गणेश चतुर्थी / गणेश चौथ–…4
इस वर्ष गणेश चौथ का पर्व शुक्रवार (29 अगस्त,2014 को) पुरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जायेगा…
इस समय 2014 में विक्रम सम्वत् 2071 के भाद्रपद मास की शुक्ल पक्षीय चतुर्थी को ही गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी यह अवसर इस वर्ष 29th अगस्त,2014 (शुक्रवार) को आ रहा हैं..इस दिन हस्त नक्षत्र होने के साथ साथ चन्द्रमा तुला राशि में रहेगा एवं इसी दिन बुध गृह कन्या राशि में पवेश करेंगे…
” गणेश चतुर्थी ” इसी दिन विघ्नहर्ता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों को बुद्धि, सौभाग्य प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। सुखकर्ता दुःखहर्ता गौरीकुमार भगवान श्रीगणेश सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं। मान्यता है कि इसी तिथि का संबंध भगवान गणेश जी के जन्म से है तथा यह तिथि भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय है. ज्योतिष में भी श्रीगणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है….गजानन गणेश की संकल्प अनुसार साधना करने से विघ्नहर्ता भक्तों की बिगड़ी बना देते हैं। भगवान गणेश स्वयं रिद्घि-सिद्घि के दाता व शुभ-लाभ के प्रदाता हैं। वह भक्तों की बाधा, संकट, रोग-दोष तथा दारिद्र को दूर करते हैं।
गणपति की पूजा बहुत ही आसान है। श्री गणेश पत्र-पुष्प एवं हरी दूब से प्रसन्न हो जाते हैं। गणेश जी का जन्म दोपहर को हुआ। अतः मध्याह्न में ही गणेश पूजन करना चाहिए। इस दिन रविवार या मंगलवार होने पर यह तिथि विशेष फलदायी हो जाती है।
इस दिन गजमुख गणेश की पूजा की जाती है। यह वार्षिक उत्सव दस दिन तक मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश के मूर्ति की स्थापना की जाती है और दस दिन भावभक्ति के साथ पूजा अर्चना की जाती है। दस दिन बाद बड़ी ही धूमधाम से गणेश मूर्ति का विसर्जन जल में किया जाता है।
‘गणेश ‘ गज के सिर वाले शिव पार्वती के पुत्र, सुख, समृद्धि व मंगल के प्रतीक भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति विशेष तौर से पंडालों में सजाई जाती है। कई लोग अपने घरों में भी गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते है। रोज सुबह शाम भगवान श्रीगणेशजी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। जिसके बाद अनंत चौदस वाले दिन प्रतिमा का जल में विसर्जन कर दिया जाता है। सामर्थ्य न होने पर मूर्ति को डेढ़ अथवा तीन दिन के बाद भी विसर्जित किया जा सकता है।
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर चंद्रमा का दर्शन मिथ्या कलंक लेकर आता है। अत: इस दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए। इस चतुर्थी को कलंक चौथ के नाम से भी जाना जाता है। मानव ही नहीं पूर्णावतार भगवान श्रीकृष्ण भी इस तिथि को चंद्र दर्शन करने के पश्चात मिथ्या कलंक से नहीं बच पाए थे।
जब ब्रम्हाजी के सृष्टि निर्माण के समय निरंतर बाधाएं आ रही थीं। तब वे विघ्न विनाशक श्री गणेश जी के पास प्रार्थना लेकर पहुंचे। ब्रम्हाजी की स्तुति से प्रसन्न भगवान गणेश ने उनसे वर माँगने को कहा।
ब्रम्हाजी ने सृष्टि के निर्माण के निर्विƒन पूर्ण होने का वर माँगा। गणेश जी ने तथास्तु कहा और आकाश मार्ग से पृथ्वी पर आने लगे। उस दिन भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी। इसलिए इस तिथि को गणेश उत्सव मनाया जाता है। मार्ग में चंद्रलोक आया, जहाँ चंद्रमा ने श्री गणेश जी का उपहास उडाया। चंद्रमा को अपने सौंदर्य के मद में चूर देखकर श्री गणेश ने उन्हें श्राप दिया कि आज के दिन तुम्हें कोई नहीं देखेगा और यदि देखेगा तो वह मिथ्या कलंक का भागी होगा। चंद्रमा लज्जित होकर छिप गए।
