatic heart, HBP, Palpitation, insomnia, amputation, leprosy, eczema, constipation, guineas-worm, fracture, rheumatism.




25
Purva Bhadrapada
Jupiter
Ankles, Feet and toes
Irregular circulatory system, ulcered gums, swelling feet, enlarged liver, hernia, jaundice, abdominal tumour, corns in feet, sprue, perspiring feet, intestine defect.



P
I
S
C
E
S
25
Purva Bhadrapada

26
Uttara bhadrapada
Saturn
Feet
Drop foot, hernia, dropsy, indigestion, cold feet, foot-fracture, constipation, flatulence, tuberculosis, rheumatic pains.




27
Revati
Mercury
Feet and Toes.
Intestinal ulcer, gout in feet, deafness, ear-pus, crams, foot deformities, lassitude, nephrites abdominal disorders.







|| शुभम भवतु || कल्याण हो ||


-—-पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री —
– मोबाइल–09669290067 ,
–वाट्स अप -09039390067 ,
—————————————————
मेरा ईमेल एड्रेस हे..—-
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