जानिए अनायास धन प्राप्ति के विभिन्न योग (पैसा/धन मिलने के योग)—–
कुंडली में दूसरे भाव को ही धन भाव कहा गया है। इसके अधिपति की स्थिति संग्रह किए जाने वाले धन के बारे में संकेत देती है। कुंडली का चौथा भाव हमारे सुखमय जीवन जीने का संकेत देता है। पांचवां भाव हमारी उत्पादकता बताता है, छठे भाव से ऋणों और उत्तरदायित्वों को देखा जाएगा। सातवां भाव व्यापार में साझेदारों को देखने के लिए बताया गया है। इसके अलावा ग्यारहवां भाव आय और बारहवां भाव व्यय से संबंधित है। प्राचीन काल से ही जीवन में अर्थ के महत्व को प्रमुखता से स्वीकार किया गया। इसका असर फलित ज्योतिष में भी दिखाई देता है। केवल दूसरा भाव सक्रिय होने पर जातक के पास पैसा होता है, लेकिन आय का निश्चित स्रोत नहीं होता जबकि दूसरे और ग्यारहवें दोनों भावों में मजबूत और सक्रिय होने पर जातक के पास धन भी होता है और उस धन से अधिक धन पैदा करने की ताकत भी। ऐसे जातक को ही सही मायने में अमीर कहेंगे।
यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः। स पण्डितः स श्रुतिमान गुणज्ञः।
स एवं वक्ता स च दर्शनीयः। सर्वेगुणाः कांचनमाश्रयन्ति।।
नीति का यह श्लोक आज के अर्थ-प्रधान युग का वास्तविक स्वरूप व सामाजिक चित्र प्रस्तुत करता है। आज के विश्व में धनवान की ही पूजा होती है। जिस मनुष्य के पास धन नहीं होता, वह कितना ही विद्वान हो, कितना ही चतुर हो, उसे महत्ता नहीं मिलती। इस प्रकार ऐसे बहुत से व्यक्ति मिलते हैं, जो सर्वगुण सम्पन्न हैं, परन्तु धन के बिना समाज में उनका कोई सम्मान नहीं है। अतः यह आवश्यक है कि जन्म कुंडली में धन द्योतक ग्रहों एवं भावों का पूर्ण रूपेण विवेचन किया जाये।
ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली में धन योग के लिए द्वितीय भाव, पंचम भाव, नवम भाव व एकादश भाव विचारणीय है। पंचम-एकादश धुरी का धन प्राप्ति में विशेष महत्व है। महर्षि पराशर के अनुसार जैसे भगवान विष्णु के अवतरण के समय पर उनकी शक्ति लक्ष्मी उनसे मिलती है तो संसार में उपकार की सृष्टि होती है। उसी प्रकार जब केन्द्रों के स्वामी त्रिकोणों के भावधिपतियों से संबंध बनाते हैं तो बलशाली धन योग बनाते हैं। यदि केन्द्र का स्वामी-त्रिकोण का स्वामी भी है, जिसे ज्योतिषीय भाषा में राजयोग भी कहते हैं। इसके कारक ग्रह यदि थोड़े से भी बलवान हैं तो अपनी और विशेषतया अपनी अंतर्दशा में निश्चित रूप से धन पदवी तथा मान में वृद्धि करने वाले होते हैं। पराशरीय नियम, यह भी है कि त्रिकोणाधिपति सर्वदा धन के संबंध में शुभ फल करता है। चाहे, वह नैसर्गिक पापी ग्रह शनि या मंगल ही क्यों न हो।
यह बात ध्यान रखने योग्य है कि जब धनदायक ग्रह अर्थात् दृष्टि, युति और परिवर्तन द्वारा परस्पर संबंधित हो तो शास्त्रीय भाषा में ये योग महाधन योग के नाम से जाने जाते हैं। लग्नेष, धनेष, एकादशेष, धन कारक ग्रह गुरु तथा सू. व च0 अधिष्ठित राशियों के अधिपति सभी ग्रह धन को दर्शाने वाले ग्रह हैं। इनका पारस्परिक संबंध जातक को बहुत धनी बनाता है। नवम भाव, नवमेश भाग्येश, राहु केतु तथा बुध ये सब ग्रह भी शीघ्र अचानक तथा दैवयोग द्वारा फल देते हैं। धन प्राप्ति में लग्न का भी अपना विशेष महत्व होता है। लग्नाधिपति तथा लग्न कारक की दृष्टि के कारण अथवा इनके योग से धन की बढ़ोत्तरी होती है। योग कारक ग्रह (जो कि केन्द्र के साथ-साथ त्रिकोण का भी स्वामी हो) सर्वदा धनदायक ग्रह होता है। यह ग्रह यदि धनाधिपति का शत्रु भी क्यों न हो तो भी जब धनाधिपति से संबंध स्थापित करता है तो धन को बढ़ाता है। जैसे कुंभ लग्न के लिए, यदि लाभ भाव में योग कारक ग्रह ‘शुक्र’ हो और धन भाव में (वृ0) स्वग्रही हो तो अन्य बुरे योग होते हुए भी जातक धनी होता है, क्योंकि योग कारक ‘शुक्र’ व धनकारक ‘वृ0′ व लाभाधिपति ‘वृह’ का केन्द्रीय प्रभाव है। यद्यपि ये दोनों ग्रह एक दूसरे के शुभ हैं।
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दशाओं का प्रभाव—-
धन कमाने या संग्रह करने में जातक की कुंडली में दशा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। द्वितीय भाव के अधिपति यानी द्वितीयेश की दशा आने पर जातक को अपने परिवार से संपत्ति प्राप्त होती है, पांचवें भाव के अधिपति यानी पंचमेश की दशा में सट्टे या लॉटरी से धन आने के योग बनते हैं। आमतौर पर देखा गया है कि यह दशा बीतने के साथ ही जातक का धन भी समाप्त हो जाता है। ग्यारहवें भाव के अधिपति यानी एकादशेश की दशा शुरू होने के साथ ही जातक की कमाई के कई जरिए खुलते हैं। ग्रह और भाव की स्थिति के अनुरूप फलों में कमी या बढ़ोतरी होती है। छठे भाव की दशा में लोन मिलना और बारहवें भाव की दशा में खर्चों में बढ़ोतरी के संकेत मिलते हैं।
शुक्र की महिमा——
किसी व्यक्ति के धनी होने का आकलन उसकी सुख सुविधाओं से किया जाता है। ऐसे में शुक्र की भूमिका उत्तरोत्तर महत्वपूर्ण होती जा रही है। किसी जातक की कुंडली में शुक्र बेहतर स्थिति में होने पर जातक सुविधा संपन्न जीवन जीता है। शुक्र ग्रह का अधिष्ठाता वैसे शुक्राचार्य को माना गया है, जो राक्षसों के गुरु थे, लेकिन उपायों पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि शुक्र का संबंध लक्ष्मी से अधिक है। शुक्र के आधिपत्य में वृषभ और तुला राशियां हैं। इसी के साथ शुक्र मीन राशि में उच्च का होता है। इन तीनों राशियों में शुक्र को बेहतर माना गया है। कन्या राशि में शुक्र नीच हो जाता है, इसलिए कन्या का शुक्र अच्छे परिणाम देने वाला नहीं माना जाता।
लग्न के अनुसार पैसे वाले—–
मेष लग्न के जातकों का शुक्र, वृष लग्न के जातकों का बुध, मिथुन लग्न के जातकों का चंद्रमा, कर्क लग्न वाले जातकों का सूर्य, सिंह लग्न वाले जातकों का बुध, कन्या लग्न वाले जातकों का शुक्र, तुला लग्न वाले जातकों का मंगल, वृश्चिक लग्न वाले जातकों का गुरु, धनु लग्न वाले जातकों का शनि, मकर लग्न वाले जातकों का शनि, कुंभ लग्न वाले जातकों का गुरु और मीन लग्न वाले जातकों का मंगल अच्छी स्थिति में होने पर या इनकी दशा और अंतरदशा आने पर जातक के पास धन का अच्छा संग्रह होता है या पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होती है। अगर लग्न से संबंधित ग्रह की स्थिति सुदृढ़ नहीं है तो संबंधित ग्रहों का उपचार कर स्थिति में सुधार कर सकते हैं।
लग्न के अनुसार कमाने वाले—–
कमाई के लिए कुंडली में ग्यारहवां भाव देखना होगा। इससे आने वाले धन और आय-व्यय का अंदाजा लगाया जा सकता है। मेष लग्न वाले जातकों का शनि, वृष लग्न का गुरु, मिथुन लग्न का मंगल, कर्क लग्न का शुक्र, सिंह लग्न का बुध, कन्या लग्न का चंद्रमा, तुला लग्न का सूर्य, वृश्चिक लग्न का बुध, धनु लग्न का शुक्र, मकर लग्न का मंगल, कुंभ लग्न का गुरु और मीन लग्न का शनि अच्छी स्थिति में होने पर जातक अच्छा धन कमाता है। इन ग्रहों की दशा में भी संबंधित लग्न के जातक अच्छी कमाई करते हैं। उन्हें पुराना पैसा मिलता है और पैतृक सम्पत्ति मिलने के भी इन्हें अच्छे अवसर मिलते हैं।
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विभिन्न प्रमुख ज्योतिषीय ग्रन्थों वृहत पराशर होरा-शास्त्र, वृहतजातक, जातक तत्व, होरा सार, सारावली, मानसागरी, जातक परिजात आदि विभिन्न-विभिन्न धन योगों का विवरण प्राप्त होता है। परन्तु उनमें मुख्य जो अक्सर जन्मकुंडलियों में पाये जाते हैं तथा फलदायी भी हैं,
जातक को धन इन युतियों मे मिलने का कारण बनता है:——
—–भाग्येश बुध से लाभेश मंगल कार्येश शुक्र सुखेश मंगल पंचमेश शुक्र लगनेश शनि धनेश शनि का गोचर से जन्म के बुध के साथ गोचर हो.