ब्रम्हाजी के कहने पर देवताओं ने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा की और चंद्रमा को क्षमा करने की प्रार्थना की। इस स्तुति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने कहा कि जो शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के चंद्र के दर्शन करेगा और चतुर्थी को विधिवत गणेश पूजन करेगा उसे चतुर्थी के चंद्र दर्शन का दोष नहीं लगेगा।
भक्तकवि तुलसीदास ने भी चौथ के चाँद को कुछ इस तरह वर्णित किया है—-
सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चौथि के चंद की नाईं।।
—————————————————————–
जानिए की कैसे हुआ गणेश अवतरण/ जन्म—-
शिवपुराण अनुसार भगवान गणेश जी के जन्म लेने की कथा का वर्णन प्राप्त होता है जिसके अनुसार देवी पार्वती जब स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक का निर्माण करती हैं और उसे अपना द्वारपाल बनाती हैं वह उनसे कहती हैं ‘हे पुत्र तुम द्वार पर पहरा दो मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ अत: जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर नहीं आने देना.
जब भगवान शिवजी आए तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया और उन्हें भितर न जाने दिया इससे शिवजी बहुत क्रोधित हुए और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर देते हैं, इससे भगवती दुखी व क्रुद्ध हो उठीं अत: उनके दुख को दूर करने के लिए शिवजी के निर्देश अनुसार उनके गण उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आते हैं और शिव भगवान ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर देते हैं.
पार्वती जी हर्षातिरेक हो कर पुत्र गणेश को हृदय से लगा लेती हैं तथा उन्हें सभी देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद देती हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान देते हैं. चतुर्थी को व्रत करने वाले के सभी विघ्न दूर हो जाते हैं सिद्धियां प्राप्त होती हैं….
——————————————————————
जानिए की कैसे करें गणेश चतुर्थी पर गणेश जी का पूजन विधि—–
किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पूर्व सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश जी की स्मरण किया जाता है जिस कारण इन्हें विघ्नेश्वर, विघ्न हर्ता कहा जाता है. भगवान गणेश समस्त देवी देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं. इनकी उपासना करने से सभी विघ्नों का नाश होता है तथा सुख-समृद्ध व ज्ञान की प्राप्ति होती है.
गणेश पूजा के दौरान गणेशजी की प्रतिमा पर चंदन मिश्रण, केसरिया मिश्रण, इत्र, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल, फूलों की माला खासकर गेंदे के फूलों की माला और बेल पत्र को चढ़ाया जाता है, धूपबत्ती जलाये जाते है और नारियल, फल और तांबूल भी अर्पित किया जाता है. पूजा के अंत में भक्त भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी और विष्णु भगवान की आरती की जाती है और प्रसाद को भगवान सभी लोगों में बांट कर स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए.
गणेश भक्त बडी श्रद्धा के साथ चतुर्थी के दिन व्रत रखते हैं. चतुर्थी की रात्रि में चन्द्रमा को अर्घ्यदेकर, गणेश-पूजन करने के बाद फलाहार ग्रहण किया जाता है. इसके व्रत से सभी संकट-विघ्न दूर होते हैं. चतुर्थी का संयोग गणेश जी की उपासना में अत्यन्त शुभ एवं सिद्धिदायक होता है. चतुर्थी का माहात्म्य यह है कि इस दिन विधिवत् व्रत करने से श्रीगणेश तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं. चतुर्थी का व्रत विधिवत करने से व्रत का सम्पूर्ण पुण्य प्राप्त हो जाता है.
