जानिए की कब और कैसे और क्यों करें मंगला गोरी व्रत …???


 श्रावण मास में श्रावण सोमवार के दूसरे दिन यानी मंगलवार के दिन ‘मंगला गौरी व्रत’ मनाया जाता है। श्रावण माह के हर मंगलवार को मनने वाले इस व्रत को मंगला गौरी व्रत (पार्वतीजी) नाम से ही जाना जाता है। धार्मिक पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अत: इस दिन माता मंगला गौरी का पूजन करके मंगला गौरी की कथा सुनना फलादायी होता है।


पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास में मंगलवार को आने वाले सभी व्रत-उपवास मनुष्य के सुख-सौभाग्य में वृद्धि करते हैं। अपने पति व संतान की लंबी उम्र एवं सुखी जीवन की कामना के लिए महिलाएं खास तौर पर इस व्रत को करती है। सौभाग्य से जुडे़ होने की वजह से नवविवाहित दुल्हनें भी आदरपूर्वक एवं आत्मीयता से इस व्रत को करती है।


पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार जिन युवतियों और महिलाओं की कुंडली में वैवाहिक जीवन में कम‍ी‍ महसूस होती है अथवा शादी के बाद पति से अलग होने या तलाक हो जाने जैसे अशुभ योग निर्मित हो रहे हो, तो उन महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत विशेष रूप से फलदायी है। अत: ऐसी महिलाओं को सोलह सोमवार के साथ-साथ मंगला गौरी का व्रत अवश्य रखना चाहिए।


इस वर्ष …6 के श्रवण मास का  मंगला गौरी का  व्रत 9 अगस्त 2016  (षष्टी, तुला राशि और चित्र नक्षत्र में)) मंगलवार से शुरू होकर, दूसरा 16 अगस्त 2016 (त्रयोदशी,मकर राशि,उत्तराषाढा नक्षत्र में) को इसका समापन होगा। ज्ञात हो कि एक बार यह व्रत प्रारंभ करने के पश्चात इस व्रत को लगातार पांच वर्षों तक किया जाता हैं। तत्पश्चात इस व्रत का विधि-विधान से उद्यापन कर देना चाहिए। 


शास्त्रों के अनुसार जो नवविवाहित स्त्रियां सावन मास में मंगलवार के दिन व्रत रखकर मंगला गौरी की पूजा करती हैं उनके पति पर आने वाला संकट टल जाता है और वह लंबे समय तक दांपत्य जीवन का आनंद प्राप्त होता हैं। आज यही शुभ व्रत है। इस व्रत से दोष की शांति कर सकते हैं और दांपत्य जीवन को खुशहाल बना सकते हैं।
मंगला गौरी व्रत श्रावण मास में पडने वाले सभी मंगलवार को रखा जाता है. श्रावण मास में आने वाले सभी व्रत-उपवास व्यक्ति के सुख- सौभाग्य में वृ्द्धि करते है. सौभाग्य से जुडे होने के कारण इस व्रत को विवाहित महिलाएं और नवविवाहित महिलाएं करती है. इस उपवास को करने का उद्धेश्य अपने पति व संतान के लम्बें व सुखी जीवन की कामना करना है.


 इस व्रत में मंगलवार के दिन शिव की पत्नी गौरी अर्थात् पार्वती  की पूजा की जाती है। इसी कारण इसे मंगलागौरी-व्रत कहते हैं। यह व्रत विवाह पश्चात् प्रत्येक विवाहिता द्वारा पाँच वर्षों तक करना शुभफलदायक माना गया है। इस व्रत को विवाह के प्रथम श्रावण में पिता के घर (पीहर) में तथा शेष चार वर्ष पति के घर (ससुराल) में करने का विधान है।


प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर तथा नित्यकर्मो से निवृत हो नये वस्त्र धारणकर घर के ईशानकोण (पूर्व एवं उत्तर दिशा के बीच का कोण) में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुखकर शुद्ध आसन ग्रहण कर निम्न संकल्प करना चाहिए –
‘मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये।’
उक्त प्रकार संकल्प कर शुद्ध आसन पर भगवती गौरी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए तथा उनके सम्मुख सोलह बत्तियों वाला घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।