—–कार्येश शुक्र का लाभेश मंगल सुखेश मंगल लगनेश शनि पंचमेश शुक्र धनेश शनि से गोचर से जन्म के कार्येश शुक्र के साथ गोचर हो.
—–लाभेश मंगल का धनेश शनि लगनेश शनि से गोचर से जन्म के मंगल के साथ युति बने.
—–लगनेश शनि का सुखेश मंगल धनेश शनि पंचमेश शुक्र से गोचर से जन्म के शनि के साथ योग बने.
—-धनेश शनि का सुखेश मंगल पंचमेश शुक्र से योगात्मक रूप जन्म के शनि के साथ बने.
—-सुखेश मंगल के साथ पंचमेश शुक्र से गोचर से जन्म के मंगल के साथ योगात्मक रूप बने.
—–अगर भाग्येश और षष्ठेस एक ही ग्रह हो
—-मकर लगन की कुंडली मे भाग्येश और षष्ठेश बुध एक ही ग्रह है,यह धन आने का कारण तो बनायेंगे लेकिन अधिकतर मामले मे धनेश,लगनेश,सुखेश,कार्येश के प्रति धन को या तो नौकरी से प्राप्त करवायेंगे या कर्जा से धन देने के लिये अपनी युति को देंगे.
—–यदि चन्द्रमा से 6, 7, 8वें भाव में समस्त शुभ ग्रह विद्यमान हों और वे शुभ ग्रह क्रूर राशि में न हों और न ही सूर्य के समीप हों तो ऐसे योग (चन्द्राधियोग) में उत्पन्न होने वाला जातक धन, ऐश्वर्य से युक्त होता है तथा महान बनता है।
—–अनफा व सुनफा योग जो चन्द्र से द्वितीय, द्वादश भाव में सूर्य को छोड़कर अन्य ग्रहों की स्थिति द्वारा बनते हैं, जातक अपने पुरुषार्थ से धन को प्राप्त करता है। या करने वाला होता है।
—–एक भी शुभ ग्रह केन्द्रादि शुभ, स्थान में स्थित होकर, उच्च का हो व शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो धनाढ्य तथा राजपुरुष बना देता है।
—-पुष्फल योग एक धन और यश देने वाला योग है, जिसमें चन्द्राधिष्ठित, राशि के स्वामी का लग्नेश के साथ होकर केन्द्र में बलवान होना अपेक्षित होता है।
—-लग्नेश द्वितीय भाव में तथा द्वितीयेश लाभ भाव में हो।
—-चंद्रमा से तीसरे, छठे, दसवें, ग्यारहवें स्थानों में शुभ ग्रह हों।
—–पंचम भाव में चंद्र एवं मंगल दोनों हों तथा पंचम भाव पर शुक्र की दृष्टि हो।
—-चंद्र व मंगल एकसाथ हों, धनेश व लाभेश एकसाथ चतुर्थ भाव में हों तथा चतुर्थेश शुभ स्थान में शुभ दृष्ट हो।
—-द्वितीय भाव में मंगल तथा गुरु की युति हो।
—-गज केसरी योग जिसमें बृहस्पति और चन्द्र का केन्द्रीय समन्वय होता है, धन एवं यश देने वाला होता है।
—-यदि कुंडली में कर्क राशि में बुध और शनि .1वें भाव में हो तो जातक महाधनी होता है। (जा0त0)
—-जिस जातक की कुंडली में लाभ भाव में ‘वृ0′ हों और पंचम भाव में सूर्य स्वगृही हों तो जातक की कुंडली में महाधनी योग बनता है।
—-कर्क राशि का चन्द्र लग्न भाव में वृ0 और म0 के साथ हो तो महाधनी योग बनता है।
—–धनेश अष्टम भाव में तथा अष्टमेश धन भाव में हो।
—-पंचम भाव में बुध हो तथा लाभ भाव में चंद्र-मंगल की युति हो।
—गुरु नवमेश होकर अष्टम भाव में हो।
—-वृश्चिक लग्न कुंडली में नवम भाव में चंद्र व बृहस्पति की युति हो।
—-मीन लग्न कुंडली में पंचम भाव में गुरु-चंद्र की युति हो।
—-कुंभ लग्न कुंडली में गुरु व राहु की युति लाभ भाव में हो।
—-चंद्र, मंगल, शुक्र तीनों मिथुन राशि में दूसरे भाव में हों।
—-कन्या लग्न कुंडली में दूसरे भाव में शुक्र व केतु हो।
—-तुला लग्न कुंडली में लग्न में सूर्य-चंद्र तथा नवम में राहु हो।
—-मीन लग्न कुंडली में ग्यारहवें भाव में मंगल हो।
—-यदि जन्मकुंडली में स्वराशि का ‘वृ0′ लग्न भाव में ‘चन्द्रमा’ और ‘मं0′ के साथ हो तो महाधनी योग होता है।
—यदि स्वराशि का ‘षु’ लग्न भाव में चं0 और सूर्य से युक्त अथवा दृष्ट हो तो महाधनी योग होता है।
—-यदि कुंडली में लाभेश-धनभाव में और धनेश-लाभ भाव में हो तो जातक को धन लाभ बहुत अधिक कम प्रयास से प्राप्त होता है।
—धनेश और लाभेश केन्द्रों में हो तो भी जातक को धन-लाभ होता है।
—यदि धनेश लाभ भाव में हो तो जातक धनी होता है।
—-जन्म लग्न या पंचम भाव में मकर या कुंभ राशि का ‘श0′ हो और बु0 लाभ स्थान में हो तो जातक को सब प्रकार से धन लाभ होता है।
—यदि जन्म लग्न में कर्क लग्न हो और लग्न में चं0, वृ0 तथा मं0 हो तो जातक को अचानक धन लाभ होता है।
—-धन स्थान का स्वामी धन स्थान में, लाभ स्थान का अधिपति लाभ स्थान, धनेश, लाभेश लाभ स्थान में स्वराशि या मित्र राशि का अथवा उच्च का हो तो जातक धनवान होता है।
—-यदि जन्मकुंडली में लाभेश और धनेश लग्न में हो तो दोनों मित्र हों तो धन-योग बनता है और यदि लग्न का स्वामी धनेश और लाभेश से युक्त हो तो महाधनी योग बनता है।
—यदि धनेश लग्न में और लग्न का स्वामी धन भाव में हो तो बिना प्रयत्न किये जातक धनवान होता है।
—धन भाव में ‘गु0′ शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो जातक धनवान होता है।
—जब जन्मकुंडली में धन स्थान में ‘शुक्र’ हो, शुभ ग्रह युक्त तथा दृष्ट हो तो जातक धनवान होता है। “जन्मकुंडली में यदि ग्रह नीच राशि में भी स्थित हो तो भी यदि उसकी नीच राशि का स्वामी लग्न में या केन्द्र में स्थित हो अथवा उसकी उच्च राशि का स्वामी यदि लग्न से केन्द्र में स्थित हो तो नीच भंग योग होता है व जातक धनी होता है।”
—-जब लग्न भाव का स्वामी त्रिकोण में स्थित हो, धन भाव का स्वामी लाभ भाव में हो, तथा धन भाव पर धनेश की दृष्टि हो तो कुंडली में महालक्ष्मी योग बनता है।
—-यदि भाग्य स्थान का स्वामी अपनी उच्च राशि में या मूल त्रिकोण अथवा स्वराशि में केन्द्र में स्थित हो, तो भी जातक धनी होगा।
—–ग्यारहवें और बारहवें भाव का अच्छा संबंध होने पर जातक लगातार निवेश के जरिए चल-अचल संपत्तियां खड़ी कर लेता है। पांचवां भाव मजबूत होने पर जातक सट्टा या लॉटरी के जरिए विपुल धन प्राप्त करता है।