इस दिन विधि अनुसार व्रत करने से वर्ष पर्यन्त चतुर्थी व्रत करने का फल प्राप्त होता है. चतुर्थी के शुभ फलों द्वारा व्यक्ति के किसी भी कार्य में कोई विघ्न नहीं आता उसे संसार के समस्त सुख प्राप्त होते हैं भगवान गणेश उस पर सदैव कृपा करते है…
इस गणेश उत्सव में किस कामना के लिए क्या उपाय करें—
विवाह के लिए—
ॐ ग्लौम गणपतयै नमः की 11 माला तथा गणेश स्तोत्र का पाठ नित्य करें। मोदक का भोग लगाएं।
भूमि प्राप्ति के लिए उपाय —-
संकटनाशन गणेश स्तोत्र एवं ऋणमोचन मंगल स्तोत्र के 11 पाठ करें।
भवन प्राप्ति के लिए—
श्रीगणेश पंचरत्न स्तोत्र एवं भुवनेश्वरी चालीसा अथवा भुवनेश्वरी स्तोत्र का पाठ करें।
संपत्ति प्राप्ति के लिए—
श्री गणेश चालीसा, कनकधारा स्तोत्र तथा लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें।
धन-समृद्घि की प्राप्ति के लिए—-
धनदाता गणेश स्तोत्र का पाठ तथा कुबेर यंत्र के पाठ के साथ ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः मंत्र की 11 माला नित्य करें।
इन 10 नामों से करें गणेश को प्रसन्न—-
गणाधिपतये नमः,
विघ्ननाशाय नमः,
ईशपुत्राय नमः,
सर्वासिद्धिप्रदाय नमः,
एकदंताय नमः,
कुमार गुरवे नमः,
मूषक वाहनाय नमः,
उमा पुत्राय नमः,
विनायकाय नमः,
ईशवक्त्राय नमः
और अंत में सभी नामों का एक साथ क्रम में उच्चारण करके बची हुई दूर्वा भी चढ़ा दें। इसी तरह 21 लड्डू भी चढ़ाएं। इनमें से पांच प्रतिमा के पास छोड़ दें,पांच ब्राह्मणों को और शेष प्रसाद के रूप में परिवार में वितरित कर दें।
इस प्रकार पूजन करने से भगवान श्री गणेश की कृपा से सभी विघ्न बाधाएं दूर होकर समस्त कार्य सिद्ध होते हैं।
इस वर्ष गणेश चौथ का पर्व शुक्रवार (29 अगस्त,2014 को) पुरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जायेगा…
इस समय 2014 में विक्रम सम्वत् 2071 के भाद्रपद मास की शुक्ल पक्षीय चतुर्थी को ही गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी यह अवसर इस वर्ष 29th अगस्त,2014 (शुक्रवार) को आ रहा हैं..इस दिन हस्त नक्षत्र होने के साथ साथ चन्द्रमा तुला राशि में रहेगा एवं इसी दिन बुध गृह कन्या राशि में पवेश करेंगे…
” गणेश चतुर्थी ” इसी दिन विघ्नहर्ता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों को बुद्धि, सौभाग्य प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। सुखकर्ता दुःखहर्ता गौरीकुमार भगवान श्रीगणेश सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं। मान्यता है कि इसी तिथि का संबंध भगवान गणेश जी के जन्म से है तथा यह तिथि भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय है. ज्योतिष में भी श्रीगणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है….गजानन गणेश की संकल्प अनुसार साधना करने से विघ्नहर्ता भक्तों की बिगड़ी बना देते हैं। भगवान गणेश स्वयं रिद्घि-सिद्घि के दाता व शुभ-लाभ के प्रदाता हैं। वह भक्तों की बाधा, संकट, रोग-दोष तथा दारिद्र को दूर करते हैं।
गणपति की पूजा बहुत ही आसान है। श्री गणेश पत्र-पुष्प एवं हरी दूब से प्रसन्न हो जाते हैं। गणेश जी का जन्म दोपहर को हुआ। अतः मध्याह्न में ही गणेश पूजन करना चाहिए। इस दिन रविवार या मंगलवार होने पर यह तिथि विशेष फलदायी हो जाती है।
इस दिन गजमुख गणेश की पूजा की जाती है। यह वार्षिक उत्सव दस दिन तक मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश के मूर्ति की स्थापना की जाती है और दस दिन भावभक्ति के साथ पूजा अर्चना की जाती है। दस दिन बाद बड़ी ही धूमधाम से गणेश मूर्ति का विसर्जन जल में किया जाता है।