तत्पश्चात् स्वस्तिवाचन एवं गणेश-पूजन कर सोलह-सोलह प्रकार के पुष्प, मालाएँ, दूर्वादल, वृक्ष के पत्ते, धतूरे के पत्ते, अनाज, सुपारी, पान, इलाइची, धनिया तथा जीरा आदि भगवती गौरी को समर्पित करें। ताँबे के पात्र में जल, अक्षत एवं पुष्प रखकर माँ गौरी को अघ्र्य दे प्रणाम करें तथा सौभाग्य-सूचक वस्तुएँ एक बाँस की टोकरी में रखकर श्रेष्ठ ब्राह्मण को दान करें। पूजा के अन्त में सोलहमुखी दीपक से भगवती गौरी की आरती कर उक्त प्रतिमा को किसी पवित्र तालाब, सरोवर या कूएँ में विसर्जित करना चाहिए। ऐसा करने वाली व्रती स्त्री को अखण्‍ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।


इस प्रकार उक्त व्रत करते हुए पाँचवें वर्ष इसका उद्यापन करना चाहिए अन्यथा यह व्रत निष्फल हो जाता है। चार वर्ष के सोलह मंगलवारों के पश्चात् पाँचवें वर्ष के किसी भी मंगलवार को उद्यापन किया जा सकता है। उद्यापन में गौरी पूजा के पश्चात् श्रेष्ठ ब्राह्मण द्वारा हवन करवाना चाहिए तथा सोलह ब्राह्मणों को उनकी पत्नी सहित भोजन कराकर सौभाग्यपिटारी एवं दक्षिणा प्रदान करें। अन्त में अपनी सासजी को सोलह लड्डुओं का वायना देकर उनके चरण स्पर्श कर अक्षयसौभाग्य का आर्शीबाद प्राप्त करना चाहिए।
  
इस व्रत को प्रत्येक विवाहिता को करना आवश्‍यक माना गया है। इस व्रत को करने से पति से कभी भी वियोग नहीं होता तथा पति-पत्नी दोनों को ही दीर्घआयु व सर्वसुख की प्राप्ति होती है। पति-पत्‍नी दोनों का प्रेम अक्षय, अटल व चिर-‍स्‍थाई बना रहता है।


जानिए पुरूष क्या करें मंगला गोरी व्रत में ??


ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस व्रत से मंगलिक योग का कुप्रभाव भी काम होता है। पुरूषों को इस दिन मंगलवार का व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए। इससे उनकी कुण्डली में मौजूद मंगल का अशुभ प्रभाव कम होता है और दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है।





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पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार विवाह के पांच वर्ष तक प्रत्येक श्रावण मास में मंगला गोरी यह व्रत करना चाहिए। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-


सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर यह संकल्प लें-


मैं पुत्र, पौत्र, सौभाग्य वृद्धि एवं श्री मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत करने का संकल्प लेती हूं।
इसके बाद मां मंगला गौरी(पार्वतीजी) का चित्र या प्रतिमा एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। चित्र के सामने आटे से बना एक घी का दीपक जलाएं, जिसमें सोलह बत्तियां हों। 


इसके बाद यह मंत्र बोलें-


कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्।।


अब माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन करें। पूजन के बाद माता को सोलह माला, लड्डू, फल, पान, इलाइची, लौंग, सुपारी, सुहाग का सामान व मिठाई चढ़ाएं। उसके बाद मंगला गौरी की कथा सुनें।


इस प्रकार करें पूजन—


यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। माता के पूजन के पश्चात उनको (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए) 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग क‍ी सामग्री, 16 चुडि़यां तथा मिठाई चढ़ाई जाती है। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि होना चाहिए। पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा सुनी जाती है।
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ये हैं मँगला गोरी वृत की कथा-—-


मां मंगला गौरी कथा के अनुसार–


पुराने समय की बात है। एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी खूबसूरत थी और उनके पास बहुत सारी धन-दौलत थी। लेकिन उनको कोई संतान नहीं थी, इस वजह से पति-पत्नी दोनों ही हमेशा दुखी रहते थे।
फिर ईश्वर की कृपा से उनको पुत्र प्राप्ति हुई, लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला हुआ था कि सोलह वर्ष की उम्र में सर्प दंश के कारण उसकी मौत हो जाएगी।
ईश्वरीय संयोग से उसकी शादी सोलह वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई, जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती। इसी कारण धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त होती हैं।।


पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यह मंगला गौरी व्रत नियमानुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख में बढ़ोतरी होकर पुत्र-पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते हैं। ऐसी हैं इस मंगल गोरी व्रत की महिमा ।।
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कैसे करें मंगला गौरी व्रत —


–मंगला गौरी उपवास रखने के लिये सुबह स्नान आदि कर व्रत का प्रारम्भ किया जाता हैं.
—-एक चौकी पर सफेद लाल कपडा बिछाना चाहियें.
—सफेद कपडे पर चावल से नौ ग्रह बनाते है, तथा लाल कपडे पर षोडश माताएं गेंहूं से बनाते है.
—चौकी के एक तरफ चावल और फूल रखकर गणेश जी की स्थापना की जाती है.
—दूसरी और गेंहूं रख कर कलश स्थापित करते हैं.
—-कलश में जल रखते है.
—आटे से चौमुखी दीपक बनाकर कपडे से बनी 16-16 तार कि चार बतियां जलाई जाती है.
—सबसे पहले श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है.
—-पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान,चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, —मेवा और दक्षिणा चढाते हैं.
—इसके पश्चात कलश का पूजन भी श्री गणेश जी की पूजा के समान ही किया जाता है.
—फिर नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा की जाती है. चढाई गई सभी सामग्री ब्राह्माण को दे दी जाती है.
—मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी व काजल लगाते है. श्रंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं.
—सोलह प्रकार के फूल- पत्ते माला चढाते है, फिर मेवे, सुपारी, लौग, मेंहदी, शीशा, कंघी व चूडियां चढाते है.
—-अंत में मंगला गौरी व्रत की कथा सुनी जाती हैं.
—–कथा सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को सोलह लड्डु देती हैं. इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती हैं. अंतिम व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विर्सिजित कर दिया जाता हैं||
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मंगला गोरी व्रत के उद्यापन की  विधि:–


श्रावण माह के मंगलवारों का व्रत करने के बाद उसका उद्यापन करना चाहिए| उद्यापन में खाना वर्जित है| मेहंदी लगाकर पूजा करनी चाहिए| पूजा चार ब्राह्मणों से करनी चाहिए| एक चौकी के चार कोनों पर केले के चार थम्ब लगाकर मण्डप पर एक ओढ़नी बांधनी चाहिए| साड़ी, नथ व सुहाग की सभी वस्तुएँ रखनी चाहिएँ| हवन के उपरांत कथा सुनकर आरती करनी चाहिए| चाँदी के बर्तन में आटे के सोलह लड्डू, रूपया व साड़ी सासुजी को देकर उनके पाँव छूने  चाहिएँ| पूजा कराने वाले पंडितो को भी धोती ब अंगोछा देना चाहिए| अगले दिन सोलह ब्राह्मणों को जोड़े सहित भोजन करवाकर धोती, अंगोछा तथा ब्राह्मणियों को, सुहाग-पिटारी देनी चाहिए| सुहाग पिटारी में सुहाग का समान व साड़ी होती है| इतना सब करने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए| 
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मां मंगला गौरी की आरती—
     

जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता ब्रह्मा सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सिंह को वाहन साजे कुंडल है, साथा देव वधु जहं गावत नृत्य करता था।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सतयुग शील सुसुन्दर नाम सटी कहलाता हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

सृष्टी रूप तुही जननी शिव संग रंगराता नंदी भृंगी बीन लाही सारा मद माता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

देवन अरज करत हम चित को लाता गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।

मंगला गौरी माता की आरती जो कोई गाता सदा सुख संपति पाता।
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता।।
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मंगला गौरी(मंगल) व्रत और ज्योतिष—


ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कई प्रकार के दोष बताए गए हैं जैसे कालसर्प योग, पितृदोष, नाड़ीदोष, गणदोष, चाण्डालदोष, ग्रहणयोग, मंगलदोष या मांगलिक दोष आदि। इनमें मंगल दोष एक ऐसा दोष है जिसकी वजह से व्यक्ति को विवाह संबंधी परेशानियों, रक्त संबंधी बीमारियों और भूमि-भवन के सुख में कमियां रहती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नौ ग्रह बताए गए हैं जो कुंडली में अलग-अलग स्थितियों के अनुसार हमारा जीवन निर्धारित करते हैं। पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार  70% लोग मंगल दोष से प्रभावित या पीड़ित मिलेंगे || बिना सोचे समझे या जाने ज्योतिष के फंडे न लगाये सिर्फ लैपटॉप ले के सॉफ्टवेयर से कुंडली बना लेने से राशी भाव और गृह देख लेने मात्र से कोई ज्योतिषी नहीं हो जाता,उसके लिये गहरे ज्ञान की आवश्यकता भी होती है ||
हमें जो भी सुख-दुख, खुशियां और सफलताएं या असफलताएं प्राप्त होती हैं, वह सभी ग्रहों की स्थिति के अनुसार मिलती है। इन नौ ग्रहों का सेनापति है मंगल ग्रह। मंगल ग्रह से ही संबंधित होते है मंगल दोष। मंगल दोष ही व्यक्ति को मंगली बनाता है। 
पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार जिन युवतियों और महिलाओं की कुंडली में वैवाहिक जीवन में कम‍ी‍ महसूस होती है अथवा शादी के बाद पति से अलग होने या तलाक हो जाने जैसे अशुभ योग निर्मित हो रहे हो, तो उन महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत विशेष रूप से फलदायी है। अत: ऐसी महिलाओं को सोलह सोमवार के साथ-साथ मंगला गौरी का व्रत अवश्य रखना चाहिए। 


पाप ग्रह है मंगल–


पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार मंगल ग्रह को पाप ग्रह माना जाता है। ज्योतिष में मंगल को अनुशासन प्रिय, घोर स्वाभिमानी, अत्यधिक कठोर माना गया है। सामान्यत: कठोरता दुख देने वाली ही होती है। मंगल की कठोरता के कारण ही इसे पाप ग्रह माना जाता है। मंगलदेव भूमि पुत्र हैं और यह परम मातृ भक्त हैं। इसी वजह से माता का सम्मान करने वाले सभी पुत्रों को विशेष फल प्रदान करते हैं। मंगल बुरे कार्य करने वाले लोगों को बहुत बुरे फल प्रदान करता है।


जानिए मंगल के प्रभाव—-


पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार मंगल से प्रभावित कुंडली को दोषपूर्ण माना जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल अशुभ फल देने वाला होता है उसका जीवन परेशानियों में व्यतीत होता है। अशुभ मंगल के प्रभाव की वजह से व्यक्ति को रक्त संबंधी बीमारियां होती हैं। साथ ही, मंगल के कारण संतान से दुख मिलता है, वैवाहिक जीवन परेशानियों भरा होता है, साहस नहीं होता, हमेशा तनाव बना रहता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल ज्यादा अशुभ प्रभाव देने वाला है तो वह बहुत कठिनाई से जीवन गुजरता है। मंगल उत्तेजित स्वभाव देता है, वह व्यक्ति हर कार्य उत्तेजना में करता है और अधिकांश समय असफलता ही प्राप्त करता है।
पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार मंगल ग्रह दोष से मिलने वाली रोग, पीड़ा और बाधा दूर करने के लिए मंगलवार का व्रत बहुत ही प्रभावकारी माना जाता है। किं तु दैनिक जीवन की आपाधापी में चाहकर भी अनेक लोग धार्मिक उपायों को अपनाने में असमर्थ हो जाते हैं। इसलिए यहां मंगलवार के लिए ऐसे उपाय बताए जा रहे हैं, जिनको आप दिनचर्या के दौरान अपनाकर मंगल दोष शांति कर सकते हैं –
– पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार अगर आपकी कुण्डली में मंगल उच्च का और शुभ हो तो मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर में बताशे चढ़ाएं और बहते जल या नदी में बहा दें। मंगल दोष के बुरे असर से बचाव होगा।
—अगर कुण्डली में मंगल दोष का निवारण ग्रहों के मेल से नहीं होता है तो व्रत और अनुष्ठान द्वारा इसका उपचार करना चाहिए. मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला है. अगर जाने अनजाने मंगली कन्या का विवाह इस दोष से रहित वर से होता है तो दोष निवारण हेतु इस व्रत का अनुष्ठान करना लाभदायी होता है. 
—-जिस कन्या की कुण्डली में मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह करले फिर मंगल दोष से रहित वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है. प्राण प्रतिष्ठित विष्णु प्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है.
—-मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगली दोष शांत होता है. कार्तिकेय जी की पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है. महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का नाश करने वाला है. इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है. लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल अमंगल दूर होता है. 
पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करें। 
ऐसे में अन्य कई कुयोग हैं। जैसे वैधव्य विषागना आदि दोषों को दूर रखें। यदि ऐसी स्थिति हो तो ‘पीपल’ विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करें।
मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग करें। देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं कोर्ट केस इत्या‍दि में ही इसे प्रयोग करें। छोटे कार्य के लिए नहीं।
==विशेष सावधानी :– विशेषकर जो मांगलिक हैं उन्हें इसकी पूजा अवश्य करना चाहिए। चाहे मांगलिक दोष भंग आपकी कुंडली में क्यों न हो गया हो फिर भी मंगल पूजन यंत्र मांगलिकों को सर्वत्र जय, सुख, विजय और आनंद देता है।
मंगलवार का दिन हनुमान जी की आराधना का विशेष दिन माना जाता है। इसके साथ ही ज्योतिष के अनुसार ये दिन मंगल ग्रह के निमित्त पूजा करने का विधान बताया गया है। मंगल देव की खास पूजा उन लोगों को करनी चाहिए जिनकी कुंडली में मंगल दोष होता है।
पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार यदि आपकी जन्म कुंडली में मंगल दोष है तो निश्चित ही आपको बहुत सारी परेशानियां घेरे रहती होंगी। समय पर विवाह नहीं होता, धन के संबंध में समस्याएं चलती रहती हैं, घर-जमीन-जायदाद को लेकर तनाव झेलना पड़ता है। मंगल भूमि पुत्र है और भूमि से संबंधित कार्य करने वालों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। आप प्रापर्टी के संबंध में सौदे या व्यवसाय करते हैं और अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो मंगल देवता को खुश रखना बहुत जरूरी है।
—मंगली कन्यायें गौरी पूजन तथा श्रीमद्भागवत के 18 वें अध्याय के नवें श्लोक का जप अवश्य  करें |
– प्रत्येक मंगलवार को मंगल स्नान करें |
– विवाह के समय कुंडली मिलान अवश्य करें ||
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जानिए मंगल शांति के कुछ सामान्य उपाय: –