——किसी भी जातक के पास किसी समय विशेष में कितना धन हो सकता है, इसके लिए हमें उसका दूसरा भाव, पांचवां भाव, ग्यारहवां और बारहवें भाव के साथ इनके अधिपतियों का अध्ययन करना होगा। इससे जातक की वित्तीय स्थिति का काफी हद तक सही आकलन हो सकता है। इन सभी भावों और भावों के अधिपतियों की स्थिति सुदृढ़ होने पर जातक कई तरीकों से धन कमाता हुआ अमीर बन जाता है।
—-किसी भी लग्न में पांचवें भाव में चंद्रमा होने पर जातक सट्टा या अचानक पैसा कमाने वाले साधनों से कमाई का प्रयास करता है। चंद्रमा फलदाई हो तो ऐसे जातक अच्छी कमाई कर भी लेते हैं।
—-कारक ग्रह की दशा में जातक सभी सुख भोगता है और उसे धन संबंधी परेशानियां भी कम आती हैं।
—-सातवें भाव में चंद्रमा होने पर जातक साझेदार के साथ व्यवसाय करता है लेकिन धोखा खाता है।
—-छठे भाव का ग्यारहवें भाव से संबंध हो तो, जातक ऋण लेता है और उसी से कमाकर समृद्धि पाता है।
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—भगवान के प्रकाश यौगिक क्रिया द्वारा और पदजनजपवाद द्वारा जातक के मुख, हथेली, कुंडली आदि का ध्यान रखकर सम्पत्ति, धन, लाभ, निधि आदि का ज्ञान कराना ही ज्योतिष और धन योग है। सम्पत्ति का संबंध भूमि से और धन का संबंध नगदी, सिक्के नोट आदि से है और लाभ का संबंध व्यापार, व्यवसाय, कपड़ा, मकान, वाहन आदि से संबंध है निधि का अर्थ है अनायास धन प्राप्त होना या आकस्मिक धन प्राप्त होना या अचानक पैतृक सम्पत्ति प्राप्त होना।
—-सर्वप्रथम जन्मकुंडली में धन योग या राजयोग का ज्ञान ग्रहों, राशि, नक्षत्र स्वामी, की क्रूरता सौम्यता स्थान की शुभता/अशुभता और ग्रहों के अधिकार संबंध दशा/अन्तरदशा, होरा, अष्टक वर्ग व गोचर का पारस्परिक संबंध होने से धन योग की शुभता और अशुभता का ज्ञान हो सकता है।
कारक :-
धन का कारक गुरु है, धन प्रदाता स्थान ., 1, 5, 6, 10, 11। धन योग/ राजयोग के द्वारा धन कैसे प्राप्त होगा और कहां से प्राप्त होगा और किस दिशा में और किसके द्वारा व कितना प्राप्त होगा व किस प्रकार धनयोग अशुभ हो जायेगा व उसका इलाज कैसे होगा। शुभ योग है तो उसे अधिक अशुभता।
कभी-कभी जन्म कुंडली में धन योग होने पर भी उसे धन की प्राप्ति नहीं होती, क्योंकि धन योग को कम करने में (1) प्रेत बाधा, (2) संगत, (.) बुरे कर्म, (4) प्रारब्ध, (5) प्रायश्चित आदि कुछ चीजें तथा शष्टेश, अष्टमेश, द्वादशेष से संबंध द्वितीयेश, चतुर्थेश, पंचमेश, नवमेश, दशमेश, एकादेश, युक्त, दृष्ट, परिवर्तन योग।
1. लग्न/लग्नेश 2, 4, 5, 6, 10, 11 के स्वामियों से संबंध हो धनेश का 4, 5, 6, 10, 11, चतुर्थेश का 5, 6, 10, 11, पंचमेश का 6, 10, 11 नवमेश का 10, 11 या 3, 6, 11 में राहु हो।
कन्या राशि में राहु के साथ श0, मं0, षु0, हो तो कुबेर से भी अधिक धन प्राप्त होगा।
गुरु/चं0 त्रिकोण में हो। 10वें और लग्न वृ0/षु0 हो।
सू0/चं0 पर स्पष्ट दृष्टि हो तथा दूसरे घर में षुक्र हो और सू0/चं0 की दृष्टि हो, 2 गु0 हो। सू0/चं0 की राशि हो, दूसरे घर में गुरु हो बुध हो दृष्ट हो।
जन्म दिन का हो और चं0 स्वांश या मित्र नवांश में हो, गु0 की दृष्टि हो। जन्म राम का हो चं0 स्वांश मित्र नवांश में हो गुरु पर षुक्र की दृष्टि हो।
निश्चय धन योग:-
लग्न में, स्वगृही सूर्य हो। मं0/षु0 की दृष्टि या युति हो। लग्न में बुध/गुरु की युति या दृष्टि हो, लग्न में मं0 हो, लग्न में बुध हो, गुरु या शुक्र की युति हो, बुध या मं0 की दृष्टि हो।
लग्न में षु0 हो या बुध या लग्न में शनि हो मंगल या गुरु दृष्टि हो।
धन नैतिक/अनैतिक कार्य से:-
नवमेश/दशमेश धन प्रदाय है, जिस ग्रह के साथ हो, उसके अनुसार नैतिक या अनैतिक कर्म से धन प्राप्त हो। अनैतिक चोरी, लॉटरी, मटका, जुआ/लग्न या चन्द्र से उपचय भावों में बुध, गुरु, शुक्र या तीनों ग्रह हो तो अधिक धन एक ग्रह हो तो कम।
धन मिलने का समय:-
दूसरे घर में चन्द्र या कोई शुभ ग्रह व द्वितीयेश व लग्नेश हो तो उस समय लाभ कारक ग्रह की दशा/अंतरदशा में धन अवश्य मिलता है।
अवस्था
केन्द्र 1, 2, 11 में ग्रह उच्च और मित्र हो तो बाल्यवस्था में धन प्राप्त होगा। धनेश, लाभेश, लग्नेश, केन्द्र व त्रिकोण में हो तो मध्यम अवस्था में धन प्राप्त होगा।
लग्नेश जहां हो उस स्थान का स्वामी लग्नेश में आ जाये तो वृद्धावस्था में धन प्राप्त होगा।
किस दिशा/देश/विदेश :-
चर लग्न हो/लग्नेश चर में हो और शीघ्रगामी ग्रह की दृष्टि हो तो विदेश से धन प्राप्त होगा। स्थिर लग्न/लग्नेश स्थिर राशि में हो और स्थिर ग्रहों की दृष्टि हो तो उसी देश में धन प्राप्त होगा।
किस दिशा:-
दशा नाथ की राशि, लाभेश की दिशा, द्वितीयेश की दिशा में जो बलवान हो, उस दिशा में धन प्राप्त होगा।
किस के द्वारा:-
दशम में सूर्य – पिता
दशम में चन्द्र – माता
दशम में मंगल – शत्रु/भाई
दशम में बुध – मित्र
दशम में गुरु – विद्या
दशम में शुक्र – स्त्री से
दशम में शनि – दासों से
धन संख्या:-
उच्च राशि में सूर्य हो तो – एक हजार
उच्च राशि में चन्द्र हो तो – एक लाख
उच्च राशि में मंगल हो तो – एक शत लाख
उच्च राशि में बुध हो तो – करोड़
उच्च राशि में गुरु हो तो – अरब
उच्च राशि में शुक्र हो तो – खरब
उच्च राशि में शनि हो तो – कम/अल्प
द्वितीयेश गोपुरांश हो और शुक्र पारवंतांश हो तो धन प्राप्त होगा।
उपजीविका:-
1. दशम में जो ग्रह हो, उसकी प्रकृति के अनुसार दो तीन हो तो उनमें बलवान ग्रह/दशमेश जहां स्थित हो, उस ग्रह को प्रकृति के अनुसार होगी।
वराहमिहिर के अनुसार दशमेश जिसके नवांश में स्थित हो, उस नवांश के अनुसार जीविका, उपजीविका का व्यवसाय से संबंध होता हैं।
तत्काल धन:-
धनेश/दशमेश युक्त हो या संबंध हो।
1, 2, 11 अपने स्वामी से युक्त हो तब।
लग्न में 2, 11 भाव स्वामी हो।
लाभेश पर 2, 4, की दृष्टि हो तथा नवम की भी दृष्टि चं0/मं0 लग्नेश में किसी स्थान में हो तो व्यय भाव में शुक्र/शनि/बुध हो तो धन संग्रह करने की आदत रहती है।
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ज्योतिषीय धन आने के उपाय—-