‘गणेश ‘ गज के सिर वाले शिव पार्वती के पुत्र, सुख, समृद्धि व मंगल के प्रतीक भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति विशेष तौर से पंडालों में सजाई जाती है। कई लोग अपने घरों में भी गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते है। रोज सुबह शाम भगवान श्रीगणेशजी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। जिसके बाद अनंत चौदस वाले दिन प्रतिमा का जल में विसर्जन कर दिया जाता है। सामर्थ्य न होने पर मूर्ति को डेढ़ अथवा तीन दिन के बाद भी विसर्जित किया जा सकता है।
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर चंद्रमा का दर्शन मिथ्या कलंक लेकर आता है। अत: इस दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए। इस चतुर्थी को कलंक चौथ के नाम से भी जाना जाता है। मानव ही नहीं पूर्णावतार भगवान श्रीकृष्ण भी इस तिथि को चंद्र दर्शन करने के पश्चात मिथ्या कलंक से नहीं बच पाए थे।
जब ब्रम्हाजी के सृष्टि निर्माण के समय निरंतर बाधाएं आ रही थीं। तब वे विघ्न विनाशक श्री गणेश जी के पास प्रार्थना लेकर पहुंचे। ब्रम्हाजी की स्तुति से प्रसन्न भगवान गणेश ने उनसे वर माँगने को कहा।
ब्रम्हाजी ने सृष्टि के निर्माण के निर्विƒन पूर्ण होने का वर माँगा। गणेश जी ने तथास्तु कहा और आकाश मार्ग से पृथ्वी पर आने लगे। उस दिन भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी। इसलिए इस तिथि को गणेश उत्सव मनाया जाता है। मार्ग में चंद्रलोक आया, जहाँ चंद्रमा ने श्री गणेश जी का उपहास उडाया। चंद्रमा को अपने सौंदर्य के मद में चूर देखकर श्री गणेश ने उन्हें श्राप दिया कि आज के दिन तुम्हें कोई नहीं देखेगा और यदि देखेगा तो वह मिथ्या कलंक का भागी होगा। चंद्रमा लज्जित होकर छिप गए।
ब्रम्हाजी के कहने पर देवताओं ने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा की और चंद्रमा को क्षमा करने की प्रार्थना की। इस स्तुति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने कहा कि जो शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के चंद्र के दर्शन करेगा और चतुर्थी को विधिवत गणेश पूजन करेगा उसे चतुर्थी के चंद्र दर्शन का दोष नहीं लगेगा।
भक्तकवि तुलसीदास ने भी चौथ के चाँद को कुछ इस तरह वर्णित किया है—-
सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चौथि के चंद की नाईं।।
—————————————————————–
जानिए की कैसे हुआ गणेश अवतरण/ जन्म—-
शिवपुराण अनुसार भगवान गणेश जी के जन्म लेने की कथा का वर्णन प्राप्त होता है जिसके अनुसार देवी पार्वती जब स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक का निर्माण करती हैं और उसे अपना द्वारपाल बनाती हैं वह उनसे कहती हैं ‘हे पुत्र तुम द्वार पर पहरा दो मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ अत: जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर नहीं आने देना.
जब भगवान शिवजी आए तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया और उन्हें भितर न जाने दिया इससे शिवजी बहुत क्रोधित हुए और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर देते हैं, इससे भगवती दुखी व क्रुद्ध हो उठीं अत: उनके दुख को दूर करने के लिए शिवजी के निर्देश अनुसार उनके गण उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आते हैं और शिव भगवान ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर देते हैं.
पार्वती जी हर्षातिरेक हो कर पुत्र गणेश को हृदय से लगा लेती हैं तथा उन्हें सभी देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद देती हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान देते हैं. चतुर्थी को व्रत करने वाले के सभी विघ्न दूर हो जाते हैं सिद्धियां प्राप्त होती हैं….