1 लाल पुष्पों को जल में प्रवाहीत करें।
2 मंगलवार को गुड़ व मसूर की दाल जरूर खायें।
. मंगलवार को रेवडि़या पानी में विसर्जित करें।
4 आटे के पेड़े में गुड व चीनी मिलाकर गाय को खिलायें।
5 मीठी रोटियों का दान करें।
6 ताँबे के तार में डाले गये रूद्राक्ष की माला धारण करें।
7 मंगलवार को शिवलिंग पर जल चढ़ावे।
8 बन्दरों को मीठी लाल वस्तु जैसे – जलेबी, इमरती, शक्करपारे आदि खिलावे।
9 शिव जी या हनुमान जी के नित्य दर्शन करें और हनुमान चालीसा या महामृत्युन्जय मंत्र की रोजाना कम से कम एक माला का जाप करे। हनुमान जी के मन्दिर में दीपदान करें तथा बजरंग बाण का प्रत्येक मंगलवार को पाठ करे।
10 गेहूँ , गुड़, मंूगा, मसूर, तांबा, सोना, लाल वस्त्र, केशर – कस्तूरी, लाल पुष्प , लाल चंदन , लाल रंग का बैल, धी, पीले रंग की गाय, मीठा भोजन आदि लाल वस्तुओं का दान मंगलवार मध्यान्ह में करें। दीन में मंगल यंत्र का पूजन करें। मंगलवार को लाल वस्त्र पहने।
11 शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार से 21 या 45 मंगलवार तक अथवा पूरे वर्ष मंगलवार का व्रत करें। गुड़ का बना हलवा भोग लगाने व प्रसाद बाँटने के काम में लाये और सांयकाल को वही प्रसाद ग्रहण करें।
12 जिस मंगलवार को व्रत करें उस दिन बिना नमक का भोजन एक बार विधिवत मंगल की पूजा अर्चना कर ग्रहण करें।
13 पति-पत्नि दोनों एक साथ रसोई में बैठकर भोजन करें।
14 स्नान के बाद सूखे वस्त्र को हाथ लगाने से पहले पूर्व दिशा में मुँह करके सूर्य का अर्ध देकर प्रणाम करें। (सूर्य देव दिखाई दे या न दे)
15 शयन कक्ष में पलंग पर काँच लगे हो तो उन्हें हटा दे, मंगल का कोप नहीं रहेगा अन्यथा उस काँच में पति – पत्नि का जो भी अंग दिखाई देगा वह रोगग्रस्त हो जायेगा।
16 मन का कारक चन्द्रमा होता हैं जिसके कारण मन को चंचलता प्राप्त होती हैं। पति-पत्नि के बीच जब भी वाद-विवाद हो, उग्रता आने लगे तब दोनों में से कोई एक उस स्थान से हट जायें, चन्द्र संतुलित रहेगा।
17 शयन कक्ष में यदि रोजाना पति-पत्नि के बीच वाद-विवाद, झगड़े जैसी घटनाएँ होने लगे तो जन्म कुण्डली के बारहवें भाव में पड़े ग्रह की शान्ति करावें।
18 दाम्पत्य की दृष्टि से पत्नि को अपना सारा बनाव श्रृगांर (मेकअप) आदि सांयकाल या उसके पश्चात करना चाहिए जिससे गुरू , मंगल और सूर्य अनुकूल होता हैं। दीन में स्त्री जितना मेकअप करेगी पति से उसकी दूरी बढ़ेगी।
19 पति-पत्नि के बीच किसी मजबूरी के चलते स्वैच्छिक दूरी बढ़े तो पति-पत्नि दोनों को गहरे पीले रंग का पुखराज तर्जनी अंगुली में धारण करना चाहिए।
20 यह बात ध्यान रखें कि वैवाहिक जीवन में मंगल अहंकार देता हैं स्वाभिमान नहीं। दाम्पत्य जीवन की सफलता हेतु दोनंों की ही आवश्यकता नहीं होती हैं। पाप ग्रहों का प्रभाव दाम्पत्य को बिगाड़ देता हैं। ऐसी स्थिती में चन्द्रमा के साथ जिस पाप ग्रह का प्रभाव हो उस ग्रह की शांति कराने से दाम्पत्य जीवन सुखमय होता हैं। शुक्ल पक्ष मेें पति-पत्नी चाँदनी रात में चन्द्र दर्शन कर, चन्द्रमा की किरणों को अपने शरीर से अवश्य स्पर्श करवावें।
21 बाग – बगीचा, नदी , समुद्र, खेत, धार्मिक स्थल एवं पर्यटन स्थलों आदि पर पति – पत्नी साथ जायें तो श्रेष्ट होगा। इससे गुरू व शुक्र प्रसन्न होगें, इसके विपरीत कब्रिस्तान , कोर्ट – कचहरी , पुलिस थाना , शराब की दुकान , शमशान व सुना जंगल आदि स्थानों पर पति-पत्नी भूलकर भी साथ न जायें।
22 मंगल के कोप के कारण बार – बार संतान गर्भ में नष्ट होने से पति-पत्नी के बीच तनाव , रोग एवं परेशानियां उत्पन्न होती हैं ऐसी स्थिति में पति – पत्नी को महारूद्र या अतिरूद्र का पाठ करना चाहिए।
23 मंगल की अशुभ दशा , अन्तर्दशा में पति – पत्नी के बीच कलह , वाद – विवाद व अलगाव सम्भावित हैं। ऐसी स्थिती में गणपति स्त्रोत , देवी कवच , लक्ष्मी स्त्रोत , कार्तिकेय स्त्रोत एवं कुमार कार्तिकेय की नित्य पूजा अर्चना एवं पाठ करना चाहिए।