—-वक्री मंगल के लिये यह जरूरी है कि किसी से भी कोई वस्तु बिना मूल्य चुकाये नही ले,हो सके तो दान मे दी जाने वाली वस्तुओं का परित्याग करे.
—-वक्री मंगल से अधिकतर मामले मे बात झूठ के सहारे से पूरी की जाती है इसलिये झूठ का सहारा नही ले और जो भी है उसे हकीकत मे बयान करने से मंगल सहायक हो जायेगा.
—कभी भी नाखून दांत हड्डी सींग बाल आदि से बने सामान का प्रयोग नही करे,और ना ही घर मे रखें.
—-मूंगा सवा सात रत्ती का गोल्ड मे या तांबे मे पेंडेंट की शक्ल मे बनवा कर गले मे धारण करे.
—भाग्येश को बल देने के लिये चौडे पत्ते वाले पेड घर मे लगायें,दांत साफ़ रखे,किसी प्रकार की झूठी गवाही या —इसी प्रकार के दस्तावेज को प्रस्तुत करने के बाद अपने काम को निकालने की कोशिश नही करे,अन्यथा झूठे मुकद्दमे या इसी प्रकार के आक्षेप बजाय धन देने के पास से भी खर्च करवा सकते है.
—-बायें हाथ की कनिष्ठा उंगली मे सवा पांच रत्ती का पन्ना पहिने.
—–किसी भी पीर फ़कीर का दिया ताबीज या यंत्र घर या पूजा मे नही रखें.
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यदि आपने देखा ऐसा सपना तो मिलेगा धन—-
सपनों का काफी गहरा संबंध है हमारे भविष्य से। स्वप्न ज्योतिष के अनुसार सपनों से हमारी भविष्य संबंधी सफलता-असफलता जुड़ी रहती है। यदि हमें निकट भविष्य में धन मिलने के योग हैं, तो इस संबंध में भी सपने यह योग बता देते हैं। धन प्राप्ति के योग बताने वाले कुछ सपने इस प्रकार हैं-
—-मुर्दा उठाकर ले जाते देखना—-
आकस्मिक धन की प्राप्ति हो सकती है। इस धन से संकट आ सकता है और यह धन स्वयं के उपयोग में नहीं आएगा।
—मछली देखना—-
स्वप्न में मछली दिखाई दे तो धन-दौलत की प्राप्ति होती है। मंत्री पद और उच्च पदवी की प्राप्ति होती है। पाया हुआ धन बरकती होता है तथा जीवनभर चलता है।
—शव यात्रा देखना—
विदेश से लाभ की प्राप्ति हो सकती है। धन-मान, सम्मान मिलने की संभावना होती है। अचानक गढ़ा धन प्राप्ति का योग बनता है।
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यदि आपका ये अंग फड़के तो जानिए की धन मिलेगा—
सामुद्रिकशास्त्र के अनुसार हमारे शरीर के विभिन्न अंगों के फड़कने के कई कारण होते हैं। किसी अंग के फड़कने से शुभ समाचार की प्राप्ति होती है, तो किसी अंग का फड़कना अशुभ माना जाता है।वैसे तो हमारे शरीर के दाहिने अंग के फड़कने को शुभ और बाएं अंग को अशु माना जाता है। लेकिन महिलाओं के लिए यह विपरीत है। महिलाओं के बाएं अंग का फड़कना शुभ माना जाता है।
—-यदि आपके दाहिने पैर की पिंडली फड़क रही है तो आपको अचानक कहीं से पैसे मिलने की संभावना बनी रहती है।
—निचले होंठ का फड़कना जीवन साथी या प्रेमी या प्रेमिका से सुख और पैसों का सुख मिलने का इशारा होता है। होंठ का दाहिना कोना फड़कना आपको मित्रों से अचानक धन लाभ होने का संकेत देता है।
—-दाहिनी आंख का कोना फड़कना बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसे में आपको पैसों के साथ-साथ कोई बहुत शुभ समाचार प्राप्त होने की संभावना होती है। बाएं ओर की आंख का फड़कना अशुभ माना जाता है।
—–यदि आपको दोनों होंठ एक साथ फड़कते हैं तो आपको पैसा और किस्मत दोनों का योग बनता है। यदि किसी व्यक्ति की दाहिनी हथेली फड़ती है तो उसे धन का लाभ प्राप्त होता है। यदि दाहिना हाथ फड़कता है तो भी पैसे साथ व्यक्ति को मान सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
—-यदि किसी व्यक्ति के दोनों भौहों के बीच फड़कन होती है तो ऐसे इंसान को सुख-सुविधाएं प्राप्त होने की संभावनाएं होती है। ऐसा व्यक्ति निकट भविष्य में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकता है। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति के कंठ या गला फड़फड़ाता है तो यह भी शुभ सगुन है। माथे का फड़कना भी शुभ संकेत देता है। माथा फड़कने से व्यक्ति को भूमि भवन संबंधित लाभ होने की संभावना रहती है।
कुंडली में दूसरे भाव को ही धन भाव कहा गया है। इसके अधिपति की स्थिति संग्रह किए जाने वाले धन के बारे में संकेत देती है। कुंडली का चौथा भाव हमारे सुखमय जीवन जीने का संकेत देता है। पांचवां भाव हमारी उत्पादकता बताता है, छठे भाव से ऋणों और उत्तरदायित्वों को देखा जाएगा। सातवां भाव व्यापार में साझेदारों को देखने के लिए बताया गया है। इसके अलावा ग्यारहवां भाव आय और बारहवां भाव व्यय से संबंधित है। प्राचीन काल से ही जीवन में अर्थ के महत्व को प्रमुखता से स्वीकार किया गया। इसका असर फलित ज्योतिष में भी दिखाई देता है। केवल दूसरा भाव सक्रिय होने पर जातक के पास पैसा होता है, लेकिन आय का निश्चित स्रोत नहीं होता जबकि दूसरे और ग्यारहवें दोनों भावों में मजबूत और सक्रिय होने पर जातक के पास धन भी होता है और उस धन से अधिक धन पैदा करने की ताकत भी। ऐसे जातक को ही सही मायने में अमीर कहेंगे।
यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः। स पण्डितः स श्रुतिमान गुणज्ञः।
स एवं वक्ता स च दर्शनीयः। सर्वेगुणाः कांचनमाश्रयन्ति।।
नीति का यह श्लोक आज के अर्थ-प्रधान युग का वास्तविक स्वरूप व सामाजिक चित्र प्रस्तुत करता है। आज के विश्व में धनवान की ही पूजा होती है। जिस मनुष्य के पास धन नहीं होता, वह कितना ही विद्वान हो, कितना ही चतुर हो, उसे महत्ता नहीं मिलती। इस प्रकार ऐसे बहुत से व्यक्ति मिलते हैं, जो सर्वगुण सम्पन्न हैं, परन्तु धन के बिना समाज में उनका कोई सम्मान नहीं है। अतः यह आवश्यक है कि जन्म कुंडली में धन द्योतक ग्रहों एवं भावों का पूर्ण रूपेण विवेचन किया जाये।
ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली में धन योग के लिए द्वितीय भाव, पंचम भाव, नवम भाव व एकादश भाव विचारणीय है। पंचम-एकादश धुरी का धन प्राप्ति में विशेष महत्व है। महर्षि पराशर के अनुसार जैसे भगवान विष्णु के अवतरण के समय पर उनकी शक्ति लक्ष्मी उनसे मिलती है तो संसार में उपकार की सृष्टि होती है। उसी प्रकार जब केन्द्रों के स्वामी त्रिकोणों के भावधिपतियों से संबंध बनाते हैं तो बलशाली धन योग बनाते हैं। यदि केन्द्र का स्वामी-त्रिकोण का स्वामी भी है, जिसे ज्योतिषीय भाषा में राजयोग भी कहते हैं। इसके कारक ग्रह यदि थोड़े से भी बलवान हैं तो अपनी और विशेषतया अपनी अंतर्दशा में निश्चित रूप से धन पदवी तथा मान में वृद्धि करने वाले होते हैं। पराशरीय नियम, यह भी है कि त्रिकोणाधिपति सर्वदा धन के संबंध में शुभ फल करता है। चाहे, वह नैसर्गिक पापी ग्रह शनि या मंगल ही क्यों न हो।
यह बात ध्यान रखने योग्य है कि जब धनदायक ग्रह अर्थात् दृष्टि, युति और परिवर्तन द्वारा परस्पर संबंधित हो तो शास्त्रीय भाषा में ये योग महाधन योग के नाम से जाने जाते हैं। लग्नेष, धनेष, एकादशेष, धन कारक ग्रह गुरु तथा सू. व च0 अधिष्ठित राशियों के अधिपति सभी ग्रह धन को दर्शाने वाले ग्रह हैं। इनका पारस्परिक संबंध जातक को बहुत धनी बनाता है। नवम भाव, नवमेश भाग्येश, राहु केतु तथा बुध ये सब ग्रह भी शीघ्र अचानक तथा दैवयोग द्वारा फल देते हैं। धन प्राप्ति में लग्न का भी अपना विशेष महत्व होता है। लग्नाधिपति तथा लग्न कारक की दृष्टि के कारण अथवा इनके योग से धन की बढ़ोत्तरी होती है। योग कारक ग्रह (जो कि केन्द्र के साथ-साथ त्रिकोण का भी स्वामी हो) सर्वदा धनदायक ग्रह होता है। यह ग्रह यदि धनाधिपति का शत्रु भी क्यों न हो तो भी जब धनाधिपति से संबंध स्थापित करता है तो धन को बढ़ाता है। जैसे कुंभ लग्न के लिए, यदि लाभ भाव में योग कारक ग्रह ‘शुक्र’ हो और धन भाव में (वृ0) स्वग्रही हो तो अन्य बुरे योग होते हुए भी जातक धनी होता है, क्योंकि योग कारक ‘शुक्र’ व धनकारक ‘वृ0′ व लाभाधिपति ‘वृह’ का केन्द्रीय प्रभाव है। यद्यपि ये दोनों ग्रह एक दूसरे के शुभ हैं।
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दशाओं का प्रभाव—-
धन कमाने या संग्रह करने में जातक की कुंडली में दशा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। द्वितीय भाव के अधिपति यानी द्वितीयेश की दशा आने पर जातक को अपने परिवार से संपत्ति प्राप्त होती है, पांचवें भाव के अधिपति यानी पंचमेश की दशा में सट्टे या लॉटरी से धन आने के योग बनते हैं। आमतौर पर देखा गया है कि यह दशा बीतने के साथ ही जातक का धन भी समाप्त हो जाता है। ग्यारहवें भाव के अधिपति यानी एकादशेश की दशा शुरू होने के साथ ही जातक की कमाई के कई जरिए खुलते हैं। ग्रह और भाव की स्थिति के अनुरूप फलों में कमी या बढ़ोतरी होती है। छठे भाव की दशा में लोन मिलना और बारहवें भाव की दशा में खर्चों में बढ़ोतरी के संकेत मिलते हैं।
शुक्र की महिमा——
किसी व्यक्ति के धनी होने का आकलन उसकी सुख सुविधाओं से किया जाता है। ऐसे में शुक्र की भूमिका उत्तरोत्तर महत्वपूर्ण होती जा रही है। किसी जातक की कुंडली में शुक्र बेहतर स्थिति में होने पर जातक सुविधा संपन्न जीवन जीता है। शुक्र ग्रह का अधिष्ठाता वैसे शुक्राचार्य को माना गया है, जो राक्षसों के गुरु थे, लेकिन उपायों पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि शुक्र का संबंध लक्ष्मी से अधिक है। शुक्र के आधिपत्य में वृषभ और तुला राशियां हैं। इसी के साथ शुक्र मीन राशि में उच्च का होता है। इन तीनों राशियों में शुक्र को बेहतर माना गया है। कन्या राशि में शुक्र नीच हो जाता है, इसलिए कन्या का शुक्र अच्छे परिणाम देने वाला नहीं माना जाता।
लग्न के अनुसार पैसे वाले—–
मेष लग्न के जातकों का शुक्र, वृष लग्न के जातकों का बुध, मिथुन लग्न के जातकों का चंद्रमा, कर्क लग्न वाले जातकों का सूर्य, सिंह लग्न वाले जातकों का बुध, कन्या लग्न वाले जातकों का शुक्र, तुला लग्न वाले जातकों का मंगल, वृश्चिक लग्न वाले जातकों का गुरु, धनु लग्न वाले जातकों का शनि, मकर लग्न वाले जातकों का शनि, कुंभ लग्न वाले जातकों का गुरु और मीन लग्न वाले जातकों का मंगल अच्छी स्थिति में होने पर या इनकी दशा और अंतरदशा आने पर जातक के पास धन का अच्छा संग्रह होता है या पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होती है। अगर लग्न से संबंधित ग्रह की स्थिति सुदृढ़ नहीं है तो संबंधित ग्रहों का उपचार कर स्थिति में सुधार कर सकते हैं।
लग्न के अनुसार कमाने वाले—–
कमाई के लिए कुंडली में ग्यारहवां भाव देखना होगा। इससे आने वाले धन और आय-व्यय का अंदाजा लगाया जा सकता है। मेष लग्न वाले जातकों का शनि, वृष लग्न का गुरु, मिथुन लग्न का मंगल, कर्क लग्न का शुक्र, सिंह लग्न का बुध, कन्या लग्न का चंद्रमा, तुला लग्न का सूर्य, वृश्चिक लग्न का बुध, धनु लग्न का शुक्र, मकर लग्न का मंगल, कुंभ लग्न का गुरु और मीन लग्न का शनि अच्छी स्थिति में होने पर जातक अच्छा धन कमाता है। इन ग्रहों की दशा में भी संबंधित लग्न के जातक अच्छी कमाई करते हैं। उन्हें पुराना पैसा मिलता है और पैतृक सम्पत्ति मिलने के भी इन्हें अच्छे अवसर मिलते हैं।
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विभिन्न प्रमुख ज्योतिषीय ग्रन्थों वृहत पराशर होरा-शास्त्र, वृहतजातक, जातक तत्व, होरा सार, सारावली, मानसागरी, जातक परिजात आदि विभिन्न-विभिन्न धन योगों का विवरण प्राप्त होता है। परन्तु उनमें मुख्य जो अक्सर जन्मकुंडलियों में पाये जाते हैं तथा फलदायी भी हैं,
जातक को धन इन युतियों मे मिलने का कारण बनता है:——
—–भाग्येश बुध से लाभेश मंगल कार्येश शुक्र सुखेश मंगल पंचमेश शुक्र लगनेश शनि धनेश शनि का गोचर से जन्म के बुध के साथ गोचर हो.