——————————————————————
जानिए की कैसे करें गणेश चतुर्थी पर गणेश जी का पूजन विधि—–
किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पूर्व सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश जी की स्मरण किया जाता है जिस कारण इन्हें विघ्नेश्वर, विघ्न हर्ता कहा जाता है. भगवान गणेश समस्त देवी देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता हैं. इनकी उपासना करने से सभी विघ्नों का नाश होता है तथा सुख-समृद्ध व ज्ञान की प्राप्ति होती है.
गणेश पूजा के दौरान गणेशजी की प्रतिमा पर चंदन मिश्रण, केसरिया मिश्रण, इत्र, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल, फूलों की माला खासकर गेंदे के फूलों की माला और बेल पत्र को चढ़ाया जाता है, धूपबत्ती जलाये जाते है और नारियल, फल और तांबूल भी अर्पित किया जाता है. पूजा के अंत में भक्त भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी और विष्णु भगवान की आरती की जाती है और प्रसाद को भगवान सभी लोगों में बांट कर स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए.
गणेश भक्त बडी श्रद्धा के साथ चतुर्थी के दिन व्रत रखते हैं. चतुर्थी की रात्रि में चन्द्रमा को अर्घ्यदेकर, गणेश-पूजन करने के बाद फलाहार ग्रहण किया जाता है. इसके व्रत से सभी संकट-विघ्न दूर होते हैं. चतुर्थी का संयोग गणेश जी की उपासना में अत्यन्त शुभ एवं सिद्धिदायक होता है. चतुर्थी का माहात्म्य यह है कि इस दिन विधिवत् व्रत करने से श्रीगणेश तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं. चतुर्थी का व्रत विधिवत करने से व्रत का सम्पूर्ण पुण्य प्राप्त हो जाता है.
इस दिन विधि अनुसार व्रत करने से वर्ष पर्यन्त चतुर्थी व्रत करने का फल प्राप्त होता है. चतुर्थी के शुभ फलों द्वारा व्यक्ति के किसी भी कार्य में कोई विघ्न नहीं आता उसे संसार के समस्त सुख प्राप्त होते हैं भगवान गणेश उस पर सदैव कृपा करते है…
इस गणेश उत्सव में किस कामना के लिए क्या उपाय करें—
विवाह के लिए—
ॐ ग्लौम गणपतयै नमः की 11 माला तथा गणेश स्तोत्र का पाठ नित्य करें। मोदक का भोग लगाएं।
भूमि प्राप्ति के लिए उपाय —-
संकटनाशन गणेश स्तोत्र एवं ऋणमोचन मंगल स्तोत्र के 11 पाठ करें।
भवन प्राप्ति के लिए—
श्रीगणेश पंचरत्न स्तोत्र एवं भुवनेश्वरी चालीसा अथवा भुवनेश्वरी स्तोत्र का पाठ करें।
संपत्ति प्राप्ति के लिए—
श्री गणेश चालीसा, कनकधारा स्तोत्र तथा लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें।
धन-समृद्घि की प्राप्ति के लिए—-
धनदाता गणेश स्तोत्र का पाठ तथा कुबेर यंत्र के पाठ के साथ ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः मंत्र की 11 माला नित्य करें।
इन 10 नामों से करें गणेश को प्रसन्न—-
गणाधिपतये नमः,
विघ्ननाशाय नमः,
ईशपुत्राय नमः,
सर्वासिद्धिप्रदाय नमः,
एकदंताय नमः,
कुमार गुरवे नमः,
मूषक वाहनाय नमः,
उमा पुत्राय नमः,
विनायकाय नमः,
ईशवक्त्राय नमः
और अंत में सभी नामों का एक साथ क्रम में उच्चारण करके बची हुई दूर्वा भी चढ़ा दें। इसी तरह 21 लड्डू भी चढ़ाएं। इनमें से पांच प्रतिमा के पास छोड़ दें,पांच ब्राह्मणों को और शेष प्रसाद के रूप में परिवार में वितरित कर दें।
इस प्रकार पूजन करने से भगवान श्री गणेश की कृपा से सभी विघ्न बाधाएं दूर होकर समस्त कार्य सिद्ध होते हैं।