24 जिन युवक-युवतियों का विवाह मंगल दोष के कारण नहीं हो रहा हैं, उन्हें प्रतीक स्वरूप विवाह करना चाहिए। जिनमें कन्या का प्रतीक विवाह भगवान विष्णु से या सालिग्राम के पत्थर या मूर्ति से कराया जाता हैं। इसी प्रकार पुरूष का प्रतीक विवाह बैर की झाडि़यों से कराया जाता हैं।
25 विवाह के इच्छुक मांगलिक युवक-युवतियों को तांबंे का सिक्का पाकेट या पर्स में रखना चाहिए। तांबें की अंगुठी अनामिका अंगुली में धारण करे, तांबे का छल्ला साथ रखें, रात्रि में तांबे के पात्र में जल भरकर रखें व प्रातः काल उसे पीयें।
26 प्रतिदिन तुलसी को जल चढ़ाने और तुलसी पत्र का सेवन करने से मंगल के अनिष्ठ शांत होते हैं।
27 अपना चरित्र हमेशा सही रखें । झूठ नहीं बोले । किसी को सताए नहीं । झूठी गवाही कभी भी ना देवे । दक्षिण दिशा वाले द्वार में न रहें । किसी से ईष्र्या, द्वेश भाव न रखे । यथा शक्ति दान करें ।
28 मंगलवार के दिन सौ गा्रम बादाम दक्षिणमुखी हनुमानजी के यहां ले जावे । उनमें से आधे बादाम मंदिर में रख देवे और आधे बादाम घर लाकर पूजा स्थल पर रखें । बादाम खुले में ही रखे । यह जब तक रखे जब तक की आपकी मंगल की महाद
शा चलती हैं ।
29 मूंगा या रूद्राक्ष की माला हमेशा अपने गले में धारण करें ।
30 आँखो में सुरमा लगावें । जमीन पर सोयें । गायत्री मंत्र का जाप संध्याकाल में करें ।
31 नित्य सुबह पिता अथवा बड़े भाई के चरण छुकर आशीर्वाद लेवें ।
32 मंगल की शांति हेतु मूंगा रत्न धारण करना चाहिए इसके लिए चांदी की अंगुठी में मूंगा जड़वाकर दायें हाथ की अनामिका में धारण करना चाहिए। मंूगे का वजन 6 रत्ती से अधिक होना चाहिए। धारण करने से पूर्व मंूगे को गंगाजल, गौमूत्र अथवा गुलाब जल से स्नान करवाकर शुद्ध करें तत्पश्चात विधि अनुसार धारण करें।
33 जो जातक मूंगा धारण नहीं कर सकते उन्हें तीनमुखी रूद्राक्ष धारण कराना चाहिए । तीन मुखी रूद्राक्ष को लाल धागे में गुथकर धूपित करके, मंगलवाल के दिन गले या दाहिने हाथ में धारण करें । इसके प्रभाव से उन्हें मंगल शांति में सफलता मिलती हैं ।
34 क्रुर व उग्र होते हुए भी सौम्य ग्रहों की युति से मंगल विशेष सौम्य फल प्रदान करता हैं । चन्द्र व मंगल की युति आकस्मिक धनप्राप्ति, शनि मंगल की युति डुप्लीकेट सामान बनाने व नकल करने में माहिर बनाता हैं, ऐसा व्यक्ति कार्टूनिस्ट, पोट्रेट आर्टिस्ट व मुखौटे बनाने में निपुण हो सकता हैं । शुक्र व मंगल की युति फोटोग्राफी, सिनेमा तथा चित्रकारी आदि की योग्यता भी देता हैं । बुध के साथ युति होने पर जासूस का वैज्ञानिक और मांगलिक प्रभाव भी नष्ट करता हैं, किन्तु जिन घरों पर वह दृष्टि डालता हें वहां अवश्य ही हानि करने वाला होता हैं । कुण्डली में सातवां घर मंगल का ही माना जाता हैं क्योकिं यह मंगल की उच्च राशि हैं । अतः सातवां घर मंगल की स्वराशि का घर कहलाता हैं ।
35 पुत्रहीनता तथा ऋणग्रस्तता दूषित मंगल की ही देन होती हैं । स्त्रियों में कामवासना का विशेष विचार भी मंगल से किया जाता हैं । मंगल के प्रभाव से होने वाले रोगादि रक्त-सम्बन्धी रोग, पित्त विकार, मज्जा विकार, नेत्र विकार, जलन, तृष्णा, मिर्गी व उन्माद आदि मानसिक रोग, चर्म रोग, अस्थिभ्रंश, आॅपरेशन, दुर्घटना, रक्तस्त्राव व घाव, पशुभय, भूत-पिशाच के आवेश से होने वाली पीड़ाएं आदि विशेष हैं । निर्बल होने से यह जीवन शक्ति उत्साह व उमंग का नाश करता हैं तथा कायर बनाता हैं ।
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जानिए मंगल का ज्योतिष में महत्व: —-
पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार ज्योतिष में मंगल देव/ग्रह को मुकदमा ऋण, झगड़ा, पेट की बीमारी, क्रोध, भूमि, भवन, मकान और माता का कारण होता है। मंगल देश प्रेम, साहस, सहिष्णुता, धैर्य, कठिन, परिस्थितियों एवं समस्याओं को हल करने की योग्यता तथा खतरों से सामना करने की ताकत देता है।

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