—–कार्येश शुक्र का लाभेश मंगल सुखेश मंगल लगनेश शनि पंचमेश शुक्र धनेश शनि से गोचर से जन्म के कार्येश शुक्र के साथ गोचर हो.
—–लाभेश मंगल का धनेश शनि लगनेश शनि से गोचर से जन्म के मंगल के साथ युति बने.
—–लगनेश शनि का सुखेश मंगल धनेश शनि पंचमेश शुक्र से गोचर से जन्म के शनि के साथ योग बने.
—-धनेश शनि का सुखेश मंगल पंचमेश शुक्र से योगात्मक रूप जन्म के शनि के साथ बने.
—-सुखेश मंगल के साथ पंचमेश शुक्र से गोचर से जन्म के मंगल के साथ योगात्मक रूप बने.
—–अगर भाग्येश और षष्ठेस एक ही ग्रह हो
—-मकर लगन की कुंडली मे भाग्येश और षष्ठेश बुध एक ही ग्रह है,यह धन आने का कारण तो बनायेंगे लेकिन अधिकतर मामले मे धनेश,लगनेश,सुखेश,कार्येश के प्रति धन को या तो नौकरी से प्राप्त करवायेंगे या कर्जा से धन देने के लिये अपनी युति को देंगे.
—–यदि चन्द्रमा से 6, 7, 8वें भाव में समस्त शुभ ग्रह विद्यमान हों और वे शुभ ग्रह क्रूर राशि में न हों और न ही सूर्य के समीप हों तो ऐसे योग (चन्द्राधियोग) में उत्पन्न होने वाला जातक धन, ऐश्वर्य से युक्त होता है तथा महान बनता है।
—–अनफा व सुनफा योग जो चन्द्र से द्वितीय, द्वादश भाव में सूर्य को छोड़कर अन्य ग्रहों की स्थिति द्वारा बनते हैं, जातक अपने पुरुषार्थ से धन को प्राप्त करता है। या करने वाला होता है।
—–एक भी शुभ ग्रह केन्द्रादि शुभ, स्थान में स्थित होकर, उच्च का हो व शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो धनाढ्य तथा राजपुरुष बना देता है।
—-पुष्फल योग एक धन और यश देने वाला योग है, जिसमें चन्द्राधिष्ठित, राशि के स्वामी का लग्नेश के साथ होकर केन्द्र में बलवान होना अपेक्षित होता है।
—-लग्नेश द्वितीय भाव में तथा द्वितीयेश लाभ भाव में हो।
—-चंद्रमा से तीसरे, छठे, दसवें, ग्यारहवें स्थानों में शुभ ग्रह हों।
—–पंचम भाव में चंद्र एवं मंगल दोनों हों तथा पंचम भाव पर शुक्र की दृष्टि हो।
—-चंद्र व मंगल एकसाथ हों, धनेश व लाभेश एकसाथ चतुर्थ भाव में हों तथा चतुर्थेश शुभ स्थान में शुभ दृष्ट हो।
—-द्वितीय भाव में मंगल तथा गुरु की युति हो।
—-गज केसरी योग जिसमें बृहस्पति और चन्द्र का केन्द्रीय समन्वय होता है, धन एवं यश देने वाला होता है।
—-यदि कुंडली में कर्क राशि में बुध और शनि .1वें भाव में हो तो जातक महाधनी होता है। (जा0त0)
—-जिस जातक की कुंडली में लाभ भाव में ‘वृ0′ हों और पंचम भाव में सूर्य स्वगृही हों तो जातक की कुंडली में महाधनी योग बनता है।
—-कर्क राशि का चन्द्र लग्न भाव में वृ0 और म0 के साथ हो तो महाधनी योग बनता है।
—–धनेश अष्टम भाव में तथा अष्टमेश धन भाव में हो।
—-पंचम भाव में बुध हो तथा लाभ भाव में चंद्र-मंगल की युति हो।
—गुरु नवमेश होकर अष्टम भाव में हो।
—-वृश्चिक लग्न कुंडली में नवम भाव में चंद्र व बृहस्पति की युति हो।
—-मीन लग्न कुंडली में पंचम भाव में गुरु-चंद्र की युति हो।
—-कुंभ लग्न कुंडली में गुरु व राहु की युति लाभ भाव में हो।
—-चंद्र, मंगल, शुक्र तीनों मिथुन राशि में दूसरे भाव में हों।
—-कन्या लग्न कुंडली में दूसरे भाव में शुक्र व केतु हो।
—-तुला लग्न कुंडली में लग्न में सूर्य-चंद्र तथा नवम में राहु हो।
—-मीन लग्न कुंडली में ग्यारहवें भाव में मंगल हो।
—-यदि जन्मकुंडली में स्वराशि का ‘वृ0′ लग्न भाव में ‘चन्द्रमा’ और ‘मं0′ के साथ हो तो महाधनी योग होता है।
—यदि स्वराशि का ‘षु’ लग्न भाव में चं0 और सूर्य से युक्त अथवा दृष्ट हो तो महाधनी योग होता है।
—-यदि कुंडली में लाभेश-धनभाव में और धनेश-लाभ भाव में हो तो जातक को धन लाभ बहुत अधिक कम प्रयास से प्राप्त होता है।
—धनेश और लाभेश केन्द्रों में हो तो भी जातक को धन-लाभ होता है।
—यदि धनेश लाभ भाव में हो तो जातक धनी होता है।
—-जन्म लग्न या पंचम भाव में मकर या कुंभ राशि का ‘श0′ हो और बु0 लाभ स्थान में हो तो जातक को सब प्रकार से धन लाभ होता है।
—यदि जन्म लग्न में कर्क लग्न हो और लग्न में चं0, वृ0 तथा मं0 हो तो जातक को अचानक धन लाभ होता है।
—-धन स्थान का स्वामी धन स्थान में, लाभ स्थान का अधिपति लाभ स्थान, धनेश, लाभेश लाभ स्थान में स्वराशि या मित्र राशि का अथवा उच्च का हो तो जातक धनवान होता है।
—-यदि जन्मकुंडली में लाभेश और धनेश लग्न में हो तो दोनों मित्र हों तो धन-योग बनता है और यदि लग्न का स्वामी धनेश और लाभेश से युक्त हो तो महाधनी योग बनता है।
—यदि धनेश लग्न में और लग्न का स्वामी धन भाव में हो तो बिना प्रयत्न किये जातक धनवान होता है।
—धन भाव में ‘गु0′ शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो जातक धनवान होता है।
—जब जन्मकुंडली में धन स्थान में ‘शुक्र’ हो, शुभ ग्रह युक्त तथा दृष्ट हो तो जातक धनवान होता है। “जन्मकुंडली में यदि ग्रह नीच राशि में भी स्थित हो तो भी यदि उसकी नीच राशि का स्वामी लग्न में या केन्द्र में स्थित हो अथवा उसकी उच्च राशि का स्वामी यदि लग्न से केन्द्र में स्थित हो तो नीच भंग योग होता है व जातक धनी होता है।”
—-जब लग्न भाव का स्वामी त्रिकोण में स्थित हो, धन भाव का स्वामी लाभ भाव में हो, तथा धन भाव पर धनेश की दृष्टि हो तो कुंडली में महालक्ष्मी योग बनता है।
—-यदि भाग्य स्थान का स्वामी अपनी उच्च राशि में या मूल त्रिकोण अथवा स्वराशि में केन्द्र में स्थित हो, तो भी जातक धनी होगा।
—–ग्यारहवें और बारहवें भाव का अच्छा संबंध होने पर जातक लगातार निवेश के जरिए चल-अचल संपत्तियां खड़ी कर लेता है। पांचवां भाव मजबूत होने पर जातक सट्टा या लॉटरी के जरिए विपुल धन प्राप्त करता है।
——किसी भी जातक के पास किसी समय विशेष में कितना धन हो सकता है, इसके लिए हमें उसका दूसरा भाव, पांचवां भाव, ग्यारहवां और बारहवें भाव के साथ इनके अधिपतियों का अध्ययन करना होगा। इससे जातक की वित्तीय स्थिति का काफी हद तक सही आकलन हो सकता है। इन सभी भावों और भावों के अधिपतियों की स्थिति सुदृढ़ होने पर जातक कई तरीकों से धन कमाता हुआ अमीर बन जाता है।
—-किसी भी लग्न में पांचवें भाव में चंद्रमा होने पर जातक सट्टा या अचानक पैसा कमाने वाले साधनों से कमाई का प्रयास करता है। चंद्रमा फलदाई हो तो ऐसे जातक अच्छी कमाई कर भी लेते हैं।
—-कारक ग्रह की दशा में जातक सभी सुख भोगता है और उसे धन संबंधी परेशानियां भी कम आती हैं।
—-सातवें भाव में चंद्रमा होने पर जातक साझेदार के साथ व्यवसाय करता है लेकिन धोखा खाता है।
—-छठे भाव का ग्यारहवें भाव से संबंध हो तो, जातक ऋण लेता है और उसी से कमाकर समृद्धि पाता है।
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—भगवान के प्रकाश यौगिक क्रिया द्वारा और पदजनजपवाद द्वारा जातक के मुख, हथेली, कुंडली आदि का ध्यान रखकर सम्पत्ति, धन, लाभ, निधि आदि का ज्ञान कराना ही ज्योतिष और धन योग है। सम्पत्ति का संबंध भूमि से और धन का संबंध नगदी, सिक्के नोट आदि से है और लाभ का संबंध व्यापार, व्यवसाय, कपड़ा, मकान, वाहन आदि से संबंध है निधि का अर्थ है अनायास धन प्राप्त होना या आकस्मिक धन प्राप्त होना या अचानक पैतृक सम्पत्ति प्राप्त होना।
—-सर्वप्रथम जन्मकुंडली में धन योग या राजयोग का ज्ञान ग्रहों, राशि, नक्षत्र स्वामी, की क्रूरता सौम्यता स्थान की शुभता/अशुभता और ग्रहों के अधिकार संबंध दशा/अन्तरदशा, होरा, अष्टक वर्ग व गोचर का पारस्परिक संबंध होने से धन योग की शुभता और अशुभता का ज्ञान हो सकता है।
कारक :-
धन का कारक गुरु है, धन प्रदाता स्थान ., 1, 5, 6, 10, 11। धन योग/ राजयोग के द्वारा धन कैसे प्राप्त होगा और कहां से प्राप्त होगा और किस दिशा में और किसके द्वारा व कितना प्राप्त होगा व किस प्रकार धनयोग अशुभ हो जायेगा व उसका इलाज कैसे होगा। शुभ योग है तो उसे अधिक अशुभता।
कभी-कभी जन्म कुंडली में धन योग होने पर भी उसे धन की प्राप्ति नहीं होती, क्योंकि धन योग को कम करने में (1) प्रेत बाधा, (2) संगत, (.) बुरे कर्म, (4) प्रारब्ध, (5) प्रायश्चित आदि कुछ चीजें तथा शष्टेश, अष्टमेश, द्वादशेष से संबंध द्वितीयेश, चतुर्थेश, पंचमेश, नवमेश, दशमेश, एकादेश, युक्त, दृष्ट, परिवर्तन योग।
1. लग्न/लग्नेश 2, 4, 5, 6, 10, 11 के स्वामियों से संबंध हो धनेश का 4, 5, 6, 10, 11, चतुर्थेश का 5, 6, 10, 11, पंचमेश का 6, 10, 11 नवमेश का 10, 11 या 3, 6, 11 में राहु हो।
कन्या राशि में राहु के साथ श0, मं0, षु0, हो तो कुबेर से भी अधिक धन प्राप्त होगा।
गुरु/चं0 त्रिकोण में हो। 10वें और लग्न वृ0/षु0 हो।
सू0/चं0 पर स्पष्ट दृष्टि हो तथा दूसरे घर में षुक्र हो और सू0/चं0 की दृष्टि हो, 2 गु0 हो। सू0/चं0 की राशि हो, दूसरे घर में गुरु हो बुध हो दृष्ट हो।
जन्म दिन का हो और चं0 स्वांश या मित्र नवांश में हो, गु0 की दृष्टि हो। जन्म राम का हो चं0 स्वांश मित्र नवांश में हो गुरु पर षुक्र की दृष्टि हो।
निश्चय धन योग:-
लग्न में, स्वगृही सूर्य हो। मं0/षु0 की दृष्टि या युति हो। लग्न में बुध/गुरु की युति या दृष्टि हो, लग्न में मं0 हो, लग्न में बुध हो, गुरु या शुक्र की युति हो, बुध या मं0 की दृष्टि हो।
लग्न में षु0 हो या बुध या लग्न में शनि हो मंगल या गुरु दृष्टि हो।
धन नैतिक/अनैतिक कार्य से:-
नवमेश/दशमेश धन प्रदाय है, जिस ग्रह के साथ हो, उसके अनुसार नैतिक या अनैतिक कर्म से धन प्राप्त हो। अनैतिक चोरी, लॉटरी, मटका, जुआ/लग्न या चन्द्र से उपचय भावों में बुध, गुरु, शुक्र या तीनों ग्रह हो तो अधिक धन एक ग्रह हो तो कम।
धन मिलने का समय:-
दूसरे घर में चन्द्र या कोई शुभ ग्रह व द्वितीयेश व लग्नेश हो तो उस समय लाभ कारक ग्रह की दशा/अंतरदशा में धन अवश्य मिलता है।
अवस्था
केन्द्र 1, 2, 11 में ग्रह उच्च और मित्र हो तो बाल्यवस्था में धन प्राप्त होगा। धनेश, लाभेश, लग्नेश, केन्द्र व त्रिकोण में हो तो मध्यम अवस्था में धन प्राप्त होगा।
लग्नेश जहां हो उस स्थान का स्वामी लग्नेश में आ जाये तो वृद्धावस्था में धन प्राप्त होगा।
किस दिशा/देश/विदेश :-
चर लग्न हो/लग्नेश चर में हो और शीघ्रगामी ग्रह की दृष्टि हो तो विदेश से धन प्राप्त होगा। स्थिर लग्न/लग्नेश स्थिर राशि में हो और स्थिर ग्रहों की दृष्टि हो तो उसी देश में धन प्राप्त होगा।
किस दिशा:-
दशा नाथ की राशि, लाभेश की दिशा, द्वितीयेश की दिशा में जो बलवान हो, उस दिशा में धन प्राप्त होगा।
किस के द्वारा:-
दशम में सूर्य – पिता
दशम में चन्द्र – माता
दशम में मंगल – शत्रु/भाई
दशम में बुध – मित्र
दशम में गुरु – विद्या
दशम में शुक्र – स्त्री से
दशम में शनि – दासों से
धन संख्या:-
उच्च राशि में सूर्य हो तो – एक हजार
उच्च राशि में चन्द्र हो तो – एक लाख
उच्च राशि में मंगल हो तो – एक शत लाख
उच्च राशि में बुध हो तो – करोड़
उच्च राशि में गुरु हो तो – अरब
उच्च राशि में शुक्र हो तो – खरब
उच्च राशि में शनि हो तो – कम/अल्प
द्वितीयेश गोपुरांश हो और शुक्र पारवंतांश हो तो धन प्राप्त होगा।
उपजीविका:-
1. दशम में जो ग्रह हो, उसकी प्रकृति के अनुसार दो तीन हो तो उनमें बलवान ग्रह/दशमेश जहां स्थित हो, उस ग्रह को प्रकृति के अनुसार होगी।
वराहमिहिर के अनुसार दशमेश जिसके नवांश में स्थित हो, उस नवांश के अनुसार जीविका, उपजीविका का व्यवसाय से संबंध होता हैं।
तत्काल धन:-
धनेश/दशमेश युक्त हो या संबंध हो।
1, 2, 11 अपने स्वामी से युक्त हो तब।
लग्न में 2, 11 भाव स्वामी हो।
लाभेश पर 2, 4, की दृष्टि हो तथा नवम की भी दृष्टि चं0/मं0 लग्नेश में किसी स्थान में हो तो व्यय भाव में शुक्र/शनि/बुध हो तो धन संग्रह करने की आदत रहती है।
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ज्योतिषीय धन आने के उपाय—-
—-वक्री मंगल के लिये यह जरूरी है कि किसी से भी कोई वस्तु बिना मूल्य चुकाये नही ले,हो सके तो दान मे दी जाने वाली वस्तुओं का परित्याग करे.
—-वक्री मंगल से अधिकतर मामले मे बात झूठ के सहारे से पूरी की जाती है इसलिये झूठ का सहारा नही ले और जो भी है उसे हकीकत मे बयान करने से मंगल सहायक हो जायेगा.
—कभी भी नाखून दांत हड्डी सींग बाल आदि से बने सामान का प्रयोग नही करे,और ना ही घर मे रखें.
—-मूंगा सवा सात रत्ती का गोल्ड मे या तांबे मे पेंडेंट की शक्ल मे बनवा कर गले मे धारण करे.
—भाग्येश को बल देने के लिये चौडे पत्ते वाले पेड घर मे लगायें,दांत साफ़ रखे,किसी प्रकार की झूठी गवाही या —इसी प्रकार के दस्तावेज को प्रस्तुत करने के बाद अपने काम को निकालने की कोशिश नही करे,अन्यथा झूठे मुकद्दमे या इसी प्रकार के आक्षेप बजाय धन देने के पास से भी खर्च करवा सकते है.
—-बायें हाथ की कनिष्ठा उंगली मे सवा पांच रत्ती का पन्ना पहिने.
—–किसी भी पीर फ़कीर का दिया ताबीज या यंत्र घर या पूजा मे नही रखें.
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यदि आपने देखा ऐसा सपना तो मिलेगा धन—-
सपनों का काफी गहरा संबंध है हमारे भविष्य से। स्वप्न ज्योतिष के अनुसार सपनों से हमारी भविष्य संबंधी सफलता-असफलता जुड़ी रहती है। यदि हमें निकट भविष्य में धन मिलने के योग हैं, तो इस संबंध में भी सपने यह योग बता देते हैं। धन प्राप्ति के योग बताने वाले कुछ सपने इस प्रकार हैं-
—-मुर्दा उठाकर ले जाते देखना—-
आकस्मिक धन की प्राप्ति हो सकती है। इस धन से संकट आ सकता है और यह धन स्वयं के उपयोग में नहीं आएगा।
—मछली देखना—-
स्वप्न में मछली दिखाई दे तो धन-दौलत की प्राप्ति होती है। मंत्री पद और उच्च पदवी की प्राप्ति होती है। पाया हुआ धन बरकती होता है तथा जीवनभर चलता है।
—शव यात्रा देखना—
विदेश से लाभ की प्राप्ति हो सकती है। धन-मान, सम्मान मिलने की संभावना होती है। अचानक गढ़ा धन प्राप्ति का योग बनता है।
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यदि आपका ये अंग फड़के तो जानिए की धन मिलेगा—
सामुद्रिकशास्त्र के अनुसार हमारे शरीर के विभिन्न अंगों के फड़कने के कई कारण होते हैं। किसी अंग के फड़कने से शुभ समाचार की प्राप्ति होती है, तो किसी अंग का फड़कना अशुभ माना जाता है।वैसे तो हमारे शरीर के दाहिने अंग के फड़कने को शुभ और बाएं अंग को अशु माना जाता है। लेकिन महिलाओं के लिए यह विपरीत है। महिलाओं के बाएं अंग का फड़कना शुभ माना जाता है।
—-यदि आपके दाहिने पैर की पिंडली फड़क रही है तो आपको अचानक कहीं से पैसे मिलने की संभावना बनी रहती है।
—निचले होंठ का फड़कना जीवन साथी या प्रेमी या प्रेमिका से सुख और पैसों का सुख मिलने का इशारा होता है। होंठ का दाहिना कोना फड़कना आपको मित्रों से अचानक धन लाभ होने का संकेत देता है।
—-दाहिनी आंख का कोना फड़कना बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसे में आपको पैसों के साथ-साथ कोई बहुत शुभ समाचार प्राप्त होने की संभावना होती है। बाएं ओर की आंख का फड़कना अशुभ माना जाता है।
—–यदि आपको दोनों होंठ एक साथ फड़कते हैं तो आपको पैसा और किस्मत दोनों का योग बनता है। यदि किसी व्यक्ति की दाहिनी हथेली फड़ती है तो उसे धन का लाभ प्राप्त होता है। यदि दाहिना हाथ फड़कता है तो भी पैसे साथ व्यक्ति को मान सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
—-यदि किसी व्यक्ति के दोनों भौहों के बीच फड़कन होती है तो ऐसे इंसान को सुख-सुविधाएं प्राप्त होने की संभावनाएं होती है। ऐसा व्यक्ति निकट भविष्य में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकता है। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति के कंठ या गला फड़फड़ाता है तो यह भी शुभ सगुन है। माथे का फड़कना भी शुभ संकेत देता है। माथा फड़कने से व्यक्ति को भूमि भवन संबंधित लाभ होने की संभावना रहती है।